4/25/2022

बैंकों के प्रकार/वर्गीकरण

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बैंकों के प्रकार अथवा वर्गीकरण 

bank ke prakarसामान्‍य अर्थो में बैंक का अर्थ व्‍यापारिक अथवा व्‍यावसायिक बैंकों से ही लगाया जाता है, किन्‍तु वास्‍तव में व्‍यापारिक बैंकों के अतिरिक्‍त अनेक प्रकार के अन्‍य बैंक भी होते है। कार्यो के आधार पर बैंकों का वर्गीकरण निम्‍न प्रकार है--

1. केन्‍द्रीय बैंक

केन्‍द्रीय बैंक बैंकों का बैंक होता है। इसे नोट निकालने का अधिकार होता है। बैंकिग व्‍यवस्‍था का संचालन करने तथा उसका नियमन एवं नियंत्रण करने के उद्देश्‍य से प्रत्‍येक देश में केन्‍द्रीय बैंक की स्‍थापना की गई है। भारत का केन्‍द्रीय बैंक ‘रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया‘ है। इसकी स्‍थापना 1 अप्रैल, 1935 को की गई है। केन्‍द्रीय बैंक का जनता से कोई प्रत्‍यक्ष सम्‍बन्‍ध नहीं होता है, किन्‍तु बैंकों का बैंक होने के कारण वह बैंकों के माध्‍यम से देश में अप्रत्‍यक्ष रूप से बैंकिंग व्‍यवस्‍था में सहयोग एवं मार्गदर्शन प्रदान करता है। 

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2. व्‍यापारिक बैंक 

सामान्‍य बैंकिंग का कार्य करने वाली संस्‍थाओं को व्‍यापारिक बैंक कहा जाता है। ये बैंक सामान्‍य जनता की छोटी-बड़ी बचतों को जमा के रूप में स्‍वीकार करते हैं तथा उसी आधार पर व्‍यापारियों को अल्‍पकालीन ऋण देते हैं। देश की अर्थव्‍यवस्‍था में इनका महत्‍वपूर्ण योगदान रहता है। व्‍यापारिक बैंकों द्वारा साहसियों तथा व्‍यापारियों की अल्‍पकालीन ऋणों की आवश्‍यकताओं की आपूर्ति की जाती है। व्‍यापारिक बैंक उद्योग-धन्‍धों के लिये दीर्घकालीन वित्तीय सुविधायें प्रदान नहीं करते हैं। व्‍यापारिक बैंकों द्वारा मुद्रा क्रय-विक्रय किया जाता है। जमाओं के रूप में व्‍यापारिक बैंक मुद्रा का क्रय करते है। तथा ऋण प्रदान करने के माध्‍यम से मुद्रा का विक्रय करते है। 

3. औद्योगिक बैंक 

औद्योगिक बैंक में आशय उन बैंकों से है जो उद्योगों को दीर्घकालीन एवं मध्‍यकालीन ऋण प्रदान करते हैं तथा उनकी वित्तीय व्‍यवस्‍था में सहयोग देते है। इनकी विशेषता उद्योगो का दीघकालीन प्रबन्‍ध होता है। ये बैंक अल्‍पकालीन ऋण नहीं देते हैं। इन बैंकों की पूंजी प्रायः व्‍यापारिक बैंकों से अधिक होती है। इन बैंकों के द्वारा दीर्घकालीन ऋणपत्र जारी कर पूंजी प्राप्‍त की जाती है। इसके अलावा इन बैंकों को केन्‍द्रीय बैंक, सरकार तथा विदेशी बैंकों से भी ऋण मिल जाते हैं ताकि उद्योगों को देशी विदेशी मुद्राओं में ऋण दिये जा सकें। भारत के प्रमुख औद्योगिक बैंक निम्‍न हैं- भारतीय औद्योगिक वित्त निगम, औद्योगिक विकास बैंक, भारतीय औद्योगिक साख एवं विनियोग निगम, राज्‍यों के वित्तीय निगम आदि। 

4. कृषि बैंक

कृषि से सम्‍बन्‍धी वित्तीय आवश्‍यकताओं की पूर्ति करने के लियें कृषि बैंक होती है। कृषि की ऋण सम्‍बन्‍धी आवश्‍यकताओं व्‍यापार तथा उद्योग-धन्‍धों की ऋण आवश्‍यकताओं से भिन्‍न होती हैं। कृषकों को दो प्रकार के ऋणों की आवश्‍यकता होती है-- 

