3/20/2021

सीमा शुल्क क्या है? उद्देश्य/महत्व, दोष

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सीमा शुल्क की पृष्ठभूमि 

sima shulk arth uddeshya mahatva dosh;प्राचीन समय से ही विदेशों मे व्यापार की स्वीकृति प्राप्त करने हेतु संबंधित देश के तत्कालीन शासकों को व्यापारियों द्वारा उपहार एवं भेट दिए जाने का रिवाज या परम्परा (custom) पाई जाती रही है। कौटिल्य ने भी बाहर से आने वाले माल पर 1/5 भाग शुल्क लेने की कामना की थी। समुद्र, नदी तट पर यदि माल उतरवाया जाए, तब भी तटकर देने के लिए उत्तरदायी होते थे। इसी संबंध मे कौटिल्य ने अपने ग्रंथ " अर्थशास्त्र" मे यह नीति निर्देशित की है कि राजा को सभी माल के आगमन पर शुल्क वसूल करना चाहिए। विदेशी व्यापार मे लागू (Customs Duty शब्द का प्रादुर्भाव शायद इसी रिवाज या परम्परा के कारण हुआ होगा। वर्तमान के समय मे आयात एवं निर्यात शुल्क प्रत्येक देश की आय के महत्वपूर्ण स्त्रोत है।

सीमा शुल्क का अर्थ (sima shulk kya hai)

विदेशी व्यापार के अंतर्गत आयात एवं निर्यात पर लगाए जाने वाले कर को सीमा शुल्क कहा जाता है। यह कर केन्द्र सरकार द्वारा आरोपित एवं वसूल किया जाता है। सीमा शुल्क का केन्द्रीय राजस्व एवं विदेशी व्यापार मे महत्वपूर्ण स्थान है।

ऐतिहासिक दृष्टि से यह विश्व का सबसे पुराना शुल्क है। प्रारंभ मे यह कर (शुल्क) व्यापारियों के व्यापारिक लाभों पर लगाया जाता था, परन्तु वर्तमान मे उत्पाद शुल्क की भांति वस्तुओं के मूल्य पर लगाया जाता है। देश मे आयात की गई वस्तुओं पर आयात शुल्क एवं निर्यात की गई वस्तुओं पर निर्यात शुल्क लगाया जाता है। 

भारत मे सीमा शुल्क का इतिहास 

भारत मे वैदिक युग से राज्य मे वस्तुओं के प्रवेश पर कर लगने का उल्लेख मिलता है। प्रसिद्ध प्राचीन अर्थशास्त्री कौटिल्य ने भी इस प्रकार के करारोपण का उल्लेख किया है। मुगलकाल मे कई विदेशी व्यापारी भारत मे आए और उन्होंने बादशाहों को बहुमूल्य उपहार देकर भारत मे व्यापार करने की अनुमति प्राप्त की। सीमा शुल्क (Customs Duty) के वर्तमान स्वरूप का प्रादुर्भाव ब्रिटिश शासन के समय से माना जाता है। 

इसके क्रमिक इतिहास को निम्न बिन्दुओं के आधार पर जाना जा सकता है--

1. बोर्ड ऑफ रेवन्यू का गठन 

सन् 1776 मे सर्वप्रथम अंग्रेजो द्वारा लागू सीमा शुल्क की वसूली के लिए कलकत्ता मे बोर्ड ऑफ रेवेन्यू का गठन किया गया। 1808 मे एक नया बोर्ड गठित किया गया।

2. टैरिफ एक्ट 

1859 मे सम्पूर्ण भारत मे एक जैसा टैरिफ एक्ट लागू किया गया। आयात शुल्क की सामान्य दर 10% थी, जो 1864 मे घटाकर 7. 5% कर दी गयी। ब्रिटिश शासन के प्रारंभ मे मुम्बई बंगाल एवं मद्रास तीन रेसीडेन्सी थी। इन तीनों की सीमा शुल्क की दरों मे अंतर था। इस अंतर को समाप्त करने एवं एक रूपता लाने के लिए 1859 मे टैरिफ एक्ट लागू किया गया। इसमे 1867, 1870, 1871, 1875% एवं 1878 मे आवश्यक संशोधन किये गये।

