7/20/2023

टिप्पण/टिप्पणी का अर्थ, विशेषताएं, प्रकार, महत्व

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 प्रश्न; टिप्पण या टिप्पणी लेखन किसे कहते हैं? 

अथवा", टिप्पण क्या हैं? टिप्पण के उद्देश्य बताइए। 

अथवा", अच्छे टिप्पणी की विशेषताएं लिखिए। 

अथवा," टिप्पण का महत्व बताइए।

अथवा", टिप्पण के प्रकार लिखिए। 

उत्तर--

टिप्पण का अर्थ (tippani kaise kahate hain)

टिप्पण के लिए अंग्रेजी में 'Noting' शब्द का प्रयोग किया जाता हैं। अंग्रेजी शब्द 'Noting' का ही हिन्दी अनुवाद टिप्पण हैं। टिप्पण शब्द हिंदी के 'टीप' शब्द का तत्सम रूप हैं। 'टीप' के अनेक अर्थ होते है, जिसमें से एक अर्थ टोकना भी होता है। लिखा-पढ़ी के काम में टोकना शब्द का अर्थ किसी पुस्तिका या बही पर किसी बात को लिख देना या सूत्रबद्ध कर लेना होता है। इस प्रकार से किसी पुस्तक या बही पर लिखे या सूत्रबद्ध किये विचार को भी टिप्पण या टीप कहा जाता है। टिप्पणी के साथ 'टीका' शब्द जोड़कर टीका-टिप्पणी बनाया जाता है, जिसका अर्थ होता है किसी विषय का विवेचन करते हुये कुछ लिखना या कहना। आजकल टिप्पण का अर्थ टीका-टिप्पणी के रूप में ही स्वीकृत हो गया है। कार्यालयीन कार्यों के संबंध में किसी समस्या को सुलझाने के लिये लिखित टीका-टिप्पणियाँ की जाती हैं। इन्हें ही 'Noting' या टिप्पण कहा जाता हैं।

अर्थात् आवतियों अथवा विचाराधीन मामलों के बारे में संक्षेप में महत्त्वपूर्ण बातों को लिखित रूप में उल्लिखित करना। सरकारी कार्यालयों में पत्र-विशेष के निपटान के लिए उस पर सहायकों से लेकर आवश्यकतानुसार सचिव, मंत्री या प्रधानमंत्री तक जो संक्षिप्त मंतव्य लिखा जाता है उसे टिप्पण अथवा टिप्पणी कहा जाता है। टिप्पणी में सन्दर्भ के रूप में पूर्ववर्ती पत्रों का सार निर्णय आदि हेतु प्रश्न तथा विवरणादि सब कुछ अंकित किया जाता है। वास्तव में सभी प्रकार की टिप्पणियां सम्बन्धित-अधिकारियों द्वारा विचाराधीन मामले के कागज पर लिखी जाती है। कार्यालयीन आवश्यकता के अनुसार महत्त्व प्राप्त मामलों में अनुभाग अधिकारी आदि के स्तर से टिप्पणी आरम्भ होती है अन्यथा मामले के रूप के अनुसार परम्परागत रूप से टिप्पणी लिपिक अथवा सहायक (Assistant) के स्तर में शुरू की जाती है। मंत्री, प्रधानमंत्री अथवा राष्ट्रपति आदि के द्वारा लिखी गई विशेष टिप्पणियां 'मिनट' (Minute) कही जाती हैं।

टिप्पण कैसे लिखे जाते हैं? 

1. टिप्पण हमेशा निर्धारित कागज पर ही लिखा जाना चाहिए। 

2. टिप्पण हमेशा विषयानुरूप होना चाहिए। 

3. एक विषय पर एक ही टिप्पण उपयुक्त होता हैं। 

4. टिप्पण में संक्षिप्तता होना चाहिए।

5. सर्वप्रथम विचारणीय विषय, फिर उसकी पृष्ठभूमि, फिर विभिन्न दृष्टिकोणों को ध्यान में रखते हुए तार्किक विश्लेषण तथा तत्पश्चात् निपटान हेतु सुझाव देने चाहिए। 

