6/16/2022

शिक्षण प्रतिमान का अर्थ, परिभाषा, विशेषताएं

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शिक्षण प्रतिमान का अर्थ एवं परिभाषा 

शिक्षण प्रतिमान आंग्ल भाषा के टीचिंग माॅडल का पर्यायवाची हैं। एच.सी. वील्ड के शब्दों में किसी रूपरेखा या उद्देश्‍य के अनुसार व्यवहार को ढालने की प्रक्रिया प्रतिमान कहलाती हैं।" काॅनबैक एवं गैगने के अनुसार शिक्षण प्रतिमानों का विकास सीखने के सिद्धांतों को दृष्टि में रखते हुए किया जाता है जिससे इनके प्रयोग द्वारा शिक्षण के सिद्धांतों को प्रतिपादित किया जा सके। इस तरह शिक्षण प्रतिमान शिक्षण सिद्धांतों को प्रतिपादित करने के लिए आधार तथा प्रथम परिस्थिति का निर्माण किया जाता है जिसमें विद्यार्थियों की अंतःप्रक्रिया इस तरह से हो कि उनके व्यवहार में अपेक्षित परिवर्तन होकर उद्देश्‍य प्राप्त हो जाये। ध्यान देने की बात है कि शिक्षण के प्रत्येक प्रतिमान में शिक्षण की विशिष्ट रूपरेखा का विवरण होता हैं जिसके सिद्धांतों की पुष्टि प्राप्त किये गुए निष्कर्षों पर आधारित होती है। इस तरह शिक्षण प्रतिमान शिक्षण सिद्धांत के लिए उपकल्पना का कार्य करते हैं। दूसरे शब्दों में इन्हीं उपकल्पनाओं की जाँच के बाद सिद्धांतों को प्रतिपादित किया जाता हैं। शिक्षण प्रतिमानों में निम्न छः क्रियायें निहित होती हैं-- 

1. सीखने की निष्पत्ति को व्यावहारिक रूप देना। 

2. ऐसे उद्दीपन का चयन करना कि विद्यार्थी आपेक्षित अनुक्रिया कर सकें। 

3. ऐसी परिस्थितियों का विशेषीकरण करना जिनमें विद्यार्थियों की अनुक्रियाओं को देखा जा सके। 

4. ऐसे मानदण्ड व्यवहार का निर्धारण करना जिससे विद्यार्थियों की निष्पत्ति को देखा जा सके। 

5. कक्षागत परिस्थितियों में अंतःप्रक्रिया का विश्लेषण करके वांछित शैक्षिक लक्ष्यों को प्राप्त करने हेतु विशेष युक्तियों का विशिष्टीकरण करना। 

6. यदि विद्यार्थियों में अपेक्षित व्यवहार परिवर्तन न हो तो नीतियों एवं युक्तियों में सुधार करना। 

हीमन के अनुसार शिक्षण प्रतिमान शिक्षण के संबंध में सोचने विचारने की एक रीति हैं। इन्हीं के अनुसार प्रतिमान किसी वस्तु को विभाजित एवं व्यवस्थित करके तर्क-संगत ढंग से प्रस्तुत करने की विधि हैं।

जायस और वेल के अनुसार," शिक्षण-प्रतिमान वह पद्धित या योजना है जिसे किसी पाठ्यक्रम या कोर्स का स्वरूप प्रदान करने, अनुदेशनात्मक सामग्री का डिजाइन तैयार करने और किसी कक्षा-कक्ष व अन्य परिस्थितियों में अनुदेशन का मार्ग-दर्शन करने के लिए प्रयोग में लाया जा सके।" 

शिक्षण प्रतिमानों की विशेषताएं 

शिक्षण प्रतिमानों की विशेषताएं निम्‍नलिखित होती हैं-- 

1. कुछ आधार

प्रत्येक शिक्षण प्रतिमान के कुछ आधार-भूत तत्व होते है जिनको दृष्टि में रखते हुए उनका निर्माण किया जाता है। वे आधार-भूत तत्व हैं-- 

(अ) सीखने हेतु उपयुक्त वातावरण का निर्माण करना,

(ब) शिक्षक एवं विद्यार्थियों के बीच अंतःप्रक्रिया का होना तथा 

(स) शिक्षण को सरल, स्पष्ट एवं बोधगम्य बनाने हेतु उपयुक्त नीतियों तथा युक्तियों का प्रयोग करना। स्मरण रहे कि प्रत्येक शिक्षण प्रतिमान वातावरण के निर्माण करने में रूपरेखा का कार्य करता हैं। 

