10/11/2021

स्वप्न का अर्थ, परिभाषा, विशेषताएं, प्रकार

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निद्रा और स्वप्न देखना का अर्थ (swapan kya hai)

swapan arth paribhasha visheshta prakar;व्यक्ति जब निद्रा की अवस्था में होता हैं तब उसका शरीर निष्क्रिय रहता हैं फिर भी उसे विचित्र अनुभव होते हैं वह अपने आप को कभी किसी शहर में पाता है तो कभी घने जंगलों या पहाड़ों पर अथवा नदी में तैरता हुआ आदि अवस्थाओं में पाता हैं। इस अवस्था में व्यक्ति इन अनुभूतियों से सुखी अथवा दुखी भी होता हैं। प्राचीन काल में व्यक्ति के निद्रा अवस्था में हुई इस प्रकार की अनुभूतियों को दैविक शक्तियों की देन स्वीकार किया जाता था। अतः उसके अनुसार व्यक्ति के दैनिक जीवन से कोई संबंध नही माना जाता था। किन्तु आधुनिक काल में स्थिति इसके बिल्कुल विपरीत मानी जाती है। अनेक प्रकार के मनोवैज्ञानिक परीक्षणों के आधार पर आधुनिक समय में स्वप्नों को व्यक्ति के दैनिक जीवन से संबंधित माना गया हैं। आधुनिक युग में मनोविज्ञान ने स्वप्नों के क्षेत्र में अनेक प्रकार के अध्ययन करके कुछ निष्कर्ष प्राप्त किये हैं जिनको स्वप्न-सिद्धांत के रूप में प्रतिपादित किया हैं। 

स्वप्न की परिभाषा (swapan ki paribhasha)

स्वप्न के स्वरूप को स्पष्ट करने के लिये विभिन्न मनोवैज्ञानिकों की कुछ मुख्य परिभाषाएं निम्नलिखित हैं-- 

आइजनेक तथा उनके साथियों के अनुसार," स्वप्न निद्रा अवस्था के अनुभव हैं जो व्यक्ति के कल्पनात्मक जीवन का एक आंशिक प्रकार हैं।" 

जेम्स के अनुसार," स्वप्न विभ्रमात्मक अनुभवों की वह गाड़ी हैं, जिसमें कुछ मात्रा में सामंजस्य स्वभाव पाया जाता हैं, लेकिन बहुधा स्वप्न अस्पष्ट होते हैं और या तो निद्रा अवस्था में होते हैं अथवा समान परिस्थितियों में होते हैं।" 

फ्राॅयड के अनुसार," स्वप्न वह प्रक्रिया हैं जिसके द्वारा अचेतन मन की इच्छायें चेतन मन में बदले हुए रूप में प्रवेश करती हैं।" 

ब्राउन के अनुसार," स्वप्न वह विभ्रम हैं जिसका अनुभव हम सबको प्रति रात्री होता हैं और जब जागते हैं तो विभ्रमित स्वरूप हमें स्पष्ट हो जाता हैं।" 

उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर यह कहा जा सकता हैं कि मनोवैज्ञानिकों के अनुसार स्वप्न का संबंध मानव के दैनिक जीवन के अनुभवों से होता हैं। व्यक्ति की कुछ इच्छायें एवं अनुभव दमित रूप में व्यक्ति के अचेतन मन में संग्रहीत होते हैं जो निद्रा अवस्था में जागृत हो जाते हैं। 

उपरोक्त परिभाषाओं में वर्णित इस तथ्य को स्पष्ट कर देना भी आवश्यक है कि स्वप्न की क्रिया के विषय में मनोवैज्ञानिकों के विचारों में भेद हैं। कुछ मनोवैज्ञानिकों ने स्वप्न को एक प्रकार का विभ्रम कहकर परिभाषित किया हैं जबकि फ्रायड ने इसे एक प्रक्रिया कहा हैं। किन्तु इतना होने पर भी सभी मनोवैज्ञानिकों ने स्वप्न में इस सामान्य तथ्य को स्वीकार किया हैं कि स्वप्न दैनिक जीवन के अनुभवों का असामंजस्य पूर्ण एवं विभ्रमात्मक चित्रण होता हैं जो व्यक्ति की निद्रा अवस्था के समाप्त होने पर ज्ञात होता हैं। इस प्रकार स्वप्न में व्यक्ति की वह समस्त इच्छायें, भावनायें और व्यवहार जो दमित होती हैं अथवा अचेतन में संग्रहित होती हैं, असामंजस्य एवं अस्पष्ट रूप से चेतन स्तर पर आ जाती हैं।

स्वप्न की विशेषताएं (swapan ki visheshta)

स्वप्न की उपर्युक्त परिभाषाओं एवं स्वप्न सम्बन्धी मनोवैज्ञानिकों की धारणाओं के आधार पर यह कहा जा सकता है कि स्वप्न में निम्न विशेषतायें होती हैं--

 1. स्वप्न सार्थक होते हैं (Dreams are Meaningful) 

