प्रश्न; माखनलाल चतुर्वेदी की काव्यगत विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
अथव", माखनलाल चतुर्वेदी के काव्य सौष्ठव पर प्रकाश डालिए।
उत्तर--
माखनलाल जी का जीवन और साहित्य दोनों ही राष्ट्र सेवा के लिए समर्पित था। अपने जीवन में वे राष्ट्रीय आन्दोलनों में हिस्सा लेते रहे, पहले हिंसावादी क्रांतिकारी दल में दीक्षा लेकर और बाद में गांधी जी के अहिंसात्मक सत्याग्रही बनकर। इन्होंने जहाँ कविता के माध्यम से राष्ट्रभक्ति के भाव व्यक्त किये वहीं पत्रकारिता के माध्यम से देश की राजनीति में योग दिया। अपने पत्र और लेखों द्वारा ब्रिटिश शासन का खूब विरोध किया। इनकी विद्रोहात्मक लेखनी से ब्रिटिश शासन घबरा गया और सन् 1921, 1922 और 1927 में राजद्रोह के अभियोग में इन्हें कारागार भेजता रहा। स्वतंत्रता आन्दोलन को सक्रिय प्रेरणा देने की प्रवृत्ति उनके काव्य में ही नहीं बल्कि उनके जीवन में भी मिलती है। जेल यात्रा उनके लिए गौरव यात्रा थी, इसीलिए उन्होंने कहा-
"क्या ? देख न सकती जंजीरों का गहना।
हथकड़ियाँ क्यों ?
यह ब्रिटिश राज का गहना।"
माखनलाल चतुर्वेदी के भाव-पक्ष की विशेषताएं
भाव, काव्य की आत्मा और कला बाह्य शरीर माना जाता है। जिस प्रकार आत्मा और शरीर की एकरूपता में ही मानव-जीवन की सार्थकता निहित रहती है, उसी प्रकार भाव और कला का उचित सामंजस्य देखा जा सकता हैं। चतुर्वेदी जी अत्यंत भावुक और भाव-प्रधान कवि है। चतुर्वेदी जी की भाव-पक्षीय विशेषताएं निम्नलिखित हैं--
1. क्रांतिवादी चेतना
चतुर्वेदी जी की कविताओं में क्रांतिवादी चेतना के स्वर हैं। उसमें राष्ट्रीय उत्थान के लिये युवावर्ग को संचेतना देते हुए उन्हें ललकारते हुए इस प्रकार से कहा हैं--
आग अंतर में लिए पागल जवानी।
कौन कहता है कि तू विधवा हुई खो आज पानी।
चल रही घड़ियाँ, चले हिमखंड सारे।
चल रही है सांस फिर तू ठहर जाए।
दो सदी पीछे कि तेरी लहर आए।
पहन ले नर मुंडमाला उठा स्वयंभू सुमेरू कर ले।
रोटियाँ खाई की साहस खो चुका हैं।
2. देश प्रेम व भक्तिभाव
माखनलाल जी में देश-प्रेम की भावना कूट-कूट कर भरी है। कवि अपने देश की स्वतन्त्रता के लिये तथा आत्म बलिदान के लिये हर क्षण तत्पर रहता है। उनके द्वारा रचित 'सिपाही' कविता में देश-भक्ति का उच्च स्वर व्यक्त हो रहा है। कवि की आत्मोत्सर्ग की भावना एक सैनिक के रूप में दिखाई देती हैं--
'दे हथियार या कि मत दे तू, पर तू कर हुंकार।
ज्ञातों को मत, अज्ञातों को, तू इस बार पुकार।
बोल अरे सेनापति मेरे, मन की घुंडी खोल।।'
सच्चा राष्ट्रीय कवि वही होता है, जिसे अपने देश की मिट्टी, पेड़-पौधों, लतओं, झरनों, नदियों और उसके पर्वत शिखरों से प्रेम हो।
3. बलिदान व त्याग का स्वर
