चित्रकला अथवा रूपप्रद कला का अर्थ
रूपप्रद का शाब्दिक अर्थ है-- रूप प्रदान करने वाला यानि की ऐसी कलायें जिनमें किसी पदार्थ को इस प्रकार का रूप दे दिया जाये जिससे पदार्थ अपना अस्तित्व खोकर अन्य रूप में ही समाहित हो जाये। जैसे मिट्टी से मानवाकृति बनाने पर मिट्टी का अस्तित्व मानवकृति में विलीनी हो जाता हैं। परन्तु प्लास्टीसिटी एक गुण हैं जिसका अर्थ पदार्थ का रूप ग्रहण करने की क्षमता हैं। अतः चित्रकला जिसमें रंग विभिन्न रूप ग्रहण करते हैं तथा मूर्तिकला जिनमें मिट्टी, प्लास्टर, लकड़ी आदि विभिन्न रूप ग्रहण करते हैं, प्लास्टिक अथवा रूपप्रद कलायें मानी जाती हैं।
मानव ने सबसे पहले अभिव्यक्ति के माध्यम के रूप में चित्रकला को ही चुना। गुफाओं, चट्टानों आदि में प्राप्त मानव द्वारा निर्मित चित्र इस सत्य का प्रमाण हैं।
प्राचीन युगों में भित्ति-चित्रण की परम्परा अधिक प्रचलित थी अतः चित्रकला को वास्तुकला का ही अंग समझा जाता था, किन्तु चित्रपट, चित्र-पट्ट, चित्रफलत एवं कुण्डलित चित्रों (Scrolls) के प्रचलन से यह भी एक स्वतंत्र कला के रूप में विकसित हुई हैं। चित्र में समतल आधार पर रूप और रंगों के द्वारा भाव तथा विचार प्रकट किये जाते हैं। यह माध्यम काव्य तथा संगीत की अपेक्षा स्थूल हैं किन्तु मूर्ति और भवन की तुलना में सूक्ष्म हैं। आकृतियों के अतिरिक्त चित्र में पृष्ठभूमि का प्राकृतिक विस्तार एवं भवनों आदि का भी अंकन किया जा सकता हैं। मूर्ति तथा भवन से इसका माध्यम अधिक विकसित हैं अतः इसमें अभिव्यंजना इनकी अपेक्षा अधिक स्पष्ट होती हैं।
thankyu so much sirr
जवाब देंहटाएं