4/25/2022

रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की सफलताएं एवं असफलताएं

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रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया की सफलताएं एवं असफलताएं 

भारतीय रिजर्व बैंक के कार्यो का मूल्‍यांकन

रिजर्व बैंक ने भारत में केन्‍द्रीय बैंक के रूप में सफलतापूर्वक कार्य किया है। देश के बैंकिंग विकास को उचित गति प्रदान करने की दिशा में अनेक महत्त्वपूर्ण कार्य किये हैं। देश की मौद्रिक एवं साख नीति का सफल संचालन करने में रिजर्व बैंक ने महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की है। रिजर्व बैंक के कार्यो का मूल्‍यांकन हम निम्‍न ढंग से कर सकते है--

रिजर्व बैंक की सफलताएं

रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की सफलताएं निम्नलिखित हैं--

1. सरकारी बैंकिंग 

रिजर्व बैंक ने अपनी स्‍थापना के बाद केन्‍द्रीय एवं राज्‍य सरकारों के बैंकर के रूप में उल्‍लेखनीय कार्य किया है। उसने लोक ऋण, बैंकिंग विकास, विनिमय नियंत्रण, विनिमय नियंत्रण, आदि के क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। 

2. सरकार का सलाहकार 

भारत में आर्थिक नियोजन शुरू होने के समय से ही रिजर्व बैंक के विशेषज्ञ भारत की कृषि साख, औद्योगिक वित्त, नियोजन, विदेशी व्‍यापार, आदि विषय में सलाह देते रहे है। भारत सरकार के आदेश पर रिजर्व बैंक के विशेषज्ञ अंतर्राष्‍ट्रीय मुद्रा कोष, विश्‍व बैंक एवं कई विदेशी सरकारों के साथ सलाहकार के रूप में काम कर रहे हैं। भारत में ही कई निगमों की स्‍थापना रिजर्व बैंक के विशेषज्ञों की मदद से की गई है। वर्तमान में भी भारतीय औद्योगिक विकास बैंक, भारतीय औद्योगिक वित्त निगम, राज्‍य वित्त निगमों, यूनिट ट्रस्‍ट, कृषि पुनर्वित्त तथा विकास निगम तथा राष्‍ट्रीयकृत बैंकों में‍ रिजर्व बैंक के अधिकारी कार्य कर रहे हैं। इन संस्‍थाओं की सफलता में रिजर्व बैक का उल्‍लेखनीय योगदान रहा है। 

3. औद्योगिक वित्त 

भारतीय उद्योगों के विकास हेतु भी रिजर्व बैंक द्वारा बहुत ही महत्त्वपूर्ण सहायता दी जा रही है। रिजर्व बैंक औद्योगिक वित्त निगमों की पूंजी और ऋणपत्र खरीदता है एवं उन्‍हें सीधे ऋण देता है। रिजर्व बैंक द्वारा एक औद्योगिक साख कोष स्‍थापित किया गया है जिसमें उद्योगों के लिए लगभग 3,300 करोड़ रूपयें की रकम जमा की जा चुकी है।

लघु उद्योगों के क्षेत्र में भी रिजर्व बैंक का काम कम नहीं है। उनकी साख गारंटी योजना से भारत के लघु उद्योगो को करोड़ों रूपये की रकम उधार मिली है।  

4. कृषि साख

भारतीय रिजर्व बैंक का सबसे महत्त्वपूर्ण योगदान कृषि साख के क्षेत्र में रहा हैं। एक कृषि प्रधान देश में रिजर्व बैंक का यह उल्‍लेखनीय योगदान है। 

5. बिल बाजार एवं मुद्रा बाजार के विकास में योगदान 

भारत में बिल बाजार का सर्वथा अभाव था। रिजर्व बैंक ने 1958 में इस दिशा में महत्त्वपूर्ण कार्य किया। बगुल समिति की अनुशंसाओं को स्‍वीकार कर रिजर्व बैंक ने जनवरी 1987 में नई बिल बाजार योजना लागू की। रिजर्व बैंक ने आज भारतीय मुद्रा बाजार को काफी विकसित तथा संगठित कर दिया है। 

6. साख नियंत्रण नीति

केन्‍द्रीय बैंकिंग प्रणाली के प्रावधान के अनुसार भारतीय रिजर्व बैंक ने साख नियंत्रण के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण कार्य किया है। विशेष रूप से चयनात्‍मक साख नियंत्रण की नीति अपनाकर रिजर्व बैंक ने साख की सामयिक तथा उचित नीति अपनाई है। 