इस दिशा में किये गये अध्ययनों में यह देखा गया है कि व्यक्ति जिन इच्छाओं की सामाजिक मर्यादाओं की जागृत में अवस्था में पूर्ति नहीं कर सकता उनकी स्वप्न अवस्था में पूर्ति कर लेता है। उदाहरणार्थ एक बच्ची ने स्वप्न देखा कि उसकी मौसी मर गई है। जब उस बालिका के इस स्वप्न का विश्लेषण किया गया तब पता चला कि उसकी मौसी (सौतेली माँ) उसे बहुत पीटती थी जिससे वह उससे बहुत आतंकित थी और इसी कारण उसने स्वप्न में उसे मरा हुआ देखा है। इस प्रकार स्वप्न में व्यक्ति जीवन की समस्याओं और अनुभवों में रहता है अर्थात् स्वप्न सार्थक होते हैं। 

2. स्वप्न विभ्रमात्मक होते हैं 

स्वप्न को विभ्रमात्मक इसलिये कहा जाता है क्योंकि स्वप्न में भी विभ्रम की भाँति बिना किसी भौतिक उद्दीपक स्वप्न रूप में प्रत्यक्षीकरण होता है। दूसरे दोनों ही स्थितियों में दिखाई पड़ने वाले उद्दीपक को वास्तविक समझा जाता है तथा स्थिति से निकलने पर वह विभ्रमात्मक अथवा स्वप्न रूप समाप्त हो जाता है। 

3. स्वप्न प्रतीकात्मक होते हैं (Dreams are Symbolical)

व्यक्ति जो भी स्वप्न देखता है वे या तो दैनिक जीवन के अनुभव से सम्बन्धित होते हैं या फिर दमित इच्छाओं से सम्बन्धित होते हैं। ये दोनों ही प्रकार के स्वप्न प्रतीकात्मकतापूर्ण होते हैं। इतना अवश्य है कि दैनिक जीवन से सम्बन्धित स्वप्न में प्रतीकात्मकता की मात्रा कम होती है जबकि मित इच्छाओं से सम्बन्धित स्वप्न में प्रतीकात्मकता को मात्रा अधिक होती है। उदाहरणार्थ-- यदि व्यक्ति स्वप्न में  राजा-रानी देखता है तो वे उसके माता-पिता या संरक्षक के प्रतीक होते हैं और यदि राजकुमार या राजकुमारी का स्वप्न देखता है तब वे स्वप्न दृष्टा के स्वयं के प्रतीक होते हैं।

4. स्वप्न में इच्छा पूर्ति का प्रयास रहता है (Dreams are Attempted Wishingfulment) 

इस दिशा में किये गये अध्ययनों में यह देखा गया है कि प्रायः स्वप्न इच्छापूर्ति के साधन होते हैं। स्वप्न की इस विशेषता का सर्वप्रथम फ्रायड ने अपने अध्ययनों में पता लगाया। उन्होंने यह भी सिद्ध करने का प्रयास किया कि केवल सुखात्मक ही नहीं वरन् दुखात्मक स्वप्न भी इच्छापूर्ति के साधन होते हैं क्योंकि इनके द्वारा भी व्यक्ति का अन्तर्द्वन्द्व कम होता है जिससे व्यक्ति को सन्तुष्टि का अनुभव होता है। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि स्वप्न में व्यक्ति की अतृप्त इच्छायें रूप बदलकर अर्थात् अपने को थोड़ा सा परिवर्तित कर के सामने आती हैं और स्वप्न द्वारा उन अतृप्त इच्छाओं की पूर्ति होती है। 

5. स्वप्न का अचेतन मन से सम्बन्ध होता है (Dreams are Related to Unconscious)

जो स्वप्न दमित इच्छाओं से सम्बन्धित होते हैं उनका अचेतन मन से सम्बन्ध होता है क्योंकि दमित इच्छायें अचेतन मन में ही रहती हैं किन्तु वहाँ भी वे निष्क्रिय न रहकर स्वप्नावस्था में रूप बदल कर प्रकट होती हैं जिससे उनकी सन्तुष्टि होती है। 

6. स्वप्न आत्मगत एवं आत्म केन्द्रित होते हैं (Dreams are Subjective and Centripted) 

व्यक्ति जो भी स्वप्न देखता है उन सबका सम्बन्ध उसके स्वयं के अनु से होता है तथा स्वप्नदृष्टा कभी भी कोई भी स्वप्न ऐसा नहीं देखता जिसका सम्बन्ध उसके अपने व्यक्तिगत अनुभव न होकर दूसरे के अनुभव से हो। दूसरे शब्दों में स्वप्न आत्मगत होते हैं। इसके अतिरिक्त स्वप्न में जो पात्र दिखाई देते हैं या फिर अनुभव होते हैं उन सबका अर्थ केवल स्वप्नदृष्टा से सम्बन्धित होता है और इसके अतिरिक्त किसी अन्य से उसका कोई सम्बन्ध नहीं होता। इस प्रकार स्वप्नों का केन्द्र स्वप्नदृष्टा होता है अथवा स्वप्न आत्मकेन्द्रित होते हैं। 

