प्रश्न; दुष्यंत कुमार त्यागी की कविता की भावपक्षीय विशेषताएं लिखिये।
अथवा", दुष्यंत कुमार की काव्यगत विशेषताओं का विवेचन कीजिए।
अथवा", दुष्यंत कुमार के काव्य के कला-पक्ष एवं भाव-पक्ष की विशेषताओं का विवेचन कीजिए।
अथवा", दुष्यंत कुमार की काव्य चेतना पर प्रकाश डालिए।
अथवा", सिद्ध कीजिए कि 'दुष्यंत कुमार की कविता का मूल स्वर आम आदमी हैं।'
उत्तर--
दुष्यंत कुमार का हिन्दी-साहित्य के समकालीन कवियों में महत्वपूर्ण स्थान हैं। उनकी कविता जन-जन की कविता है। कवि ने अपनी रचनाओं में सहज विश्वास के साथ मध्यवर्गीय व्यक्ति के आत्म-संघर्ष और उसकी छटपटाहट को अभिव्यक्ति प्रदान की है। अतः यह कहना कि दुष्यंत कुमार जी समकालीन हिन्दी कविता के समर्थ हस्ताक्षर हैं, सार्थक प्रतीत होता है। इस तथ्य की पुष्टि उनके काव्य-वैशिष्ट्य से सहज ही हो जाती है। उनके भावपक्षीय काव्य-वैशिष्ट्य की विवेचना निम्नलिखित रूप से दृष्टव्य हैं--
दुष्यंत कुमार के भाव-पक्ष की विशेषताएं
दुष्यन्त जी का भाव-पक्ष आधुनिक संदर्भों से जुड़ा-बुना हुआ हैं। दुष्यंत कुमार जी के भाव-पक्ष की निम्नलिखित विशेषताएं हैं--
1. जन-जीवन एवं परिवेश के प्रति संप्रति
दुष्यंत कुमार के काव्य में आम आदमी की घुटन, छटपटाहट और कराह का स्वाभाविक चित्रण है। अपने चारों ओर से षड्यंत्र और क्षोभ का वातावरण भी कवि स्पष्ट देखता है और देखता है क्षुद्र तथा स्वार्थी मनोवृत्तियों को, तो इन सब पर करारी चोट करते हुए वह कह उठता हैं--
हम जो स्वयं को तैराक कहते हैं,
किनारों की परिधि से कब गये आगे?
इसी इतिवृत्त में हम घूमते हैं,
चूमते हैं पर कभी क्या छोर तट का।
आज का मनुष्य महत्वाकांक्षी है किन्तु अंदर से वह खोखला है। वह तुरंत स्वार्थवश बिक जाता है। उसका पुरूषार्थ खंडित है। अतः दुष्यंत जी चाहते है कि हम अपना सामाजिक दायित्व पूरा करें और शोषित पीढ़ी का नया भविष्य बना सकें--
आस्था दो कि हम अपनी बिक्री से डरें
बल दो-दूसरों की रक्षा करें।
2. आदमी का दर्द
दुष्यंत कुमार जी की कविता का भी जन्म वाल्मीकि की तरह दर्द से दर्द से हुआ है। इसलिए उसमें आम आदमी का दर्द हैं--
कई फाके बिताकर मर गया, जो उसके बारे में
वो सब कहते हैं अब, ऐसा नहीं, ऐसा हुआ होगा।
3. संवेदनशीलता
कविवर दुष्यंत जी आम-आदमी के कवि हैं। आज समाज में जनसाधारण की चीत्कारों एवं करूण क्रन्दन से कवि का ह्रदय दहल उठता है और समाज के चारों छोरों से आने वाली आवाजों की प्रतिध्वनियाँ उसकी आत्मा से टकरा-टकरा कर उसे मर्माहत करती है और उसे अपना कवि जीवन व्यर्थ प्रतीक लगता हैं--
'कवि कहलाने का क्या मतलब?
