प्रविवरण का अर्थ (pravivaran kya hai)
सार्वजनिक कम्पनी जनता से पूंजी प्राप्त करने के उद्देश्य से एक नियंत्रण-पत्र निर्गमित करती है, जिसे प्रविवरण कहा जाता है। वैधानिक रूप से एक निजी कम्पनी प्रविवरण जारी नहीं कर सकती। प्रविवरण में उल्लेखित तथ्यों के आधार पर ही जनता कम्पनी के अंश एवं ऋणपत्र खरीदने के लिए आकर्षित होती है और इसी कारण इसे कम्पनी की आधारशिला कहा जाता है।
कम्पनी के संचालाकों को पूंजी की प्राप्ति हेतु जनता को आमांत्रित करते हैं, अंशपूंजी को क्रय करने हेतु दिया गया यह निमंत्रण हो ‘प्रविवरण‘ कहलाता है। प्रविवरण अधिनियम की व्यवस्थाओं के अनुरूप ही तैयार किया जाता हैं जिसमें आवश्यक सभी जानकारियॉ लिखी जाती है, किन्तु कोई भी विज्ञापन, प्रपत्र, दस्तावेज जो अंशों को खरीदने के लिए जनता को आमंत्रित करें, प्रविवरण कहा जावेगा।
प्रविवरण की परिभाषा (pravivaran ki paribhasha)
कम्पनी अधिनियम 2013 की धारा 2(70) के अनुसार प्रविवरण को निम्न प्रकार से परिभाषित किया गया है, ‘‘प्रविवरण से अभिप्राय ऐसे दस्तावेज से है, जिसे प्रविवरण के रूप में वर्णित या निर्गमित किया गया है तथा जिसमें धारा 32 में संदर्भित रेंड हैंरिंग प्रविवरण अथवा धारा 31 में संदर्भित निधाय प्रविवरण या अन्य ऐसी कोई सूचना, परिपत्र, विज्ञापन अथवा अन्य दस्तावेज शामिल है जो जनता से जमाएं आमन्त्रित करता है या जो एक समामेलित संघ के अंशों या ऋणपत्रों के अभिदान या क्रय हेतु जनता से प्रस्ताव आमन्त्रित करता है।"
न्यायालय के प्रमुख वाद के अनुसार, ‘‘प्रविवरण का आशय एक ऐसे प्रलेख से है, जिसके द्वारा एक समामेलित संस्था की पूंजी जनता को प्रस्तावित की जाती है और जिसके आधार पर आवेदक वास्तव में पूंजी खरीदता है।"
इंग्लिश कंपनी अधिनियम की धारा 455 के अनुसार, ‘‘किसी कम्पनी के अंशों अथवा ऋणपत्रों के अभिदान करने अथवा खरीदने के लिये जनता को प्रस्ताव करने वाला कोई प्रविवरण, सूचना-पत्र, परिपत्र, विज्ञापन अथवा नियंत्रण प्रविवरण है।"
ऊपर दी गयी परिभाषाओं के अनुसार किसी ऐसे प्रपत्र को ही प्रविवरण कहा जा सकता है जो अंशों अथवा ऋणपत्रों के खरीदने के लिए जनता के प्रति प्रस्ताव या नियंत्रण हो। साधारण शब्दों में, हम कह सकते है कि प्रविवरण एक ऐसा प्रपत्र है, जिसके माध्यम से अंशों व ऋणपत्रों को जनता के सम्मुख प्रस्तुत किया जाता है।
प्रविवरण की विशेषताएं (pravivaran ki visheshta)
प्रविवरण की विशेषताएं निम्नलिखित हैं--
1. प्रविवरण एक लिखित दस्तावेज होता है।
2. यह समाचार-पत्रों में विज्ञापन, पेम्फलेट, लघु-पुस्तिका आदि के रूप में मुद्रित होता है।
3. यह अंश या ऋण-पत्र क्रय करने के लिये कम्पनी की ओर से जनता को नियंत्रण होता है।
4. यह प्रस्ताव नहीं, बल्कि प्रस्ताव के लिय निमंत्रण है जिसका अभिप्राय यह है कि अंश क्रय करने का प्रस्ताव जनता द्वारा होता है। और इसे स्वीकार करना या अस्वीकार करना कम्पनी पर निर्भर करता है।
5. प्रविवरण सार्वजनिक कम्पनी द्वारा निर्गमित किया जाता है, निजी कम्पनी द्वारा नहीं।
6. यदि सार्वजनिक कम्पनी प्रविवरण निर्गमित नहीं करती है, तो उसे प्रविवरण का स्थानापन्न, विवरण-पत्र रजिस्ट्रार को भेजना पड़ता है।
प्रविवरण के उद्देश्य (pravivaran ke uddshya)
1. अंशों, ऋणपत्रों व किसी भी प्रकार की प्रतिभूतियों को खरीदने के लिए जनता को आमंत्रित करना।
2. उन शर्तो का लेखा रखना जो जनता को अंशों, ऋणपत्रों व किसी भी प्रकार की प्रतिभूतियों को खरीदने के लिए निर्धारित की गई थी।
3. यह घोषित करना कि संचालकगण कम्पनी के प्रविवरण तथा उत्तरदायित्वों को स्वीकार करते है।