6. टिप्पणीकार को उपदेश नहीं देना चाहिए। 

7. टिप्पण पर अधिकारी अपने पदनाम को एक तिरछी रेखा से काटकर हस्ताक्षर करते हैं; एवं कर्मचारी हाशिये में बाहर हस्ताक्षर करते हैं।

8. नोटशीट के हर पृष्ठ पर विषय लिखा जाना चाहिए।

टिप्पणी की विशेषताएं (tippan ki visheshta)

टिप्पणी में निम्नलिखित वर्णित विशेषताओं का होना जरूरी है या टिप्पण लेखन करते समय निम्नलिखित तथ्यों को ध्यान में रखना चाहिए--

1. जिस पत्र के उत्तर में टिप्पणी लिखें, उसका समाधान जरूरी हैं। समाधान हेतु कई विकल्प होने पर सारे विकल्प सुझाते हुए बतलाया जाना चाहिए कि किस-किस विकल्प को चुनना श्रेयस्कर है और क्यों? 

2. टिप्पणी लिखते समय टिप्पणी लेखक विचारों के पूर्व-क्रम पर समुचित ध्यान देता है। वह उसमें पूर्ववर्ती कार्यवाही आदि का क्रमिक उल्लेख करते हुए बताता है कि वर्तमान स्थिति क्या है एवं भविष्य में क्या कार्यवाही करनी चाहिए।

3. टिप्पणी किसी कर्मचारी के विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही से सम्बद्ध हो सकती है। कभी-कभी टिप्पणीकार को अपने अधीन काम करने वाले कर्मचारी की आलोचना करनी पड़ सकती है। ऐसी स्थिति में हमेशा ध्यान रहे कि संयत भाषा का ही प्रयोग किया जाए; किसी की भावनाओं को ठेस पहुँचाने वाले कटु शब्दों का प्रयोग न किया जाए। 

4. टिप्पण पूर्णतया गैर-वैयक्तिक होनी चाहिए। टिप्पणी में कार्यालय के किसी वरिष्ठ अथवा कनिष्ठ अधिकारी या कर्मचारी पर व्यक्तिगत आक्षेप नहीं किए जाने चाहिए। 

5. टिप्पणी में पुनरूक्ति नहीं होनी चाहिए। एक बात को एक ही बार लिखा जाना चाहिए बार-बार नही दोहराना चाहिए।

6. टिप्पणी में व्यर्थ के विस्तार से कोई लाभ नहीं होता। उपलब्ध तथ्यों के संदर्भ में सुनियोजित ढंग से तर्क प्रस्तुत करते हुए एक ऐसा विकल्प सुझाना चाहिए जिससे उचित दिशा में अग्रसर होकर निर्णय दिया जा सके। 

7. टिप्पण किस संबंध में है, यह स्पष्ट करने के लिए टिप्पणी शुरू करने से पहले टिप्पणीकार को पत्राचार संबंधी विवरण अवश्य देना चाहिए, यथा-- 

"शिक्षा सचिव लखनऊ का पत्र संख्या 55/3020/74-75/दिनांक 20-7-2033 पृष्ठ 20 पर संलग्न हैं।" 

8. टिप्पणी हमेशा संक्षिप्त तथा सरल नहीं होती। किसी विषय पर कभी-कभी विभिन्न दृष्टियों से विचार करते हुए लम्बी टिप्पणी लिखनी जरूरी होती हैं। अतएव विषय का उपविभाजन करने के बाद विभिन्न बिन्दुओं पर पृथक-पृथक विचार करते हुए अन्त में समाधान पेश करना चाहिए। 

9. टिप्पणी में प्रथम पुरूष के प्रयोग से बचना चाहिए। अन्य पुरुष का ही प्रयोग करें। उसमें मैं, मैंने आदि शब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिए। 

10. टिप्पणी के पहले अनुच्छेद को छोड़कर शेष सभी अनुच्छेदों को संख्याबद्ध कर देना चाहिए। इससे अनुच्छेद का संदर्भ देना आसान होता हैं।

