7/31/2022

बहुसंख्‍यकों के अधिकार

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बहुसंख्‍यकों के अधिकार

यदि कम्‍पनी के पार्षद सीमा नियम या अन्‍य किसी प्रलेख में, जिसके द्वारा कम्‍पनी की स्‍थापना होती है, कोई अन्‍य प्रावधान न दिया हो, तो उचित रूप से बुलाई एवं आयोजित सभा में बहुसंख्‍यक अंशधारियों द्वारा ऐसे विषय पर पारित प्रस्‍ताव, जिसे करने के लिये कम्‍पनी कानून सक्षम है, अल्‍पसंख्‍यकों सहित सम्‍पूर्ण कम्‍पनी पर लागू होगा। 

सामान्‍यतः कम्‍पनी के प्रबंध एवं नियंत्रण की सर्वोच्‍च सत्ता बहुमत वाले सदस्‍यों के पास होती है। दूसरे शब्‍दों में, कम्‍पनी का प्रबन्‍ध बहुमत के सिद्धांत पर आधारित है। 

किन्‍तु इसकी निम्‍नलिखित दो परिसीमायें है-- 

(अ) सदस्‍य कम्‍पनी के अधिकार क्षेत्र से बाहर कोई कार्य नहीं कर सकते, जैसे- कम्‍पनी के पार्षद सीमा नियम के अधिकार से परे कोई कार्य करने के लिये न तो सदस्‍य कानूनी अनुमति दे सकते हैं और न ही ऐसे किये गये कार्य की पुष्टि कर सकते हैं। इसी प्रकार यदि अन्‍तर्नियमों द्वारा संचालकों को कम्‍पनी के कार्यो के प्रबंध एवं संचालन का अधिकार प्राप्‍त होता है तो निम्‍नलिखित स्थितियों को छोड़कर कम्‍पनी के सदस्‍यों को उक्‍त कार्यो के सम्‍बन्‍ध में कोई अधिकार नहीं होगा--

1. यदि कार्य संचालकों के अधिकार से बाहर है अथवा 

2. कार्य तो अधिकार क्षेत्र में हैं, किन्‍तु संचालक उसे करना नहीं चाहते या करने में असमर्थ है।

(ब) बहुसंख्‍यक द्वारा लिया गया निर्णय या पारित किया गया प्रस्‍ताव कम्‍पनी के अधिकार क्षेत्र से परे, कम्‍पनी अधिनियम एवं अन्‍य अधिनियमों के विपरीत तथा अल्‍पसंख्‍यक सदस्‍यों के लियें कपटपूर्ण नहीं होना चाहिये। 

अतः कम्‍पनी की सभा में उपस्थित बहुसंख्‍यक सदस्‍यों के द्वारा लिये गये निर्णय के लियें सभी सदस्‍य बाध्‍य होते हैं, बशर्ते कि कम्‍पनी के संविधान में कोई अन्‍य विशेष प्रावधान न दिया हो। इसी प्रकार कम्‍पनी जब कोई अधिकार व्‍यक्तियों की एक समिति को सौंप देती है, तो वही सिद्धांत इस पर भी लागू होता है। 

अल्‍पसंख्‍यकों को संरक्षण या अधिकार 

कम्‍पनी अधिनियम में तथा सामान्‍य अधिनियम में अल्‍पसंख्‍यकों को संरक्षण के लियें विभिन्‍न व्‍यवस्‍थाएं की गयीं। अल्‍पसंख्‍यकों को विभिन्‍न अधिकार भी दिये गये, जिन्‍हें इस प्रकार जाना जा सकता है--

फ्रांस विरूद्ध हरबोटल में दिये गये निर्णय के अनुसार बहुसंख्‍यक नियम के अन्‍तर्गत निर्णय सामान्‍य विधि के अन्‍तर्गत इस प्रकार मान्‍य नहीं है- 

1. यदि निर्णय कम्‍पनी विधान के बाहर का हो। 

2. यदि निर्णय अल्‍पसंख्‍यकों के विरूद्ध कपट का हो। 

3. यदि निर्णय विशेष प्रस्‍ताव के बिना ले लिया गया हो। 

4. यदि निर्णय से सदस्‍य के वैधानिक व्‍यक्तिगत अधिकारों को क्षति होती हो। 

5. यदि निर्णय से कम्‍पनी के कुप्रबन्‍ध को बढ़ावा मिलता हो।

अल्‍पसंख्‍यक के अंशधारकों को प्राप्‍त अन्‍य उपचार

1. दीवानी प्रक्रिया संहिता के अन्‍तर्गत कार्यवाही

ऐसे अल्‍पसंख्‍यक अंशधारी अपने और अन्‍य अंशधारियो की ओर से दीवानी प्रक्रिया संहिता के अन्‍तर्गत वाद ला सकते हैं। ऐेसे वाद में कम्‍पनी प्रतिवादी होगी और संबंधित संचालक तथा बहुसंख्‍यक अंशधारक सहप्रतिवादी।

2. कम्‍पनी के विरूद्ध मुकदमा 

अल्‍पसंख्‍यक अंशधारी सीधे कम्‍पनी के विरूद्ध वाद ला सकते हैं। 

3. कम्‍पनी के प्रतिनिधि के रूप में मुकदमा करना

अल्‍पसंख्‍यक अंशधारी कम्‍पनी के प्रतिनिधि के रूप में वाद ला सकते हैं। ऐसा तब होगा जब वे यह सिद्ध कर दें कि बहुसंख्‍यक अंशधारकों द्वारा लिया गया निर्णय फॉस बनाम हारबाटल के नियम के किसी अपवाद के अन्‍तर्गत आता है।

4. ट्रिब्‍यूलन द्वारा कार्यवाही 

कम्‍पनी अधिनियम में ट्रिब्‍युनल को यह शक्ति दी गई है कि वह ऐसे संचालकों या प्रवर्तकों आदि के विरूद्ध कम्‍पनी को हुई हानि के लिए कार्यवाही करेगा-- 

1.जिसने कंपनी के धन या किसी सम्‍पत्ति का गलत विनियोग किया है। 

2.वह कम्‍पनी के संबंध में न्‍याय भंग का दोषी है। 

यह उपचार कम्‍पनी के परिसमापन के दौरान ही प्राप्‍त होता है। 

5. कम्‍पनी अधिनियम द्वारा अनेक प्रावधान किये गये हैं जो अंशों के निर्गमन के समय आवश्‍यक कागजों के रजिस्‍ट्रीकरण या सभी आवश्‍यक बातों के प्रकटन अथवा अवांछनीय व्‍यक्तियों द्वारा प्रबन्‍ध किये जाने के निवारण या कम्‍पनी के लेखों के अनुसंधान से संबंधित हैं। ऐसे मामलों में भी अल्‍पसंख्‍यक अंशधारियों को उपचार प्राप्‍त है। 

6. जब अल्‍पसंख्‍यक अंशधारियों के साथ कपट किया जा रहा है तो इस स्थिति में वह कम्‍पनी अधिनियम के अन्‍तर्गत ट्रिब्‍युलन को कम्‍पनी के समापन हेतु आवेदन दे सकते है और ट्रिब्‍युलन कम्‍पनी का समापन कर सकता है।

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