7/02/2022

शिक्षण व्यूह रचना/नीति का अर्थ, परिभाषा, विशेषताएं, लाभ, सीमाएं/दोष

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शिक्षण व्यूहरचना या नीति का अर्थ (shikshan vyuh rachna kya hai)

इंग्लिश जैम शब्दकोष के अनुसार," 'नीति' अथवा 'स्ट्रेटैजी' शब्द का अर्थ युद्ध में सेना को लड़ने के लिए उचित स्थान पर नियुक्त करने की कला से है, जिससे किसी विशिष्ट उद्देश्य की प्राप्ति की जा सके। अर्थात् 'स्ट्रेटैजी' या नीति का अर्थ युद्ध कला तथा कौशल से हैं। दूरसे एनसाइक्लोपीडिया के अनुसार," व्यूह रचना बड़ी सेना के कार्यों तथा उसकी क्रियाओं की योजना तथा निर्देशन देने की कला या विज्ञान हैं।" 

यह स्पष्ट है कि इसके अन्तर्गत योजना या कार्य करने के मार्ग को बताना हैं। अतः व्यूह रचना का संबंध कार्य प्रणाली से होता हैं। इसी प्रकार शिक्षण के अन्तर्गत इसका संबंध शिक्षण की कार्य प्रणाली से होता हैं। अतः शिक्षण 'स्ट्रेटैजी' का अर्थ लक्ष्य प्राप्ति हेतु कार्य प्रणाली की कलात्मक एवं कौशलपूर्ण व्यवस्था करना हैं।

शिक्षण व्यूहरचना/नीति की परिभाषा 

विभिन्न शिक्षाविदों ने शिक्षण नीति के संबंध में अपने मत इस प्रकार से स्‍पष्‍ट किये हैं-- 

बी. ओ. स्मिथ के अनुसार," स्ट्रेटैजी या व्यूह रचना कार्य के उन रूपों को कहते हैं जो कुछ उपलब्‍धियों को करने के लिए किये जाते हैं तथा कुछ आवश्यक कार्यों से सुरक्षा करते हैं। 

आईवर के. डेविस के अनुसार," व्यूह रचना अनुदेशन या शिक्षण की व्यापक होती हैं।" 

ब्राउडी के अनुसार," शिक्षण-नीतियों का संबंध एवं क्षेत्र अत्यन्त ही व्यापक हैं। शिक्षण व्यूह रचनाओं में, विभिन्न शिक्षण-विधियाँ, रीतियाँ तथा युक्तियाँ सम्मिलित हैं।" 

शिक्षण में 'शिक्षण व्यूह रचनाओं' शब्द से अर्थ हैं, वह पूरी कार्य व्यवस्था तथा नीति जिसके माध्यम से शिक्षण-लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सकता। यह कार्य व्यवस्था केवल एक ही पाठ से सम्बद्ध हो सकती है अथवा कई पाठों तक विस्‍तृत हो सकती हैं। अस्तु, व्यूह रचना की आवश्यकता एक या अनेक संबंधित पाठों के संदर्भ में अनुभव की जाती हैं। बेन बी. स्ट्रेसर के मतानुसार," रचना के अन्तर्गत एक विशेष प्रकार के शिक्षण-व्यवहारों के अनुक्रम की व्याख्या करने के लिए तर्क रूप में की जाती है और यह एक या कई पाठों की सामान्यीकृत व्यवस्था है जिसमें संरचना, अनुदेशनात्मक लक्ष्यों के अनुसार वांछनीय छात्र व्यवहार तथा इसके सफल कार्यान्वयन हेतु सुनियोजित युक्तियों की रूपरेखा उपलब्ध होती हैं।" 

शिक्षण व्यूह रचनाओं अथवा नीतियों की विशेषताएं (shikshan vyuh rachna ki visheshta)

