6/18/2021

अवलोकन पद्धति के गुण/लाभ, सीमाएं/दोष

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अवलोकन पद्धति के गुण/लाभ/महत्व (avlokan paddhati ke gun)

अवलोकन पद्धति के गुण इस प्रकार हैं--

1. सरल एवं प्राथमिक पद्धति 

अन्य प्रविधियों की तुलना मे अवलोकन प्रविधि अधिक सरल है। सरलता के साथ ही इसमे मौलिकता भी पायी जाती है। मानव प्राचीन काल से ही अवलोकन का प्रयोग स्वाभाविक रूप से करता आया है, अतः यह एक प्राथमिक विधि है।

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2. अधिक वैषयिकता 

अवलोकन पद्धति मे अध्ययनकर्ता स्वयं अवलोकन करता है तथा इसमे सहायक अन्य विधियों एवं उपकरणों जैसे साक्षात्कार, अनुसूची आदि का भी उपयोग करता है। इसलिए संकलित जानकारी मे अधिक यथार्थता होती है।

3. अधिक शुद्धता 

स्वयं देखकर, स्वयं सुनकर और स्वयं पूछकर जानकारी संकलित करने के कारण इसमें अधिक शुद्धता रहती है। यदि किसी अन्य के माध्यम से जानकारी प्राप्त हो अथवा प्रश्नावली के माध्यम से जानकारी प्राप्त हो तो उसमे किसी प्रकार की कमी अथवा त्रुटी की संभावना हो सकती है। परन्तु अवलोकन मे अन्य स्त्रोतों पर निर्भरता न रहने के कारण जानकारी के संकलन और निष्कर्षों के निरूपण मे तुलनात्मक रूप मे अधिक शुद्धता रहती है।

4. निरंतर उपयोगी विधि

सामाजिक अनुसंधान मे अवलोकन पद्धति एक ऐसी विधि है जिसका प्रयोग सुरक्षित रूप मे तथा स्वतंत्रतापूर्वक निरंतर किया जा सकता है।

5. अध्ययन की प्रत्यक्ष विधि 

अवलोकन पद्धति मे अध्ययनकर्ता व स्त्रोत के बीच प्रत्यक्ष संबंध होता है। इन दोनों के बीच कोई माध्यम नही होता है जो कि जानकारी दे। अवलोकनकर्ता स्वयं क्षेत्र मे जाकर समूह के बीच रहकर अपने नेत्रों से अवलोकन कर आवश्यक जानकारी का संकलन करता है। आवश्यकतानुसार वह स्वयं पूछताछ भी करता है। इस प्रकार अवलोकन पद्धति मे बिना किसी माध्यम के अध्ययनकर्ता के द्वारा प्रत्यक्ष जानकारी प्राप्त की जाती है।

6. सत्यापन की सुविधा 

अवलोकन प्रणाली का सबसे अच्छा गुण यह है कि इसमे प्राप्त सूचनाओं के सत्यापन को भी आसानी से आँका जा सकता है। अनुसंधानकर्ता एक ही सामाजिक घटना को कई बार निरीक्षण करके उस घटना का सत्यापन परख सकता है।

7. वैज्ञानिक पद्धति 

इस प्रणाली के अंतर्गत मानव इन्द्रियों का प्रयोग किया जाता है। अतः यह एक वैज्ञानिक प्रणाली है। जो आँखों देखती है वही अंकित कर लिया जाता है।

8. वास्तविक जीवन का अवलोकन 

अवलोकन विधि मे अनुसंधानकर्ता स्वयं मानव-व्यवहारों का अवलोकन करके वास्तविक जीवन से साक्षात्कार करता है।

9. प्राक्कल्पना मे सहायक 

अवलोकन से नवीन प्राक्कल्पनाओं की रचना करने तथा उनके परीक्षण मे सहायता मिलती है। अनेक नयी दिशाओं या नये क्षेत्रों मे अनुसंधान करने के लिये जानकारी बढ़ती है।

अवलोकन पद्धति की सीमाएं/दोष (avlokan paddhati ke dosh)

