7/22/2023

प्रारूप का अर्थ, विशेषताएं, आवश्यक

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प्रश्न; प्रारूपण लेखन क्या हैं? एक अच्छे प्रारूप की विशेषताएं लिखिए। 

अथवा", प्रारूपण तैयार करने की प्रक्रिया/विधि बताइए।

अथवा", प्रारूप का क्या अर्थ है? प्रारूप की आवश्यकता बताइए। 

अथवा", प्रारूप लेखन के समय ध्यान रखने योग्य कौन-कौन सी बातें हैं? 

उत्तर--

प्रारूप का अर्थ (prarupan kaise kahate hain)

प्रारूप का अर्थ होता है 'रूपरेखा' या मसौदा तैयार करना। किसी निश्चित उद्देश्य या लक्ष्य को लेकर लिखित रूप में तैयार की जाने वाली आदर्श रूपरेखा को प्रारूप कहा जाता हैं। 

हिंदी में प्रारूप लेखन को मसौदा लेखन, आलेखन, प्रारूपण, प्रालेखन आदि के नाम से जाना जाता है। यह शब्द अंग्रेजी का ड्राफ्टिंग शब्द का पर्याय है । कार्यालयों में आवती पर टिप्पणी कार्य समाप्त होने के बाद कार्यालयी पत्रोत्तर का जो मसौदा तैयार किया जाता है, उसे 'प्रारूपण' कहते हैं।

सरकारी पत्राचार में प्रारूपण लेखन का विशेष महत्त्व होता है। कार्यालयों में जब किसी व्यक्ति, संस्था या किसी अन्य कार्यालय, मंत्रालय को कोई पत्र लिखा जाता है, तो उससे पहले उस पत्र का कच्चा रूप तैयार कर लिया जाता है, पत्र का वह कच्चा रूप ही प्रारूपण कहलाता है। इस कच्चे प्रारूप को पहले अधिकारी को दिखाया जाता है और अधिकारी उसे स्वीकृत कर देता है तो फिर संबंद्ध संस्था को वह पत्र अंतिम रूप में टंकित कर के भिजवा दिया जाता है।

अच्छे प्रारूप की विशेषताएं (prarupan ki visheshta)

अच्छा प्रारूप तैयार करना एक गुण माना जाता है। जिस व्यक्ति को उल्लिखित विषय का पूरा-पूरा ज्ञान, संबंधित कागज-पत्रों की एवं की गई कार्यवाही की पूरी-पूरी जानकारी हो, वहीं अच्छा प्रारूप तैयार कर सकता हैं। इसके लेखन में कौशल तथा निरंतर अभ्यास की जरूरत होते हैं। अच्छे प्रारूप में निम्नलिखित विशेषताएं होना चाहिए-- 

1. पत्र से संबद्ध मुख्य-मुख्य बातों का स्पष्ट तथा ठीक क्रम से उल्लेख होना चाहिए। 

2. भाषा सुस्पष्ट, शुद्ध, सरल, विनम्र एवं शिष्ट होना चाहिए। 

3. प्रारूप विशिष्ट तथा पूर्व निर्धारित शैली के आधार पर और उसी के अनुसार होना चाहिए। 

4. उस पत्र के क्रमांक तथा दिनांक का उल्लेख होना चाहिए, जिसका उत्तर दिया जा रहा हो। अगर काफी समय से पत्र व्यवहार हो रहा है, तो अंतिम पत्र के क्रमांक तथा दिनांक का उल्लेख करना चाहिए। 

5. प्रारूप का हर अंग स्पष्ट होना चाहिए। 

6. अगर किसी विशेष आदेश की सूचना हेतु प्रारूप तैयार किया जा रहा हो, तो उस आदेश को यथावत् प्रारूप में रखना चाहिए। 

7. प्रारूप तैयार करते समय दो पंक्तियों के बीच में पर्याप्त स्थान संशोधन अथवा कुछ जोड़ने लिए छोड़ा जाना चाहिए। 

8. पर्याप्त हाशिया हो ताकि संदर्भ के पत्र या अन्य सामग्री को हाशिये पर अंकित कर उनका निर्देश किया जा सके। प्रारूप के साथ पूरे-पूरे तथा सही संदर्भ दिये जाने चाहिए। 

9. पत्र के साथ अगर किसी पूर्व आदेश या विवरण की प्रति भेजनी हो, तो उसका स्पष्ट उल्लेख होना चाहिए। 

10. संलग्न पत्रों की संख्या का उल्लेख करना चाहिए। 

11. प्रारूप हमेशा संबंधित नस्ती मिसिल पर ही पेश किया जाना चाहिए।

12. प्रारूप पर तथोचित पर्चियाँ (छपी हुई) जैसे-- तत्काल, अनुमोदनार्थ, सर्वप्रथम, आवश्यक आदि लगा दी जानी चाहिए। 

13. आदेश हो जाने पर निरर्थक संलग्न पत्रों को हटाकर उन्हें अलग नस्ती में रखना चाहिए। 

14. प्रारूप में अनौपचारिक शैली, तथ्यपरकता, तार्किकता के साथ अन्य पुरूष/कर्मवाच्य की संरचनाएं होनी चाहिए।

प्रारूपण तैयार करने की विधि 

आलेखन या प्रारूपण का मूल आधार टिप्पण होता है। सर्वप्रथम किसी कार्यालय या भाग में दूसरे कार्यालय या विभाग से पत्र प्राप्त होता है। यह पत्र अन्य पत्रों के साथ रिकाॅर्ड सेक्शन में रिकाॅर्ड किया जाता हैं। तत्पश्चात इसे संबंधित अनुभाग (सेक्शन) में भेज दिया जाता है। अधिक महत्वपूर्ण पत्र वरिष्ठ अधिकारी को भेज दिए जाते है। इस विषय अथवा आवेदन-प्रतिवेदन से संबंधित कर्मचारी उस विषय अथवा आवेदन पर अपनी टिप्पणियाँ देते हैं। तत्पश्चात् कुशल अधिकारी के निर्देशन में लिपिक आदि उन अंकित टिप्पणियों के आधार पर प्रारूप तैयार करते हैं।

