5/29/2022

सह संबंध का अर्थ, परिभाषा, महत्व, प्रकार

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सह-संबंध का अर्थ (sah sambandh kya hai)

व्‍यावहारिक जीवन में अनेक घटनायें परस्‍पर संबंधित होकर परिवर्तित होती रहती है, अतः हम कभी-कभी यह जानना चाहते हैं कि दो पदमालाओं में कुछ संबंध है या नहीं, और यदि है तो किन अंशों तक। हम यह भी कह सकते हैं कि यदि एक चल के मूल्‍य में परिवर्तन होने से दूसरे चल के मूल्‍य में भी परिवर्तन होता हो तो कहा जा सकेगा कि दोनों में सह-संबंध है। उदाहरणस्‍वरूप अगर घासलेट के भावों में वृद्धि होने से पेट्रोल के भावों में वृद्धि हो जाये तो कार्यकारण संबंध होने से दोनों सह-संबंधित कहलाऍगे। इस प्रकार दो श्रेणियों में साथ-साथ परिवर्तन संबंध होने की प्रवृत्ति को ही सहसंबंध कहा जाता है। 

सह-संबंध की परिभाषा (sah sambandh ki paribhasha)

कॉनर के अनुसार, ‘‘जब दो या अधिक परिणाम सहानुभूति में परिवर्तित होते है। ताकि एक के परिवर्तन के फलस्‍वरूप दूसरे में भी परिवर्तन होता है तो वे सह-संबंधित कहलाते है।"

प्रो. किंग के अनुसार, ‘‘दो श्रेणियों अथवा समूहों के बीच कार्य-कारण संबंध को ही सहसंबंध कहते है।"

डेवनपोर्ट के अनुसार, ‘‘सहसंबंध सम्‍पूर्ण पृथक विशेषताओं के बीच पाये जाने वाले उस पारस्‍परिक संबंध की ओर संकेत करता है, जिसके अनुसार वे कुछ अंशों में साथ-साथ परिवर्तन होने की प्र‍वृत्ति रखते है।"

सह सम्‍बन्‍ध का महत्त्व (sah sambandh ka mahtva)

सांख्यिकीय विश्‍लेषण में सहसम्‍बन्‍ध के सिद्धांत और तकनीक का महत्त्वपूर्ण स्‍थान है। इस सिद्धांत को विकसित करने व आधुनिक रूप देने का श्रेय फ्रांसिस गाल्‍टन तथा कार्ल पियर्सन को है। सहसम्‍बन्‍ध विश्‍लेषण मे हमे यह पता चलता है कि दो सम्‍बन्धित चल मूल्‍यों में कितना व किस प्रकार का सम्‍बन्‍ध है। आर्थिक क्रियाओं के विश्‍लेषण में सहसम्‍बन्‍ध के महत्त्व को निम्‍न शीर्षकों के अन्‍तर्गत रखा जा सकता है-- 

1. आर्थिक व्‍यवहारों का अध्‍ययन 

इससे आर्थिक व्‍यवहारों के अध्‍ययन और विश्‍लेषण में सहायता मिलती है। 

2. अधिक योग्‍य भविष्‍यवाणियां 

सहसम्‍बन्‍ध के आधार पर निर्वचन से सम्‍बन्धित अनिश्चितता की मात्रा कम करने में सहायता मिलती है जिससे अधिक निर्भर योग्‍य भविष्‍यवाणियां की जा सकती हैं। 

3. शोधकार्यो में उपयोगी

सहसम्‍बन्‍ध तकनीक आर्थिक शोधकार्यो में विश्‍लेषण करने, निष्‍कर्ष निकालने और सिद्धांतों को तैयार करने में भी अत्‍यत्‍न उपयोगी सिद्ध होती है। 

इस प्रकार व्‍यावहारिक जीवन के प्रत्‍येक क्षेत्र में दो या दो से अधिक सम्‍बन्धित घटनाओं के पारस्‍परिक सम्‍बन्‍ध का विवेचन करने मे यह सिद्धांत बहुत उपयोगी है। 

सह संबंध के प्रकार (sah sambandh ke prakar)

सम्‍बन्धित चलों के मध्‍य परिवर्तन की दिशा, अनुपात तथा समंकमालाओं की संख्‍या के आधार पर सह संबंध निम्‍न प्रकार के हो सकते है--

