ठेका लागत विधि क्या हैं? theka lagat vidhi kise kahte hai)
ठेकेदारों, भवन-निर्माताओं, पुल व बांध-निर्माताओं, सड़क-निर्माताओं आदि के द्वारा लागत लेखांकन की जो विधि अपनाई जाती है, उसे ठेका लागत विधि कहते है। ठेका लागत लेखे का उद्देश्य प्रत्येक ठेके या कार्य पर होने वाले लाभ-हानि करना है। यदि ठेका अल्पकाल में समाप्त हो जाता है तो उसके पूर्ण होने पर और यदि दीर्घकाल में पूर्ण होता है तो उसके निष्पादन की अवधि में, प्रत्येक अवस्था पर उसकी लागत तथा उस पर होने वाली लाभ-हानि का ज्ञान ठेका लागत लेखे से होता है।
ठेका लागत विधि परिभाषा (theka lagat vidhi ki paribhasha)
स्पाइसर एवं पैगलर के अनुसार, ‘‘ठेके लागत के लेखे उस समय बनाये जाते है, जबकि प्रत्येक ठेके की लागत तथा लाभ या हानि निकालना होता है। यह भवनों के ठेकेदार, इंजीनियर्स आदि के व्यवसायों में प्रयोग होता है।‘"
शालर्स के अनुसार, ‘‘ठेके लागत के लेखे ऐसे उद्यम में बनाये जाते हैं, जो किसी विशेष प्रकार के ठेके करते है तथा प्रत्येक की लागत जानना चाहते हैं। इन्हें टरमीनल लागत-लेखा भी कहा जाता है क्योंकि इनका निश्चय अन्त होता है।"
सारांश में जो निर्माण कार्य बड़े पैमाने पर तथा विभिन्न स्थानों पर किये जाते हैं, उन्हें ठेका-कार्य कहते हैं। ठेके सम्बन्धी कार्य प्रायः एक से अधिक वर्षो में पूर्ण होते हैं। ठेका लागत के अनुसार प्रत्येक ठेके की लागत तथा उस पर होने वाली लाभ-हानि को ज्ञात किया जाता है।"
ठेका लागत विधि की विशेषताएं (theka lagat vidhi ki visheshta)
ठेका लागत विधि की निम्नलिखित विशेषताएं हैं--
1. ठेके की लागत बहुत अधिक होती है।
2. ठेके की अवधि काफी दीर्घ होती है।
3. अधिकांश ठेके के कार्य कारखाने से दूर के स्थानों पर किये जाते हैं।
4. मुख्य ठेका कार्य का कुछ भाग दूसरे ठेकेदारों द्वारा पूर्ण कराया जाता है।
ठेका खाता रखने की विधि
विभिन्न ठेकों का लेखा रखने के लिए ठेकेदार एक ठेका खाता-बही रखता है। इस लेजर में प्रत्येक ठेके के लिए अलग-अलग खाता खोला जाता है। ठेके लागत लेखांकन पद्धति प्रत्येक ठेके की लागत ज्ञात करने तथा उस पर होने वाले लाभ या हानि की गणना के लिए उपलब्ध है।
ठेकेदार की पुस्तकों में रखे जाने वाले प्रमुख खाते
ठेकेदार की पस्तुकों में रखे जाने वाले मुख्य खाते निम्नलिखित हैं--
1. ठेका खाता
ठेकेदार प्रत्येक ठेके का एक खाता बनाता है। अन्य खातों की तरह तैयार किया जाता है। इसके डेबिट में ठेके के सम्बन्ध में किये गये व्ययों का लेखा किया जाता है, जैसे- सामग्री, श्रम, प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष व्यय, प्लान्ट एवं औजार। इसके क्रेडिट पक्ष में प्रमाणित एवं अप्रमाणित कार्य, लौटाई, गई सामग्री, बची हुई सामग्री, शेष प्लान्ट, बेची गई सामग्री आदि लिखे जाते है। ठेका खाते का स्पष्टीकरण नीचे किया जा रहा हैं--
