6/12/2022

उद्देश्यों द्वारा प्रबंध क्या हैं? महत्‍व, विशेषताएं

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उद्देश्‍यों द्वारा प्रबन्‍ध अवधारणा से आशय (उद्देश्यों द्वारा प्रबंध क्या हैं?

इस पद्धति का संक्षिप्‍त नाम ‘एम.बी.औ‘ है। सामान्‍यतः यह माना जाता है कि उद्देश्‍यों द्वारा प्रबन्‍ध तकनीकी का विकास पीटर एफ. ड्रकर द्वारा किया गया। प्रबन्‍ध जगत में इसे अनेक नामों से पुकारा जाता है, जैसे- लक्ष्‍यों द्वारा प्रबन्‍ध या मिशन या प्रयोजन द्वारा प्रबन्‍ध। आधुनिक प्रबन्‍ध की यह नवीनतम तकनीक है। 

हम यह जानते है कि प्रत्‍येक संस्‍था चाहे वह व्‍यावसायिक हो या गैर-व्‍यावसायिक, सरकरी हो या निजी क्षेत्र की, उसका कोई न कोई निश्चित लक्ष्‍य या उद्देश्‍य होता है जिसे प्राप्‍त करना प्रबन्‍ध का मुख्‍य कार्य है और ‘उद्देश्‍यों द्वारा प्रबन्‍ध‘ वह तकनीक है जो संगठन के सभी प्रयासों को लक्ष्‍य प्राप्ति की ओर निर्देशित करती है। इसकी कुछ प्रमुख परिभाषाऍ:- 

पीटर एफ. ड्रकर के अनुसार, ‘‘उद्देश्‍यों द्वारा प्रबन्‍ध एक प्रणाली है, जिसमें प्रबन्‍धक एवं सम्‍पूर्ण प्रतिष्‍ठान दोनों की कार्यकुशलता में सुधार के लिए विभाग तथा प्रत्‍येक व्‍यक्तिगत प्रबन्‍धक के स्‍तर पर उद्देश्‍यों का निर्धारण किया जाता है।‘‘

टोसी एवं केरोल के अनुसार, ‘‘उद्देश्‍यों द्वारा प्रबन्‍ध एक प्रक्रिया है, जिसमें प्रबन्‍धक और उसके अधीनस्‍थ दोनों मिलकर ऐसी निर्धारित क्रियाओं, लक्ष्‍यों, विधियों एवं उद्देश्‍यों के बारे में सहमत हो जाते हैं, जिनका उपयोग अधीनस्‍थों के निष्‍पादन एवं उसके मूल्‍यांकन के आधार के रूप में उपयोग किया जायेगा।‘‘ 

उपरोक्‍त परिभाषाओं के आधार पर यह कहा जा सकता है कि उद्देश्‍यों द्वारा प्रबन्‍ध एक ऐसी प्रबन्‍ध प्रक्रिया है, जिसके अन्‍तर्गत किसी संस्‍था में कार्यरत प्रबन्‍धक एवं अधीनस्‍थ दोनों मिलकर सामान्‍य उद्देश्‍यों के अनुरूप विभिन्‍न क्रियाओं के उद्देश्‍यों का निर्धारण करते है और इसके पश्‍चात् उनकी प्राप्ति हेतु प्रबन्‍ध क्रियाओं का संचालन करते हैं ताकि समस्‍त उपलब्‍ध संसाधनों का प्रभावकारी उपयोग किया जा सकें। 

उद्देश्‍यों द्वारा प्रबन्‍ध का महत्‍व 

आधुनिक प्रबन्‍ध विधि से उद्देश्‍यों द्वारा प्रबन्‍ध विधि की भूमिका तथा महत्‍व का विवेचन निम्‍नलिखित बिन्‍दूओं की सहायता से सुगमतापूर्वक किया जा सकता है- 

1. नेराश्‍य में कमी

उद्देश्‍यों द्वारा प्रबन्‍ध में प्रत्‍येक कर्मचारी एवं प्रबंधक को उससे अपेक्षित निष्‍पत्ति परिणामों का पूर्वज्ञान होता है, फलस्‍वरूप वह कर्मचारी एवं प्रबन्‍धक उन्‍हीं अपेक्षित परिणामों को प्राप्‍त करने का प्रयास करता है। इसके अतिरिक्‍त अपेक्षित निष्‍पत्ति एवं परिणामों का निर्धारण भी वह स्‍वयं प्रबन्‍धकों के साथ मिलकर सकता है। अतः कर्मचारियों में कार्य पूरा करने की भावना आती है, कार्य सन्‍तुष्टि की भावना का विकास होता है और नैराश्‍य भावना का अन्‍त होता है।

