7/05/2022

जनशक्ति नियोजन क्या हैं? प्रकार, महत्व

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जनशक्ति नियोजन क्या हैं?

डॉ. माइनर के अनुसार, ‘‘मानव शक्ति नियोजन का उद्देश्‍य निकट भविष्‍य में उचित संख्‍या में, श्रेष्‍ठतम कार्य निष्‍पादन के लिये ऐसे उपयुक्‍त व्‍यक्ति, समय पर उपक्रम को उपलब्‍ध कराना है जिनमें अपेक्षित कार्य करने की क्षमता एवं योग्‍यता है, जिससे कि उपक्रम अपने निर्धारित उद्देश्‍यों को प्राप्‍त करने में निरन्‍तर संचालित होता रहे।"

जनशक्ति नियोजन के प्रकार एवं आधार अथवा प्रारूप 

जनशक्ति नियोजन औपचारिक तथा अनौपचारिक दोनो प्रकार का हो सकता है। समय के आधार पर जनशक्ति नियोजन के दो विशेष रूप हो सकते हैं--

1. अल्‍पकालीन जन शक्ति नियोजन, 

2. दीर्घकालीन जनशक्ति नियोजन,

(अ) अल्‍पकालीन मानवशक्ति नियोजन

इस प्रकार का नियोजन बहुत कम समय के लिए किया जाता है। सामान्‍यतः इस प्रकार के नियोजन की अवधि एक या दो वर्ष होती है। अल्‍पकालीन मानवशक्ति नियोजन को निम्‍न दो भागों में बांटा जा सकता है--

1. वर्तमान कर्मचारियों को उनके पदों के अनुरूप बनाना

यदि किसी कर्मचारी में उसके पद के अनुरूप योग्‍यता नहीं होती तो संस्‍था के साधनों का अपव्‍यय होता है। व्‍यक्ति एवं पद में अनुरूपता होना बहुत आवश्‍यक है क्‍योंकि मानवशक्ति नियोजन का उद्देश्‍य ही मानवीय शक्ति का समुचित प्रयोग है। इस सम्‍बन्‍ध में निम्‍न कदम उठाये जा सकते हैं जब व्‍यक्ति में आवश्‍यक योग्‍यता से कम योग्‍यता हो ऐसी स्थिति में उन्‍हें पदों के अनुरूप बनाने के लिए निम्‍न कदम उठाये जाने चाहिये--

1. प्रशिक्षण

प्रशिक्षण के माध्‍यम से किसी विशेष कार्य के सन्‍दर्भ में उसके ज्ञान एवं कौशल में वृद्धि की जा सकती है। 

2. कार्य में परिवर्तन

यदि कोई कर्मचारी अपने पद के योग्‍य नहीं है तो उसके कार्य में परिवर्तन करके उसे पद के अनुरूप बनाया जा सकता है। 

3. व्‍यक्ति से परिवर्तन 

यदि प्रशिक्षण देने के बाद भी व्‍यक्ति काम में अपेक्षित योग्‍यता प्राप्‍त न कर पाये तो उसका अन्‍य स्‍थान पर स्‍थानान्‍तरण किया जा सकता है। 

4. कार्य मुक्‍त करना

यदि किसी व्‍यक्ति को प्रशिक्षण आदि के द्वारा भी उचित समय में कार्य के अनुरूप नहीं बनाया जा सकता हो तो उसे कार्य से मुक्‍त कर देना चाहिए। 

5. कार्यवृद्धि 

यदि बिना किसी परेशानी के कर्मचारी के कार्य में वृद्धि की जा सकती हो तो कर देना चाहिए। लेकिन यह ध्‍यान रखना चाहिए कि कर्मचारी यह न सोचे कि अधिक योग्‍यता एक अभिशाप है।

6. अस्‍थायी स्‍थानान्‍तरण 

व्‍यक्ति को उसकी योग्‍यता के अनुसार अस्‍थायी रूप से किसी अन्‍य पद पर स्‍थानान्‍तरित किया जा सकता है।

7. पदोन्‍नति 

व्‍यक्ति की पदोन्‍नति करके उसे अधिक उत्तरदायित्‍वपूर्ण कार्य दिया जा सकता है। 

8. परामर्श 

इस प्रकार के व्‍यक्तियों को परामर्श या जांच पड़ताल का काम भी सौंपा जा सकता है। 

2. वर्तमान कर्मचारियों में से रिक्‍त स्‍थान की पूर्ति करना

जब किसी संस्‍था में कोई पद रिक्‍त होता है तो उसे भरने का तुरन्‍त प्रयास किया जाता है। रिक्‍त स्‍थान की पूर्ति बाहरी स्‍त्रोत से करना जरूरी नहीं है। जहां तक सम्‍भव हो रिक्‍त स्‍थान की पूर्ति वर्तमान कर्मचारियों में से ही की जाना चाहिए क्‍योंकि इससे कर्मचारियों को प्रोत्‍साहन मिलता है तथा उनके मनोबल में वृद्धि होती है। इस संबंध में निम्‍न कदम उठाये जाना चाहिए--