त्याग और बलिदान के लिए प्रेरित करने वाले कवियों में चतुर्वेदी जी का महत्वपूर्ण स्थान है। उनकी 'अमर राष्ट्र', 'पुष्प की अभिलाषा', बलि-पंथी से, आदि कवितायें इस दृष्टि से विशेष महत्वपूर्ण हैं। 'अमर राष्ट्र' में कवि स्वयं को बलिपथ का अंगारा निरूपित करते हुये कहता हैं--
'सूली का ही पथ सीखा हूँ, सुविधा सदा बचाता आया।
मैं बलि-पथ का अंगारा हूँ, जीवन-ज्वाल जलाता आया।।'
4. शोषितों के प्रति सहानुभूति
स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद स्वार्थों तथा पदलोलुपता की जो आँधी चली, उसमें राष्ट्र-नेता अपने कर्त्तव्यों को भूल कर नये रंग में डूब गये। मजदूरों, गरीबों और किसानों की दशा में कोई अंतर न आया। जिन लोगों ने राष्ट्र की सेवा में राजनेताओं के इशारे पर अपना सब कुछ न्यौछावर कर दिया था, उनका ही शोषण किया जाने लगा। कवि गरीबों की आह और कराह से बेचैन हो गया। उसका ह्रदय खिन्नता और विक्षोभ से भर गया। 'उलाहना' आदि कविता में उनकी यह वेदना मुखरित हो उठती हैं।
5. प्रेम और सौंदर्य का चित्रण
चतुर्वेदी जी के काव्य में प्रेम और सौंदर्य का भी चित्रण हुआ है। इनका प्रेम आवेग-पूर्ण है और सौंदर्य सम्पूर्ण सृष्टि में समाया हुआ है। ह्रदय में प्रेम का प्रबल वेग होने से उनकी प्रेमपरक कवितायें पाठकों का मन मोह लेती हैं। 'कुंज-कुटीरें', 'यमुना तीर' आदि कवितायें प्रेम भावना से सराबोर हैं। इन कविताओं में अलौकिक प्रेम और मानवता की भावना की अभिव्यक्ति दर्शनीय हैं।
'कौन-सी मस्त घड़ियाँ चाह की, ह्रदय की पगडंडियों की राह की।
दाह की ऐसी कसक कुंदन बने, मौन को मनुहार की है आह की।।'
6. प्रकृति प्रेम
कवि ने प्रायः प्रकृति-चित्रण उद्दीपन रूप में किया है। उनके प्रकृति चित्रण के रूप सीधे-सादे हैं। उनका यह प्रकृति चित्रण छायावादी काव्य जैसा नहीं है क्योंकि चतुर्वेदी जी सक्रिय राजनीति एवं जीवन की अन्य समस्याओं से उलझे हुये थे।
7. अध्यात्म भाव
इनका अध्यात्म-भाव छायावादी अथवा रहस्यवादी कवियों के अध्यात्म से मेल नहीं खाता हैं।
8. भगवद् प्रेम या भक्ति भावना
माखनलाल चतुर्वेदी भगवद् भक्ति के आलम्बन हैं “श्रीकृष्ण" उनकी कविताओं में कृष्ण भावना और राष्ट्रीयता की भावना अलग-अलग न रहकर एक रूप हो गई है। माखनलाल जी अपने देश की धरती से श्यामल प्रभु की गाँठ बांधते हैं-
श्यामल प्रभु से, भू की गांठ बांधती जोरा जोरी,
सूर्य किरण ये, यह मन भावनि, यह सोने की डोरी,
छनक बांधती, छनक छोड़ती, प्रभु के नव-पद- प्यार
पल-पल बहे पटल पृथिवी के दिव्य रूप सुकुमार।
उनके लिए देश की माटी है माखन और कृष्ण, धूल-धूसरित वेश है भारत माँ का मैला आंचल। वे कहते है:-
माखन? भले माटी भले हो धूलिधूसर वेश।
खाऊँ, खिलूं, गाऊँ तुम्हारे विजयगीत स्वदेश।
"मुक्ति का द्वार" शीर्षक कविता में वे भारत के तीस करोड़ लोगों को बन्दी के रूप में देखते हैं तथा उसके द्वार के खुलने की प्रार्थना श्यामल प्रभु से करते हैं--