3. टैरिफ पालिसी 

भारत मे कस्टम ड्यूटी का इतिहास टेक्सटाइल इण्डस्ट्रीज से जुड़ा हुआ है। इंग्लैंड एवं विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद 1921 मे भारतीय प्रशुल्क आयोग एवं 1824 मे टेक्सेशन इंक्वायरी कमेटी ने उपयुक्त टैरिफ पालिसी बनाने के लिए सुझाव दिये। 1934 मे भारतीय टैरिफ एक्ट पारित किया गया।

4. कस्टम एक्ट 1962

स्वतंत्रता के बाद उद्योगों का तेजी से विकास हुआ एवं व्यापार का विस्तार हुआ। 1962 मे "कस्टम एक्ट 1962" पारित हुआ, जिसमें तत्कालीन लैण्ड कस्टम एक्ट, सी कस्टम एक्ट एवं एयर कस्टम एक्ट का समावेश कर एकरूपता लायी गयी।

5. नया कस्टम टैरिफ एक्ट 

1985 मे इंडियन टैरिफ एक्ट 1934 को समाप्त कर नया "कस्टम टैरिफ एक्ट 1985" बनाया गया।

भारत मे सीमा कर मुस्लिमकाल से सी लगाया जाता रहा है। ब्रिटिश शासनकाल मे इसे विधिवत ढंग से लागू किया गया। स्वतंत्रता के बाद से इन करों की दरों मे और अधिक वृद्धि कर दी गयी। वर्तमान समय मे अनेक प्रकार की वस्तुओं पर सरकार द्वारा आयात कर तथा निर्यात कर लगाया जाता है। सीमा शुल्क या तो मूल्यानुसार लगाये जाते है या परिमाणानुसार। जब ये मूल्यानुसार लगाये जाते है, तो इसे यथा मूल्य कहते है और जब परिमाणानुसार लगातामे है, तो इसे परिमाणिक कहते है। 

भारत मे सीमा-शुल्क के इतिहास के अध्ययन को निम्न प्रकार से रखा जा सकता है--

(अ) आयात कर 

1. यद्यपि भारत मे आयात कर प्राचीन समय से लगाए जाते रहे है, फिर भी इसका महत्व प्रथम विश्वयुद्ध के बाद काफी बढ़ गया।

2. आयात कर की दरें सीमा शुल्क अधिनियम, 1975 के अनुसार लगाई जाती है, जिनमें समय-समय पर परिवर्तन होते रहते है। मूल दर 10% है, इसके अलावा अतिरिक्त सीमा शुल्क (केन्द्रीय उत्पाद शुल्क की दर से) एवं विशेष सीमा शुल्क (वेट की दर से) लगता है।

3. भारत मे इस प्रकार के कर का उद्देश्य आय प्राप्त प्राप्ति के साथ-साथ स्वदेशी उद्योगों को संरक्षण प्रदान करना है। सरकार देश मे उत्पादित होने वाले माल के आयात को सीमित करने के लिए ऊँची दरों पर सीमा शुल्क लगाती रही है। लेकिन मुक्त व्यापार व्यवस्था के गैट समझौते के बाद आयात पर प्रतिबंध लगभग हटा लिए गए है एवं सीमा शुल्क की दर भी बहुत कम कर दी गई है।

4. अनेक उपभोक्ताओं एवं औद्योगिक वस्तुओं पर यह कर लगाया जाता है।

(ब) निर्यात कर 

1. निर्यात कर का राजस्व की दृष्टि से महत्व नही के बराबर है, क्योंकि निर्यात प्रोत्साहन की दृष्टि से निर्यात किए जाने वाले माल पर निर्यात कर नही लगाया जाता है।

