7/06/2023

प्रयोजनमूलक हिंदी का अर्थ, आवश्यकता

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प्रश्न; प्रयोजनमूलक हिंदी का अर्थ बताइए।

अथवा", प्रयोजनमूलक हिन्दी किसे कहते हैं?

अथवा", प्रयोजनमूलक हिंदी से क्या अभिप्राय हैं? 

अथवा", प्रयोजनमूलक हिंदी से आशय स्पष्ट कीजिए।

अथवा", प्रयोजनमूलक हिंदी क्या हैं?

अथवा", प्रयोजनमूलक हिंदी को परिभाषित करते हुए प्रयोजनमूलक हिन्दी की आवश्यकता पर प्रकाश डालिए।

उत्तर--

प्रयोजनमूलक हिंदी का अर्थ (prayojanmulak hindi kya hai)

सामान्यतः जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये उपयोग में लाई जाने वाली हिन्दी ही 'प्रयोजनमूलक' हिन्दी हैं। भाषा के दो पक्ष होते है-- एक का संबंध हमारी सौंदर्यपरक् अनुभूति से होता है। यह आत्मकेन्द्रित और आत्मसुख का माध्यम बनती है। दूसरे का संबंध हमारी सामाजिक आवश्यकताओं और जीवन की उन व्यवस्थाओं से होता है, जो व्यक्तिपरक होकर भी समाज-सापेक्ष और जीविकोपार्जनोन्मुखी रहता है। उसके निमित्त जो आपसी भाषा-व्यवहार, (सेवा माध्यम 'सर्विस-टूल') होता है, वही भाषा की प्रयोजनमूलकता है। प्रयोजनमूलक हिन्दी का तात्पर्य सेवा-माध्यम के इसी रूप से प्रमाणित होता जान पड़ता हैं। शिक्षित वर्ग और अशिक्षित वर्ग की एक विशेष प्रयोजन की सिद्धि के लिये अंग्रेजी भाषा का हिंग्लिश का प्रयोग करता है। हम यह भी कह सकते है कि भाषा का समाज सापेक्ष रूप उसे प्रयोजन बना देता हैं। 

'प्रयोजनमूलक हिन्दी 'शब्द अंग्रेजी के 'फंक्शनल हिन्दी' शब्द का पर्याय है। इस दृष्टि से देखे तो भी इसका अर्थ हुआ-- 'ऐसी विशेष हिन्दी जिसका उपयोग किसी विशेष प्रयोजन के लिये ही किया जाये।' इसे कामकाजी अथवा व्यावहारिक हिन्दी कहना भी उचित ही होगा। इसका तात्पर्य है कि दैनिक जीवन में कार्य-साधन के लिये प्रयुक्त की जाने वाली हिन्दी ही प्रयोजनमूलक हिंदी है, लेकिन प्रयोजनमूलक हिन्दी को व्यावहारिक हिन्दी के रूप में स्वीकार करने में कुछ कठिनाइयाँ आती है। व्यावहारिक हिन्दी में व्याकरण की अनिवार्यतया उपस्थित नहीं रह सकती क्योंकि यह पूर्णतः व्याकरण-सम्मत न होकर व्यवहार पर आधारित है,  इसके विपरीत प्रयोजनमूलक भाषा के शासन-प्रशासन के सम्पर्क व सम्प्रेषण भी अंग है। उसमे व्याकरणसम्मत शुद्ध एवं सामाजिक भद्रता का आग्रह होता है। इसीलिए विद्वानों ने व्यावहारिक हिन्दी की तुलना में प्रयोजनमूलक हिन्दी शब्द का प्रयोग अधिक सार्थक समझा हैं।

हिन्दी का प्रयोजनमूलक रूप तथा साहित्यिक रूप एक-दूसरे के पूरक है। जहाँ किसी भाषा को उसका साहित्यिक रूप स्थिरता प्रदान करता हैं वहीं प्रयोजन रूप उसे गत्यात्मकता और जीवन्तता देता हैं। इसीलिए भाषा के चरिआयु होने के लिये उसका प्रयोजनमूलक होना आवश्यक हैं।