1. धनात्‍मक तथा ऋणात्‍मक सहसम्‍बन्‍ध

यदि दो पदमालाओं का परिवर्तन एक ही दिशा में होता है तो उनके सहसम्‍बन्‍ध को प्रत्‍यक्ष, अनुलोम अथवा धनात्‍मक कहते हैं। उदाहरणार्थ, यदि किसी वस्‍तु की मांग की वृद्धि के साथ उस वस्‍तु के मूल्‍य में भी वृद्धि होती है तो उनके बीच के सम्‍बन्‍ध को प्रत्‍यक्ष अनुलोम या धनात्‍मक सहसम्‍बन्‍ध कहेंगे। इसके विपरीत, यदि दो पदमालाओं में परिवर्तन एक ही दिशा में न होकर विपरीत दिशाओं में होते हैं, तो उन दो मालाओं के सहसम्‍बन्‍ध को प्रतीप, अप्रत्‍यक्ष, विलोम या ऋणात्‍मक कहते है। उदाहरणार्थ, पूर्ति की वृद्धि के साथ मूल्‍य घटता जाता है इसलिए पूर्ति व मूल्‍य में ऋणात्‍मक सहसम्‍बन्‍ध है। 

2. रेखीय और अरेखीय वक्ररेखीय सहसम्‍बन्‍ध 

जब दो चलों में परिवर्तन का अनुपात स्‍थायी रूप से समान होता है अर्थात् जब दो चलों में विचरण का अनुपात सदैव एक-सा हो, तो इस प्रकार के सहसम्‍बन्‍ध को रेखीय कहते हैं। इसे यदि बिन्‍दुरेखीय-पत्र पर अंकित किया जाये तो एक सीधी रेखा बनेगी। उदाहरणस्‍वरूप, यदि किसी कारखाने में मजदूरों की संख्‍या को दूना करने पर उत्‍पादन भी दूना हो जाये तो इसे रेखीय सहसम्‍बन्‍ध कहेंगे। इसके विपरीत, जब परिवर्तन का अनुपात स्‍थायी रूप से समान नहीं रहता, तब सहसम्‍बन्‍ध को अरेखीय या वक्ररेखीय है। 

इसे यदि बिन्‍दूरेखीय-पत्र पर प्रदर्शित किया जाये तो एक वक्र रेखा बनेगी जैसे विज्ञापन व्‍यय और बिक्री में सामान्‍यतः वक्ररेखीय सहसम्‍बन्‍ध होगा, क्‍योंकि बहुत कम सम्‍भावना है कि दोनों चलों के परिवर्तन के अनुपात में स्‍थायित्‍व होगा। 

3. सरल, बहुगुणी एवं आंशिक सहसम्‍बंध 

दो चल-मूल्‍यों के बीच में पाये जाने वाले सहसम्‍बन्‍ध को सरल सहसम्‍बन्‍ध कहते हैं। इन दो चल-मूल्‍यों में से एक कारण या स्‍वतंत्र श्रेणी कहलाता है और दूसरा परिणाम या आश्रित श्रेणी। बहुगुणी सहसम्‍बन्‍ध तब होता है जब दो या दो से अधिक स्‍वतंत्र चल-मूल्‍य होते है और आश्रित चल-मूल्‍य केवल एक होता है। इन सभी स्‍वतंत्र चल-मूल्‍यों का आश्रित चल-मूल्‍यों पर सम्मिलित प्रभाव पड़ता है। आंशिक सहसम्‍बन्‍ध तब होता है जब दो से अधिक चल-मूल्‍यों का अध्‍ययन किया जाता है परन्‍तु अन्‍य चल-मूल्‍यों के प्रभाव को स्थिर रखकर केवल दो चल-मूल्‍यों में सहसम्‍बन्‍ध निकाला जाता है। उदाहरण के लिए, यदि वर्षा और खाद दोनों के गेहूँ की उपज पर सामूहिक प्रभाव का गणितीय अध्‍ययन किया जाये तो वह बहुगुणी सहसम्‍बन्‍ध कहलायेगा। इसके विपरीत, यदि एक स्थिर वर्षा की मात्रा में खाद की मात्रा व गेहूँ की उपज के सम्‍बन्‍ध का विवेचन किया जाये तो वह आंशिक सहसम्‍बन्‍ध कहलायेगा।

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