अरे कंस के बन्दी गृह की, उन्मादक किलकार ।
तीस करोड़ बंदियों का भी
खुल जाने दे द्वार।
तिलक की मृत्यु पर उन्होंने कविता लिखी, जिसमें पहली बार वे इस संदर्भ का उल्लेख करते हैं--
दुखियों के जीवन लौट पड़ो, मेरे घन-गर्जन लौट पड़ो।
जसुदा के मोहन लौट पड़ो, सित काली मर्दन लौट पड़ो।
राष्ट्रीय स्वाधीनता के लिए गोवर्धन पर्वत उठाने में वे अद्वितीय पराक्रम देखते हैं। सदियों से पददलित और अपमानित देश के लिए साहस के शैल को उठाने की जरूरत है। वे वनमाली से प्रार्थना करते हैं कि--
ब्रज की रज खाने को जाओ, प्रेम प्रवाह बहाने को
छगुनि शिखा पर साहस का यह भारी शैल उठाने को।
इस प्रकार कृष्ण के जीवन के अनेक प्रसंग स्वाधीनता संग्राम में सार्थक हो गए। श्री कृष्ण उनके आराध्य इसलिये हैं कि वे राष्ट्रीय स्वाधीनता में उनके प्रेरक बनते हैं। उपासना और संघर्ष एक बिन्दु पर मिल जाते हैं।
9. साम्राज्य विरोधी स्वर
चतुर्वेदी जी ऐसे संवेदन शील कवि है, जिनकी रचनाओं में अनुभूति की सच्चाई तो है, लेकिन वह लोक स्तर पर हैं। चतुर्वेदी जी साम्राज्य विरोधी शक्तियों के विरोधी कवि रहे है। आपने अपनी कविताओं के माध्यम से ब्रिटिश साम्राज्य की शक्तियों को उखाड़ने के लिए सामान्य जन की आवाज में अपना विरोधी स्वर इस प्रकार से फूंक दिया था--
क्या? देख न सकती जंजीरों का गहना।
हथकड़ियाँ क्यों? यह ब्रिटिश राज्य का गहना
कोल्हू का चरेक जूँ? जीवन की तान।
मिट्टी से लिखे अंगुलियों ने गाया गान।
हूँ मोट खींचता लगा पेट पर जुआ।
खाली करता हूँ ब्रिटिश अकड़ का कुँआ।
10. अनुभूति की प्रधानता
चतुर्वेदी जी में अनुभूति की प्रधानता हैं। इस विषय में डाॅ. गोपाल राय ने लिखा है जो इस प्रकार से हैं-- "इनकी कई रचनाओं में विशेषकर आरम्भिक रचनाओं में आध्यात्मिक अनुभूति की वाणी मिली हैं। इनकी आध्यात्मिक भावना पर निर्गुण भक्ति, सगुण भक्ति और रहस्य भावना का प्रभाव दिखाई देता हैं।"
इस प्रकार से हम कह सकते है कि चतुर्वेदी जी की रचनाओं में जो अनुभूति की प्रधानता है वह विविध प्रकार की है। उसमें राष्ट्र के प्रति संवेदनशीलता, अदृश्य शक्ति के प्रति भक्ति भावना आदि को देखा जा सकता हैं।
माखनलाल चतुर्वेदी के कला-पक्ष की विशेषताएं
चतुर्वेदी जी की भाव पक्षीय विशेषताओं के समान उनकी कला पक्षीय विशेषताएं भी अद्भुत और विविध हैं। चतुर्वेदी जी की कलागत विशेषताएं निम्नलिखित हैं--
1. भाषा
चतुर्वेदी जी की भाषा में प्रवाहमयता और संवेदनशीलता दोनों ही गुण विद्यमान है। विषय का चुनाव और उसका स्पष्टीकरण करने की जो सफलता चतुर्वेदी जी को मिली उसके लिए अनुभूति पक्ष को श्रेय तो देना ही पड़ेगा, इसके साथ-साथ भाषा को भी श्रेय देना अपेक्षित कार्य होगा।