(1) बीच, खाद, यन्‍त्र एवं उपकरण आदि क्रय करने के लिये अल्‍पकालीन ऋण की आवश्‍यकता होती है। 

(2) भूमि में स्‍थायी सुधार करने हेतु सिंचाई की व्‍यवस्‍था करने के लिये तथा भारी यन्‍त्रों को क्रय करने के लिये दीर्घकालीन ऋणों की आवश्‍यकता होती है। 

अतः कृषि में वित्तीय आवश्‍यकता की पूर्ति हेतु निम्‍नलिखित बैंक कार्यरत् हैं---

(अ) सहकारी बैंक

सहकारी बैंकों का शुभारम्‍भ सर्वप्रथम जर्मनी में हुआ था। भारत में सहकारी बैंक का प्रारंभ सन् 1904 में सहकारी साख समिति अधिनियम से हुआ और समय≤ पर इसके संगठन में परिवर्तन होता रहा है। किसान प्रारम्भिक समितियों के सदस्‍य होते हैं, जो सदस्‍यों को अंश-पत्र बेचकर तथा जमा स्‍वीकार कर के पूंजी एकत्रित करते हैं। सहकारी बैंकों पर नियंत्रण के लिये केन्‍द्रीय तथा राज्‍य सहकारी बैंकों का संगठन किया जाता है, जो प्रारम्भिक समितियों को ऋण प्रदान करते है। सहकारी बैंक अपने सदस्‍यों को अल्‍पकालीन ऋण प्रदान करते है। 

(ब) भूमि विकास बैंक 

भूमि विकास बैंकों से आशय ऐसे बैंकों से है, जो भूमि को बंधक रखकर कृषकों को दीर्घकालीन ऋण प्रदान करते हैं। भूमि विकास बैंकों की स्‍थापना सर्वप्रथम सन् 1882 में फ्रान्‍स में हुई थी। भारत में भू‍मि विकास बैंकों की शुरूआत सन् 1929 में हुई, जब मद्रास में भूमि बन्‍धक बैंक स्‍थापित किया गया। भूमि विकास बैंक सामान्‍यता ब्‍लॉक स्‍तर पर स्‍थापित की गयी है। भूमि विकास बैंकों के कार्यो में समन्‍वय स्‍थापित करने के लिये तथा इनको वित्त प्रदान करने के लिये राज्‍य स्‍तर पर केन्‍द्रीय भूमि विकास बैंक स्‍थापित किये गये है। 

(‍स) क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक 

भारत में कृषि सम्‍बन्‍धी वित्तीय के आवश्‍यकताओं की पूर्ति हेतु सन् 1975 में क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक की स्‍थापना की गयी। क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक सहकारी बैंक तथा भूमि विकास बैक का मिला-जुला रूप है, जो कि कृषि की अल्‍पकालीन एवं दीर्घकालीन दोनों ही प्रकार की वित्तीय आवश्‍यकताओं की पूर्ति करता है। इससे ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि, व्‍यापार, व्‍यवसाय, उद्योग एवं अन्‍य उत्‍पाद कार्यो का विकास हो सकेंगा। 

(ड़) राष्‍ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक 

भारत सरकार ने जुलाई, 1982 में राष्‍ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक की स्‍थापना की है। इस बैक की स्‍थापना कृषि एवं ग्रामीण विकास के लिये संस्‍थागत साख के पुनरीक्षण के प्रावधानों पर सन् 1979 में गठित क्रेफिकार्ड समिति की अन्‍तरिम रिपोर्ट की स्‍वीकृति का परिणाम था। राष्‍ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक की स्‍थापना एक शिखर संस्‍था के रूप में ग्रामीण विकास को सुनिश्चित करने और ग्रामीण क्ष्‍ेात्रों में समृद्धि लाने के दृष्टिकोण से कृषि, लघु, कुटीर एवं ग्रामीण उद्योगों, हस्‍तशिल्पियों और अन्‍य ग्रामीण शिल्‍पों तथा ग्रामीण क्षेत्र में अन्‍य सहयोगी आर्थिक क्रियाकलापों एवं उनसे सम्‍बद्ध क्षेत्रों की उन्‍नति हेतु ऋण प्रदान करने के लिये की गयी है। 