अवलोकन पद्धति के गुण अथवा सीमाएं इस प्रकार हैं--

1. विश्वसनीयता का अभाव

अवलोकन पद्धति में अनुसंधानकर्ता घटनाओं को देखकर सूचना एकत्रित करता है। वह सामाजिक प्राणी होने के नाते सामाजिक घटनाओं के प्रति पक्षपात का दृष्टिकोण अपनाता है। जिससे तथ्य अविश्वसनीय हो जाते हैं।

2. कुछ विशिष्ट घटनाओं के अध्ययन मे अनुपयुक्त 

कुछ व्यवहार सामान्यता अवलोकित  नहीं होते। उदाहरणस्वरूप परिवारिक कलह, पति पत्नी के संबंध आदि अनेकों ऐसी परिस्थितियां हैं जिनका हम अवलोकन नहीं कर सकते।

3. अवलोकनकर्ता का मिथ्या झुकाव

अवलोकनकर्ता अपने विचार आदि सभी के प्रयोगों में स्वतंत्र सा होता है। अतः वह किसी भी तथ्य में घटनाओं को अपने व्यक्तिगत दृष्टिकोण से परखता है। जिस संस्कृति में एक व्यक्ति पला है उसके आदर्श मूल्य, आचार-विचार आदि उसे प्रभावित करते हैं। जो कि वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए अत्यंत ही हानिकारक है।

4. व्यवहार मे कृत्रिमता 

जब अवलोकन किए जा रहे समूह के सदस्यों को यह पता रहता है कि कोई व्यक्ति उनके व्यवहार का अवलोकन कर रहा है। तब उनका व्यवहार स्वभाविक नहीं रह पाता उनके व्यवहार में दिखावा और नाटकीयता  आ जाती है। ऐसी स्थिति में तथ्यों के संकलन की दृष्टि से अवलोकन पद्धति उपयोगी नहीं रह पाती।

5. सीमित उपयोग

अवलोकन पद्धति का उपयोग इस अर्थ में बहुत सीमित है कि इसे बहुत कम समय के लिए ही उपयोग में लाया जा सकता है। इसका कारण यह है कि एक लंबे समय तक अवलोकन की प्रक्रिया से अध्ययन समूह के व्यक्ति अवलोकनकर्ता को संदेह की दृष्टि से देखने लगते हैं।

6. परिमाणात्मक दोष

अवलोकन पद्धति की एक प्रमुख सीमा यह है कि इसके द्वारा निष्कर्षों को परिमाणात्मक आधार पर अथवा सांख्यिकी रूप में प्रस्तुत नहीं किया जा सकता।

7. खर्चीली पद्धति 

अवलोकन में पूर्णता और शुद्धता लाने के लिए अनुसंधानकर्ता का समूह से घनिष्ठ संपर्क होना जरूरी है। गणित संबंधों की स्थापना एक लंबे समय में ही संभव होती है। जिसके लिए अधिक धन खर्च करना पड़ता है इस दृष्टि से यह खर्चीली पद्धति है।

8. भूतकालीन घटनाओं का अध्ययन असंभव 

अवलोकन प्रविधि केवल वर्तमान परिस्थितियों एवं घटनाओं की अध्ययन में ही सहायक है। इसकी सहायता से भूतकालीन घटनाओं एवं समस्याओं का अध्ययन नहीं किया जा सकता।

9. पक्षपात की संभावना 

अवलोकनकर्ता अपनी धारणाओं, विचारों, संस्कृति एवं विश्वासों के कारण सामाजिक घटनाओं को उसके यथार्थ रूप में प्रस्तुत नहीं कर पाते हैं। वह देश जाति और संस्कृति के तनाव के कारण घटना पर अपना रंग चढ़ा देते हैं। जिसके कारण उनकी उसकी यथार्थता संदेहात्मक होती है।

10. अपर्याप्त घटनाएं

कभी-कभी कम घटनाओं का अवलोकन कर लिया जाता है और उन्हीं के आधार पर निष्कर्ष निकाल दिए जाते हैं जिसमें विश्वसनीयता की कमी रहती है।

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