विश्व में मानव सभ्यता, संस्कृति तथा ज्ञान-विज्ञान की उन्नत धरोहर को अक्षुण्ण रखने में भारतवर्ष का जो योगदान रहा है उसमें भाषिक दायित्वों के निर्वाहस्वरूप भारतीय भाषाओं की समन्वयक हिन्दी भाषा की अहम् भूमिका है। हिन्दी एकमात्र ऐसी भाषा है जिसने भारतीय साहित्य, कला, ज्ञान एवं संस्कृति को न सिर्फ सघन सार्थक अभिव्यक्ति प्रदान की है वरन् उनकी अनुरक्षा करते हुए उन्हें नित्य गत्यात्मक भी बनाये रखा है। आंतरिक संरचना की सौंदर्यशीलता, भाव-भंगिमाओं की गहनता, अभिव्यक्ति की तीव्रता तथा शैलियों की विविधता को समेटे हिंदी साहित्य कई उन्नत रूपों में प्रवाहमान है। आधुनिक युग में विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी के अभूतपूर्व प्रस्फूटन और फैलाव के कारण हिन्दी भाषा की उपादेयता तथा प्रयोजनमूलकता कई नये क्षेत्रों में स्वयं-सिद्ध होने के कारण उसके नये प्रयुक्ति रूप भी उभरकर सामने आये हैं जिनमें 'प्रयोजनमूलक हिन्दी' सर्वोपरि मान्य हैं।

भारतवर्ष में समृद्धतम साहित्यिक हिन्दी की पार्श्वभूमि पर प्रयोजनमूलक हिन्दी की जरूरत वस्तुतः तब महसूस की गई, जब हिन्दी राजभाषा के पद पर आसीन हुई। विश्व में विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी के तेजी से फैले प्रसार के साथ भारत में भी इस नवीनतम ज्ञान-विज्ञान एवं टैक्नोलाॅजी की आंधी उमड़ पड़ी। इसके कारण हिंदी को नये महत्वपूर्ण भाषिक दायित्वों तथा अभिव्यक्ति के सर्वथा नवीनतम क्षेत्रों से गुजरना पड़ा। आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक एवं वैज्ञानिक संदर्भों के बदलाव के साथ बदलती हुई स्थितियों की जरूरत के प्रयोजन-विशेष के संदर्भ में हिन्दी के एक ऐसे रूप की त्वरित आवश्यकता पड़ी जो प्रशासन तथा ज्ञान-विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्रों को अभिव्यक्ति कर सक्षमता से रूपायित कर सके। 

राजभाषा के पद पर आसीन होने से पहले हिन्दी सरकारी कामकाज एवं प्रशासन आदि की भाषा कभी नहीं रही थी। मुसलमान शासकों के शासन की भाषा उर्दू तथा अरबी-फारसी रही। अंग्रेजों के शासनकाल में उनके प्रशासन की भाषा अनिवार्यतः अंग्रेजी ही रही। अतः भारत की राजभाषा बनने के बाद हिन्दी को सरकारी कामकाज एवं प्रशासन के सर्वथा नये अनछुए क्षेत्र से गुजरना पड़ा तथा तब ऐसी हिंदी की जरूरत पड़ी जो पारिभाषिक शब्दावली, भाषिक गठन, वस्तुनिष्ठ एकार्थता, अभिव्यक्ति की स्पष्टता आदि से युक्त हो ताकि सरकारी कामकाज हेतु माध्यम के रूप में उसका प्रयोग किया जा सके। 

भारत में विज्ञान तथा टेक्नोलॉजी के प्रस्फुटन एवं फैलाव के कारण भी इनको अभिव्यक्त करने के माध्यम के रूप में हिन्दी को अपने आपको सर्वथा नवीनतम रूप में ढालने की सख्त आवश्यकता महसूस हुई। ऐसा नया रूप जो विज्ञान तथा टेक्नोलॉजी के गुणसूत्रों, सिद्धांतों, नवीनतम प्रयोग विधियों एवं भाषिक संरचना को वैज्ञानिक रूप में यथास्थिति अभिव्यक्त कर सके। पश्चिम से आई नई टेक्नोलाॅजी, भौतिकशास्त्र, रसायन, कंप्यूटर, इंजीनियरी, अंतरिक्ष विज्ञान, इलेक्ट्रॉनिक, दूरसंचार आदि कई क्षेत्रों से संबद्ध तकनीकी तथा प्रयोजनमूलक और प्रयोग की जरूरत एवं इसी के साथ, प्रशासन, विधि, दूरसंचार, व्यवसाय, वाणिज्य, खेलकूद, पत्रकारिता आदि से संबंधित पारिभाषिक शब्दावली, पदावली एवं संकल्पनाओं के पुनः स्थापन, पुनः नियोजन तथा पुनरूत्थान हिन्दी भाषा हेतु एक अहम् आवश्यकता बनकर उभरी। फलतः हिन्दी का यह एक विशिष्ट प्रयुक्तिपरक रूप उभरकर सामने आया हैं। वस्तुतः जीवन तथा जगत की विविध स्थितियों एवं आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु प्रयोग में लाया जाने वाला यही भाषा-रूप 'प्रयोजनमूलक हिंदी' हैं।

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