bhai dooj ki kahani;भाई दूज को यम द्वितीया के नाम से भी जाना जाता हैं। ऐसी मान्यता हैं कि बहिन के घर भोजन करने से भाई को अकाल मृत्यु का भय नहीं होता। इस दिन मृत्यु के देवता यमराज और उनकी बहन यमुना के पूजन (Yamraj and Yamina Pujan) का विधान है।
रक्षाबंधन के त्योहार की ही तरह इस दिन भी बहनें अपने भाई को तिलक कर उसकी लंबी आयु की कामना करती हैं। इस दिन सभी भाई अपनी बहनों के घर जाकर भोजन करते हैं और बहनें अपने भाईयों को तिलक करती हैं। बहनें अपनी भाई को तिलक करतें समय अपने भाई की लम्बी आयु की कामना करती हैं, और भाई रक्षाबंधन की तरह ही अपनी बहन को कोई गिफ्ट या पैंसे देकर अपनी बहन के प्रति अपना प्यार जातते हैं।भाई दूज की कहानी या कथा
भगवान सूर्यदेव की पत्नी का नाम छाया था। उनकी कोख से यमराज तथा यमुना का का जन्म हुआ। यमुना अपने भाई यमराज से बड़ा स्नेह करती थीं। वह उनसें बराबर निवेदन करती कि वह उनके घर आकर भोजन करें किन्तु यमराज अपने काम में व्यस्त रहने के कारण अपनी बहिन यमुना की बात को टाल दिया करते थें। कार्तिक शुक्ल द्वितीया को यमुना ने अपने भाई यमराज को भोजन करने के लिए बुलाया।
अपनी बहिन यमुना के घर आते समय यमराज ने नरक में निवास करने वाले जीवों को मुक्त कर दिया। अपने भाई को अपने घर आते देख यमुना हर्ष-विभोर होकर अपने भाई यमराज का स्वागत-सत्कार किया तथा भोजन करवाया। इससे प्रसन्न होकर यमराज ने बहिन से वर माँगने को कहा। बहिन ने अपने भाई यमराज से कहा," आप प्रतिवर्ष इस दिन मेरे यहाँ भोजन करने आया करेंगे तथा इस दिन जो भी बहिन अपने भाई को टीका करके भोजन खिलाए उसे आपका भय नहें।"
यमराज 'तथास्तु' कहकर यमुना को अमूल्य वस्त्राभूषण देकर यमपूरी को चले गए।
ऐसी मान्यता हैं कि जो भाई आज के दिन यमुना में स्नान करके पूरी श्रद्धा से बहिनों के आतिथ्य को स्वीकार करते हैं उन्हें यम का भय नहीं रहता।
यह पर्व कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीया को मनाते हैं। इसमें यम और उसकी बहन यमुना की कहानी कही जाती हैं। इसमें स्त्रियाँ दीवारों पर अलंकरण करती हैं जिसमें यह-यमी, सगुन चिरैया, यमुना, गाय, बैल, साँप, बिच्छु, बाघ, भाई-बहन, सूर्य-चाँद, शिव-पार्वती, कलश, दीपक, सतिया, कुम्हारा का आवा, कमल आदि बनते हैं।
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