11. टिप्पणी में यदि विवरण अधूरे हों तो व्यर्थ का विलम्ब होता है। इसीलिए टिप्पणी में दिए गए विवरण अधूरे नहीं होने चाहिए। उदाहरण के लिए टिप्पणी में इस बात का उल्लेख करते समय कि अमुक पत्र कई स्मरण-पत्रों के बावजूद अनुत्तरित रहा है, उन स्मरण-पत्रों का हवाला अवश्य देना चाहिए। 

12. टिप्पणी में इस बात का भी उल्लेख कर देना चाहिए कि टिप्पणी में किस समस्या पर विचार किया जा रहा हैं, ताकि अधिकारी आदेश उसी सन्दर्भ में दें।

टिप्पण के उद्देश्य (tippani ka uddeshya )

विद्वानों ने टिप्पण के उद्देश्यों पर विचार करते हुए उसके निम्नलिखित प्रमुख उद्देश्य निर्धारित किये हैं--  

1. किसी समस्या को निपटाने के लिये किसी कार्यालय में किये गये समस्त विचार एवं कार्यवाही का लेखा-जोखा रखना।

2. कार्यालय की प्रगति के लिए सामूहिक चिन्तन एवं जिम्मेदारी की भावना को बनाये रखने हेतु जिससे किसी मामले में व्यक्तिगत पक्षपात न हो तथा गलत निर्णय न हो। 

3. समस्या को सुलझाने के लिए उचित अनेक विकल्पों में से सर्वोत्तम विकल्प को चुनने का अवसर देने हेतु। 

4. नीति-निर्धारण हेतु अधिकारियों को सामान्य कर्मचारियों के विचारों एवं मार्गदर्शन प्राप्त होता रहे इसकी परम्परा बनाये रखने हेतु।

टिप्पणी के प्रकार (tippan ke prakar)

टिप्पणी मुख्यतः निम्न प्रकार की होती है--

1. नेमी टिप्पणी 

इसे प्रामाणिक टिप्पणी भी कहा जाता है। यह कार्यालयी कामकाज के एक रोजमर्रा के हिस्से के रूप में व्यवहार की जाती है। इसमें प्रायः टिप्पणी नहीं लिखी जाती है। इसका उद्देश्य यह है कि अधिकारियों के स्पष्ट आदेश या तो पहले मिले होते हैं या जिन पर कार्रवाई पूर्व निश्चित सी होती है या पहले की गई कार्रवाई के अनुसार उन पर कार्रवाई करनी होती है। यदि - ऐसी कोई टिप्पणी लिखी भी जाए तो अनुभाग अधिकारी उसे अपने स्तर पर निपटा देता है।

2. सामान्य टिप्पणी 

कार्यालय में जो पत्र प्रथम बार प्राप्त होते हैं, उनको निपटाने लिए जिस टिप्पणी का प्रयोग होता है, उसे 'सामान्य टिप्पणी' कहा जाता है। यह टिप्पणी अन्य टिप्पणी की अपेक्षा संदर्भ या प्रसंग के स्तर पर अलग होती है ।

3. सूक्ष्म टिप्पणी 

कार्यालय में प्राप्त कई पत्र सम्बन्धित अधिकारियों के देखने के बाद फाइल के ऊपरी भाग पर नत्थी कर दिए जाते है। ऐसे पत्र शाखाधिकारी, उपसचिव आदि को भेजे जाते है। वे उस पर सूक्ष्म टिप्पणी लिखते है। सूक्ष्म टिप्पणी पत्र के कई बाई तरफ लिखी जाती है। ऐसी टिप्पणियाँ बहुत छोटी होती है, अतः इन्हें सूक्ष्म टिप्पणी कहते है। इनको टीप भी कह दिया जाता है। मंत्री तथा उच्चाधिकारी इन्हीं का प्रयोग करते हैं।

4. स्वत: पूर्ण टिप्पणी 

स्वत: पूर्ण टिप्पणी किसी भी विभाग अनुभाग या कार्यालयी आवश्यकता के फलस्वरूप लिखी जाती है। इसमें लिखी गई सूचना स्वत: पूर्ण होती है। इसका किसी अन्य पत्र या पूर्व प्रसंग के साथ संबंध नहीं होता। यह सहायक तथा अधिकारी दोनों स्तरों पर लिखी जाती है।