शब्दों के चुनाव में चतुर्वेदी जी ने मुख्य रूप से तत्सम शब्दावली का ही प्रयोग किया है, कहीं-कहीं तद्भव और देशज शब्दों के प्रयोग दिखाई देते है। उर्दू शब्दावली के प्रवाह के कारण भाषा में गतिशीलता और मधुरता दोनों रस टपकते हैं। इस प्रकार से चतुर्वेदी जी की भाषा सजीव और प्राणवान भाषा है। यह चुस्त और घटक हैं। इसमें भावाभिव्यक्ति की पूरी क्षमता दिखाई देती हैं।
2. शैली
चतुर्वेदी मुख्य रूप से संवदेनशील कवि है। कल्पना से अधिक यथार्थ का बोध आप में अधिक है। इस प्रकार से अपने यथार्थ को ही कल्पना के रंगीन चित्रों के द्वारि प्रस्तुत करने का पूरा प्रयास किया है। इस दृष्टि से बोधगम्य शैली और चित्रात्मक शैली दोनों ही आपकी कविताओं की प्रमुख आधारभूत शैलियाँ रही है। भावों की सरसता और रोचकता के कारण आपकी शैली को भावात्मक शैली भी कह सकते है। चतुर्वेदी जी द्वारा प्रयुक्त शैली की एक बड़ी विशेषता यह है कि यह चिन्तन प्रधान शैली है। इनके गंभीर चिन्तन शैली के प्रभाव किसी भी कविता में देखे जा सकते हैं।
3. रस
श्री माखनलाल चतुर्वेदी चतुर्वेदी जी भावावेग के कवि है। क्रांतिवादिता और प्रगतिशीलता, आपके काव्यत्व व्यक्तित्व की प्रधान विशेषताएँ हैं। कविता में ओज और जोश-खरोश जो प्रबल उद्वेग दिखाई देता है वह परिवर्तनशील का आग्रही रूप है। फलतः चतुर्वेदी जी की कविता वीर, रौद्र, भयानक, श्रृंगार और करूण रसों से सिंचित हैं। विभिन्न रसों के कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं--
वीर रस--
श्वान सिर हो तो चरण चाटता हैं।
भोंक ले क्या सिंह को वह भौंकता हैं?
श्रृंगार रस--
ये आए बादल झूम उठे,
ये हवा के झोंके झूम उठे,
बिजली की चम-चम पर चढ़कर
नीले मोती भू चूम उठे।
4. छन्द
चतुर्वेदी जी ने मुक्तक छन्दों की कम और मार्मिक छन्दों की अधिकांशतः रचनाएँ की है। आपके छन्दों में भावों की स्वतंत्रता और उच्छवास है। इस प्रकार से छन्दों पर भावों की विजय दिखाई देती है। सजीवता आपके छन्दों का प्रमुख वैशिष्ट्य् है। अतुकांत छन्दों की भाव प्रवणता देखते ही बनती हैं।
5. अलंकार
चतुर्वेदी जी की कविताओं में अलंकार समावेश स्वतः हुआ है। इस प्रकार से आए हुए अलंकारों में प्रमुख अलंकार हैं-- उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, रूपकातिश्योक्ति, अन्योक्ति, वक्रोक्ति, संदेह आदि। मानवीकरण अलंकार आपके द्वारा सर्वाधिक और सर्वप्रिय अलंकार है इसके उदाहरण दिखिए--
जब चाँद मुझे नहलाता है,
सूरज रोशनी पिन्हाता है,
क्यों दीप लेकर कहते हो,
यह तेरा है, यह मेरा हैं?
Makhanlal chaturvedi ke makhanlal Chaturvedi ki Dharm aur veshbhusha ke upar 20 lines
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Ramdhari sibgh ki kavygat bisheshtaye
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