एकाधिकार क्या है? (ekadhikar ka arth)
ekadhikar arth paribhasha visheshta;एकाधिकारी पूर्ण प्रतियोगिता के विपरीत दशा है। Monopoly शब्द mono तथा poly शब्दों के सहयोग से बना है। mono का अर्थ है (single) एक/अकेला और poly का अर्थ है विक्रेता। अतः monopoly का अर्थ हुआ अकेला विक्रेता अथवा एकाधिकारी। इस प्रकार एकाधिकारी बाजार मे केवल एक ही उत्पादक होता है या वस्तु की पूर्ति उत्पादकों के एक समूह के हाथ मे होती है, जिससे वे वस्तु की कीमत तथा पूर्ति पर प्रत्यत्र रूप से नियंत्रण रखते है।
उदाहरण के लिए मान लिजिए कि आपका विश्वविद्यालय आपकी कक्षा के लिए अर्थशास्त्र की एक पुस्तक पाठ्यक्रम मे निश्चित कर देता है और साथ ही इसके छापने तथा बेचने का पूरा-पूरा अधिकार केवल एक ही प्रकाशक को दे देता है। प्रकाशक उस पुस्तक का मूल्य अपनी इच्छानुसार रखता है। इस पुस्तक का प्रकाशन अन्य दूसरे प्रकाशक नही कर सकते और न ही कोई दूसरी अर्थशास्त्र की पुस्तक बाजार मे उपलब्ध है। विद्यार्थियों को यह पुरस्तक उस प्रकाशक से ही मिल सकती है। अन्य दूसरा प्रकाशक इस प्रकाशक से प्रतियोगिता भी नही कर सकता। इस अवस्था को ही एकाधिकार कहते है।
इस प्रकार से संक्षेप मे हम यह कह सकते है कि एकाधिकार बाजार की उस स्थिति को स्पष्ट करता है जिसमे विशिष्ट वस्तु की पूर्ति पर किसी एक उत्पादक अथवा फर्म का नियंत्रण रहता है।
एकाधिकार की परिभाषा (ekadhikar ki paribhasha)
लर्नर के अनुसार," एकाधिकारी से आशय उस विक्रेता से है जिसकी वस्तु का मांग वक्र गिरता हुआ हो।"
चैम्बरलिन के अनुसार," एकाधिकार उसे समझना चाहिए जो किसी वस्तु की पूर्ति पर नियंत्रण रखता हो।"
ट्रिफिन के अनुसार," एकाधिकार बाजार की वह स्थिति है, जिसमे एक विक्रेता की उपज का अन्य सभी उपजों के बीच जो कि बाजार मे बेचने के लिए प्रस्तुत की जाती है, मांग की प्रतिशत प्रतिस्थापन लोच का अंश शुन्य के बराबर हो।"
अन्य शब्दों मे," यदि किसी विक्रेता पर अपनी उपज के अतिरिक्त अन्य किसी भी उपज के मूल्य के परिवर्तन का कोई प्रभाव नही पड़ता है, तो वह एकाधिकारी होगा।
स्टोनियर एवं हेग के अनुसार," एकाधिकारी एक ऐसी वस्तु का एकमात्र उत्पादक होता है, जिसके निकट के प्रतियोगी स्थानापन्न पदार्थ नही होते है।"
प्रो. थामस के अनुसार," व्यापक अर्थ मे एकाधिकार शब्द वस्तुओं या सेवाओं के किसी प्रभावपूर्ण मूल्य मे नियंत्रण को व्यक्त करता है, चाहे वह मांग अथवा पूर्ति कर हो, परन्तु संकुचित अर्थ मे इसका आशय उत्पादकों तथा विक्रेताओं के ऐसे संघ से होता है, जो कि वस्तुओं या सेवाओं की पूर्ति मूल्य को नियंत्रिण करके करता है।"
प्रो. बेन्हम के अनुसार," एकाधिकारी वस्तुतः एकमात्र विक्रेता होता है और एकाधिकारी शक्ति पूर्ति के पूर्णतः नियंत्रण पर आधारित होती है।
जाॅन डी. सुमनेर के अनुसार," विशुद्ध एकाधिकार का आशय उस स्थिति से है, जिसमे मांग की लोच का अंश शुन्य के बराबर हो, जबकि पूर्ण प्रतियोगिता मे यह अंश असीमित होता है।
एकाधिकार की विशेषताएं (ekadhikar ki visheshta)
उपभोक्ता परिभाषाओं का अवलोकन करने से स्पष्ट है कि विभिन्न अर्थशास्त्रियों ने एकाधिकार की विभिन्न दृष्टिकोण से परिभाषाएं दी है। इन परिभाषाओं से एकाधिकार की निम्न विशेषताओं का पता चलता है--
1. एकाधिकारी अपने क्षेत्र मे एक ही उत्पादक होता है अर्थात् फर्म तथा उद्योग एक ही होते है। एकाधिकारी एक फर्म उद्योग है।
2. एकाधिकारी की वस्तु की कोई भी निकट स्थानापन्न वस्तुएं बाजार मे नही होती।
3. एकाधिकारी के क्षेत्र मे उद्योग मे फर्मों के प्रवेश के प्रति प्रभावशाली रूकावटें होती है।
4. एकाधिकारी का अपनी वस्तु की पूर्ति पर पूरा-पूरा नियंत्रण रहता है बाजार की पूर्ति पर नही अर्थात् वस्तुओं की पूर्ति पर नही।
5. एकाधिकारी एक फर्म, फर्मों का समूह, सरकारी विभाग या स्वयं सरकार हो सकती है।
6. एकाधिकारी की वस्तु की मांग की लोच शुन्य होती है।
इस प्रकार संक्षेप मे," किसी एक वस्तु का जब केवल एक ही उत्पादक होता है और उस वस्तु की कोई निकट स्थानापन्न वस्तु नही होती तो वह उत्पादक एकाधिकारी कहलाता है।"
अन्त शब्दों मे," एकाधिकार एक ऐसी दशा है, जिसमे वस्तु के कोई निकट स्थानापन्न नही है, पूर्ति पर एक अकेले उत्पादक या फर्म का पूरा-पूरा नियंत्रण है और एकाधिकारी क्षेत्र मे अन्य फर्मों पर प्रभावपूर्ण रूकावटें है। ऐसी दशा मे पूर्ति मे परिवर्तन करने से वस्तु का मूल्य प्रभावित होता है।
संदर्भ; मध्यप्रदेश हिन्दी ग्रंथ अकादमी, लेखक श्री डाॅ. रामरतन शर्मा जी।
यह भी पढ़ें; एकाधिकार का वर्गीकरण, उत्पत्ति के कारण, उद्देश्य
Akadhikar Ka Mahatva
जवाब देंहटाएंakadhiksar bajar ko tathyank sankalank
जवाब देंहटाएं