7/08/2023

प्रयोजनमूलक हिंदी की सीमाएं एवं संभावनाएं

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प्रयोजनमूलक हिंदी की सीमाएं और संभावनाएं

प्रयोजनमूलक हिंदी के अध्ययन तथा विश्लेषण की प्रक्रिया में उसके प्रयुक्ति-स्तर, रूप-भेद, भाषिक गठन एवं प्रचलन आदि स्तरों पर कुछ सीमाएं और समस्याएं भी दृष्टिगत होती हैं। इन दोषों तथा समस्याओं को संक्षेप में निम्नानुसार रेखांकित किया जा सकता हैं-- 

1. विज्ञान तथा तकनीकी से संबंधित अत्यंत दुरूह पारिभाषिक शब्दावली 

वास्तव में, कोई शब्द सरल अथवा कठिन नहीं होता। शब्द या तो परिचित होता है या अपरिचित। परिचित शब्द (प्रचलित शब्द) आसान अथवा सरल लगता है, इसके विपरीत अपरिचित शब्द कठिन अथवा दुरूह लगता हैं। भौतिक, रसायन, गणित, विधि, अंतरिक्ष, कंप्यूटर एवं मानविकी से संबंधित लाखों नये शब्दों का निर्माण वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग ने किया हैं, पर समस्या उनके प्रचलन की है। विशुद्ध विज्ञान तथा टेक्नोलाॅजी से संबंधित ये पारिभाषिक शब्द प्रचलित नहीं थे अतः दुरूह अथवा कठिन लगते है एवं उचित मात्रा में प्रचलित नहीं हो पा रहे हैं। अतः विज्ञान तथा टेक्नोलाॅजी से संबंधित पारिभाषिक शब्दावली को विषय-वस्तु और संदर्भानुसार अधिक मात्रा में प्रचलित करने हेतु सघन प्रयत्न किये जाने की जरूरत हैं। 

2. अनुवादी रूप के कारण उसकी संरचना की क्लिष्टता तथा अटपटापन 

अनुवाद प्रयोजनमूलक हिंदी का मुख्य तत्व है। विज्ञान तथा टेक्नोलाॅजी का प्रस्फुटन और विकास पश्चिमी देन है जो आयातित होकर भारत में आई। इन ज्ञान क्षेत्रों से संबंधित ग्रंथ विदेशी भाषाओं में मौजूद थे जो परिस्थितिजन्य एवं युगीन आवश्यकता के रूप में हिन्दी में अनुवाद के रूप लाये गये। इसी के साथ, भारत की राजभाषा के पद पर आसीन होने के बाद हिन्दी सरकारी प्रशासन की भाषा बनी तथा उन दायित्वों से गुजरी जिससे पहले वह कभी नहीं गुजरी थी।

ऐसी स्थिति में हिन्दी कार्यालय एवं प्रशासन की भाषा बनी। अतः उसे प्रशासनिक स्तर पर अभिव्यक्ति एवं प्रयुक्ति हेतु अनुवाद का ही एकमात्र सहारा लेना पड़ा। 'राजभाषा अधिनियम 1963' ने तो लगभग हिन्दी को पूर्णतः अनुवादाश्रित कर दिया। वस्तुतः प्रशासनिक कार्यों, मैन्युअलों, करारों, प्रतिवेदनों तथा अन्य प्रविधि साहित्य का अनुभव वे लोग (अनुभवदक) करने लगे जिन्हें इन क्षेत्रों की विधियों का सूक्ष्म ज्ञान और अनुभव नहीं था। परिणामस्वरूप पुस्तकीय अनुवाद के क्लिष्ट तथा अटपटे नमूने उभरने लगे जिसके कारण प्रयोजनमूलक हिंदी को जबर्दस्त आघात पहुँचा। 

विधि, भौतिकी, रसायन, गणित, अंतरिक्ष, दूरसंचार, कंप्यूटर, प्रौद्योगिकी एवं कुछ मानविकी ग्रंथों के अंग्रेजी से हिन्दी में किये गये अनुवादों से उसकी भाषिक संरचना में काफी क्लिष्टता एवं दुरूहता आई है। फलतः प्रयोजनमूलक हिन्दी पर आरोप लगाया जाता है कि उसमें विशुद्ध वैज्ञानिक एवं प्रौद्योगिकी के ज्ञान-क्षेत्रों को अभिव्यक्त करने की क्षमता नहीं है। यह आरोप बिल्कुल गलत हैं। ऐसा अनुवादी-रूप के कारण भाषा-गठन तथा शब्दावली प्रयुक्ति में अत्यधिक क्लिष्टता एवं अटपटापन आने से दिखाई देता हैं। 

3. उसकी नयी पारिभाषिक शब्दावली निर्माण एवं नई प्रयुक्तियाँ बनाने संबंधी 

प्रयोजनमूलक हिन्दी की प्रवृत्ति प्रयोगशील एवं प्रक्रिया विकासशील है। इसके अनुप्रयोग एवं विकास प्रक्रिया में विषय, संदर्भ और आवश्यकतानुसार नयी पारिभाषिक शब्दावली का निर्माण यथाशीघ्र किया जाना बहुत जरूरी हैं।

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