7/24/2022

अंश पूजी क्या हैं? परिभाषा, विशेषताएं, प्रकार

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अंश पूजी क्या हैं? (ansh punji kise kahate hain)

जब कम्‍पनी अपने अंशों का निर्गमन करके पूंजी प्राप्‍त करती है, तो उसे हम अंश-पूंजी कहते हैं। अंश-पूंजी कम्‍पनी की कुल पूंजी का वह भाग है जो कम्‍पनी समय≤ पर अंशों के निर्गमन द्वारा प्राप्‍त करती है। इस प्रकार अंश-पूंजी से आशय कम्‍पनी की स्‍वीकृत पूंजी से है। कम्‍पनी की अंश-पूंजी कम्‍पनी के उद्देश्‍यों के लियें अंशधारियों द्वारा अभिदान की जाने वाली राशि है। 

अंश-पूंजी के सम्‍बन्‍ध में आवश्‍यक विवरण प्रत्‍येक कम्‍पनी के पार्षद सीमा नियम से होता है। पार्षद सीमा नियम के पूंजी-वाक्‍यांश में कम्‍पनी की अधिकृत पूंजी तथा उसका अंशों में विभाजन अंशों के अंकित मूल्‍य के साथ लिखा जाता है। अंश-पूंजी प्राप्‍त करने के नियमों की व्‍याख्‍या पार्षद अन्‍तर्नियमों में होती हैं। प्रत्‍येक कम्‍पनी की पूंजी अंशों में विभक्‍त रहती है, अतः वह ‘अंश-पूंजी‘ कहलाती है। 

अंश पूजी की परिभाषा (ansh punji ki paribhasha)

भारतीय कम्‍पनी अधिनियम, 1956 की धारा 2 के अनुसार, ‘‘अंश का तात्‍पर्य किसी कम्‍पनी की अंश पूंजी के एक भाग से है जिसमें स्‍कंध भी सम्मिलित है, जब तक कि अंश और स्‍कंध में स्‍पष्‍ट अथवा गर्भित रूप से कोई अन्‍तर न किया जायें।‘‘

न्‍यायाधीश लिण्‍डले के अनुसार, ‘‘अंश, पूंजी का अनुपातिक भाग है, जिसका प्रत्‍येक सदस्‍य अधिकारी होता है।‘‘

सरल शब्‍दों में यह कहा जा सकता है कि कम्‍पनी अंश पूंजी का एक भाग अंश है।

अंशों की विशेषतायें

अंशों की विशेषताएं निम्‍नलिखित हैं--

1. अंश या ऋणपत्र चल सम्‍पत्ति होते हैं, जो कम्‍पनी के अन्‍तर्नियमों में दी हुई विधियों के अनुसार हस्‍तान्‍तरित होते है। 

2. अंश पूंजी कम्‍पनी के प्रत्‍येक अंश के लिए एक संख्‍या निर्धारित की जाती है। यह अंश इसी संस्‍था के नाम से पुकारा जाता है। 

3. एक सदस्‍य का उसके अंशों पर स्‍वामित्‍व प्रकट करने के लिए कम्‍पनी द्वारा अपनी सार्वमुद्रा के अन्‍तर्गत एक प्रमाण-पत्र निर्गमित किया जाता है जिसे अंश प्रमाण-पत्र कहा जाता है। 

4. धारा 150(1) (ख) के अनुसार प्रत्‍येक अंशधारी के सदस्‍य के रजिस्‍टर में लिखा जाता है।

5. एक अंश कुल पूंजी का वह भाग है जो सामान्‍यतः हस्‍तान्‍तरणीय होता है। 

6. अंश किसी अंशधारी का कम्‍पनी में मौद्रिक हित को प्रकट करता है। 

7. अंश हस्‍तान्‍तरणीय होने के बावजूद भी यह विनिमय साध्‍य विलेख नहीं है।

8. प्रत्‍येक अंशधारी का नाम सदस्‍यों के रजिस्‍टर में लिखा होता है। 

9. अंश कम्‍पनी की अंश पूंजी का प्रमाण है, जिस कम्‍पनी के अंश नहीं है, उस कम्‍पनी में अंश पूंजी भी नहीं होती हैं। 

अंश पूंजी के प्रकार (ansh punji ke prakar)