7. मौद्रिक नीति 

देश के आर्थिक विकास में केन्‍द्रीय बैंक की मौद्रिक नीति का महत्त्वपूर्ण स्‍थान है। इस दृष्टि से रिजर्व बैंक ने सुलभ मुद्रा नीति अपनाकर देश के कृषि तथा औद्योगिक विकास में पूरा सहयोग दिया है और इस नीति में आवश्‍यकतानुसार परिवर्तन किया है। इसके द्वारा उत्‍पादन तथा व्‍यापार को सहायता मिली है। 

8. ब्‍याज दरों में सामयिक परिवर्तन 

ब्‍याज की दरों का बचत तथा विनियोग पर काफी प्रभाव पड़ता है एवं इससे आर्थिक विकास के लक्ष्‍य को प्राप्‍त किया जा सकता है। इस दृष्टि से रिजर्व बैंक द्वारा अल्‍पकालीन जमा पर ब्‍याज दर बढ़ाई गई और किसानों को दिये जाने वाले अल्‍पकालीन ऋणों पर ब्‍याज दर कम की गई है। 

9. समाशोधन व्‍यवस्‍था

भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा देश के 853 केन्‍द्रों में समाशोधन गृहों की व्‍यवस्‍था कर दी गई है। इस व्‍यवस्‍था से देश में चेक द्वारा लेन-देन बढ़ गया। देश में बैंकिंग विकास के साथ-साथ चेकों द्वारा भुगतान करने की आदत में भी वृद्धि हुई है। इस प्रगति का बहुत कुछ श्रेय रिजर्व बैंक को दिया जाना चाहिए। रिजर्व बैंक ने हाल के वर्षो में समाशोधन का ज्‍यादा से ज्‍यादा काम कंप्‍यूटरीकरण से जोड़ दिया है। सभी चार महानगरों मुम्‍बई, कोलकाता, चेन्‍नई तथा दिल्‍ली में 1989  से कंप्‍यूटर से समाशोधन का कार्य हो रहा है। इसके अलावा 9 अन्‍य केन्‍द्रों में भी यह कार्य कंप्‍यूटरीकृत हो गया है। 

10. आंकड़ों का प्रकाशन 

रिजर्व बैंक का सांख्यिकी विभाग अपनी मासिक पत्रिका एवं वार्षिक प्रकाशनों में इतने ज्‍यादा अंक प्रकाशित करता है। जितने कि संभवतः अन्‍य किसी देश का बैंक नहीं करता। इन अंकों से सरकार, औद्योगिक संस्‍थाओं एवं अनुसंधान करने वाले व्‍यक्तियों को बहुत मदद मिलती है। बैंक के मुख्‍य प्रकाशनों में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया बुलेटिन, बुलेटिन का पूरक विवरण, चलन एवं वित्त पर रिपोर्ट बैंकों की प्रगति का विवरण, सहकारी आंदोलन सांख्यिकी विवरण आदि सम्मि‍लित हैं। 

11. नोट निर्गमन का कार्य

रिजर्व बैंक को प्रारंभ से ही नोट निर्गमन का एकाधिकार है तथा 1956 से देश की विकास की आवश्‍यकताओं को देखते हुए न्‍यूनतम जमा प्रणाली अपनाई गई है। देश में व्‍यापार तथा उद्योग की मात्रा को देखते हुए रिजर्व बैंक ने पत्र मुद्रा का निर्गमन किया है एवं इस क्षेत्र में बैंक सफल रहा है। 

12. बैंकिंग व्‍यवस्‍था के विकास में योगदान 

पिछले दो दशकों में बैंकिंग प्रणाली का काफी विकास हुआ है। वर्तमान में देश में व्‍यापारिक बैंकों की 66,208 शाखायें हैं जबकि 1969 में यह संख्‍या मात्र 8,262 थी। इन शाखाओं में 49 प्रतिशत शाखायें ग्रामीण क्षेत्रों में कार्य कर रही हैं। बैंकिंग के इस विकास में रिजर्व बैंक का काफी योगदान हैं। 

13. बिल बाजार का विकास 

रिजर्व बैंक के प्रयत्‍नों से ही भारत में 1952 में बिल बाजार योजना शुरू हो गयी। इन योजनाओं के प्रारम्भ होने से बिल बाजार में अच्‍छे एवं प्रतिष्ठित बिलों के प्रचलन को प्रोत्‍साहन मिला है। 

रिजर्व बैंक की असफलताएं

रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की असफलताएं निम्नलिखित हैं--

