भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन की विशेषताएं
भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं--
1. लम्बी अवधि
वैसे तो भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन का प्रारम्भ 18वीं सदी के मध्य में ही हो गया था, फिर भी 1857 ई. में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम शुरू हुआ और 1885 ई. में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना के साथ आंदोलन का जो रूप उपस्थित हुआ, उनकी समाप्ति 15 अगस्त 1947 को हुई।
2. शांति पूर्ण तथा क्रान्तिकारी
भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन में मुख्यतः शांतिपूर्ण तरीकों को ही अपनाया गया जिसका नेतृत्व महात्मा गांधी ने किया। सत्य, अहिंसा और सत्याग्रह के द्वारा उन्होंने भारत की स्वतंत्रता प्राप्त की। लेकिन इसका यह अर्थ नही कि भारतीयों ने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान अतिवादी तथा क्रांतिकारी तरीकों का प्रयोग नहीं किया क्रांतिकारी साधनों का भी प्रयोग किया गया।
3. सांविधानिक विकास
भारत में राष्ट्रीय आन्दोलन और सांविधानिक विकास साथ-साथ चलते रहे। 1861, 1892, 1909, 1919 तथा 1935 ई. के भारतीय परिषद् अधिनियमों तथा भारत शासन अधिनियमों को पारित कर उत्तरदायी शासन की नींव डाली गई। पुनः 1942 ई. में 'भारत छोड़ो' आन्दोलन हुआ, जिसके परिणामस्वरूप 1947 ई. में भारत स्वतंत्रता अधिनियम के तहत भारत में विदेशी सत्ता की समाप्ति हुई।
4. सामाजिक तथा आर्थिक
आन्दोलन भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन का रूप सिर्फ राजनीतिक नहीं था। इस आन्दोलन के सामाजिक तथा आर्थिक पक्ष भी थे। महात्मा गाँधी ने सामाजिक कुरीतियों तथा आर्थिक दुर्बलताओं के विरूद्ध भी अभियान चलाया और राजनीतिक कार्यक्रम के साथ-साथ सामाजिक तथा आर्थिक कार्यक्रम को भी रखा। आर्थिक तथा सामाजिक त्रुटियों को दूर करना भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन का एक प्रमुख अंग बना रहा।
5. विश्वव्यापी प्रभाव
भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन का विश्वव्यापी प्रभाव पड़ा। इसमें प्रभावित होकर बर्मा, इंडोनेशिया एवं अफ्रीकी राष्ट्रों ने स्वतंत्रता की लड़ाई प्रारम्भ कर दी।
6. जन-आन्दोलन
भारत का राष्ट्रीय आन्दोलन प्रारम्भ में बुद्धिजीवियों द्वारा चलाया गया, लेकिन बाद में इसने जन-आंदोलन का रूप धारण कर किसानों और मजदूरों को भी अपने में शामिल कर लिया। उदाहरण के लिए 1858-62 के वर्षों में पूर्वी बंगाल का 'नील विद्रोह' उत्तरी तथा उत्तर-पश्चिमी भारत में जन-अशान्ति, महाराष्ट्र के किसान आंदोलन आदि को लिया जा सकता है। बाद में महात्मा गाँधी के असहयोग आंदोलन, सत्याग्रह आन्दोलन तथा 'भारत छोड़ो' आन्दोलन ने भारतीय जनता को आकर्षित किया।
7. धार्मिक आन्दोलन
भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन में धर्म सुधार आन्दोलनों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। स्वामी दयानंद सरस्वती, रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद तथा एनी बेसेंट आदि महर्षि धर्मसुधार आंदोलनकर्ताओं के रूप में छुपे हुए राष्ट्रवादी थे।
स्वामी दयानन्द ने कहा था, " स्वदेशी राज्य विदेशी राज्य से श्रेष्ठ होता है।"
8. आन्दोलन का राष्ट्रीय स्वरूप
भारत के राष्ट्रीय आंदोलन में हिन्दू, मुसलमान, सिक्ख, बौद्ध तथा पारसी भी शामिल थे। औरतों ने इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। किसानों तथा मजदूर संघों ने ब्रिटिश शासन का विरोध किया। छात्रों ने आंदोलन को सफल करने के लिए अपनी जान की बाजी लगा दी। लंदन टाइम्स के विशेष प्रतिनिधि सर विलियम हावर्ड रसल, जो 1857 ई. की क्रान्ति के समय मौजूद थे, लिखते है, " वह एक ऐसा युद्ध था जिसमें लोग अपने धर्म के नाम पर अपनी कौम के नाम पर बदला लेने के लिए और अपनी आशाओं को पूरा करने के लिए उठे थे। उस युद्ध में समूचे राष्ट्र ने अपने ऊपर से विदेशियों के जुए को फेंककर उसकी जगह देशी नरेशों की पूरी सत्ता और देशी धर्मों का पूरा अधिकार फिर से कायम करने का संकल्प कर लिया था।"
9. राष्ट्रीय आंदोलन का संदेहात्मक स्वरूप
बहुत से लोगों का विचार है कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को राष्ट्रीय आंदोलन की संज्ञा नहीं दी जा सकती, क्योंकि संपूर्ण भारत कभी एक राष्ट्र नहीं रहा और उसमें मौलिक एकता का हमेशा अभाव रहा।
सर जॉन सीले ने कहा है, " यह विचार कि भारत एक राष्ट्र है, एक गंभीर भूल पर आधारित है जिसे राजनीति विज्ञान दूर करता है। यह एक राष्ट्र एवं एक भाषा का निर्माण नहीं करता, बल्कि इससे अनेक राष्ट्रों और भाषाओं का बोध होता है।"
जॉन स्ट्रेची ने भी ऐसा विचार दिया है," भारत वर्ष न एक है, न कभी एक था और न इसमें किसी प्रकार का भौगोलिक, राजनीतिक, सामाजिक अथवा धार्मिक एकता ही थी।"
परन्तु, जॉन स्ट्रेची और जॉन सीले का यह आरोप कि भारत कभी एक राष्ट्र नहीं रहा है, तथ्यहीन है। प्रारम्भ से ही धार्मिक तथा सांस्कृतिक एकता भारत की पहचान रही है।
आर. सी. मजुमदार ने कहा हैं, " यह कहना गलत होगा कि भारत की मौलिक एकता आधुनिक घटनाओं का परिणाम है और यह प्राचीन भारत में विद्यमान नहीं थी। भारत की मौलिक एकता इसी बात से स्पष्ट हो जाती है कि समस्त देश का नाम भारत वर्ष या भारत की भूमि है।
संदर्भ; माध्यमिक शिक्षा बोर्ड राजस्थान, अमेर
लेखगण
डॉ. मधुमुकुल चतुर्वेदी, विभागाध्यक्ष राजनीति विज्ञान शहीद कैप्टन रिपुदमनसिंह राजकीय महाविद्यालय, सवाईमाधोपुर
डॉ. मनोज बहरवाल, सह आचार्य (राजनीति विज्ञान) सम्राट पृथ्वीराज चौहान राजकीय महाविद्यालय, अजमेर
भवशेखर, सहायक आचार्य (राजनीति विज्ञान) राजकीय मीरा कन्या महाविद्याल, उदयपुर
प्रवीण कौशिक, प्रधानाचार्य राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय खरवालिया जिला नागौर
सुनील चतुर्वेदी, प्राचार्य मास्टर आदित्येन्द्र राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय भरतपुर
गोपाललाल अग्रवाल, प्रधानाचार्य राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय रेल्वे स्टेशन, दौसा।
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