शिक्षण व्यूह रचनाओं की संप्रत्यात्मक दृष्टि से मुख्य विशेषताएं निम्‍नलिखित हैं-- 

1. 'व्यूह' रचना की सफलता शिक्षक की व्यावसायिक निपुणता, अनुभव तथा उसकी सूझबूझ से प्रभावित होती है। चूँकि शिक्षण की वास्तविक परिस्थिति का साक्षात्कार होने से पहले तथा बाद की अवस्थाओं में रचना-कौशल विकसित करने तथा उसमें परिष्करण लाने के प्रति संकेत एवं सुझाव मिलते हैं, इसलिए शिक्षक को इस संबंध में विमर्शी-स्तर के चिन्तन का सहारि लेना पड़ता हैं। 

2. 'व्यूह रचना' का प्रभाव सम्पूर्ण शैक्षिक परिस्थति में निहित रहता हैं। शिक्षण-व्यवहार के क्षणिक अंशों से संबंधित होकर पूरे पाठ या कई पाठों तक मिलने वाली शिक्षण-अधिगम की परिस्थिति से जुड़ा होता हैं। 

3. 'व्यूह रचना' का स्वरूप शिक्षण-प्रक्रिया आरंभ होने से पहले निर्धारित होता हैं। यह शिक्षण-प्रक्रिया को प्रभाविता में अभिवृद्धि लाने के लिए पूर्व-कल्पति परिस्थितियों के विश्लेषण पर निर्भर होता हैं। 

4. 'व्यूह रचना' के अन्तर्गत विधियों, तकनीकी एवं युक्तियों का समावेश होता हैं। किसी एक रचना कौशल में एक से अधिक विधियों, तकनीकी एवं युक्तियों का समन्वित रूप मे उपस्थिति संभव हैं। 

5. शिक्षण की व्यूह रचना शिक्षक द्वारा स्वीकृत अधिगम-सिद्धान्त तथा मानव-स्वभाव के बारे में उसकी मान्यताओं द्वारा प्रत्यक्ष एवं परोक्ष दोनों ही रूपों में प्रभावित होती हैं। 

6. शिक्षण संबंधी व्यूह कौशल, छात्र-केन्द्रित या लोकतांत्रिक तथा शिक्षक-केन्द्रित या एकतान्त्रिक हो सकते हैं। छात्र-केन्द्रति रचना-कौशलों के उदाहरण हैं--परिचर्चा, परियोजना विधि, खोज प्रक्रिया, अन्वेषणात्मक शिक्षण, नियत कार्य विधि, विचारावेश प्रक्रिया, भूमिका-निर्वाह विधि, स्वीधीन-अध्ययन विधि, सूक्ष्म-ग्राहिता प्रशिक्षण, पुनर्विलोकन विधि, शिक्षक-केन्द्रित रचना कौशलों में व्याख्यान व्यूह रचना, प्रदर्शन-व्यूह रचना, अनुशिक्षण कक्षायें, अभिक्रमित अनुदेशन विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। 

शिक्षण व्यूह रचनाओं के लाभ (shikshan vyuh rachna ke gun)

शिक्षण व्यूह रचनायें शिक्षण की अर्ध उपकरण मानी जाती हैं। यह शिक्षक के लिए एक महत्वपूर्ण भूमिका प्रदान करती है कि पाठ्यवस्तु को छात्र तक कैसे पहुँचाया जाये। अतः शिक्षण को गति प्रदान करते हुए उसको रूचिकर, चुनौतीपूर्ण एवं संगठित बनाती हैं। इसके साथ ही शिक्षण को व्यावहारिक, गत्यात्मक, स्पष्ट एवं सरल, प्रेरणादायक, प्रयोजनवादी तथा सक्रिय रूप प्रदान करने में विशेश भूमिका प्रदान करती हैं। अतः रचनाओं के शिक्षण अधिगम व्यवस्था में निम्नलिखित लाभ होते हैं-- 

1. विषय-वस्तु को छात्रों तक पहुँचाने का एक समुचित साधन व्यूह रचनाओं को माना जाता हैं। इससे छात्र को उसको समझने में सहायता होती हैं। 

2. शिक्षक व्यूह रचनायें शिक्षण को व्यावहारिक रूप प्रदान करने में सहायक का कार्य करती हैं। 