1. मुद्रा प्रसार 

रिजर्व बैंक पर यह आरोप हैं कि वह देश में मुद्रा-प्रसार रोकने में सफल नहीं हुआ है। इसके फलस्‍वरूप देश में वस्‍तुओं के मूल्‍यों में लगातार वृद्धि हो रही है। इससे मुद्रा के मूल्‍य में गिरावट आई है। सामान्‍य जनजीवन अस्‍त-व्‍यस्‍त हो गया है। उपभोक्‍तओं के सामान्‍य जीवनयापन में कठिनाई आई है। निर्यात कम हो गये हैं। विदेशी विनिमय का संकट, वस्‍तुओं का अभाव, संग्रहण की प्रवृत्ति, कालेधन की समस्‍या सभी इससे जुड़ी हुई है। यह सब घाटे की अर्थव्‍यवस्‍था अपनाने, साख नियंत्रण की असफलता एवं त्रुटिपूर्ण मौद्रिक एवं साख नीतियों का परिणाम है। वर्तमान में भारत में मुद्रा स्‍फीति की दर दहाई अंक को पार करने वाली है। 

2. मजबूत बैंकिंग व्‍यवस्‍था का अभाव

रिजर्व बैंक अपने कार्यकाल में भारत की बैंकिंग प्रणाली को यथेष्‍ट मजबूती प्रदान नहीं कर सका। सन् 1949 में भारतीय बैंकिंग अधिनियम लागू कर रिजर्व बैंक को नियंत्रण सम्‍बन्‍धी व्‍यापक अधिकार दिये गये। 1959 तक के वर्षो में ही भारत के 338 बैंक बन्‍द हो गये जिनकी प्रदत्त पूंजी लगभग 7 करोड़ रूपये थी। 1960 में पलाई सेण्‍ट्रल बैंक और लक्ष्‍मी बैंक के बंद होने के पश्‍चात् ही रिजर्व बैंक ने छोटे तथा दुर्बल बैंकों को मिलाकर उन्‍हें बन्‍द होने से बचाने की चेष्‍टा की है। देश में प्रसिद्ध प्रतिभूति घोटाला रिजर्व बैंक की असफलता का प्रतीक था। 2018 में सरकार ने बैंक ऑफ बड़ौदा में देना बैंक को तथा 3 अन्‍य बैंकों के विलय का निर्णय लिया। इस प्रकार इसी वर्ष आईडीबीआई बैंक को एलआईसी को सौंपा। 

3. रूपये के विनिमय मूल्‍य में कमी

रिजर्व बैंक भारतीय रूपये का मूल्‍य स्‍थायी रखने में भी सफल नहीं हुआ है। इसी कारण रूपये का 1949, 1966 तथा 1991 के दो बार अवमूल्‍यन करना पड़ा। इस समय भी अन्‍तर्राष्‍ट्रीय मुद्रा बाजार में रूपये की विनिमय दर बहुत कम हैं। वर्तमान में रूपये का विनिमय मूल्‍य लगातार गिरता ही जा रहा है। 

4. ग्रामीण क्षेत्रों में बैंकिंग सुविधाओं की कमी

रिजर्व बैंक ने निःसंदेह ग्रामीण क्षेत्रों में बैंकिंग शाखाओं के विस्‍तार समाशोधनगृहों की संख्‍या में वृद्धि तथा बैंक कर्मचारियों की शिक्षा और प्रशिक्षण हेतु उपलब्‍ध सुविधाओं में वृद्धि की है। परन्‍तु ये सुविधायें देश की आवश्‍यकताओं को देखते हुए अपर्याप्‍त है। 

5. देशी बैंकर तथा गैर-बैकिंग वित्तीय कम्‍पनियों पर नियंत्रण प्रभावशाली न होना

रिजर्व बैंक देशी बैंकर तथा गैर-बैंकिंग वित्तीय कम्‍पनियों पर नियंत्रण नहीं कर सका जिससे आज भी मुद्रा बाजार में ब्‍याज दरों में एकरूपता नहीं पायी जाती है। आज भी साहूकार मनमाना ब्‍याज वसूल करते है। गैर-बैंकिंग वित्तीय कम्‍पनियां जनता के साथ धोखाधड़ी करती हैं। उसको रोकना बहुत जरूरी है। 

6. औद्योगिक साख की अपर्याप्‍तता 

रिजर्व बैंक ने औद्योगिक साख में उल्‍लेखनीय व्‍यवस्‍थाएं की है। परन्‍तु यह अपर्याप्‍त है। लघु एवं बड़े उद्योगों को आवश्‍यक आर्थिक सहायता प्राप्‍त नहीं होती है। 