जब मैं आवाजों के घेरे में हूँ।'
4. क्रान्ति का स्वर
दुष्यंत जी समाज की शोषणकारी व्यवस्था को पूर्ण रूपेण बदलने के प्रबल पक्षपाती हैं। इसके लिये उनकी लेखनी विद्रीही रूप धारण कर लेती है और उनकी वाणी से क्रांति की लपटें निकलने लगती हैं।
5. आस्था के कवि
दुष्यंत जी आस्थावादी है। वे आस्था के कवि है अतः पराजय, घुटन के बावजूद समस्याओं के समाधान के लिए राह खोजने की सामर्थ्य उनकी स्वस्थ सामाजिकता की परिचायक हैं--
आह! वातावरण में घुटन है,
सब अंधेरे में सिमट जाओ और सट जाओ,
और जितने आ सको, उतने निकट आओ,
हम यहाँ से राह खोजेंगे।
और भी-सूर्योदय मुझ से ही होना हैं।
6. बदलते जीवन मूल्य
स्वतंत्रता के बाद भारत में निरंतर तेजी से जीवन मूल्य ध्वस्त हो रहे है। दुष्यंत कुमार ने इन बिखरते और टूटते जीवन-मूल्यों को अपने काव्य का विषय बनाया है। वे एक जनवादी कवि है। अतः वे साथियों से साफ-साफ कहते हैं--
मुझसे हमदर्दी है तो,
मेरी पीड़ा का कारण समझो-बूझो;
मेरे मित्रो।
जल्दी आकर मेरे संग-संग इन आवाजों से जूझो।
इनकी ध्वनियों को बदलो,
इनके अर्थों को बदलो,
इनको बदलो।
7. यथार्थ का साक्षात्कार
दुष्यंत कुमार ने जीवन के यथार्थ का साक्षात्कार किया है। उन्होंने जनता-जनार्दन के हा-हाकार को सुना है। उसके दुःख दर्द को समझा है। युग-युग से त्रस्त मानव इस हा-हाकार के इतिहास को ढो रहा है। 'जलते हुए वन का वसंत' में उनके उद्गार देखिए--
इतिहास मेरे साथ न्याय करे
मैने हर फैसला उस पर छोड़ दिया हैं।
मैंने स्वार्थों की वेदी पर नर-बलियाँ दी है,
और तीर्थों में दान भी किए हैं।
मुझसे हुई हैं भ्रूण हत्याएं,
मैंने मूर्तियों पर जल भी चढ़ाएं है,
परिक्रमाएं भी की है।
मेरी पीड़ा यह हैं--
मैंने पापों को देखा हैं। भोगा हैं। छुआ हैं। छुआ हैं। किया नहीं....
8. राष्ट्रीय भावना
कविवर दुष्यंत जी की राष्ट्रीय भावना पवित्र और आडम्बर रहित है। उन्हें देश-प्रेम के नाम पर किये जाने वाले दिखावे (आडम्बरों) से भारी चिढ़ है। कवि कहता है कि लोग देश-प्रेम के नाम पर युद्ध की और मातृ-भूमि की बातें करते हैं, वे देश के लिये लड़ते-लड़ते मर का संकल्प लेते हैं, किन्तु क्या यही देश-प्रेम हैं? कवि कहता है कि मुझसे यह सब दिखावा नहीं होता हैं।
9. आस्था का केंद्र-बिन्दु मनुष्य
दुष्यंत कुमार का समस्त काव्य मानवता का गायक है। इसलिए उसमें मानवीय पीड़ा के साथ विषय के लिए विश्वास भी है। संघर्ष के लिए आकुल मानवता के प्रश्नों को खोजते हुए भी वे लक्षित होते है। गाँधी जयंती पर दुष्यंत कुमार ने लिखा--
मेरी तो आदत है, रोशनी जहाँ भी हो;
उसे खोज लाऊँगा। कातरता, चुप्पी या चीखे,
या हारे हुओं की खोज, जहाँ भी मिलेगी,
उन्हें प्यार के सितार पर बजाऊँगा।
उपर्युक्त भावपक्षीय विशेषताओं के विवेचन से यह सुस्पष्ट है कि दुष्यंत कुमार की कविता का मूल स्वर आम आदमी है। इसी आम आदमी के सुख-दुख, उसका परिवेश ही उनकी कविता के क्रेंद्र में रहा है। इसी आम आदमी की वेदना, बेचैनी, संबंधों का खोखलापन, सामाजिक, राजनैतिक तथा नैतिक मूल्यों के पराभव को उन्होंने अपनी सीधी-साधी भाषा में बयान किया हैं।
दुष्यंत कुमार के कला पक्ष की विशेषताएं
