प्रश्न; अंशो के मूल्यांकन से आप क्या समझते हैं? अंशो के मूल्यांकन की आवश्यकता बताइए।
अथवा" अंशो के मूल्यांकन की विभिन्न विधियाँ लिखिए।
अथवा" अंशो का मूल्यांकन से क्या तात्पर्य हैं? अंशो के मूल्य के प्रकार बताइए।
अथवा" अंशो के मूल्य को प्रभावित करने वाले तत्वों का विवेचन कीजिए।
अथवा" अंशो के मूल्य को प्रभावित करने वाले तत्व बताइए।
उत्तर--
अंशों के मूल्यांकन से आप क्या समझते हैं? (ansho ka mulyankan kise kahte hai)
कम्पनी की पूंजी अंशों में विभाजित होती है । अंश का मतलब होता है कम्पनी की पूंजी का एक निश्चित मूल्य वाला हिस्सा, जैसे - 10 रुपये वाला अंश या 100 रुपयें वाला अंश । अंश पर जो मूल्य अंकित होता है, वह उसका अंकित मूल्य कहलाता है लेकिन अंश का वास्तविक मूल्य अलग होता है । वास्तविक मूल्य या बाजार मूल्य के आधार पर अंशों का क्रय-विक्रय होता है, इसलिये अंशों के मूल्यांकन की आवश्यकता होती है ।
अंशों के मूल्यांकन का आशय इनके ऐसे मूल्यांकन से है जिस पर इनका क्रय-विक्रय हस्तांतरण या कर-निर्धारण किया जाता है या जिसके आधार पर अंशधारक या अन्य किसी को अंशपूंजी की स्थिति का सही ज्ञान प्राप्त होता है ।
विलियम विकिल्श के अनुसार, ‘‘लेखाकर्म की दृष्टि से अंशों के मूल्यांकन की समस्या एक कठिन समस्या है । यद्यपि इसके सिद्धांत कठिन नहीं हैं परंतु उनके प्रयोग के लिये तकनीकी विषयों के पर्याप्त ज्ञान की आवश्यकता है।"
अंशो के मूल्यांकन की आवश्यकता क्यों पड़ती हैं? (ansho ke mulyankan ki avashyakta)
अंशों के मूल्यांकन की समस्या यद्यपि महत्त्वपूर्ण पर साथ-साथ कठिन भी है । निम्नांकित दशाओं में अंशों का मूल्यांकन करना आवश्यक होता है--
1. एकीकरण पर जब दो या दो से अधिक कम्पनियों का एकीकरण होता है, तब कम्पनियों के अंशों के मूल्यांकन की आवश्यकता पड़ती है ।
2. अंशों के परिवर्तन पर कभी-कभी ऐसी भी परिस्थितियों आ जाती हैं जबकि एक प्रकार के अंशों का परिवर्तन दूसरे प्रकार के अंशों में किया जाता है। ऐसी दशा में अंशों के मूल्यांकन की सम्भावना हो सकती है ।
3. कम्पनी के संविलयन पर जब एक कम्पनी का संविलयन दूसरी कम्पनी में होता है उस समय अंशों के मूल्यांकन की आवश्यकता होती है ।
4. किसी ऐसी कंपनी के अंश क्रय करने के लिए मूल्यांकन, जिस पर नियंत्रण करना हो।
5. राष्ट्रीयकरण की दशा में सरकार द्वारा अंशों की क्षतिपूर्ति के लिए मूल्य-निर्धारण।
6. ऐसे अंशों की बिक्री होने पर जिनका मूल्य प्रकाशित नहीं किया जाता है।
7. कम्पनी के पुननिर्माण पर जब कम्पनी अधिनियम के अनुसार कम्पनी का पुननिर्माण होता है और इसकी सहमति कुछ अंशधारी नहीं देते हैं तो इनके अंशों का मूल्यांकन कर इन्हें भुगतान कर दिया जाता है ।
