7/07/2022

पुनर्बलन कौशल क्या हैं? प्रकार, उद्देश्य

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पुनर्बलन कौशल क्या हैं? (punarbalan kaushal ka arth)

पुनर्बलन प्रदान करने का कौशल शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया को प्रभावशाली तथा तीव्र करने में महत्वपूर्ण हैं। शिक्षक को इसके लिए अनेक प्रकार की युक्तियों की सहायता लेनी पड़ती हैं। छात्र सही उत्तर देने का प्रयास करते है। शिक्षक छात्रों के सही उत्तरों की प्रशंसा करते हैं, छात्रों को प्रोत्साहन देते हैं। यदि शिक्षक ऐसा करने में असफल रहते हैं तब छात्र अपनी अनुक्रियाओं में उत्साह नहीं दिखाते हैं। शिक्षक की वह क्रिया जो छात्रों को अनुक्रियाओं के लिए प्रोत्साहित करती हैं उसे पुनर्बलन कहते हैं।

पुनर्बलन की परिभाषा 

डब्ल्यू.एफ हिल के अनुसार," पुनर्बलन अनुक्रिया का परिणाम हैं जिससे भविष्‍य में उस अनुक्रिया के होने की सम्भावना बढ़ती हैं।" 

हल्स के अनुसार," पुनर्बलन वह उद् दीपक घटना है जो यदि अनुक्रिया के साथ उचित सामयिक संबंध रखते हुए घटित होती है तो उससे अनुक्रिया अनुक्रिया बल में वृद्धि होती हैं। 

एक अन्य परिभाषा के अनुसार," यदि किसी घटना के होने से समान प्रकार की अनुक्रिया करने की संभावना में वृद्धि होती हैं जो उसी उद् दीपक की उपस्थिति में हुई हो तब उसे पुनर्बलन की संज्ञा देते हैं।" 

पुनर्बलन कौशल के प्रकार (punarbalan kaushal ke prakar)

पुनर्बलन कौशल के प्रकार निम्नलिखित हैं-- 

1. शाब्दिक पुनर्बलन 

शाब्दिक पुनर्बलन दो प्रकार का होता हैं-- 

(अ) सकारात्मक शाब्दिक पुनर्बलन 

शिक्षण क्रिया के दौरान अध्यापक द्वारा कुछ सकारात्मक शब्दों का प्रयोग करके बालक को संवेगात्मक पुनर्बलन दिया जाता हैं, जैसे-- मैं तुमसे प्रसन्न हूँ, शाबाश, सुन्दर लिखते हो, बिल्कुल ठीक, बहुत सुंदर, हाँ-हाँ ठीक कहा आदि तथा अनेक सकारात्मक संवेदनाओं को छूने वाले शब्द जो स्थिति के अनुसार अध्यापक व्यवहार से प्रकट होते हैं व विद्यार्थी को शिक्षण अधिगम में सहभागिता निर्वाह हेतु प्रबलन देते हैं। 

(ब) नकारात्मक शाब्दिक प्रबलन

अध्यापक मौखिक या शाब्दिक रूप से छात्रों में अनुचित या गलत व्यवहार या उत्तर के प्रति अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करता हैं जिससे छात्र पुनः ऐसा, व्यवहार न करे। इसमें अध्यापक का नहीं, उहूँ, बिल्कुल गलत, फिर से सोचो, ठीक से सोचो, ध्यान दिया करों। इत्यादि। व्यवहारिक रूप में नकारात्मक पुनर्बलन का प्रयोग विशेष आवश्यकता पर ही करना चाहिए।

2. अशाब्दिक पुनर्बलन 

नाम से ही स्पष्ट हैं कि अशाब्दिक संकेतों द्वारा वांछित व्यवहार को पोषण देना व अवांछित व्यवहार को रोकना ही इसका उद्देश्य हैं। यह भी दो प्रकार का होता हैं-- 

(अ) सकारात्मक अशाब्दिक प्रबलन 

अध्यापक बिना बोले या शब्दों का प्रयोग किए बिना मुस्कराकर सिर या हाथ के संकेतों से अथवा चलकर समीप जाने, पीठ थपथपाना कर इत्यादि से छात्रों का प्रोत्साहन बढ़ता हैं और उनके व्यवहार का प्रबलन करता हैं। 

(ब) नकारात्मक अशाब्दिक पुनर्बलन 

अध्यापक द्वारा नाराजगी से छात्र की ओर देखना, सिर हिला कर मना करना, घूर कर देखना, पैर से जमीन थपथपाना, तेज-तेज चलना आदि ऐसे व्यवहार है जिनसे छात्रों के गलत उत्तर देने या कोई अनुचित व्यवहार करने या बात कहने पर अध्यापक अपनी अस्वीकृति का प्रदर्शन करता हैं। इसके द्वारा उन्हें ऐसे व्यवहारो से रोका जा सकता है। सामान्यतः नकारात्मक पुनर्बलन का पुनर्बलन का प्रयोग कम ही करना चाहिए। पुनर्बलन का अत्यधिक प्रयोग अवांछित प्रभाव डालता हैं। 

इसके अतिरिक्त निम्नलिखित बातों को ध्यान भी रखना चाहिए--

1. उत्तर देने वाले कुछ छात्रों को ही नहीं, वरन् अध्यापक को अधिक से अधिक छात्रों को प्रोत्साहित कर पाठ में उनका सहयोग प्राप्त करना चाहिए। केवल थोड़े से छात्रों के सहारे पाठ प्रभावी नहीं बन सकता हैं। 

2. कुछ ही प्रबलन शब्दों का उपयोग कुछ अध्यापक जैसे 'ठीक हैं' अच्छा इत्यादि शब्दों का बार-बार उपयोग करते हैं। परिणाम यह होता है कि छात्र उन पर ध्यान देना बंद कर देते हैं। 

3. प्रबलन का अत्यधिक प्रयोग-प्रबलन का जरूरत से ज्यादा प्रयोग भी इसकी महत्ता को कम करता हैं। ऐसा प्रतीत होता हैं जैसे अध्यापक कृत्रिम व्यवहार कर रहा हैं।

पुनर्बलन कौशल के उद्देश्य (punarbalan kaushal ke uddshya)

इस कौशल का प्रभावशाली ढंग से प्रयोग किया जाए तो शिक्षक निम्नलिखित उद्देश्यों की प्राप्ति कर सकता हैं--

1. कक्षा के अवधान की निरन्तरता बनाए रखना। 

2. छात्रों को और अधिक परिश्रम करने हेतु प्रोत्साहित करना। 

3. कक्षा अनुशासन में सुधार करना। 

4. विध्वंसात्मक प्रवृत्तियों का मार्गान्तीकरण करना। 

5. छात्रों के आत्म-विश्वास में वृद्धि करना। 

पुनर्बलन कौशल की शिक्षण में भूमिका 

पुनर्बलन कौशल की शिक्षण में निम्नलिखित भूमिका हैं-- 

1. पुनर्बलन अधिगम में वृद्धि करता है और अधिगम को स्थायी बनाता हैं। 

2. पुनर्बलन छात्रों को अभिप्रेरित करता हैं जिससे वे अधिगम में रूचि लेते हैं। 

3. पुनर्बलन छात्रों की सक्रियता बढ़ाने में सहायक हैं। 

4. पुनर्बलन द्वारा मुख्य बिन्दुओं पर ध्यान केन्द्रित कराया जा सकता हैं। 

5. पुनर्बलन द्वारा छात्रों के अधिगम में तत्परता विकसित होती हैं।

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