2. वित्तीय कठिनाइयों को दूर करने हेतु 1857 मे दर 5% से बढ़ाकर 10% कर दी गई।

3. 1867 से निर्यात कर को हटा दिया गया और 1914 मे केवल चांवल पर ही लगाया गया।

4. 1946 मे इसे पुनः महत्व दिया गया तथा अनेक वस्तुओं पर इसे लगाया गया।

5. वर्तमान मे कुछ वस्तुओं पर ही निर्यात कर लगाए जाते है। जैसे- चमड़ा, हड्डियां, खालें इत्यादि पर 15% की दर से निर्यात कर लगता है।

सीमा शुल्क लगाने का महत्वपूर्ण कारण आय प्राप्त करना न होकर विदेशी व स्वदेशी व्यापार को प्रभावित करना है। इससे दोहरा लाभ प्राप्त होता है तथा आन्तरिक एवं अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार को मार्गदर्शन मिलता है। इससे कोई भी देश व्यापार मे संतुलन स्थापित कर सकता है।

"कराधान जांच आयोग" का मत था कि राजस्व प्राप्ति एवं कीमतों मे स्थिरता लाने के उद्देश्य से निर्यात करों का अधिकाधिक उपयोग किया जाना चाहिए। भारत मे निर्यात कर राजस्व एवं संरक्षण दोनों ही दृष्टिकोणों से लागू किए गए।

सीमा शुल्क के उद्देश्य एवं महत्व (sima shulk ka mahatva/uddeshya)

सीमा शुल्क का महत्व या उद्देश्य इस प्रकार है--

1. राजस्व की प्राप्ति 

सीमा शुल्क लगाने का उद्देश्य सरकार को पर्याप्त राजस्व दिलाना है। बर्ष 2018-2019 मे 1 लाख तीस हजार करोड़ सीमा शुल्क से प्राप्त हुए, आयात-निर्यात पर एकीकृत जीएसटी 1.5 लाख करोड़ प्राप्त हुआ। यह राशि कुल केन्द्रीय करों के लगभग 15% के बराबर है।

2. तस्करी पर नियंत्रण रखना 

अवैध रूप से माल के आयात एवं निर्यात पर प्रतिबंध लगाने के लिए सीमा शुल्क अधिनियम मे अनेक प्रावधान किये गये है। सरकार आयात शुल्क की दरें कम करके तस्करों को हतोत्साहित करती है।

3. घरेलू उद्योगों को संरक्षण देना 

देश मे आयात शुल्क लगाने का प्रमुख उद्देश्य केवल राजस्व प्राप्त करना ही नही होता, बल्कि घरेलू उद्योगों को विदेशी माल की प्रतिस्पर्धा से संरक्षण देना होता है। सरकार आयात शुल्क बढ़ाकर विदेशी माल को महँगा कर देती है ताकि घरेलू वस्तुएं देश मे आसानी से बिक सकें।

4. आवश्यक वस्तुओं के निर्यात पर रोक लगाने के लिए 

अगर देश मे कुछ वस्तुओं की कमी हो और वह आवश्यक उपयोग की हों उनके निर्यात को हतोत्साहित करने के लिए सरकार निर्यात शुल्क लगाती है। इस कारण से इस प्रकार की वस्तुएं देश से कम निर्यात हो पाती है।

5. विदेशी मुद्रा की बचत करना

अनेक विलासिता की वस्तुएं विदेशों मे सस्ती एवं अच्छी किस्म की बनती है। लेकिन ऐसी वस्तुओं का विदेशों से आयात करने पर देश की बहुमूल्य विदेशी मुद्रा खर्च होती है और आवश्यक वस्तुओं के आयात के लिए विदेशी मुद्रा कम बच पाती है। इस समस्या का समाधान करने के लिए सरकार विलासिता की वस्तुओं पर ऊँची दर से आयात कर लगाती है ताकि इनका आयात कम हो और बहुमूल्य विदेशी मुद्रा की बचत की जा सके।

6. व्यापार घाटे को संतुलित करना 

जब किसी देश का आयात बहुत बढ़ जाता है और निर्यात कम हो जाता है तो विदेशी मुद्रा मे भुगतान करने मे असुविधा होने लगती है। ऐसी दशा मे आयात महँगा करके एवं निर्यात सस्ता करके विदेशी मुद्रा की बचत द्वारा व्यापार घाटे को संतुलित किया जाता है। 

