6/14/2023

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला के काव्य की विशेषताएं

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प्रश्न; निराला के काव्य की विशेषताएं लिखिए। 

अथव", सूर्यकांत त्रिपाठी निराला के काव्य सौष्ठव पर प्रकाश डालिए।

अथवा", निराला जी के भाव-पक्ष और कला-पक्ष पर एक निबंध लिखिए।

उत्तर-- 

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का काव्य सौष्ठव 

क्रांतिदर्शी कवि निराला छायावादी युग के महान कवि थे। निरालाजी का जीवन अनेक संघर्षों की गाथा रहा है। पर उनकी काव्य यात्रा को उससे सदा ऊर्जा मिली हैं। उन्होंने अपनी सबल लेखनी में अनेक काव्य ग्रंथों का प्रणयन किया हैं। 

निराला जी प्रतिभाशाली, युगप्रवर्तक कवि है। वह बहुमुखी प्रतिभा के साहित्यिकार थे। उनके काव्य की विशेषताओं को निम्नलिखित बिन्दुओं- भाव-पक्ष और कला-पक्ष में देखा जा सकता हैं--

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की भाव-पक्ष विशेषताएं

निरालाजी का काव्य भावपक्ष की दृष्टि से अत्यंत सबल और प्रौढ़ है। उनके काव्य का भाव-पक्ष उनके व्यक्तित्व के अनुरूप ही है। सूर्यकांत त्रिपाठी निराला के भाव-पक्ष की विशेषताएं 

निराला जी के भाव-पक्ष की निम्नलिखित विशेषताएं हैं-- 

1. सौंदर्य भावना 

निराला सौंदर्य प्रेमी कवि थे। उनके काव्य में सौंदर्य के स्थूल और सूक्ष्म दोनों रूपों के दर्शन होते हैं। नारी के नेत्रों के सौंदर्य का वर्णन दिखिये-- 

"हारे हैं सारे नेत्र, नेत्रों को हेर-फेर, 

विश्वभर को मदोन्मत करने की मादकता। 

भरी हैं विधाता ने इन्हीं दोनों नेत्रों में।।" 

2. छायावादी भावना 

निरालाजी का छायावाद सभी श्रेष्ठ लक्षणों से युक्त हैं। उनकी कविता ने हिन्दी काव्य को नवीन भाषा, नये छन्द, नयी शैली, नये अलंकार और नयी दिशा प्रदान की।  

3. रहस्यवादी भावना 

निराला के काव्य में सर्वत्रा रहस्यवाद की अभिव्यक्ति पायी जाती हैं। उनकी शायद ही कोई ऐसी कविता हो, जिसमें रहस्यवाद की अभिव्यक्ति न हो। वे जीवन के दुखों को माया कहकर नहीं टाल देते, बल्कि उससे संघर्ष करते हैं। 

4. निराला और प्रगतिवाद 

समाज के शोषण वर्ग के प्रति निराला के मन में सहज सहानुभूति हैं। निराला जैसा कवि यह कैसे देख सकता है कि भव्य और उन्नत प्रसादों में नीचे निरीह कीड़े बिलबिला रहे हों। प्रगतिवादी कवि के नाते उनके दिल में शोषित और दुखी मानव के लिए सहज सहानुभूति हैं।

5. प्रेम का निरूपण 

निरालाजी के काव्य में "प्रेम" तत्व का बहुत भव्य चित्रण मिलता है। प्रेम उनके काव्य की महान प्रेरणा है। उनके काव्य में प्रेम कहीं तो पूरूष के माध्यम से व्यक्त हुआ है और कहीं स्त्री के माध्यम से। वे मौन प्रेमी हैं, इसलिए उन्होंने लिखा हैं-- 

"दिव्य देह धारी ही कूदते है इसमें, 

प्रिय पाते हैं प्रेमामृत पीकर अमर होते हैं।" 

6. निराला और प्रकृति चित्रण 

निराला जी ने जी भरकर प्रकृति के दर्शन किये। यही कारण है कि उनके काव्य में प्रकृति विविध रूपों में चित्रित हुई है। उद्दीपन रूप में प्रकृति चित्रण दिखिये-- 

"अर्द्ध रात्रि की निश्चलता में हो जाती, जब लीन

कवि का बढ़ जाता अनुराग, 

विरहाकुल कमनीय कंठ से, 

आप निकल पड़ता तब एक विहाग।।"

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला के कला-पक्ष की विशेषताएं

निरालाजी आरंभ से ही विद्रोही कवि के रूप में हिन्दी साहित्य में अवतीर्ण हुए। प्राचीनता के प्रति आकर्षण उनकी कविता में आदि से अंत तक बना हुआ है। उन्होंने अपने काव्य के कला पक्ष में भी विद्रोह और स्वच्छन्दता से काम लिया है। निरालाजी के काव्य में कला पक्ष की दृष्टि से निम्नलिखित विशेषताओं के दर्शन होते हैं-- 

1. भाषा

निराला की भाषा संस्कृतगर्भित खड़ी बोली है। उसमे तत्सम और दुरूह शब्दों का प्रयोग भी इन्होंने किया है, जिससे सामान्य पाठक इनके काव्य को सरलता से समझ सकता हैं। आपकी भाषा में उर्दू, अंग्रेजी के शब्द भी मिलते है। मुहावरों का सही प्रयोग देखते ही बनता है। भाषा पर निराला का जबरदस्त अधिकार हैं। नवीन शब्दों के निर्माण में आप सिद्धहस्त हैं। 

2. अलंकार योजना 

निराला की कविताओं में अलंकारों की अधिकता हैं। आपके काव्य में रूपक, अनुप्रास, उत्प्रेक्षा, सन्देह, यमक, उपमा, उदात्त आदि अलंकारों का विशेष प्रयोग हुआ हैं-- 

अनुप्रास-- 

तोड़ो तोड़ो तोड़ो कारा

पत्थर की, निकले फिर गंगाजल धारा। 

उपमा-- 

वह इष्ट देव के मंदिर की पूजा-सी। 

वह दीपशिखा सी शांत, भाव में लीन।।

3. छन्द योजना 

छंद योजना के क्षेत्र में भी निरालाजी ने नवीनता को परिचय दिया है। उन्होंने अपने काव्य में प्राचीनकाल से चले आ रहे छन्दों को स्थान नहीं दिया। उन्होंने स्वयं नवीन छन्दों की सृष्टि की और छन्दों को भावों के प्रकाशन के लिए श्रेष्ठ माना-- 

मुक्त छंद 

सहज प्रकाशन वह मन का 

निज भाषाओं को प्रकट आकृत्रिम चित्र।" 

4. लक्षणात्मक प्रयोग 

निरालाजी की कविताओं में लक्षणात्मक प्रयोग अधिक मिलते हैं। लक्षणात्मक प्रयोग का एक उदाहरण दिखेये-- 

"गन्ध-व्याकुल-कुल उर स्वर

लहरा खुलकर कमल मुख पर

हर्ष अलि हर स्पर्श शर-शर

गूँज बारम्बार (रे कह)।" 

उपर्युक्त विवेचना से यह निष्कर्ष निकलता है कि निरालाजी का काव्य जीवन में श्रेष्ठतम मूल्यों से अनुप्राणित था, इसलिए उनका काव्य हिन्दी साहित्य के भण्डार की अमूल्य निधि है। निराला के काव्य में छायावाद, प्रगतिवाद, रहस्यवाद, भाव सौंदर्य, कला सौंदर्य आदि सभी की सफल अभिव्यक्ति हुई हैं।

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