प्रश्न; मजदूरी के आधुनिक सिद्धांत की व्याख्या कीजिए।
अथवा
मजदूरी के मांग एवं पूर्ति सिद्धांत को समझाइए।
अथवा
मजदूरी के मांग तथा पूर्ति सिद्धांत की व्याख्या कीजिए।
मजदूरी का आधुनिक सिद्धांत
majduri ka aadhunik siddhant;आधुनिक अर्थशास्त्रियों का मत है कि मजदूर की मजदूरी का निर्धारण उसकी मांग तथा पूर्ति की सापेक्षिक शक्तियों से होता है। जो बात किसी वस्तु के मूल्य निर्धारण के संबंध मे लागू होती है, वही बात श्रम की मजदूरी के संबंध मे भी लागू होती है। इस प्रकार मजदूरी का निर्धारण मूल्य के सामान्य सिद्धांत का ही एक विशिष्ट रूप है।
यह सिद्धांत मजदूरी निर्धारण का महत्वपूर्ण सिद्धांत है। जिस प्रकार वस्तु का मूल्य सिमान्त उपयोगिता और सीमान्त लागत से निर्धारित होता है। उसी प्रकार मजदूरी भी श्रमिक सीमान्त उत्पत्ति उसके जीवन स्तर से निर्धारित होती है। अर्थात् एक उद्योग मे मजदूरी उस बिंदु पर निर्धारित होती है, जहाँ श्रमिकों की कुल मांग श्रमिकों की कुल पूर्ति के बराबर होती है।
मजदूरी का निर्धारण
इस सिद्धांत के अनुसार मजदूरी का निर्धारण उस बिंदु पर होता है जहाँ पर श्रमिकों की मांग उनकी पूर्ति के बराबर होती है। इसकी विस्तृत व्याख्या इस प्रकार है--
श्रमिकों की मांग
1. श्रमिको द्वारा उत्पादित वस्तुओं की मांग
श्रमिकों की मांग व्युत्पन्न मांग होती है, जो उनके द्वारा उत्पादित वस्तु की मांग पर निर्भर रहती है। अगर ऐसी वस्तुओं की मांग ज्यादा है, तो श्रमिकों की मांग भी ज्यादा होगी अन्यथा कम होगी।
2. ब्याज दर
श्रमिकों की माँग ब्याज दर पर भी निर्भर होती है। क्योंकि श्रम तथा पूंजी एक दूसरे के प्रतिस्थापन साधन होते है, इसलिए अगर ब्याज दर ज्यादा होगी, तो उत्पादक पूंजी (अर्थात मशीनों) का कम उपयोग करेंगे एवं इनके स्थान पर श्रमिकों का ज्यादा उपयोग करेंगे, जिससे श्रमिकों की मांज बढ़ जाएगी। इसके विपरीत श्रमिकों की माँग घट जाएगी।
3. श्रमिकों की सीमाँत उत्पादकता
श्रमिकों की मांग उत्पादकों द्वारा उनकी सीमाँत उत्पादकता के आधार पर की जाती है। एक अतिरिक्त श्रमिक को काम पर लगाने के कारण कुल उत्पादन मे जो वृद्धि होती है, उसे श्रमिकों की सीमाँत उत्पादकता कहा जाता है। उत्पादन मे उत्पत्ति ह्रास नियम क्रियाशील होने से उत्पादक जैसे-जैसे श्रमिकों की मात्रा बढ़ाता जाता है, वैसे-वैसे उनकी सीमाँत उत्पादकता क्रमशः घटती जाती है। अतः जैसे-जैसे उत्पादन के क्षेत्र मे श्रमिकों की संख्या बढ़ती जाती है, वैसे-वैसे उत्पादक श्रमिकों को कम मजदूरी प्रदान करता है। संक्षेप मे, मजदूरी की दर श्रमिकों की सीमाँत उत्पादकता के बराबर होती है एवं उनकी संख्या मे वृद्धि के साथ-साथ घटती जाती है।
4. उत्पादन तकनीक
उत्पादन तकनीक श्रम प्रधान तथा पूंजी प्रधान दो तरह की होती है। अगर उत्पादक श्रम प्रधान उत्पादन तकनीक का उपयोग करता है, तो श्रमिकों की मांग बढ़ जाएगी। इसके विपरीत पूंजी प्रधान तकनीक अपनाने पर श्रमिकों की मांग कम होगी।
5. उद्योग का मांग वक्र
एक उद्योग के दृष्टिकोण से श्रमिको का मांग वक्र उसके अंतर्गत उत्पादन करने वाली फर्मों के मांग वक्रों का योग होता है। हर फर्म का मांग वक्र उसकी सीमाँत आय उत्पादकता वक्र होता है। हर फर्म का MRP वक्र प्रारंभ से कुछ ऊपर उठा हुआ, लेकिन बाद में नीचे गिरता हुआ होता है। फर्मों के MRP वक्रो का मांग वक्रों के योग से उद्योग का मांग वक्र ज्ञात किया जा सकता है। उद्योग का मांग वक्र भी ऊपर से नीचे की तरफ गिरता हुआ होता है, जो यह स्पष्ट करता है कि जैसे-जैसे मजदूरी दर कम होती जाती है, वैसे-वैसे उद्योग मे श्रमिकों की मांग बढ़ती जाती है।
श्रमिकों की पूर्ति
श्रम की पूर्ति श्रमिकों द्वारा की जाती है। एक उद्योग के दृष्टिकोण से श्रम पूर्ति का अर्थ है-- निश्चित मजदूरी दर पर काम करने हेतु तैयार श्रमिकों की संख्या एवं उनके कार्य के घंटे। सामान्यतया मजदूरी की दर तथा श्रमिकों की पूर्ति से सीधा संबंध होता है अर्थात् ऊँची मजदूरी पर श्रमिकों की पूर्ति ज़्यादा होती है एवं नीची मजदूरी दर पर श्रमिकों की पूर्ति भी कम होती है। इसी कारण एक उद्योग हेतु श्रमिकों का पूर्ति वक्र नीचे से ऊपर की तरफ बढ़ता हुआ होता है, लेकिन एक सीमा तक ऊपर चढ़ने के बाद यह पीछे की तरफ मुड़ जाता है। ऐसा श्रमिकों की मनोवैज्ञानिकता के कारण होता है। श्रमिकों की यह मानसिकता होती है कि जब तक उनके पास आज गुजारे के लिए पर्याप्त साधन है तो वे कल की परवाह नही करते। इसी कारण जब मजदूरी की दर निरंतर बढ़ती जाती है, तब श्रमिकों की आय मे अत्यधिक वृद्धि हो जाने के कारण एक सीमा के बाद वे काम करने के बजाय ज्यादा आराम करना पसंद करते है। अतः श्रमिकों का पूर्ति वक्र शीर्ष पर पीछे मुड़ा हुआ होता है।
निम्नलिखित रेखाचित्र से यह स्पष्ट है
परिणामस्वरूप B बिन्दु के बाद श्रमिकों का पूर्ति वक्र पीछे की तरफ मुड़ जाएगा।
मजदूरी का निर्धारण
एक उद्योग द्वारा मजदूरी का निर्धारण उस बिंदु पर किया जाता है, जहाँ पर श्रमिकों का मांग वक्र तथा पूर्ति वक्र एक-दूसरे को काटते है। रेखाचित्र द्वारा इसे प्रदर्शित किया गया है--
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