7/08/2023

प्रयोजनमूलक हिंदी की विशेषताएं, विविध रूप

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प्रयोजनमूलक हिंदी की विशेषताएं (prayojanmulak hindi ki visheshta)

भाषा का प्रयोग समाज में होता है, किन्तु समाज के सन्दर्भ हमेशा एक ही नहीं होते। मानसिक, प्रयोजनिक, पारम्परिक तथा अभिव्यक्तिक दृष्टि से समाज के संदर्भ परिवर्तित होते रहते है। अतः इनकी अभिव्यक्तिक आवश्यकतायें भी अलग-अलग होती हैं। इन भिन्नताओं को स्वयं में समाहित कर उनकी अभिव्यक्ति के अनुरूप जो भाषा सामने आयी, उसे हम प्रयोजनमूलक हिन्दी के रूप में जानते हैं। इस भाषा की सबसे अहम् विशेषता इसकी प्रयोजनिकता ही है। फिर जब हम प्रयोजनमूलक हिंदी की प्रकृति, संरचना, संचेतना एवं संकल्पना का अवलोकन करते हैं तो ज्ञात होता है कि प्रयोजनमूलक हिंदी में अनेक विशेषतायें हैं, जिनमें निम्नलिखित प्रमुख हैं-- 

1. अनुप्रयुक्तता 

प्रयोजनमूलक हिंदी का सबसे बड़ा गुण अथवा विशेषता है प्रयोजनीयता। जीवन के भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में हिन्दी का विशिष्ट रूप विशिष्ट प्रयोजन के अनुसार अनुप्रयुक्त होता है। हिन्दी के प्रयोजनमूलक रूप का सर्वोत्कृष्ट विकास इसलिए संभव हो सका है कि उसमें अनुप्रयुक्तता की महत्तम विशेषता मौजूद रही है। अनुप्रयुक्तता की दृष्टि से हिन्दी के प्रयोजनमूलक रूपों में राजभाषा, कार्यालयी, वाणिज्यक, व्यावसायिक वैज्ञानिक एवं प्रौद्योगिकी क्षेत्रों में प्रयुक्त हिन्दी का समावेश होता हैं।

2. वैज्ञानिकता

प्रयोजनमूलक हिंदी की दूसरी विशेषता है उसकी वैज्ञानिकता। प्रयोजनमूलक हिंदी प्रायोगिक अथवा अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान के अंतर्गत एक विशिष्ट अध्ययन क्षेत्र है। किसी भी विषय के तर्कसंगत, कार्य-कारण भाव से युक्त विशिष्ट ज्ञान पर आश्रित प्रवृत्ति को वैज्ञानिक कहा जा सकता है। इस दृष्टि से प्रयोजनमूलक हिन्दी संबंधित विषय-वस्तु को विशिष्ट तर्क तथा कार्य-कारण संबंधों पर आश्रित नियमों के अनुसार विश्लेषित कर रूपायित करती है। प्रयोजनमूलक हिन्दी की अध्ययन एवं विश्लेषण की प्रक्रिया विज्ञान की विश्लेषण तथा अध्ययन प्रक्रिया से भी अत्यधिक निकटता रखती है। प्रयोजनमूलक हिन्दी का प्रमुख आधार पारिभाषिक शब्दावली तथा तकनीकी प्रवृत्ति है जिन्हें विज्ञान के नियमों के अनुसार सार्वकालिक एवं सार्वभौमिक कहा जा सकता है। इसी के साथ-साथ प्रयोजनमूलक हिन्दी के सिद्धांतों तथा प्रयुक्ति में कार्य-कारण भाव की नित्यता भी दृष्टिगत होती है जिसे किसी भी विज्ञान का सबसे मुख्य आधार माना जाता है। विज्ञान की भाषा तथा शब्दावली के अनुसार ही प्रयोजनमूलक हिन्दी की भाषा एवं शब्दावली में स्पष्टता, तटस्थता, विषय-निष्ठता और तर्क-संगतता मौजूद है। अतः स्पष्ट है कि प्रयोजनमूलक हिन्दी अपनी अंतवृत्ति, प्रयुक्ति, भाषिक संरचना तथा विषय विश्लेषण आदि सभी स्तरों पर वैज्ञानिकता से युक्त हैं। 

