5/07/2022

जीवन बीमा से क्या आशय हैं? परिभाषा, जीवन बीमा अनुबंध के लक्षण

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जीवन बीमा से क्या आशय हैं? (jivan bima kya hai)

जीवन बीमा के अन्‍तर्गत केवल व्‍यक्ति के जीवन का बीमा जीवन किया जाता है। इसमें बीमा कराने वाला व्‍यक्ति बीमापत्र के बदले एक निश्चित धनराशि अवधि तक समयान्‍तर से देता रहता है, जिसे प्रब्‍याजि कहते हैं और एक निश्चित समय व्‍यतीत होने पर बीमादाता बीमित धनराशि का भुगतान करता है। साधारणतया प्रब्‍याजि मासिक, त्रैमासिक, छःमाही या वार्षिक अदा की जाती है। बीमा करवाने की राशि की कोई सीमा नहीं होती। एक व्‍यक्ति चाहे जितनी रकम का बीमा करवा सकता है।

जीवन बीमा की परिभाषा (jivan bima ki paribhasha)

आर.एस.शर्मा के अनुसार, ‘‘जीवन बीमा वह अनुबंध है जिसमें बीमादाता द्वारा एक प्रब्‍याजि के बदले जो एकमुश्‍त या आवधिक किस्‍तों में चुकायी गयी हो, बीमित की मृत्‍यु पर या निश्चित अवधि समाप्‍त होने पर वार्षिक या निश्चित धनराशि देने को वचनबद्ध हैं।"

जे.एस.मेगी के शब्‍दों में, ‘‘व्‍यापक रूप में जीवन बीमा अनुबंध एक ऐसा ठहराव है जिसमें बीमादाता बीमेदार को एक निश्चित धनराशि एक निश्चित अवधि के बाद या उसकी मृत्‍यु पर उसके लाभार्थी को देने का वचन देता है।"

मीर एवं लिमये के अनुसार, ‘‘जीवन बीमा दो पक्षकारों के मध्‍य एक समझौता है जिसके द्वारा द्वितीय पक्ष कोई पूर्व निश्चित घटना के घटित होने पर प्रथम पक्ष या उसके लाभार्थी को एक निश्चित धनराशि देना स्‍वीकार करता है।‘‘

एजेन्‍ट मेन्‍युअल बुक के अनुसार, ‘‘ जीवन बीमा वह अनुबंध है जो बीमित को या उसकी मृत्‍यु पर उसके कानूनी प्रतिनिधि को, कोई निश्चित घटना के घटने पर एक निश्चित धनराशि के भुगतान की व्‍यवस्‍था करता है।‘‘

जीवन बीमा अनुबंध के लक्षण 

जीवन बीमा अनुबंध के प्रमुख लक्षण निम्‍नलिखित है--

1. वैध अनुबंध के मान्‍य लक्षणों का होना

बीमा अनुबंध के समान जीवन बीमा अनुबंध में भी एक वैध अनुबंध के लक्षण होना चाहिए। भारतीय संविधा अधिनियम के अनुसार एक वैध अनुबंध में निम्‍नलिखित लक्षण होना चाहिए--

(1) प्रस्‍ताव उचित रूप से होना चाहिए। इस हेतु प्रस्‍ताव पत्र बीमा निगम से निःशुल्‍क प्राप्‍त होता है। प्रस्‍ताव पत्र का निर्गमन जनता को प्रस्‍ताव करने का निमंत्रण माना जाता है। 

(2) प्रस्‍ताव की स्‍वीकृति शर्त रहित होना चाहिए। स्‍वीकृति लिखित या मौखिक भी हो सकती है। बीमा कंपनी छपे हुए स्‍वीकृति पत्रों का उपयोग करती है। स्‍वीकृति मिलने पर ही अनुबंध पूरा माना जाता है। 

(3) प्रस्‍ताव और स्‍वीकृत के संबंध में किसी प्रकार का बल प्रवर्तन, अनुचित प्रभाव, भ्रांत वर्णन, कपट और गलती का उपयोग नहीं होना चाहिए अन्‍यथा वह स्‍वतंत्र सहमति नहीं कही जाएगी। अतः प्रस्‍ताव और स्‍वीकृति के समय दोनों पक्षों की स्‍वतंत्र सहमति होना चाहिए। 