अंश पूजी के निम्नलिखित प्रकार हैं--

1. नाम-मात्र, पंजीकृत या अधिकृत पूंजी 

नाम-मात्र या अधिकृत पूंजी, अंश-पूंजी की वह राशि हैं, जिसे जारी करने के लिए कम्‍पनी अधिकृत है। अंशों द्वारा सीमित या गारण्‍टी द्वारा सीमित कम्‍पनी की दशा में इसका उल्‍लेख पार्षद सीमा नियम में करना आवश्‍यक है। यह वह अधिकतम धनराशि है, जिसे कम्‍पनी अंश जारी करके एकत्र करने की अधिकारी है। नाम-मात्र या अधिकृत पूंजी का विभाजन निश्चित मूल्‍य के अंशों में किया जाता है। नाम-मात्र पूंजी की मात्रा कम्‍पनी की व्‍यापारिक आवश्‍यकताओं पर निर्भर करती है। इस पूंजी को निर्धारित प्रक्रिया का पालन करके बढ़ाया या घटाया जा सकता है। नाम-मात्र या अधिकृत पूंजी की सम्‍पूर्ण राशि को निर्गमित किया जा सकता है। 

2. निर्गमित पूंजी

यह अधिकृत पूंजी का वह भाग है जो वास्‍तव में जनता से अभिदान हेतु जारी किया जाता है। सामान्‍यतः कम्‍पनी अपनी अधिकृत पूंजी की सम्‍पूर्ण मात्रा को एक साथ जारी नहीं करती बल्कि इसका कुछ भाग भविष्‍य से सम्‍बन्धित आवश्‍यकता की पूर्ति के लिए भविष्‍य में जारी करने हेतु रख लेती है। निर्गमित पूंजी, अधिकृत अंश पूंजी से अधिक नहीं हो सकती। 

3. प्रार्थित पूंजी

यह अंशों के अंकित मूल्‍य का वह भाग है, जिसे जनता द्वारा वास्‍तव में ले लिया गया है, अर्थात् जिस हेतु जनता ने आवेदन किया है। अर्थात् यह अंकित या अधिकृत पूंजी का वह भाग है जिसे वास्‍तव में अंशधारियों द्वारा ले लिया गया है। 

4. याचित पूंजी

यह अभिदत्त अंशों के अंकित मूल्‍य का वह भाग है, जिसे कम्‍पनी ने अंशधारियों से याचना द्वारा मांग लिया है या किसी अन्‍य विधि से। अर्थात् कम्‍पनी द्वारा अंशों के आवेदन, आबंटन तथा याजनाओं पर जिस राशि की याचना की जाती है, उस सम्‍पूर्ण राशि का योग है- ‘‘याचित पूंजी‘‘ कहलाता है। 

5. अयाचित पूंजी

यह वह भाग है जिस पर अंशों के सम्‍बन्‍ध में अभी तक याचना नहीं की गई है। कम्‍पनी द्वारा अंशधारियों से, पार्षद अर्न्‍तनियमों के प्रावधानों के अधीन, इस पूंजी के भुगतान हेतु कभी भी याचना की जा सकती है। ऐसा भाग अयाचित पूंजी कहलाता है।

6. प्रदत्त पूंजी

प्रदत्त पूंजी, निर्गमित पूंजी का वह भाग है, जिसका अंशधारियों द्वारा भुगतान कर दिया गया है। याचना के परिणामस्‍वरूप प्रत्‍येक अंश पर प्राप्‍त राशि को ‘‘प्रदत्त‘‘ कहा जाता है। कम्‍पनी द्वारा निर्गमित किये गये अंशों पर प्राप्‍त राशि के सम्‍पूर्ण योग का नाम है- प्रदत्त पूंजी, जो किसी भी दशा में निर्गमित पूंजी से अधिक नहीं हो सकती। 

7. अदत्त पूंजी

जनता द्वारा याचनाओं की जिस राशि का भुगतान नहीं किया जाता है, अर्थात् आवेदकों द्वारा याचनाओं के बकाया भाग अदत्त पूंजी कहा जाता है। 

8. आरक्षित अथवा संचित पूंजी

एक कम्‍पनी विशेष प्रस्‍ताव पारित करके यह निर्णय ले सकती हैं कि उसकी अदत्त या अयाचित पूंजी के कुछ या समस्‍त भाग की याचना केवल कम्‍पनी के समापन की दशा में ही की जायें। इस राशि को ‘‘आरक्षित पूंजी‘‘ या ‘‘आरक्षित दायित्‍व‘‘ के नाम से सम्‍बोधित किया जाता है। एक बार अयाचित पूंजी का आरक्षित पूंजी के रूप में निर्धारण करने के पश्‍चात् इसमें परिवर्तन नहीं किया जा सकता।

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