7. आर्थिक अंक प्रकाशन में देरी

रिजर्व बैंक द्वारा रिजर्व बैंक बुलेटिन में मुद्रा मूल्‍य, वित्त आदि सम्‍बन्‍धी अनेक प्रकार के अंक समय पर प्रकाशित नहीं किये जाते, जिससे अपेक्षित लाभ नहीं उठाये जा सकते है। 

8. रिजर्व बैंक एवं स्‍वर्ण कोष

रिजर्व बैंक देश के स्‍वर्ण-कोषों का सरंक्षण करने में भी विफल रहा है। स्‍वर्ण की नीलामी तथा स्‍वर्ण भण्‍डारों को विदेशी में गिरवी रखने से देश में ने केवल बहुमूल्‍य स्‍वर्ण कोषों में कमी आई, वरन् जनता के विश्‍वास एवं अन्‍तर्राष्‍ट्रीय प्रतिष्‍ठा में भी कमी आई है। इसको यथावत् बनाये रखने हेतु रिजर्व बैंक ने 1978 में पहली बार स्‍वर्ण की नीलामी की तथा दूसरी बार स्‍वर्ण का विक्रय किया। किन्‍तु फिर भी रिजर्व बैंक मूल्‍य वृद्धि को रोकने, विदेशी विनिमय के घाटे को पूरा करने एवं विदेशी मौद्रिक संस्‍थाओं से ऋण प्राप्‍त करने में नाकामयाब रहा। 

9. अपर्याप्‍त बैंकिंग सुविधायें

यद्यपि रिजर्व बैंक की स्‍थापना को छः दशक गुजर गये है, तथापि वह देश में बैंकिंग सुविधाओं का सन्‍तुलित विकास करने में असफल रहा है। वर्तमान में देश में 11 हजार व्‍यक्तियों के पीछे बैंक की केवल एक शाखा कार्यरत है। देश में बड़े व्‍यापारिक बैंकों को राष्‍ट्रीयकरण तथा स्‍टेट बैंक की स्‍थापना के बाद देश में बैंकिंग व्‍यवस्‍था में पर्याप्‍त सुधार हुआ है। लेकिन बढ़ती हुई जनसंख्‍या को देखते हुए यह प्रयास पर्याप्‍त नहीं है। 

10. ब्‍याज दरों की असमानता 

रिजर्व बैंक का प्रभावी नियंत्रण न होने के कारण देश में ब्‍याज दरों में भिन्‍नता पाई जाती है। यद्यपि रिजर्व बैंक जमाओं की ब्‍याज दर का एकरूपता में सफल हुआ है, किन्‍तु ऋणों की ब्‍याज दरों में एकरूपता लाने में असफल सिद्ध हुआ है। 

12. अपर्याप्‍त कृषि साख 

यद्यपि रिजर्व बैंक ने कृषि साख की व्‍यवस्‍था हेतु प्रशंसनीय कार्य है, किन्‍तु भारत जैसे विशाल कृषि-प्रधान देश के लिए यह अपर्याप्‍त है। आज भी कृषि साख सम्‍बन्‍धी आवश्‍यकताओं की पूर्ति नहीं हो पाती है। कृषक आज भी इन आवश्‍यकताओं की पूर्ति हेतु साहूकारों, महाजनों व देशी बैंकरों पर निर्भर है। 

13. प्रतिभूति घोटाले में व्‍यावसायिक बैंकों की भूमिका पर नियंत्रण में असफल 

रिजर्व बैंक शेयर दलालों द्वारा मिलकर किये गये 5,000 करोड़ रूपये के प्रतिभूति घोटाले को प्रारम्‍भ में ही नियंत्रण करने में असफल रहा है। 

ऊपर दिये गये विवरण से यह स्‍पष्‍ट है कि रिजर्व बैंक देश की अर्थव्‍यवस्‍था, मौद्रिक नियंत्रण मुद्रा-स्‍फीति, बैंकों के अवांछित कार्यकलापों, विदेशी बैंकों पर नियंत्रण, संग्रहण की प्रवृत्ति जमाखोरी, कालेधन की समस्‍या, कृषि एवं औद्योगिक वित्त, बहुमूल्‍य कोषों के सरंक्षण इत्‍यादि पर प्रभावी नियंत्रण स्‍थापित करने में आंशिक रूप में सफल हुआ है।

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