8. एक प्राइवेट कम्पनी के अंशों के मूल्यांकन की आवश्यकता इस कम्पनी की बिक्री के समय या इसकी सही वित्तीय स्थिति का ज्ञान प्राप्त करने के समय पड़ती है।
9. सम्पत्ति कर एवं उपहार कर निर्धारण करने पर यदि सम्बन्धित सम्पत्ति में अंश हैं ।
10. प्रन्यास और वित्तीय कम्पनियों के चिट्ठे की सम्पत्तियों का मूल्यांकन करने हेतु।
11. जब बैक अंशों की प्रतिभूति पर ऋण देते हैं तो अंशों के मूल्यांकन की आवश्यकता पड़ती है।
12. कुछ विशेष दशाओं में ऋण व दायित्वों का भुगतान करने के लिए ।
13. खान की सम्पत्तियों के विघटन होने पर, अवशिष्ट मूल्य का ज्ञान प्राप्त करने के लिए । अन्य किसी दशा में जबकि ऐसा करने से विशेष ज्ञान प्राप्त होने की सम्भावना हो।
अंशों के मूल्य के प्रकार
1. सममूल्य
कम्पनी के पार्षद सीमानियत में कम्पनी की पूंजी के प्रत्येक अंश का जो मूल्य अंकित रहता है उसे ही सममूल्य कहा जाता है ।
2. पुस्तकीय मूल्य
अंश के पुस्तकीय मूल्य का आशय कम्पनी की पुस्तकीय पूंजी में अंशों की संख्या का भाग देने से आने वाले मूल्य से है ।
3. बाजार मूल्य
अंश के बाजार मूल्य से आशय उस मूल्य से है जिस पर अंश का क्रय-विक्रय बाजार में होता है ।
4. लागत मूल्य
लागत मूल्य का आशय उस मूल्य से है जो एक अंशधारी को एक अंश का धारक बनने के लिए व्यय करना पडता है ।
5. पूंजीकृत मूल्य
कम्पनी की उपार्जन क्षमता का पूंजीकरण विनियोगों पर आय की सामान्य दर के आधार पर किया जाता है । इस पूंजीकृत मूल्य में अंशों की संख्या का भाग देकर एक अंश का मूल्य निकाला जाता है ।
6. आन्तरिक मूल्य
एक निश्चित तिथि पर कम्पनियों की सम्पत्तियों के प्राप्त मूल्य में से उसी तिथि के कम्पनी के बाद के दायित्वों को घटाने के बाद शेष आने वाली राशि में अंशों का भाग देकर जो राशि प्राप्त होती है वह कम्पनी के अंशों का आन्तरिक मूल्य होता है।
7.उचित मूल्य
अंशों के आन्तरिक मूल्य व बाजार मूल्य के जोड़ में दो का भाग देने से आने वाला मूल्य अंशों का उचित मूल्य कहा जाता है।
अंशों के मूल्य को प्रभावित करने वाले तत्व
अंशों के मूल्यांकन के सम्बंध में निम्नांकित तथ्य महत्वपूर्ण हैं क्योंकि ये अंशों को प्रभावित करते है--
1. व्यवसाय की प्रकृति
2. कम्पनी की उपार्जन शक्ति
3. गत वर्षो में कम्पनी द्वारा घोषित लाभांश
4. कम्पनी की शुद्ध मूर्त सम्पत्तियां
5. कम्पनी का पूंजी ढांचा
6. कम्पनी द्वारा उत्पादित माल की ख्याति
7. इस कम्पनी में अन्य पक्षों के विनियोंग
8. प्रतियोगिता की सीमा
9. अंशधारियों की संख्या
10. संचालकों की योग्यता, क्षमता एवं अनुभव
11. अंशों की मांग एवं पूर्ति
12. कम्पनी के भविष्य में प्रगति की सम्भावना
13. कम्पनी पर सरकारी नियत्रण सीमा
14. देश में शान्ति एवं सुरक्षा की स्थिति
15. राजनीतिक दशाएं
16. विनियोगों पर देश में प्रतिबन्ध
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