1. यदि व्‍यक्ति का कार्य ऐसा है कि उसको संस्‍था में वर्तमान व्‍यक्तियों के पदों के साथ संलग्‍न किया जा सकता है तो अस्‍थायी रूप से ऐसे व्‍यवस्‍था कर देना चाहियें। 

2. यह भी देखा गया है कि कभी-कभी वर्तमान व्‍यक्तियों में से ही किसी व्‍यक्ति की अस्‍थायी रूप से पदोन्‍नति कर दी जाती है। वास्‍तव में रिक्‍त स्‍थानों पर उन्‍हीं व्‍यक्तियों की पदोन्‍नति करना चाहिए, जो पर्याप्‍त योग्‍यता रखते है।

3. अनेक बार यह भी देखा जाता है कि वर्तमान व्‍यक्ति तुरन्‍त रिक्‍त पद पर काम करने की स्थिति में नहीं होता, ऐसी स्थिति में उसे आवश्‍यक प्रशिक्षण देने की व्यवस्‍था की जाती है। 

(ब) दीर्घकालीन जनशक्ति नियोजन

दीर्घकालीन मानवशक्ति आयोजन से अभिप्राय उस मानवशक्ति नियोजन से है जो लम्‍बी अवधि के लिये किया जाता है। सामान्‍यतः इसकी अवधि दो वर्षो से अधिक होती है। इस नियोजन के दो प्रमुख उद्देश्‍य होते हैं--

1. संस्‍था में ऐसी स्थिति लाने का प्रयास करना जिससे भविष्‍य में समस्‍त अधिकारियों एवं उनके कार्यो में पूर्ण अनुरूपता स्‍थापित हो जाये। 

2. भविष्‍य में खाली होने वाले पदों के लिये पहले से ही उपयुक्‍त कर्मचारियों की व्‍यवस्‍था करना। 

किसी भी दीर्घकालीन मानवशक्ति नियोजन को करने के लिये निम्‍नलिखित कार्य करना आवश्‍यक होते है--

1. भावी आवश्‍यकताओं का पूर्वानुमान लगाना

दीर्घकालीन मानव-शक्ति नियोजन के अन्‍तर्गत सबसे पहला कार्य संस्‍थान को भविष्‍य में कितनी मानवशक्ति की आवश्‍यकता होगी इसका अनुमान लगाना है। जैसे-जैसे  संस्‍था का विकास या विस्‍तार होता जाता है वैसे-वैसे संस्‍था को अधिक मानव-शक्ति की आवश्‍यकता होती है। 

2. भावी आवश्‍यकताओं के सम्‍बन्‍ध में वर्तमान कर्मचारियों की उपयुक्‍तता 

भविष्‍य में कितने कर्मचारियों की आवश्‍यकता होगी इसका अनुमान लगाने के पश्‍चात् इस बात का पता लगाया जाता है कि संस्‍थान के वर्तमान कर्मचारियों द्वारा भविष्‍य के खाली स्‍थानों की पूर्ति किस प्रकार की जा सकती है इसके लिये संस्‍था के वर्तमान कर्मचारियों की एक सूची तैयार की जाती है जिसके अन्‍तर्गत इस बात का उल्‍लेख किया जाता है कि भविष्‍य में इन कर्मचारियों की योग्‍यता में कितनी वृद्धि होने की सम्‍भावना है इसके अलावा भावी पदों के लिये आवश्‍यक योग्‍यताओं व वर्तमान उपलब्‍ध योग्‍यताओं के बीच साम्‍य स्‍थापित किया जाना चाहिये। इसके लिये यह मालूम किया जाना चाहिये कि भविष्‍य में आवश्‍यकता की पूर्ति के लिये वर्तमान कर्मचारी कहॉ तक योग्‍य होंगे एवं उन्‍हें कितने प्रशिक्षण की आवश्‍यकता होगी। 