3. सामाजिकता 

विभिन्न प्रयोजनों के लिये विभिन्न सामाजिक वर्गों द्वारा प्रयोग में लायी जाने वाली भाषा विशेष प्रयोजनमूलक भाषा कहलाती है। हिन्दी की प्रयोजनमूलकता मूलतः सामाजिक विशेषता या गुण में हैं। सामाजिकता का संबंध मानविकी से हैं। प्रयोजनमूलक हिंदी के निर्माण एवं परिचालन का संबंध समाज तथा उससे जुड़ी विभिन्न ज्ञान-शाखाओं से है। प्रयोजनमूलक हिंदी की प्रयुक्तियाँ तथा भाषा रूप सामाजिक परिस्थिति, भूमिका और सामाजिक स्तर पर प्रयोग में आते हैं। हिन्दी की जीवंतता उसकी समाज में प्रयुक्ति पर आश्रित है। वर्तमान में हिन्दी अनेक सामाजिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक, शास्त्रीय, वैज्ञानिक और शैक्षिक सन्दर्भों में प्रयुक्त है। प्रयोजनमूलक हिन्दी में निहित सिद्धांत और प्रयुक्त ज्ञान मनुष्य के सामाजिक प्रयुक्तिपरक क्रियाकलापों का कार्य-कारण संबंध से तर्क-निष्ठ अध्ययन एवं विश्लेषण किया जाता हैं।

4. भाषिक विशिष्टता 

इसी विशेषता के आधार पर प्रयोजनमूलक हिंदी अपनी स्वतंत्र सत्ता और महत्ता स्थापित कर साहित्यिक व सामान्य हिन्दी से पृथक महत्व कायम कर सकी है। प्रयोजनमूलक हिन्दी की शब्द-ग्रहण की शक्ति ने उसकी झोली में भारतीय तथा पश्चिमी भाषाओं के अनेक शब्द लाकर डाल दिये है। प्रयोजनमूलक हिन्दी के पास तकनीकी एवं पारिभाषिक शब्दों की प्रयोगसिद्ध श्रृंखला है जो उसकी भाषिक विशिष्टता को रेखांकित करता है। प्रयोजनमूलक हिंदी की भाषा सटीक, गंभीर, सुस्पष्ट, वाच्यार्थ प्रधान, सरल तथा एकार्थक होती है। इसमें कहावतें, मुहावरे, अलंकार तथा उक्तियों का प्रयोग न होने पर भी इसकी भाषा संरचना की तटस्थता, स्पष्टता एवं निर्वैयक्तिकता स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होती हैं। कर्मवाच्य प्रयोग की प्रधानता और विशिष्ट रचनाधर्मिता इसे विशिष्टता प्रदान करती हैं।

5. सरलता और स्पष्टता 

हिन्दी की प्रयोजनमूलक शब्दावली सरल और एकार्थक है, जो प्रयोजनमूलक भाषा का मुख्य गुण है। प्रयोजनमूलक भाषा में अनेकार्थकता दोष है। हिन्दी शब्दावली इस दोष से मुक्त है। इस तरह प्रयोजनमूलक भाषा के रूप में हिन्दी एक समर्थ भाषा है। स्वतंत्रता के पश्चात प्रयोजनमूलक भाषा के रूप में स्वीकृत होने के बाद हिन्दी में न केवल तकनीकी शब्दावली का विकास हुआ है, वरन विभिन्न भाषाओं के शब्दों को अपनी प्रकृति के अनुरूप ढाल लिया है। आज प्रयोजनमूलक क्षेत्र में नवीनतम उपलब्धि इंटरनेट तक की शब्दावली हिन्दी में उलब्ध है, और निरंतर नए प्रयोग हो रह हैं।

इस तरह प्रयोजनमूलक भाषा के रूप में हिन्दी एक समर्थ भाषा है। स्वतंत्रता के पश्चात प्रयोजनमूलक भाषा के रूप में स्वीकृत होने के बाद हिन्दी में न केवल तकनीकी शब्दावली का विकास हुआ है, वरन विभिन्न भाषाओं के शब्दों को अपनी प्रकृति के अनुरूप ढाल लिया है। आज प्रयोजनमूलक क्षेत्र में नवीनतम उपलब्धि इंटरनेट तक की शब्दावली हिन्दी में उपलब्ध है, और निरन्तर नए प्रयोग हो रहे हैं।

प्रयोजनमूलक हिंदी के विविध रूप (prayojanmulak hindi ke vividh roop)

भाषा प्रयोग तथा व्यवहार की सामाजिक वस्तु है। भाषा के अनुप्रयुक्त एवं व्यवहार-क्षेत्र की सीमा उसकी प्रयोजनमूलक शैलियों को नियंत्रित करती है।

आधुनिक युग में सामाजिक-जीवन के कई क्षेत्रों में प्रयोग में लाई जाने वाली भाषा प्रयोजनमूलक भाषा कहलाती है। भाषा व्यवहार के अनुसार उसके कई रूप-भेद होते हैं। 

प्रयोजनमूलक हिंदी के मुख्य रूप से निम्नलिखित विविध रूप माने जा सकते हैं-- 

1. साहित्यिक हिन्दी, 

2. कार्यालयी हिन्दी, 

3. बोलचाल की हिन्दी, 

4. व्यावसायिक हिन्दी, 

5. विधि तथा कानून कार्य संबद्ध हिन्दी, 

6. जनसंचार के माध्यम हेतु प्रयुक्त हिन्दी, 

7. विज्ञान तथा तकनीकी हिन्दी।

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