5. संपूर्ण टिप्पणी 

जिन टिप्पणों में मामले पूर्णता उनके प्रसंग, पूरे इतिवृत्त तथा तर्क-वितर्क के साथ है होते हैं, उसे संपूर्ण टिप्पणी कहते हैं। इसका संबंध पूर्ववर्ती प्रसंग, संदर्भ और पूर्व निर्णय के साथ रहता है। ऐसा टिप्पण मामले का अध्ययन, विश्लेषण और निर्णय प्रस्तुत करता है।

6. अनौपचारिक टिप्पणी 

किसी एक कार्यालय से अन्य एक कार्यालय अथवा एक मंत्रालय से दूसरे मंत्रालय को कुछ कार्यालयीन जानकारी देने के लिए अनौपचारिक टिप्पणी लिखी जाती है। इसमें कार्यालयीन नियमों को पालन करने की जरूरत नहीं होती। ऐसे टिप्पण सीधे एक कार्यालय से दूसरे कार्यालय में भेजे जाते हैं।

7. विभागीय टिप्पणी 

कुछ पत्रों में ऐसे मुद्दे भी होते है कि जिन पर कोई एक अनुभाग स्वयं टिप्पण नहीं लिख सकता। उनके भिन्न-भिन्न विभागों से अलग-अलग आदेश प्राप्त किए जाते हैं। टिप्पणीकार प्रत्येक मुद्दे पर अलग-अलग टिप्पणी तैयार करके उन पर आदेश प्राप्त करता है। ऐसी टिप्पणियों को अनुभागिका या विभागीय टिप्पणी कहते हैं।

टिप्पण का महत्व (tippani ka mahatva)

टिप्पण का महत्व निम्नलिखित बिन्दुओं द्वारा स्पष्ट हैं-- 

1. टिप्पण कार्यालयीन क्रियाकलापों का जीता-जागता दस्तावेज या लेखा-जोखा होता है। इस लेखे-जोखे के कारण ही कर्मचारियों को बदलने के बावजूद भी कार्यालय का काम निर्बाध रूप से चलता रहता है। 

2. टिप्पण का दूसरा महत्व यह है कि वह किसी समस्या पर सभी अधिकारियों एवं कर्मचारियों पर विवेकपूर्ण एवं तर्कसंगत निर्णयों का लेखा-जोखा होता है। अतः इसके कारण एक तो गलती होने की सम्भावना समाप्त हो जाती है और दूसरी गलती करने वाले कर्मचारियों को आसानी से पकड़ा जा सकता हैं। 

3. कार्यालय में हर छोटे-बड़े मसले के लिये एक फाइल होती है। इस फाइल में उस मसले पर की जाने वाली छोटी-बड़ी प्रत्येक कार्यवाही का विवरण अंकित रहता हैं।

4. बाहर से आयी हुई डाक अधिकारियों की टिप्पणी मसले से संबंधित कार्यवाही का विचार उस मसले पर अधिकारी या अधिकारियों द्वारा लिये गये निर्णय आदि सभी कुछ फाइल में दर्ज होता है। इससे कार्य के विषय में नीति-निर्धारण एवं भावी योजनाओं को रूप देने में मदद मिलती हैं। 

5. टिप्पण कर्मचारियों, अधिकारियों के मध्य होने वाली बातचीत का लिखित लेखा-जोखा होता है। कार्यालय में बहुत सारे काम होते हैं। मौखिक बातचीत के द्वारा सभी मुद्दो पर बातचीत कर पाना और उनके संबंध में निर्णय ले पाना कठिन होता हैं। अतः इस लिखित वार्तालाप की प्रणाली का अर्थात् टिप्पण का महत्व स्वतः ही सिद्ध हो जाता हैं।

इस प्रकार हम देखते है कि किसी भी कार्यालय में कार्यालय के कार्यों को सुचारू रूप से सम्पादित करने के लिये टिप्पण का अत्यधिक महत्व हैं। वास्तव में टिप्पण किसी मसले पर लिखित रूप से अपना सुझाव देने का एक सशक्त साधन होता है और उस मसले को निबटाने में सहायक होता हैं।

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