2. सहभागिता की भावना को बल

उपक्रम में कर्मचारियों के लिए उद्देश्‍यों द्वारा प्रबन्‍ध विधि में लक्ष्‍यों का निर्धारण कर्मचारियों व अधिकारियों द्वारा आपस में मिलकर किया जाता है। इससे कर्मचारियों में संगठन एवं प्रबन्‍ध में सहभागिता की भावना को बल मिलता है, जिससे कार्य सम्‍पादन क्रिया भी समुन्‍नत होती है। 

3. स्‍पष्‍ट संगठन 

उद्देश्‍यों द्वारा प्रबन्‍ध विधि का महत्‍व इस दृष्टि से भी है कि यह संगठन की स्‍पष्‍ट व्‍याख्‍या करता है। संगठन में आधारभूत परिणाम क्षेत्रों को परिचालनात्‍मक लक्ष्‍यों और उनकों पूरा करने के लिये अलग-अलग उत्तरादायी पद-स्थितियों में बदला जाता है। उद्देश्‍यों द्वारा प्रबन्‍ध विधि में अधिकार सत्ता का भारार्पण, विकेन्‍द्रीयकरण करके प्रत्‍येक व्‍यक्ति के अधिकार दायित्‍वों की स्‍पष्‍ट परिभाषा कर दी जाती है। इस प्रकार उद्देश्‍यों द्वारा प्रबन्‍ध विधि प्रभावी संगठन की स्‍थापना में पर्याप्‍त सहयोग देती है।

4. स्‍वप्रेरणा का विकास

उद्देश्‍यों द्वारा प्रबन्‍ध में लक्ष्‍यों के निर्धारण में कर्मचारियों की सहभागिता, कार्य सम्‍पादन के लिए निर्णयन क्रिया की स्‍वतंत्रता और प्राप्‍त परिणामों के आधार पर निष्‍पादन मूल्‍यांकन के कारण कर्मचारी स्‍वतः प्रेरित होते हैं एवं संगठन में मन लगाकर कार्य का प्रयास करते हैं जो कि आधुनिक प्रबन्‍ध विधि की सफलता के लिये अनिवार्य है। 

5. व्‍यक्तिगत पहल में बढ़ोत्तरी 

उद्देश्‍यों द्वारा प्रबन्‍ध में कर्मचारियों व अधीनस्‍थों को कार्य के दौरान आने वाली समस्‍याओं का निर्धारित सीमाओं के अन्‍तर्गत स्‍वयं द्वारा समाधान करने तथा तत्‍सम्‍बन्‍धी निर्णय लेने की स्‍वतंत्रता प्रदान की जाती है, जिससे उनकी व्‍यक्तिगत पहलपन की शक्ति में बढोत्तरी होती है। यह व्‍यक्तिगत पहलपल की शक्ति में वृद्धि, कर्मचारियों के निष्‍पादन और उनकी सृजनात्‍मक प्रवृत्ति को विकसित करने में सहायक होती है और कर्मचारीयों को यह विश्‍वास हो जाता है कि जिस संगठन में यह कार्यरत है उसमें उसकी भूमिका का महत्‍व है, इसलियें वह कर्मचारी संगठन की सफलता एवं विकास में भरपूर योगदान देता है। 

6. सर्वश्रेष्‍ठ प्रबन्‍ध व्‍यवस्‍था

आधुनिक प्रबन्‍ध में यदि उद्देश्‍यों द्वारा प्रबंध की प्रयुक्ति की जाती है, तो यह माना जा सकता है कि प्रबन्‍ध की सर्वश्रेष्‍ठ प्रबन्‍ध व्‍यवस्‍था उस संगठन में काम में लाई जा रही है। उद्देश्‍यों द्वारा प्रबन्‍ध व्‍यवस्‍था में सम्‍पूर्ण उपक्रम के लक्ष्‍यों का निर्धारण पहले ही हो जाता है, बाद में उन लक्ष्‍यों के अनुरूप कार्य सम्‍पादित किया जाता है, जो कि आधुनिक प्रबन्‍ध व्‍यवस्‍था के माध्‍यम से संगठन के लक्ष्‍यों की प्राप्ति में एक जरूरी कदम है। 