2. उपयुक्त अनुभव प्रदान करना 

शिक्षण प्रतिमान की दूसरी विशेषता यह है कि वह शिक्षक एवं विद्यार्थी दोनों को उपयुक्त अनुभव प्रदान करता है। स्मरण रहे कि उपयुक्त पाठ्य-वस्तु का चयन करना एवं विद्यार्थियों के सामने आत्मबोध हेतु पेश करना शिक्षण की मुख्य समस्या है। इस बात की पुष्टि उस समय होती है जब अपने शिक्षक विद्यार्थियों के सामने उपयुक्त अनुभव प्रदान करता है।

3. मौलिक प्रश्नों का उत्तर 

शिक्षण प्रतिमान की तीसरी विशेषता यह है कि इसमें सभी मौलिक प्रश्नों का उत्तर मिल जाता है। उदाहरण के लिए-- 

(अ) शिक्षक किस तरह का व्यवहार करता हैं,

(ब) वह ऐसा क्यों करता हैं? एवं उसके इस तरह से व्यवहार करने का विद्यार्थियों पर क्या प्रभाव पड़ेगा? संक्षेप में प्रत्येक शिक्षण प्रतिमान में विद्यार्थी एवं शिक्षक के व्यवहार संबंधी सभी मौलिक प्रश्नों का उत्तर मिलता हैं।

4. वैयक्तिक विभिन्नता पर आधारित 

शिक्षण प्रतिमान की चौथी विशेषता यह है कि इसका निर्माण वैयक्तिक विभिन्नता के आधार पर विभिन्न धारणाओं के अनुसार होता है। इसी कारण से हम यह देखते हैं कि अपने-अपने जीवन दर्शन से प्रभावित होते हुए कोई शिक्षक रटन्त-स्मृति की एवं कोई प्रत्ययों के स्पष्ट करने को महत्व देते हुए शिक्षण के अलग-अलग प्रतिमानों का निर्माण मिलता हैं। 

5. विद्यार्थियों की रूचि का उपयोग 

शिक्षण प्रतिमान की पाँचवीं विशेषता यह है कि इसमें विद्यार्थियों की रूचि का उपयोग किया जाता हैं। हरबार्ट महोदय की पाँच पद प्रणाली आज भी शिक्षण का महत्त्वपूर्ण आधार इसलिए बनी हुई हैं कि इसके पाँचों पदों में विद्यार्थियों की रूचियों का उपयोग किया गया हैं।

6. दर्शन से प्रभावित 

शिक्षण प्रतिमान की छठी विशेषता यह है कि प्रत्येक शिक्षण प्रतिमान दर्शन से प्रभावित होता है। हम देखते है जो शिक्षक जिस दर्शन का अनुयायी होता है वह उसी के अनुसार विद्यार्थियों के व्यवहार में परिवर्तन लाने के लिए वैसे ही शिक्षण प्रतिमान का निर्माण करता है। उदाहरण के लिए आदर्शवादी शिक्षक विद्यार्थियों को आदर्शवादी एवं प्रयोजनवादी शिक्षक उन्हें प्रयोजनवादी बनाने हेतु शिक्षण प्रतिमान का निर्माण अपनी-अपनी दार्शनिक विचारधारा के अनुसार करता हैं। 

7. शिक्षण सूत्र 

शिक्षण प्रतिमान की सातवीं विशेषता यह है कि इसका आधार शिक्षण सूत्र होते हैं। दूरसे शब्दों में शिक्षण सूत्र प्रत्येक शिक्षण प्रतिमान में आधार का कार्य करते है तथा विद्यार्थियों में उन शक्तियों को विकसित करते है जो उनके व्यक्तित्व को संगठित करने में सहायता करती हैं। 

8. अभ्यास तथा साधना 

शिक्षण प्रतिमान की आठवीं विशेषता यह है कि इसका विकास निरंतर अभ्यास एवं साधना के बाद होता है। अतः इसका आधार चिंतन है। जब समस्याओं पर चिंतन एवं आवश्यक प्रयोग करने से धारणायें स्पष्ट हो जाति है तभी शिक्षण प्रतिमान का विकास संभव होता हैं। 

9. मानव योग्‍यता का विकास 

शिक्षण प्रतिमान की नवीं विशेषता यह है कि यह मानव योग्‍यता के विकास में सहायता करता है। साथ ही इसके द्वारा शिक्षक की सामाजिक क्षमता में वृद्धि होती हैं। 

10. शिक्षण एक कला के रूप में 

शिक्षण प्रतिमानों की दसवीं विशेषता यह है कि इनसे शिक्षण एक कला के रूप में जाना जाता हैं। ये शिक्षण की कला को बढ़ावा देते हैं जो सीखने से आती है। 

11. शिक्षक के व्यक्तित्व की गुणात्मक उन्नति

शिक्षण प्रतिमानों की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि ये शिक्षक के व्यक्तित्व की गुणात्मक उन्नति करते हैं।

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