(अ) डेबिट की मदें
1. सामग्री
ठेके पर प्रयोग की जाने वाली सामग्री के स्त्रोत हैं--
(अ) स्टोर से
जितनी सामग्री ठेकेदार को स्टोर से निर्गमित की जाती है उसे ठेका खाता के डेबिट में लिखते है।
(ब) सामग्री का क्रय
अगर ठेकेदार ने ठेके के लिए प्रत्यक्ष रूप से कोई सामग्री क्रय की है तो उसे भी ठेके खाते के डेबिट में लिखते हैं।
(स) अन्य ठेकों से हस्तान्तरित
अगर सामग्री किसी अन्य ठेके से इस ठेके को हस्तान्तरित हुई हो तो उसे भी इस ठेके के डेबिट में लिखेंगे।
2. प्रत्यक्ष श्रम
प्रत्यक्ष श्रम को ठेका खाते के डेबिट में लिखते हैं। अगर मजदूरी अदत्त हो तो उसे भी जोड़ देना चाहिए।
3. प्रत्यक्ष व्यय
जो व्यय प्रत्यक्ष रूप से किसी एक विशेष ठेके के लिए ही कियें जाते है वे प्रत्यक्ष व्यय कहलाते है और यह समस्त व्यय उसी ठेके को डेबिट किये जाते है जिनके लिए ये व्यय किेये गये हों।
4. उपरिव्यय
कुछ व्यय अनेक ठेकों पर सामूहिक रूप से किये जाते हैं। इन्हे अप्रत्यक्ष व्यय या उपरिव्यय कहा जाता है। यह व्यय सामान्यतः निम्न प्रकार के हो सकते हैं--
1. प्रबन्धक, इंजीनियर, शिल्पकार का वेतन,
2. स्टोर व्यवस्था के व्यय तथा स्टोरकीपर का वेतन,
3. प्रशासनिक व कार्यालय के व्यय, जैसे- स्टेशनरी, बिजली, टेलीफोन, पानी, किराया आदि।
उपरोक्त अप्रत्यक्ष व्ययों का एक उचित अनुपात में विभिन्न ठेकों पर विभाजन करना चाहिए, तत्पश्चात् इन व्ययों की राशि से ठेका खाते को डेबिट कर देते है।
5 .प्लान्ट एवं औजार
जो प्लान्ट व औजार ठेके के लिए निर्गमित किेये जाते हैं उनका पूरा मूल्य ठेका खाते में डेबिट में लिख देते है और वर्ष के अन्त में अथवा ठेका कार्य समाप्त होने पर अर्थात् जब भी लाभ-हानि ज्ञात करनी हो, प्लान्ट व औजारों का मूल्यांकन करके ठेका खाता उनके मूल्य से क्रेडिट कर दिया जाता है। इस प्रकार ठेका खाता केवल हृास से डेबिट हो जाता है। अगर प्लान्ट थोड़े समय के लिए ही ठेके पर प्रयुक्त हुआ हो तो हमें इसे डेबिट-क्रेडिट करने की जगह केवल इसका हृास ही डेबिट करना चाहिए। अगर प्लान्ट किराये पर लिया गया हो तो केवल किराया ही ठेका खाते में डेबिट करना चाहिए।
6. उपठेका लागत
उपठेके की लागत को हमेशा ठेका खाते में डेबिट में लिखते है।
7. अतिरिक्त किया कार्य
कभी-कभी ठेकेदार को मूल ठेके के अतिरिक्त अन्य कार्य करने को भी कहा जाता है, इस अतिरिक्त कार्य का मूल्य अलग से तय कर दिया जाता है। इसके मूल्य को ठेका मूल्य में जोड़ दिया जाता है तथा इस कार्य की लागत को ठेका खाते के डेबिट में लिखा जाता है।