प्रारूप लेखन के समय ध्यान रखने योग्य बातें 

प्रारूप तैयार करना भी एक गुण है, जिसको निरन्तर अभ्यास से ही प्राप्त किया जा सकता है। प्रारूप लेखन करते समय प्रारूप लेखक को निम्नलिखित वर्णित सामान्य बातों का ध्यान रखना चाहिए-- 

1. पत्र से संबंधित मुख्य-मुख्य बातों का उचित क्रम में उल्लेख करना चाहिए। 

2. फाइल में की गई नोटिंग, टिप्पण पर आधारित हो। 

3. सन्दर्भ का उचित उल्लेख भी अनिवार्य है।

4. जिन नियमों का उल्लेख किया गया हो, उनके विषय में तथ्यपूर्ण जानकारी होनी चाहिए। 

5. निष्कर्ष रूप में कही गई बात विशेष महत्वपूर्ण होती है, जिस पर आगे का पत्राचार निर्भर करता हैं। 

6. दो पंक्तियों के बीच पर्याप्त स्थान छोड़ देना चाहिए। इसका टंकण डबल स्पेस में किया जाता हैं। 

7. पत्र के साथ अगर पूर्व पत्र, आदेश अथवा विवरण की प्रति हो तो उसका स्पष्ट उल्लेख होना चाहिए। पहले से उसकी प्रतियाँ तैयार कर संलग्नक के लिए रख लेनी चाहिए। 

8. पहले पैरे को छोड़कर शेष में पैरा संख्या लिखी जानी चाहिए। प्रत्येक पैरे में अलग-अलग मुद्दे व उन पर टिप्पणी होनी चाहिए। 

9. अगर पत्र पर तत्काल कार्यवाही अपेक्षित हो तो उस पर ऊपर 'तत्काल' या 'सर्थप्रथम' शब्द लिख देना चाहिए या 'सर्वप्रथम' की पर्ची लिख देना चाहिए या 'सर्वप्रथम' की पर्ची लगा देनी चाहिए। 

10. अनुमोदन हेतु पत्र पर पर्ची लगाकर ही उसे पेश करना चाहिए। 

11. अनुमोदन के बाद प्रारूप को टंकित रूप में अथवा हाथ से स्वच्छ प्रति के रूप तैयार कर हस्ताक्षर के लिए प्रस्तुत करना चाहिए। कार्यालय प्रति पर संक्षिप्त हस्ताक्षर एवं स्वच्छ प्रति पर पूर्ण हस्ताक्षर करवाना चाहिए। 

12. प्रारूप की कार्यालय प्रति में खाली स्थान पर प्रारूप लेखक को पत्र की वे अतिरिक्त प्रतियाँ भी दर्ज कर लेनी चाहिए, जिन्हें संबंधित अधिकारियों/कार्यालयों को भेजा गया हैं। 

13. अधिकारी के आदेश हो जाने पर स्वच्छ प्रति जारी कर देनी चाहिए तथा निरर्थक सहपत्र हटा देने चाहिए। अगर प्रारूप तैयार करते समय वाले सहपत्र की भविष्य में जरूरत पड़ने की सम्भावना हो तो उसे फाइल में नीचे सुरक्षित रख लेना चाहिए। 

14. पत्र के उत्तर के लिए यदि कोई तिथि निर्धारित हो तो उसका ध्यान रखना चाहिए। यदि उत्तर निश्चित तिथि के बाद विलम्ब में भेजा जा रहा है तो उसका सकारण उल्लेख कर देना चाहिए। 

15. यदि प्रेषिती ने मूल कागज या कोई अन्य सामग्री (सहपत्र) वापस माँगी हैं तो उसे लौटा देना चाहिए।

प्रारूपण की आवश्यकता 

हिंदी राज्य भाषा एवं संपर्क भाषा के रूप में आज हमारे देश में प्रतिष्ठित हैं। स्वतंत्रता से पूर्व हमारे देश का राजकीय पत्र-व्यवहार अंग्रेजी में होता था क्योंकि अंग्रेजी ही राजकाज की भाषा थी। 

स्वतंत्रता के बाद हमारे देश में समस्त प्रशासनिक कार्य हिंदी के माध्यम से किया जाने लगा। हिन्दी का प्रयोग यद्यपि प्रशासनिक भाषा के रूप में होने लगा, किन्तु उसकी गति अत्यंत धीमी और शिथिल रही। इसके अनेक कारण है और उन कारणों में से एक महत्वपूर्ण कारण यह भी है कि प्रारूपण संबंधी पुस्तकों का हिन्दी में नितान्त अभाव पाया जाता है। यही कारण है कि आज का हिन्दी स्नातकोत्तर युवक भी यह नहीं जानता कि उसे विभिन्न विभागों से पत्र-व्यवहार करने के लिये किस प्रकार से पत्र लिखना चाहिए। प्रशासनिक एवं कार्यालयीन पत्रों को लिखने की एक विशेष विधि एवं रूपरेखा होती है, जिससे हिन्दी का विद्यार्थी हमारे देश में अपरिचित रहता है। इससे स्पष्ट है कि आज प्रारूपण की कला और सिद्धांतों से परिचित होना प्रत्येक पढ़े-लिखे हिन्दी भाषी भारतीय के लिए अत्यंत आवश्यक हैं।

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