3. व्यूह रचनायें शिक्षक को गत्यात्मक रूप करने में लाभदायक होती हैं। 

4. व्यूह रचनायें शिक्षण को सरल, स्पष्ट व आकर्षक बनाने में सहायक होती है। 

5. व्यूह रचनायें शिक्षण-अधिगम व्यवस्था में एक प्रेरणादायक रूप में कार्य करती है। इससे छात्र स्वतः सक्रिय होकर पाठ्य-वस्तु को आत्मसात् करते हैं। 

6. व्यूह रचनायें शिक्षण को प्रयोजनवादी बनाने में सहायक होती हैं। 

7. यह शिक्षण को बोधात्मक रूप प्रदान करने में सहायक होती हैं। 

8. व्यूह रचनायें शिक्षण-अधिगम व्यवस्था को निदानात्मक एवं रचनात्मक रूप प्रदान करने में अति लाभप्रद होती हैं। 

9. व्यूह रचनायें शिक्षण को वास्तविक रूप प्रदान करने में सहायक होती हैं। 

10. व्यूह रचनायें शिक्षक को सक्रिय रूप से अग्रसर करने में लाभप्रद होती हैं। 

11. व्यूह रचनायें शिक्षक की एक सहायक के रूप में कार्य करती हैं।

12. छात्र स्वयं पाठ्य-वस्तु का निर्धारण इनकी सहायता से कर लेता हैं। 

13. व्यूह रचनायें छात्रों में सृजनात्मक क्षमताओं का विकास करने में सहायक होती हैं। 

14. व्यूह रचनाओं से ज्ञानात्मक, भावात्मक तथा क्रियात्मक उद्देश्यों की प्राप्ति होती हैं। 

15. शिक्षण कार्य छात्रों की रूचि, क्षमता तथा आवश्‍यकताओं को ध्यान में रखकर सम्पन्न किया जाता हैं।

16. यह शिक्षण को स्मृति स्तर से बोध स्तर तथा चिन्तन स्तर तक प्रदान करने में विशिष्ट भूमिका प्रदान करता हैं। 

17. सफल एवं अच्छे शिक्षण की आधारशिला समूचित व्यूह रचनाओं पर आधारित होती हैं। 

18. जिस प्रकार शतरंज का एक कुशल खिलाड़ी नयी-नयी चालें चलता हैं, नयी-नयी योजना बनाता है, उसी प्रकार एक कुशल शिक्षक भी शिक्षण की नवीनतम व्यूह रचनाओं के प्रयोग से शिक्षण को प्रभावशाली, आकर्षक, सजीव एवं सार्थक बनाता हैं। 

19. व्यूह रचनाओं के द्वारा छात्रों के शिक्षण के प्रति उचित एवं सार्थक दृष्टिकोणों का विकास हो जाता हैं।

20. व्यूह रचनायें अनुसन्धानकरर्ताओं के लिए विशेष रूप से लाभदायक होती हैं। 

21. व्यूह रचनाओं के माध्यम से छात्रों में विश्लेषण एवं संश्लेषण की प्रवृत्ति का विकास होता हैं। साथ ही चिन्तन एवं निरीक्षण शक्ति का विकास होता हैं। 

22. व्यूह रचनायें छात्र को शिक्षण-अधिगम व्यवस्था में तार्किक तथा स्वतंत्र रूप से क्रियाशील करने में लाभप्रद होती हैं। 

23. ब्रेन स्टोर्मिंग व्यूह रचना के द्वारा छात्रों में मौलिक चिन्तन, तर्क-वितर्क एवं विचार-विमर्श की क्षमताओं का विकास किया जाता हैं। 

24. शिक्षण को मानसिक रूप देने मे सहायक होती हैं। 

25. व्यूह रचनायें शिक्षण-अधिगम व्यवस्था को निर्देशात्मक, सुधारात्मक तथा व्याख्यात्मक रूप प्रदान करने में सहायक होती हैं। 

26. समुचित विषय-सामग्री कब, कैसे और कहाँ से उपलब्ध हो सकेगी, इस संबंध में निर्णय भी व्यूह रचना के अनुसार होता हैं। यदि शिक्षक परिचर्चा या व्याख्यान का प्रयोग करने के लिए निर्णय लेता हैं तो विषय सामग्री का चयन करता हैं। 