7. डम्पिंग पर रोक लगाना 

कई बार विदेशी उत्पादक बाजार हथियाने के उद्देश्य से एवं अन्य निर्माताओं को बाजार से बाहर करने के लिए डम्पिंग की क्रिया अपनाते है, अर्थात् अपना माल लागत से कम मूल्य पर बेचते है या बहुत नीचे मूल्य पर बेचते है। ऐसी गलाकाट प्रतियोगिता से देशी उद्योगों एवं व्यापार को बचाने के लिए सरकार आयात शुल्क मे वृद्धि करती है।

8. विलासिता की वस्तुओं पर विदेशी मुद्रा के अपव्यय पर रोक लगाने हेतु

कई विलासिता की वस्तुएं विदेशों मे सस्ती एवं अच्छी किस्म की तैयार होती है। ऐसी वस्तुओं का आयात अधिक होने पर बहुमूल्य विदेशी मुद्रा का अपव्यय होता है एवं आवश्यक वस्तुओं के आयात के लिए विदेशी मुद्रा की कमी रहती है। इस समस्या के निवारण के लिए सरकार विलासिता की वस्तुओं के आयात पर ऊँची से ऊँची दर पर आयात शुल्क लगाती है, ताकि महंगी होने के कारण लोग इनका आयात कम से कम करे।

सीमा शुल्क के दोष (sima shulk ke dosh)

सीमा शुल्क के दोष इस प्रकार है--

1. काले धन मे वृद्धि 

आयात एवं निर्यात शुल्क की दरें काफी ऊँची है और कभी-कभी तो अनेक प्रकार के आयात शुल्क लगाए जाते है, इनसे बचने के लिए माल की तस्करी करके एक देश से दूसरे देश मे लाया-ले जाया जाता है। ऐसे व्यापार से जो लाभ होता है वह काले धन के रूप मे एकत्रित होता रहता है। यही काल धन तस्करी को निरन्तर बढ़ावा देनता है और यह क्रम इसी प्रकार चलता रहता है।

2. अच्छी वस्तुओं का अभाव 

विदेशों मे कुछ वस्तुएं अच्छे किस्म की तथा सस्ती उपलब्ध होती है, परन्तु अपने देश के उद्योगों को संरक्षण देने के विचार से इन "वस्तुओं का आयात प्रतिबंधित कर दिया जाता है अथवा उनके आयात पर' ऊँची दर से आयात शुल्क लगा दिया जाता है। इससे घरेलू उपभोक्ता को ऊँचे मूल्य पर घटिया वस्तुओं के उपभोग पर ही संतोष करना पड़ता है।

3. महंगाई को बढ़ाना 

जो माल आयात अथवा निर्यात होता है उस माल पर आयातक देश एवं निर्यातक देश सीमा-शुल्क लगाते है। इससे वस्तुएं महंगी हो जाती है। जब ये वस्तुएं महंगे भाव पर बेची जाती है तो उन पर विक्रय कर की राशि भी बढ़ जाती है। इस प्रकार वस्तुओं का मूल्य बढ़ जाता है परिणामस्वरूप घरेलू उत्पाद भी तुलनात्मक रूप मे महंगे हो जाते है।

4. जटिल प्रक्रिया 

सीमा शुल्क के जटिल प्रावधानों के कारण आयातकों एवं निर्यातकों को अनेक तकनीकी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। इन प्रावधानों का पालन पेशेवर एवं विशेषज्ञ सलाहकारों की सेवाओं के बिना संभव नही है।

5. भ्रष्टाचार 

सीमा शुल्क से भ्रष्टाचार को काफी बढ़ावा मिलता है। ड्यूटी की चोरी करने या आयातित वस्तु का मूल्य कम बताकर शुल्क बचाने के लिए आयातक सीमा शुल्क अधिकारियों को रिश्वत देते है, इससे राजस्व की हानि होती है।

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