7. अनुशासन की प्रवृत्ति को बढ़ावा 

यदि उद्देश्‍यों द्वारा प्रबन्‍ध व्‍यवस्‍था संगठन के लक्ष्‍यों की प्राप्ति हेतु प्रबन्‍ध व्‍यवस्‍था के रूप में प्रयुक्‍त की जाती है, तो संगठन के कर्मचारियों में अनुशासन प्रवृत्ति के विकास को बल प्राप्‍त होगा। इसको अपनाने से उपक्रम के कर्मचारी व प्रबन्‍धक अनुशासित ढंग से अपने कार्य को निष्‍पादित करने में अपने दायित्‍वों से नहीं हटेंगे, क्‍योंकि इस व्‍यवस्‍था में कर्मचारियों की शिकायतों व परिवेदनाओं की नौबत नहीं आने दी जाती। 

उद्देश्‍यों द्वारा प्रबन्‍ध की विशेषताएं

उद्देश्‍यों द्वारा प्रबन्‍ध की प्रमुख विशेषतायें निम्‍नलिखित हैं--

1. वांछित उद्देश्‍य अथवा परिणाम 

उद्देश्‍यों द्वारा प्रबन्‍ध के अन्‍तर्गत संस्‍था तथा कर्मचारियों दोनों के उद्देश्‍य निश्चित किये जाते हैं तथा उनकी विस्‍तृत परिभाषा दी जाती है। 

2. निष्‍पादन स्‍तर 

इसमें प्रत्‍येक प्रबन्‍धक का निष्‍पादन स्‍तर इस प्रकार से निश्चित किया जाता है कि वह संस्‍था के मूल उद्देश्‍यों की पूर्ति में सहायक हों। 

3. निष्‍पादन मूल्‍यांकन 

इसमें प्रत्‍येक प्रबन्‍धक के निष्‍पादन का मूल्‍यांकन उसके लिये निर्धारित लक्ष्‍यों के संदर्भ में किया जाता है। 

4. संगठन का ढांचा 

इसके अन्‍तर्गत संगठन का ढांचा इस प्रकार का तैयार किया जाता है, जिसमें प्रत्‍येक प्रबन्‍धक अपने निर्णय लेने के लिये स्‍वतंत्र होता है। यही नहीं, वह समय तथा परिस्थितियों के अनुसार अपने निर्णयों में परिवर्तन करने के लिये भी पूर्णतः स्‍वतंत्र है। 

5. नियंत्रण सूचना 

नियंत्रण सूचना प्रत्‍येक प्रबन्‍धक के पास ठीक समय पर एवं सही समय पर पहुंचती रहनी चाहिये। ताकि वह अपने निर्णयों में सुधार करने का निरन्‍तर प्रयत्‍न करता रहे। इसके लिये स्‍वस्‍थ संदेशवाहन की प्रणाली का होना आवश्‍यक है। 

6. क्रियात्‍मक उद्देश्‍य 

इसमें क्रियात्‍मक उद्देश्‍य संगठन के उद्देश्‍यों से जुड़े रहते है। इसमें यह देखा जाता है कि जहां भी संस्‍था के उद्देश्‍य कमजोर पड़ते हो अथवा क्रियात्‍मक रूप देना संभव नहीं हो, वहॉ उद्देश्‍यों में आवश्‍यक संशोधन किया जाना चाहियें। 

7. टीम की भावना

यह सहयोग, सहकारी प्रयास तथा टीम की भावना पर बल देता है। यह कर्मचारी अपेक्षाओं और प्रबन्‍धकीय व्‍यवहारों के मध्‍य विद्यमान खाई को पाटकर समन्‍वय स्‍थापित करता है। 

8. उत्तरदायित्‍व तथा प्रतिस्‍पर्धा की भावना को जाग्रत करना

यह अधीनस्‍थों तथा परिचयात्‍मक प्रबन्‍धकों में उत्तरदायित्‍व तथा प्रतिबद्धता की भावना जाग्रत करता है। 

9. अभिप्रेरणा

इसमें कर्मचारियों को मौद्रिक तथा अमौद्रिक दोनों प्रकार का अभिप्रेरण देने का प्रावधान रहता है। ताकि प्रबन्‍ध सही ढंग से निर्णय लेने एवं उसे सही ढंग से सही समय पर क्रियान्वित करने के लिये प्रेरित हो। 

10. प्रयोगकर्ता को महत्‍व 

उद्देश्‍यों द्वारा प्रबन्‍ध में इसके प्रयोगकर्ता को महत्‍वपूर्ण स्‍थान प्राप्‍त होते हैं। इस सम्‍बन्‍ध में यह कहा जा सकता है कि ‘नवीन विधियां किसी भी प्रकार प्रयोगकर्ता से अधिक अच्‍छी नहीं है। अतः सभी स्‍तरों पर प्रबन्‍धकीय प्रशिक्षण एवं विकास का प्रावधान रहता है।‘

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