5. देशी बैंकर 

भारतीय ग्रामीण अर्थव्‍यवस्‍था में आज भी इनका महत्‍वपूर्ण योगदान है। महाजन, साहूकार, जमींदार, सर्राफ आदि देशी बैंकर के अन्‍तर्गत आते हैं। केन्‍द्रीय बैंक का इन पर कोई नियंत्रण नहीं होने से इनमें शोषण की प्रवृत्ति अधिक पाई जाती है। ये बैंकर्स अधिक ब्‍याज दर पर किसानों को आवश्‍यकतानुसार ऋण प्रदान करते है। 

6. बचत बैंक 

इन बैंकों का मुख्‍य उद्देश्‍य अल्‍प बचतों को एकत्रित कर बचतों को प्रोत्‍साहन देना है। भारत में अलग से बचत बैंक स्‍थापित नहीं किये गये हैं, व्‍यापारिक बैंक ही बचत खातों का संचालन करते हैं। इसके अलावा डाक विभाग ने भी देश भर में ब्‍याज अनेक डाकखानों में बचत बैंक खोल दिये हैं। 

7. अन्‍तर्राष्‍ट्रीय बैंक 

अन्‍तर्राष्‍ट्रीय बैंक से आशय उस बैंक से है, जिसका उद्देश्‍य अन्‍तर्राष्‍ट्रीय आर्थिक समस्‍याओं को निपटाना तथा आशय राष्‍ट्रों को वित्तीय सहायता प्रदान करना होता है। अन्‍तर्राष्‍ट्रीय बैंक की स्‍थापना सन् 1903 में की गयी थी। स्‍वर्ण मान के पतन और द्वितीय विश्‍वयुद्ध के पश्‍चात् युद्ध में बर्बाद हुये देशों के पुनर्निर्माण एवं उनके तथा विकासशील देशों के आर्थिक विकास के लिये सन् 1945 में दो संस्‍थाओं विश्‍व बैंक तथा अन्‍तर्राष्‍ट्रीय मुद्रा-कोष की स्‍थापना की गयी। ये दोनों संस्‍थायें अनेक देशों की मुद्रा के परस्‍पर विनिमय मूल्‍य को स्थिर बनाये रखने तथा विदेशी मुद्रा की पूर्ति करने में सहायता प्रदान करती हैं। 

8. विदेशी विनिमय बैंक

विदेशी मुद्राओं का लेनदेन तथा विदेशी व्‍यापार के लिये वित्तीय व्‍यवस्‍था करने वाली संस्‍थाओं को विदेशी विनिमय बैंक कहा जाता है। इस प्रकार के बैकों को अपनी शाखायें अनेक देशों में स्‍थापित करनी पड़ती है। विदेशी विनिमय बैंकों को अपने कार्यो को सुचारू रूप से संचालित करने के लिये अधिक पूंजी एवं कुशल कर्मचारियों की आवश्‍यकता होती है। वर्तमान में विनिमय बैंक साधारण वाणिज्यिक बैंकों के समान बैंकों के अन्‍य कार्य भी करते है। इसके विपरीत वाणिज्यिक बैंक भी विनिमय बैंकों के कार्य करते है, इसलिये इनका कोई पृथक वर्ग नहीं है। प्रायः ऐसे बैंकों को ही जो अन्‍य बैंकिंग कार्यो के साथ-साथ विदेशी विनिमय का लेनदेन करते हैं, विनिमय बैंक कहा जाता है। 

9. अनुसूचित बैंक 

अनुसूचित बैंक वह बैंक है, जो रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया की द्वितीय अनुसूची में सम्मिलित होते है। रिजर्व बैंक उन्‍ही बैंकों को अपनी द्वितीय अनुसूची में शामिल करता है, जिनकी प्रदत्‍त पूंजी तथा आरक्षित कोष 5 लाख रूपये अथवा इससे अधिक हो। प्रत्‍येक अनुसूचित बैंक के लिये अपने कुल जमा का कम से कम 3 प्रतिशत तक रिजर्व बैंक में जमा करना अनिवार्य हैं। 

10. गैर-अनुसूचित बैंक 

गैर-अनुसूचित बैंक यह बैंक है, जो रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया की द्वितीय अनुसूची में सम्मिलित नहीं है। गैर अनुसूचित बैंकों की प्रदत्त पूंजी तथा आ‍रक्षित कोष 5 लाख रूपये से कम होत हैं। गैर अनुसूचित बैंकों पर रिजर्व बैंक का पूर्ण नियंत्रण होता है तथा इन्‍हें अपनी बैलेन्‍स शीट प्रतिमाह रिजर्व बैंक के पास भेजनी होती है।

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