(4) दोनों पक्ष में अनुबंध करने की क्षमता होना चाहिए। साधारणतया अवयस्‍क, विदेशी, पागल व्‍यक्ति, कैदी आदि अनुबंध करने योग्‍य नहीं माने जाते। 

(5) अनुबंध करने का उद्देश्‍य वैध होना चाहिए तथा प्रसंविदा प्रतिफल के फलस्‍वरूप होना चाहिए। 

2. बीमा योग्‍य हित

बीमें के प्रसंविदे में बीमा योग्‍य हित का होना अत्‍यंत आवश्‍यक है। बीमा योग्‍य हित का होना अत्‍यंत आवश्‍यक है। बीमा हित से हमारा तात्‍पर्य बीमा कराने वाले की, बीमित वस्‍तु की सुरक्षा से लाभ एवं बीमित वस्‍तु की हानि से बीमा कराने वाले को भी हानि होनी चाहिए। अतः हम कह सकते हैं। कि बीमा योग्‍य हित किसी वस्‍तु में से आर्थिक हित के होने को कहते हैं जिसकी सुरक्षा से आर्थिक लाभ और जिसकी हानि से आर्थिक हानि हो। अगर किसी प्रसंविदे में बीमा योग्‍य हितन हो तो वह अनुबंध जुएं की भांति हो जाएगा और उसका कोई वैधानिक मूल्‍य न होगा। सरल शब्‍दों में बीमा हित किसी वस्‍तु को सुरक्षित रखने अथवा जीवन को जारी रखने संबंधी हित है जो कानून द्वारा स्‍वीकृत है। जो कोई भी किसी वस्‍तु या जीवन को जारी रखने संबंधी हित है जो कानून द्वारा स्‍वीकृत है। जो कोई भी किसी वस्‍तु या जीवन में ऐसा हित रखता है वह उस वस्‍तु या जीवन का बीमा करा सकता है। आवश्‍यक रूप से कहें तो बीमा हित किसी जीवन या वस्‍तु में निहित आर्थिक या वित्तीय हित है। जीवन बीमा हित होना आवश्‍यक है। बीमा हित अपने स्‍वयं के जीवन में पारिवारिक संबंध के कारण परिवार के सदस्‍यों के जीवन में हो सकता है। जीवन बीमा से योग्‍य हित निम्‍नलिखित संबंध में माना जाता है--

(1) प्रत्‍येक व्‍यक्ति को अपने जीवन में।

(2) पति का पत्‍नी के एवं पत्‍नी का पति के जीवन में। 

(3) पिता का पुत्र के जीवन में अगर वह अपने पिता पर निर्भर है। 

(4) पुत्र का पिता के जीवन में अगर वह अपने पिता पर निर्भर है। 

(5) एक ऋणदाता का ऋण की रकम की सीमा तक, अपने ऋणी में। 

(6) एक जमानत देने वाले का, जमानत की रकम की सीमा तक, उस व्‍यक्ति में, जिसकी उसकी जमानत दी है। 

(7) कर्मचारी का अपने मालिक में, मालिक का अपने विशिष्‍ट कर्मचारी के जीवन में। 

(8) एक साझेदार का दूसरे साझेदार के जीवन में, व्‍यापार में लगाई गई पूंजी के बराबर। 

3. परम सद्विश्‍वास 

जीवन बीमा अनुबंध का तीसरा प्रमुख लक्षण परम् सद्विश्‍वास है। इसका तात्‍पर्य यह है कि बीमा कराते समय, बीमा करने वाले एवं बीमा कराने वाले दोनों ही जीवन के संबंध की मूल बातों को स्‍पष्‍ट कर दें। यह जीवन से संबंधित सभी प्रकट या गोपनीय बातों को एक-दूसरे को बता दें। यदि कोई भी पक्ष किसी तथ्‍य को जानबूझकर छिपाता है तो उनके विरूद्ध वह अनुबंध व्‍यर्थनीय होगा। मूलभूत बातों बातों को बीमा कंपनी को स्‍पष्‍ट करने का दायित्‍व बीमा कराने वाले पर आता है। यदि बात में बीमा कंपनी को यह पता चलता है कि बीमा कराने वाले ने कुछ तथ्‍य छिपाये हैं या जीवन के बारे में गलत जानकारी दी है तो बीमा कंपनी अनुबंध रद्द कर सकती हैं। मूलभूत तथ्‍यों में वे सभी तथ्‍य सम्मिलित किए जाते हैं, जिसकी बीमा कराने वाले व्‍यक्ति को जानकारी होनी चाहिए। वे सभी तथ्‍य जो कि प्रब्‍याजि की रकम जोखिम सीमा के निर्धारण को प्रभावित करते हैं, मूलभूत तथ्‍य माने जाते हैं। 