27. शिक्षक व्यूह रचना का उपयोग अधिगम लक्ष्यों को सरलतापूर्वक प्राप्त करने हेतु किया जाता हैं। इनके उपयोग से शिक्षक अपने पाठ को भली प्रकार व्यवस्थित कर लेता है और उसमें संगत युक्तियों का प्रयोग कर सकने में सफल होता हैं। 

28. शैक्षिक परिस्थिति में शिक्षक तथा छात्र के मध्य किस प्रकार का अन्तर्विनियम होगा, किस हद तक छात्र द्वारा स्वयं अनुप्रेरित क्रियाओं को बढ़ावा एवं प्रोत्साहन दिया जायेगा तथा संपूर्ण क्रिया-कलापों का नियंत्रण किसके हाथों में होगा। इन सभी बातों के बारे में सम्यक निर्णय लेने के प्रप्ररचना-कौशल का उपयोग किया जाता हैं। 

29. शिक्षण के लिए उपयुक्त परिस्थिति का आयोजन, विषय सामग्री का चुनाव तथा अधिगम के संसाधनों की पहचान, व्यूह रचनाओं के अनुरूप कर सकने में सहायता मिलती हैं। इसलिए शिक्षण आयोजित करने से बहुत पहले व्यूह रचना के बारे में निर्णय लेना पड़ता हैं।

शिक्षण व्यूह रचना की सीमाएं (shikshan vyuh rachna ke dosh)

शिक्षण व्यूह रचना की उपयोतिगा एवं लाभों के साथ-साथ इनकी सीमायें अथवा हानियाँ भी होती हैं। शिक्षण व्यूह रचना की सीमाएं अथवा दोष निम्नलिखित हैं--

1. किस व्यूह रचना का प्रयोग किस प्रकार की विषय-वस्तु में किया जाये, यह शिक्षक के सामने कठिनाई होती हैं।

2. प्रत्येक व्यूह रचना की अपनी सीमायें होती हैं जैसे-- व्याख्यान व्यूह रचना का प्रयोग प्राथमिक स्तर पर नहीं किया जा सकता हैं। 

3. सभी उद्देश्यों की प्राप्ति एक व्यूह रचना के प्रयोग द्वारा नहीं की जा सकती हैं।

4. एक शिक्षण व्यूह रचना का प्रयोग सभी शिक्षण स्तरों पर नहीं किया जा सकता हैं। 

5. शिक्षक केन्द्रित व्यूह रचनाओं में छात्रों की रूचि, अभिरूचि तथा मानसिक योग्यताओं पर ध्यान नहीं दिया जाता। 

6. छात्र केन्द्रित व्यूह रचनाओं में व्यक्तिगत शिक्षण ही लाभदायक होता हैं। अपेक्षाकृत सामूहिक शिक्षण लाभदायक नहीं होता। 

7. शिक्षण व्यूह रचना का प्रयोग शिक्षक की योग्यता एवं कुशलता पर ही निर्भर होता हैं। 

8. शिक्षण व्यूह रचनाओं में पाठ्य-वस्तु के प्रस्तुतीकरण पर ही अधिक बल प्रदान किया जाता हैं क्योंकि इनका प्रत्यक्ष संबंध अधिगम से नहीं होता हैं। 

9. शिक्षण व्यूह रचनाओं के द्वारा शिक्षण को यान्त्रिक रूप में परिवर्तित कर दिया जाता हैं तथा छात्र को केवल रेखीय रूप में ही शिक्षण प्राप्त करना पड़ता हैं। 

10. इनके द्वारा शिक्षकों में विषयगत अहंकार की प्रवृत्ति को बढ़ावा मिलता हैं। 

अतः संक्षिप्‍त रूप में कहा जा सकता है कि स्ट्रेटैजी द्वारा शिक्षण की विस्तृत एवं सामान्य योजना को प्रस्तुत किया जाता हैं जिसके अंतर्गत विभिन्न युक्तियाँ तथा विधियों का प्रयोग किया जाता हैं।

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