कला-पक्ष की अभिव्यक्ति की दृष्टि से भी दुष्यंत की कविता अत्यंत सक्षम है। सीधी-सादी, सरल अभिव्यक्ति, वार्तालाप की शैली, चिर-परिचित बिम्ब विधान तथा आम आदमी की बोली-बानी दुष्यंत कुमार के शिल्प-विधान की महत्वपूर्ण उपलब्धि है। दुष्यंत कुमार को लगता है कि शब्दों ने अपनी सार्थक पहचान खो दी है। अतः संप्रेषणीयता पर विचार करते हुए वे कहते हैं--
लब्ज एहसान से छाने लगे, ये तो हद हैं,
लब्ज माने छुपाने लगे, ये तो हद हैं।
दुष्यंत कुमार के कला-पक्ष की निम्नलिखित विशेषताएं हैं--
1. बिम्ब-विधान
दुष्यंत कुमार की कविता बिम्बों से भरपूर है। चिर-परिचित बिम्बों की बानगी के लिए निम्नलिखित कविता देखिए-- जिसमें व्यक्ति की हताशा, टूटन और विवशता का बिम्ब किस प्रकार स्पष्ट हुआ हैं--
खंडहरों सी भाव-शून्य आँखें
नभ में किसी नियंता की बाट जोहती हैं,
बीमार बच्चों से सपने उचाट हैं,
टूटी हुई जिंदगी
आँगन में दीवार से पीठ लगाये खड़ी है।
कटी हुई पतंग से हम सब
छत की मुंडेरों पर पड़े हैं।
2. प्रतीक योजना
नई कविता में प्रतीक योजना का विधान भी है। प्रतीक में अपनी बात किसी माध्यम से कही जाती है। काव्य में प्रतीक विधान द्वारा सौंदर्य उत्पन्न करने की वृत्ति प्रायः सभी कवियों में दिखलाई देती है। प्रतीकों का मुख्य उद्देश्य भावोत्तेजन तथा अर्थ को प्रदीप्त करना है। दुष्यंत कुमार की कविता में नवीन प्रतीकों का प्रयोग हुआ हैं।
3. प्रस्तुत विधान
कविता में भाव-सौंदर्य की उक्ति एवं चमत्कार सौंदर्य के उत्कर्ष के लिए अप्रस्तुत विधान का सहारा लिया जाता है। नई कविता ने इस क्षेत्र में क्रांति की है। उसने नये-नये उपमानों की खोज की है। नये प्रयोगो, नवीन उपमानों की दुष्यंत कुमार की कविता में कोई कमी नहीं है। उसमें बेतुकी जोड़-गांठ भी नहीं है, अपितु इन प्रयोगों में ताजगी के साथ-साथ संप्रेषण की सामर्थ्य भी हैं--
आँगन में पड़ी हुई पागल सी धूप।
द्वार पर निमंत्रण की पूर्जी सी धूप।।
आह सी धूल उड़ रही है आज।
चाह सा काफिला खड़ा है आज।।
उक्त पंक्तियाँ उपमान योजना और भाषा संपन्नता की सूचक हैं।
4. छंद योजना
छंद कविता का नियंत्रण करता है किन्तु वर्तमान में मुक्त छंदों का जमकर प्रयोग हो रहा है। दुष्यंत कुमार ने परंपरागत एवं मुक्त दोनों प्रकार के छंदों का सफल प्रयोग किया हैं।
5. भाषा
भाषा विचारों की वाहक होती है, कवि के विचार भाषा के माध्यम से ही व्यक्त होते है। नई कविता में आज के युग की संवेदना है। नई संवेदनाओं का कथ्य पुरानी भाषा से अभिव्यक्त नही किया जा सकता है। इसलिए भाषा में भी नये-नये प्रयोग हो रहे हैं। भाषा की प्रेषणीयता और सामान्य तक उसकी पहुँच के बोध से आज की कविता की भाषा सीधी और सरल तथा बोलचाल के अधिक निकट हो गई है। दुष्यंत कुमार ने कविता की भाषा में यद्यपि वैयक्तिक प्रयोग किए है किन्तु भाषा में आत्मीयता और सरलता का सर्वत्र ध्यान रखा है। उनकी भाषा आम आदमी की भाषा है।
निष्कर्ष
अतः हम निष्कर्ष रूप मे कह सकते है कि आम आदमी की भाषा का प्रयोग, अभिव्यक्ति का कौशल और संप्रेषणीयता दुष्यंत कुमार की भाषा की महत्वपूर्ण विशेषताएं है। आधुनिक हिन्दी कविता में दुष्यंत कुमार का एक विशिष्ट स्थान है। उनकी काव्य-कला निरंतर विकासोन्मुख होती चली गई हैं।
द्वितीय भाषा वालों के लिए बहुत अच्छा कार्य ; धन्यवाद
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