3. व्‍यक्तिगत विकास के लिये नियोजन

इसके अन्‍तर्गत भावी पदों की पूर्ति करने के लिये वर्तमान कर्मचारियों का व्‍यक्तिगत विकास करने की योजना बनाई जाती है। कर्मचारियों को उनकी कमियां बताकर उन्‍हें दूर करने का प्रयास किया जाता है। कर्मचारियों को भविष्‍य में खाली होने वाले पदों के लिये योग्‍य बनाने का प्रयास किया जाता है। 

जनशक्ति नियोजन का महत्‍व

जनशक्ति नियोजन की आवश्‍यकता के कारणों एवं महत्‍व को निम्‍नलिखित शीर्षकों के अन्‍तर्गत स्‍पष्‍ट किया जा सकता है--

1.व्‍यवसाय का बढता हुआ आकार

व्‍यवसाय के बढ़ते हुये आकार ने प्रत्‍येक उपक्रम की क्रियाओं को इतना अधिक विस्‍तृत एंव जटिल बना दिया है कि अपने संगठन की संरचना में अनेक प्रकार के परिवर्तन करने पड़ते हैं जिनके लिये विविध प्रकार की योग्‍यता वाले कर्मचारियों की आवश्‍यकता होती है, जिनकी पूर्ति के लिये मानव-शक्ति नियोजन को अपनाया जाता है। 

2. प्रभावपूर्ण भर्ती नीति का आधार

मानव शक्ति नियोजन की सहायता से भविष्‍य के लिये भर्ती नीति बनाई जा सकती है। जिससे उपक्रम में उचित समय पर कर्मचारियों की भर्ती की जा सकती है।

3. मानव शक्ति के स्‍त्रोतों का ज्ञान 

मानव-शक्ति नियोजन के द्वारा मानव शक्ति के स्‍त्रोतों के सम्‍बन्‍ध में ज्ञान प्राप्‍त किया जा सकता है और उन स्‍त्रोतों का उपयोग हो सकता है। 

4. श्रम की लागत में कमी

मानव-शक्ति नियोजन के द्वारा अच्‍छे एवं योग्‍य कर्मचारियों की प्राप्ति होती है जिससे परिवर्तन दरों में कमी आती है। तथा उपक्रम का कार्य निर्बाध रूप से चलता रहता है। इससे श्रम लागत में कमी आती है। इसलिए भी प्रबन्‍धकों का ध्‍यान मानव शक्ति नियोजन की ओर आकृष्‍ट हुआ है। 

5. कर्मचारी विकास कार्यक्रमों को प्रभावी बनाने के लिए 

कर्मचारी  विकास कार्यक्रमों को प्रभावी बनाने के लिए उन्‍हें मानव शक्ति नियोजन से सम्‍बन्धित करना अत्‍यन्‍त आवश्‍यक है क्‍योंकि इसके द्वारा इस बात का अनुमान लगाया जा सकता है कि कर्मचारियों को किस प्रकार के विकास की आवश्‍यकता है तथा उसकी रूप रेखा क्‍या होनी चाहिए। इसी बात को ध्‍यान में रखते हुए वर्तमान समय में मानवीय शक्ति के नियोजन की आवश्‍यकता को तीव्रता से अनुभव किया जाने लगा है। 

6. उत्‍पादन में आने वाले विघटनों का निवारण 

मानवीय साधनों की मात्रा अथवा दक्षता की कमी के कारण उत्‍पादन कार्य में जो रूकावटें आती हैं उनका निवारण मानव शक्ति नियोजन द्वारा सम्‍भव हैं क्‍योंकि उत्‍पादन के विघटन के कारणों का पता लगा कर कि किसी प्रकार के श्रम के अभाव में ऐसा होता है, इसके लिये उचित व्‍यवस्‍था की जा सकती है जिससे इसकी रोकथाम हो सके।

7. अन्‍य उद्देश्‍यों की पूर्ति हेतु 

अन्‍य उद्देश्‍यों की पूर्ति के उद्देश्‍य से भी मानव शक्ति के नियोजन की आवश्‍यकता महसूस की जाती है। जैसे-प्रशिक्षण कार्यक्रमों के विकास, नई-नई योजनओं, विस्‍तार कार्यक्रमों तथा ठेके के कार्यो, श्रम सम्‍बन्‍धों में सुधार तथा राष्‍ट्रीय स्‍तर पर कार्यक्रमों की सफलता के लिये भी मानवीय शक्ति नियोजन परम आवश्‍यक है। 

वास्‍तव में विकासशील राष्‍ट्र के लिये मानवशक्ति नियोजन रक्‍त-प्राण के समान है जिसे अभाव में उसका विकास नितान्‍त असम्‍भव है।

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