प्रविवरण के साथ सम्मिलित किये जाने वाले प्रपत्र
प्रविवरण के साथ सम्मिलित किये जाने वाले प्र-पत्र निम्नलिखित हैं--
1. विशेषज्ञों की लिखित सहमति
यदि प्रविवरण में किसी विशेषज्ञ द्वारा दिया गया कोई कथन शामिल है तो इस प्रविवरण को तब तक निर्गमित नहीं किया जा सकता जब तक उस विशेषज्ञ की लिखित सहमति न ले ली जाए। ये विशेषज्ञ ऐसे होने चाहिए जिनका कम्पनी के निर्माण या प्रबन्ध से कोई संबंध न हो।
2.वमहत्वपूर्ण अनुबन्धों की प्रतिया
प्रविवरण के साथ प्रत्येक निर्धारित अनुबन्ध की प्रतिलिपि लगानी चाहिए। इस नियम में प्रबन्ध संचालक या प्रबन्धक आदि की नियुक्ति तथा पारिश्रमिक संबंधी अनुबन्ध व अन्य महत्वपूर्ण अनुबन्धों का विवरण दिया जाता है।
3. समायोजनों का विवरण
यदि अंकेक्षकों या लेखपालकों ने कम्पनी की स्थिति में कोई समायोजनाओं का विवरण कारण सहित देना चाहिए।
4. संचालक की सहमति
5. प्रविवरण के अन्त में एक आवेदन-पत्र संलग्न होना चाहिए जिसे भरकर अंश या ऋणपत्र भरने की प्रार्थना की जा सकती है।
प्रविवरण की आवश्यकता एवं महत्व (pravivaran ka mahtva)
कम्पनी के पंजीकरण के उपरान्त एवं समामेलन का प्रमाण-पत्र प्राप्त करने के पश्चात् कम्पनी संचालन को योग्य हो जाती है। अर्थात् व्यवसाय प्रारम्भ करने के लिये और उसे संतोषजनक ढंग से संचालित करने के लिये पर्याप्त पूँजी एकत्रित करने की आवश्यकता होती है।
निजी कम्पनी की स्थापना के पश्चात् उसकी पूंजी प्रायः निजी साधनों से प्राप्त की जाती है। निजी कम्पनी के अंशों के क्रय करने के लिये सार्वजनिक रूप से जनता को आमंत्रित नहीं किया जाता है। लेकिन इसके विपरीत एक सार्वजनिक कम्पनी की स्थापना के पश्चात् उसके प्रवर्तक अधिकांश पूंजी बाहरी जनता से प्राप्त करना चाहते है। इसलियें प्रविवरण जारी करके जनता को कम्पनी के अंश क्रय करने के लिये आमंत्रित किया जाता है। कम्पनी अधिनियम की धारा 70 के अनुसार प्रत्येक अंश-पूंजी वाली सार्वजनिक कंपनी के पंजीकरण के पश्चात् प्रविवरण जारी करना आवश्यक होता है। लेकिन यदि ऐसी कम्पनी निजी साधनों से पूंजी प्राप्त करती है तो उसे स्थानान्तरण प्रविवरण रजिस्ट्रार के समक्ष प्रस्तुत करना पड़ता है।
अनेक ऐसी कम्पनियों की भी स्थापना हुई है जिन्होंने कभी भी जनता को अपनी अंश-पूंजी क्रय करने के लिये आमंत्रित नहीं किया। उनकी स्थापना का उद्देश्य समामेलन से होने वाले ऐसे लाभों को प्राप्त करना होता था जो कि निजी कम्पनियों को नहीं प्राप्त होते, उदाहरण के लिये सदस्यों की असीमित संख्या, अंशों का मुफ्त हस्तान्तरण एवं अंश अधिपत्र का निर्गमन करने का अधिकार है। इसके बावजूद भी अधिक से अधिक सार्वजनिक कम्पनियॉ प्रारम्भ में अपनी पूंजी जनता से अंश विक्रय करके प्राप्त करती है। इससे आम जनता को भी नयें एवं उन्नतिशील उद्योगों में धन विनियोग करने एवं उनसे होने वाले लाभ प्राप्त करने का अवसर प्राप्त होता है। कम्पनियॉ अपने जीवन-काल में अनेक बार प्रविवरण जारी करके जनता से पूंजी प्राप्त करने की क्रिया को दोहराती है। लेकिन अन्य ढंगों से भी जनता को अंश अथवा .ऋण-पत्र बेचे जा सकते है।
कम्पनी के प्रविवरण में दी गयी शर्तो के आधार पर ही जनता को अंश अथवा ऋणपत्र आबंटित किये जाते है, इसलियें प्रविवरण में कम्पनी के भावी लाभों की संभावना तथा उसकी पूर्ण, सत्य एवं उचित वित्तीय स्थिति का उल्लेख होना आवश्यक है। कम्पनी के प्रविवरण के माध्यम से कम्पनी के अंश एवं ऋणपत्र क्रय करने वाले क्रय से पूर्व संभावित जोखिम का अनुमान लगाते है।
Bekar
जवाब देंहटाएंParviran k kya mahtav h
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