(ब) क्रेडिट की मदें
1. लौटाई गई सामग्री
जो सामग्री स्टोर को लौटा दी जाती है उसे ठेका खाता के क्रेडिट में लिखते हैं।
2. अन्य ठेकों को हस्तान्तरित सामग्री
अगर कोई सामग्री इस ठेके के अन्य ठेके को हस्तान्तरित कर दी जाये तो भी इसे इस ठेके के क्रेडिट में लिखेंगे।
3. अन्त में बची हुई सामग्री
इसे भी क्रेडिट के लिखा जाता है।
4. सामग्री की चोरी होना या नष्ट होना
इन दोनो को ठेका खाते के क्रेडिट में लाभ-हानि खाते के नाम से लिखते हैं।
5. सामग्री का विक्रय
अगर कोई सामग्री बेच दी जाती है तो विक्रय मूल्य ठेका खाते के क्रेडिट में लिख देते है। अगर सामग्री बेचने से लाभ हुआ हो तो ठेका खाता डेबिट तथा लाभ-हानि खाता क्रेडिट करेंगे। हानि होने पर उल्टी प्रविष्टि होगी।
6. लौटाया गया या हस्तान्तरित किया हुआ प्लान्ट
हृास काटकर इसे ठेका खाता के क्रेडिट में लिख देते है।
7. बेचा हुआ प्लान्ट
सर्वप्रथम विक्रय मूल्य ठेका खाते के क्रेडिट में लिखते है और लाभ-हानि को लाभ-हानि खाते में हस्तान्तरित कर देते है।
8. चोरी अथवा नष्ट हुआ प्लान्ट
इसकी हानि की ठेका खाते के क्रेडिट में लाभ-हानि खाते के नाम से लिखते हैं। अगर नष्ट होने की तिथि दी हो तो उस तिथि तक का हृास घटाकर प्लान्ट को क्रेडिट में लिखते है।
9. हाथ में बचा हुआ प्लान्ट
जितना प्लान्ट डेबिट में लिखा है, उसमें से नष्ट हुए प्लान्ट की लागत, दूसरें ठेके को हस्तान्तरित प्लान्ट की लागत बेचे गये प्लान्ट की लागत कम करके जितनी लागत का प्लान्ट बचा है उस पर हृास काटकर जो प्लान्ट का मूल्य आता है उसे ठेका खाता के क्रेडिट में प्लान्ट एट साइड करके लिख देते है।
10. प्रमाणित कार्य
प्रमाणित कार्य का मूल्य ठेका खाते क क्रेडिट में वाए वर्क इन प्रोग्रेस के नाम से लिखते है।
11. अप्रमाणित कार्य
अप्रमाणित कार्य की लागत को भी ठेका खाते के क्रेडिट में वाए वर्क इन प्रोगेस एकाउंट के नाम से लिखते है।
12. ठेका मूल्य
अगर ठेका पूरा हो गया हो तो पूरा ठेका मूल्य ठेका खाते के क्रेडिट में लिख देते है।
(स) चालू कार्य खाता
इसके डेबिट में प्रमाणित कार्य तथा अप्रमाणित कार्य की लागत लिखते है तथा क्रेडिट में जितना लाभ संचय के रूप में रखा हो उसे लिखकर शेष निकाल देते हैं। इस शेष में से जितनी रोकड़ ठेकाखाता से मिली हो वह घटाकर चिट्ठे में सम्पत्ति पक्ष में लिख देते है।
(ड़) चिट्ठा
ठेकेदार के चिट्ठे में सम्पत्ति पक्ष में चालू कार्य, लगा हुआ प्लान्ट, स्टोर को लौटाया प्लान्ट, बची हुई सामग्री लिखते हैं। दायित्व पक्ष में अदत्त व्यय तथा लाभ-हानि खाते के शेष लिखते है।
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