7. स्वप्न निर्माण दृश्यात्मक प्रतिभाओं से होता है (Dreams are Made of Visual-Images)  

व्यक्ति को स्वप्न में विचार और इच्छायें सदैव दृश्य रूप में ही दिखाई देते हैं। देती हैं। स्वप्न में एक विशेष प्रकार की पृष्ठभूमि में कुछ पात्र, कुछ न कुछ करते हुए दिखाई देते हैं। 

8. स्वप्न की अन्य विशेषतायें 

स्वप्न की अन्य विशेषतायें निम्नलिखित हैं-- 

(अ) सामंजस्यपूर्ण स्वभाव,

(ब) अस्पष्टता का होना, 

(स) प्रायः निद्रावस्था में दिखाई देना, (द) स्वप्न रंगीन व काले-सफेद दोनों रूपों में दिखाई पड़ते हैं।

स्वप्न के प्रकार (swapan ke prakar)

स्वप्न की परिभाषा से यह स्पष्ट है कि स्वप्नों का संबंध व्यक्ति के दैनिक अनुभवों से होता हैं। व्यक्ति के दैनिक अनुभवों में विचित्रता एवं विविधता पाई जाती हैं जिसके कारण स्वप्नों में भी विविधता पाई जाती हैं। इस कारण स्वप्नों को सीमित वर्गीकरण में विभाजित करना एक दुर्लभ कार्य हैं किन्तु फिर भी अध्ययन की दृष्टि से तथा स्वप्नों के सामान्यीकरण के आधार पर स्वप्नों को निम्न वर्गों में विभाजित किया गये हैं-- 

1. पुनरावर्तक स्वप्न 

जो स्वप्न व्यक्ति को बार-बार दिखाई देते हैं वे पुनरावर्तक स्वप्न होते हैं। 

2. लकवा मारने सम्बन्धी स्वप्न 

व्यक्ति को कुछ स्वप्न ऐसे आते हैं जिनमें वह अपने शरीर के किसी अंग को लकवा मारा हुआ अनुभव करता है। ऐसे स्वप्न लकवा मारने सम्बन्धी स्वप्न होते हैं। 

3. गति स्वप्न 

व्यक्ति को कुछ सपने इस प्रकार के भी आते हैं कि वह अपने आपको दौड़ता हुआ, चलता हुआ अनुभव करता है। इस प्रकार के स्वप्न गति स्वप्न होते हैं। 

4. सामूहिक स्वप्न

कभी-कभी ऐसा भी पाया जाता है कि एक ही स्वप्न अनेक व्यक्तियों को एक ही समय में आता है। इस प्रकार के समान भावना, समान अभिवृत्ति तथा समान अनुभवों के स्वप्नों को सामूहिक स्वप्न कहते हैं। 

5. मृत व्यक्तियों के स्वप्न

कभी-कभी व्यक्ति स्वप्न में अपने किसी परिचित दिवंगत व्यक्ति को देखता है ऐसे स्वप्न मृत व्यक्ति के स्वप्न कहलाते हैं। 

6. भविष्य स्वप्न 

जिन स्वप्नों में व्यक्ति अपने गत अनुभवों के आधार पर भविष्य की घटना को देखता है जैसे-- अपने पुत्र की कहीं बाहर से आने की प्रतीक्षा करने वाली माँ देखती है कि उसका पुत्र आ गया है जो भविष्य में आने वाला होता है। 

7. दण्ड स्वप्न 

जिन स्वप्नों में व्यक्ति अपने आपको दण्डित होता हुआ देखता है उन्हें दण्ड स्वप्न कहते हैं। 

8. प्रतिरोध स्वप्न

जिन स्वप्नों में व्यक्ति सामाजिक नियमों, अपने दुश्मनों तथा अन्य किसी का विरोध करता है उन्हें प्रतिरोध स्वप्न कहते हैं। 

9. चिन्ता स्वप्न 

जिन स्वप्नों से स्वप्न दृष्टा की किसी न किसी प्रकार की चिन्ता व्यक्त होती है वे चिन्ता स्वप्न होते हैं  

10. इच्छापूर्ति स्वप्न 

जिन सवप्नों में मनुष्य की किसी न किसी इच्छा की पूर्ति होती है। वे स्वप्न इच्छापूर्ति से सम्बन्धित स्वप्न कहे जाते हैं। कुछ मनोवैज्ञानिकों का इस सम्बन्ध में यह विचार है कि प्रत्येक स्वप्न में मनुष्य की किसी न किसी इच्छा की पूर्ति होती है। अतः सभी स्वप्न इच्छापूर्ति स्वप्न कहलाते हैं किन्तु ऐसा यथार्थ में नहीं है। अनेक स्वप्नों में व्यक्ति अपनी इच्छापूर्ति के लिये अपने आपको भटकता हुआ भी अनुभव करता है किन्तु यह भी सत्य है कि कुछ स्वप्न मनुष्य की इच्छा पूर्ति से सम्बन्धित नहीं होते हैं।

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