6/20/2022

वस्तुनिष्ठ परीक्षण के गुण, दोष/सीमाएं

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वस्तुनिष्ठ परीक्षा के गुण (vastunisth parikshan ke gun)

वस्तुनिष्ठ परीक्षण के गुण निम्नलिखित हैं-- 
1. वस्तुनिष्ठ परीक्षा में निबंधात्मक परीक्षा की तुलना में संपूर्ण ज्ञान का मूल्‍यांकन करने में कम समय तथा श्रम लगता हैं। 
2. इसमें प्रश्न-पत्रों का निर्माण तथा जाँच सरल होती है। 
3. ये परीक्षायें प्राप्त उद्देश्यों तथा अपेक्षित व्यवहारगत परिवर्तन की माप करती हैं। 
4. वस्तुनिष्ठ परीक्षण में प्रश्नों में अध्यापक द्वारा पक्षपात किया जाना संभव नहीं हैं। 
5. ये विषयगत संपूर्ण पाठ्यक्रम का विस्तृत रूप से प्रतिनिधित्व करते है। 
6. ये अधिक विश्वसनीय तथा वैध होते हैं। 
7. इस पद्धित द्वारा प्रखर बुद्धि तथा मंद बुद्धि छात्रों में बड़ी आसानी से अंतर किया जा सकता हैं। 
8. वस्तुनिष्ठ प्रश्‍नों का उत्तर देना अथवा सही उत्तर को अंकित करना सरल होता है तथा अंक प्रदान करने में भी काफी आसानी रहती हैं। 
9. इस परीक्षा में रटने की प्रवृत्ति को प्रोत्साहन नही मिलता। 
10. इनकी जाँच परस्पर छात्रों द्वारा भी की जा सकती हैं।
11. इसके सभी प्रश्‍न वस्तुनिष्ठ होते हैं। अतः उनके मूल्यांकन में कोई मतभेद होने की संभावना नहीं होती। 
12. प्रश्‍नों का उत्तर देते समय छात्रों की भाषा संबंधी कमजोरी बाधक नही बनती। 
13. छात्रों द्वारा दिये जाने वाले उत्तर शब्द सीमा सीमित कर देने से छात्र व्यर्थ तथा असंबन्धित तथ्य लिखकर समय एवं श्रम नष्ट नहीं करते। 
14. आर्थिक दृष्टि से यह परीक्षा अधिक व्यय साध्य नहीं हैं। 

वस्तुनिष्ठ परीक्षा के दोष अथवा सीमाएं (vastunisth parikshan ke dosh)

वस्तुनिष्ठ परीक्षण में निम्नलिखित दोष पाये जाते हैं-- 
1. वस्तुनिष्ठ परीक्षण प्रणाली के अंतर्गत उचित मानदंड के आधार पर प्रश्न-पत्रों का निर्माण करना अत्यंत कठिन कार्य हैं। 
2. ये परीक्षण छात्रों की उच्चतर बौद्धिक निष्पत्तियों की जाँच करने में असफल सिद्ध हुए हैं। 
3. प्रायः देखने में आया है कि छात्र विषय-वस्तु का गहराई से अध्ययन नहीं करते तथा प्रश्नों का उत्तर अनुमान से देते हैं। 
4. इनके प्रयोग से बालकों में नकल करने की संभावनाएं बढ़ती हैं। 
5. वस्तुनिष्ठ प्रश्न-पत्र पूर्णतः तथ्यात्मक सूचनाओं पर ही बल देते हैं जिससे शिक्षण के अन्य उद्देश्यों की उपेक्षा होती हैं। 
6. वस्तुनिष्ठ परीक्षण के माध्यम से छात्रों की भाषा-शैली, अभिव्यंजना शक्ति, विचार एवं कल्पना शक्ति का विकास संभव नहीं हो पाता।  
7. वस्तुनिष्ठ परीक्षण में छात्रों की भाषा संबंधी कमजोरियों का कोई पता नहीं लगता। 
8. प्रश्नों की संख्या अधिक होने से श्यामपट्ट (Blackboard) पर लिखना संभव नहीं होता, ऐसी स्थिति में बहुत-सी प्रतियाँ तैयार करने में पर्याप्‍त धन व्यय होता हैं। 
9. प्रत्येक विषय के पूर्ण ज्ञान की जाँच इस परीक्षा द्वारा संभव नहीं होती। 
10. इससे छात्रों द्वारा अनुमान (Guess) से उत्तर देने की संभवना अधिक बढ़ जाती हैं। 
11. इससे भाव अभिव्यक्ति की क्षमता विकसित नहीं हो सकती।

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