अंशों के मूल्यांकन की विधियां
anshu ke mulyankan ki vibhinn vidhiyan;अंशों के मूल्यांकन के लियें कोई भी विधि कंपनी अधिनियम में नहीं दी गयी है, यद्यपि अन्तर्नियमों में इसके लियें व्यवस्था की जा सकती है ।
अंशों के मूल्यांकन के लियें निम्नलिखित विधियों का उपयोग किया जाता है--
1. सम्पत्ति-मूल्यांकन विधि
अंशों के मूल्यांकन की इस विधि को ‘शुद्ध सम्पत्ति की विधि‘ भी कहा जाता है । इस विधि से अंशों का मूल्यांकन करते समय निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना आवश्यक है--
(अ) शुद्ध सम्पत्ति का मूल्य
शुद्ध सम्पत्तियां ज्ञात की जायें। शुद्ध सम्पत्तियां निकालते समय ख्याति के अनुमानित मूल्य का भी ध्यान रखा जाना चाहियें।
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(ब) पूर्वाधिकार अंशों का मूल्य
1. यदि कम्पनी के अन्तर्नियमों के अनुसार पूर्वाधिकार अंशों के धारकों को पूंजी एवं लाभांश दोनों पर पूर्वाधिकार प्राप्त है तो इन अंशों का मूल्यांकन सममूल्य पर होगा लेकिन ऐसा उसी परिस्थिति में होगा, जबकि इन अंशों के लाभांश की दर वही हो जो सामान्यतया इन पर होनी चाहिये।
2. कम्पनी के अन्तर्नियमों के अनुसार पूर्वाधिकारी अंशों के धारकों को केवल लाभांश पर पूर्वाधिकार प्राप्त हो तो शुद्ध सम्पत्तियों के मूल्यो में से पूर्वाधिकार अंशों के लाभांश की राशि कम कर देने के बाद शेष बची राशि का विभाजन पूर्वाधिकार एवं साधारण अंशों का मूल्य निकाला जाता है।
3. कम्पनी के अन्तर्नियमों के अनुसार पूर्वाधिकार अंशों के धारकों को केवल पूंजी पर पूर्वाधिकार प्राप्त है तो शुद्ध सम्पत्तियों में से पूर्वाधिकार पूंजी कम करने के पश्चात् शेष राशि साधारण अंशों का मूल्य होता है।
(स) साधारण अंशों का मूल्य
शुद्ध सम्पत्ति के मूल्य में से पूर्वाधिकार अंशों के मूल्य को कम करने के बाद जो मूल्य शेष बचता है, उसमें साधारण अंशों की संख्या का भाग देने पर जो भागफल आता है, वह ही एक साधारण अंश का मूल्य होता है ।
यदि कम्पनी के अन्तर्नियम पूर्वाधिकार एवं साधारण अंशों में कोई अन्तर नहीं करते अर्थात् पूर्वाधिकारी अंशों को साधारण अंशों की तुलना में किसी प्रकार की कोई प्राथमिकता अथवा पूर्वाधिकारी प्रदान नहीं करते तो ऐसी परिस्थिति में शुद्ध सम्पत्ति के मूल्य को इन अंशों का मूल्य माना जाता है ।
2. आय मूल्यांकन का आधार
जब अंश का मूल्य इस पर मिलने वाले लाभांश या मिले हुये लाभांश के आधार पर निकाला जाता है तो इसे आय मूल्यांकन विधि कहा जाता है। कुछ व्यक्ति अंशों का क्रय करते समय इन पर मिलने वाले लाभ को ध्यान में रखकर ही इनका मूल्य देते है। अतः अंशों का जो मूल्य लाभांश के आधार पर निर्धारित किया जाता है, वह आय-मूल्य कहलाता है। अंशों का आय मूल्य निकालने के लिये विभिन्न आधार माने जा सकते है--
(अ) लाभांश दर का आधार
चूंकि विनियोक्ता आय में अधिक रुचि लेते है, अतः उनके द्वारा देय मूल्य लाभांश की उस मात्रा पर निर्भर करेगा, जिसकी आशा वे भविष्य में प्राप्त करने हेतु करते हों । उस दशा में लाभांश दर को ही आधार मानकर चलना चाहिये, जब अल्पसंख्यक अंशधारियों के अंशों का मूल्यांकन करना हो तो लाभांश दर के आधार पर अंशों का मूल्यांकन होता है ।
(ब) प्राप्त लाभ का आधार
कम्पनी के गत कुछ वर्षो के लाभों का औसत लाभ ज्ञात किया जाता है । इसके पश्चात् इस लाभ से गैर व्यापारिक आय तथा पूर्वाधिकार अंशों पर देय-लाभांश तथा ऋण पत्रों के ब्याज की राशि को घटाया जाता है तथा कर एवं लाभ से सम्बन्धित आयोजन किये जाते हैं । इस प्रकार ज्ञात लाभ का निम्नांकित विधि से पूंजीकरण किया जाता है और पूंजीकरण वाले मूल्य में अंशों की संख्या का भाग देने पर हुयी राशि एक अंश का मूल्य होती है ।
(स) अर्जित लाभ की दर का आधार
पहले कम्पनी की अर्जित आय एवं इसकी विनियोजित पूंजी ज्ञात की जाती है । इसके पश्चात् अर्जित आय में विनियोजित पूंजी का भाग देकर प्रति रुपया आय ज्ञात हो जाती है ।
3. उचित या औसत मूल्य विधि
यह सम्पत्ति मूल्य निर्धारण विधि तथा आय विधि के द्वारा ज्ञात मूल्यों का गणितीय माध्यम है। अंशों के आन्तरिक मूल्य और बाजार मूल्य को जोड़कर दो से भाग देने पर जो मूल्य आता है, उसे उचित मूल्य कहा जाता है।
Sir 2 year k foundations k question bhi
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