ऊपर दिये गयें लक्षणों के अलावा जीवन बीमा अनुबंध के निम्‍नलिखित दो प्रमुख तत्‍व लक्षण पाये जातें है जो निम्‍नलिखित हैं--

1. सुरक्षा तत्‍व 

जीवन बीमा का प्रमुख तत्‍व अथवा लाभ यह है कि इसमें बीमित व्‍यक्ति एवं उसके परिवार की सुरक्षा निहित है। इसी प्रमुख तत्‍व के कारण आज का मानव जीवन बीमा के प्रति आकर्षित है। इसके द्वारा मनुष्‍यों की जोखिमों एवं संकटों से रक्षा होती है। आम तौर पर सामान्‍य व्‍यक्ति अपनी जवानी में या समृद्ध दिनों में जोखिमों एवं संकटों का सामना बड़ी आसानी से कर लेता है। उस समय उसकी हालत भी अच्‍छी होती है। वह नौकरी व्‍यवसाय में संलग्‍न रहता हुआ अपने परिवार का भरण-पोषण करता है परंतु जब वह सेवा से निवृत्त हो जाता है या व्‍यवसाय में वृद्धावस्‍था एवं कमजोरी के कारण थक जाता है, तब उसकी आमदनी बंद हो जाती है और ऐसे ही समय बीमा उसकी सहायता एवं रक्षा करता है। पूर्व में दिए गए बीमे के पैसे उसको प्राप्‍त होते हैं और उसके सहारे उसकी शेष जिन्‍दगी मजे में गुजर जाती है। यह तो हुई बीमाकर्ता की बात। पर अगर बीमाकर्ता की समय के पूर्व ही मृत्‍यु हो जाए तो परिवार पर घोर संकट आ जाता है। ऐसे समय जीवन बीमा से प्राप्‍त पैसा उसके-परिवार की रक्षा करता है। इस तरह उसके जीवित रहने या मृत्‍यु होने, दोनों ही दशाओं में जीवन बीमा बीमित की एवं उसके परिवार का रक्षा करता है और उनकों जीवन यापन करने एवं पैरों पर खड़ा होने में सहायता प्रदान करता है। 

2. विनियोग तत्त्व 

जीवन बीमा का यह दूसरा एवं महत्त्वपूर्ण तत्त्व है। यह तत्त्व अन्‍य किसी प्रकार के बीमें में नही पाया जाता। जीवन बीमा, सुरक्षा के साथ-साथ धन विनियोग का श्रेष्‍ठ साधन भी है। वैसे धन विनियोग के अन्‍य अनेक साधन भी उपलब्‍ध हैं पर उनमें सुरक्षा की गारंटी नहीं है। सुरक्षा एवं विनियोग के तत्‍व जीवन बीमा के बेमिसाल उदाहरण है क्‍योंकि एक निश्चित अवधि व्‍यतीत होने पर बीमा कंपनी आपका जमा किया संपूर्ण पैसा लौटा देती है। जितना पैसा आपने जमा कराया है वह तो मिलता ही है और अगर आपने अपना बीमापत्र लाभ सहित लिया तो बोनस अतिरिक्‍त मिलेगा। अन्‍य किसी भी प्रकार के बीमें में आपके द्वारा जमा किया धन वापिस नहीं मिलता। 

इस तरह से एक ओर जीवन बीमा उन व्‍यक्तियों की सुरक्षा का साधन प्रदान करता है जिनका रोटी कमाने वाला असमय ही मृत्‍यु को प्राप्‍त होकर अपने परिवार को बिलखता छोड़ जाता है, जिनका कोई सहारा नहीं रह पाता, तो दूसरी ओर भविष्‍य में विनियोग या पूंजी संचय के लिए बचत का सर्वोत्तम साधन है। इसमें बचत करना ऐच्छिक नहीं है वरन् बचत करने के लिए मजबूर किया जाता है ताकि कष्‍ट के दिनों में सहायता प्राप्‍त हो सके। अतः यह जीवन बीमा की ही विशेषता है कि उसमें सुरक्षा तत्त्व और विनियोग दोनों ही होते है।

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