व्याख्या का अर्थ एवं परिभाषा
शिक्षक जब विषयवस्तु से संबंधित तथ्य, नियम या संकल्पनायें पढ़ाता है तो उन्हें सरलतम रूप से प्रस्तुत करने का प्रयास करता है जिससे छात्र उसे समझ सकें। यदि शिक्षक इन तथ्यों व नियमों को यथावत प्रस्तुत करें तो संभव है कि छात्र उसे समझ ही न पायें। आइये एक उदाहरण द्वारा इसे स्पष्ट करने का प्रयास करें। शिक्षक छात्रों को सूर्यग्रहण के बारें में पढ़ाना चाहता है। संक्षिप्त मे यदि शिक्षक बतायें कि जब सूर्य और पृथ्वी के बीच चन्द्रमा आ जाता है तो पृथ्वी से सूर्य का वह भाग दिखायी नही देता जो चन्द्रमा के पीछे है। यही सूर्यग्रहण है। इस प्रकार छात्र सूर्यग्रहण की संकल्पना या घटना को नही समझ सकेंगे। शिक्षक को यह बताना आवश्यक है कि सूर्यग्रहण क्यों होता है? कब होता है? कैसे होता है? अब सोचिये इन प्रश्नों के उत्तर देने हेतु या सूर्यग्रहण की घटना को समझाने हेतु शिक्षक क्या करता है?
सबसे पहले शिक्षक घटना से संबंधित सभी तथ्य, नियम एकत्रित करता है। उनको क्रमबद्ध रूप के कथन में संगठित करता है। कथनों मे आपसी संबंध निर्धारित करता है जिससे उन्हें धाराप्रवाह रूप से छात्रों के समक्ष रखा जा सके। तत्पश्चात वह सूर्यग्रहण से संबंधित विचार छात्रों के समक्ष रखता है। इस पूर्ण प्रक्रिया को ही व्याख्या कहते है।
प्रायः शिक्षक किसी तथ्य, सिद्धांत एवम् संकल्पना को समझाता है जिससे छात्रों के मन में उत्पन्न जिज्ञासा से संबंधित प्रश्न कहाँ, कब, कैसे, क्यों का समाधान होता है। इस संपूर्ण प्रक्रिया को करने हेतु शिक्षक जो व्यवहार करता है उसे व्याख्या कहते हैं।
व्याख्या को निम्न प्रकार से परिभाषित किया जा सकता है--, " किसी घटना, संप्रत्यय, सिद्धांत या तथ्य को, किसी व्यक्ति को समझाने की दृष्टि से कई परस्पर संबंधित कथनों का प्रयोग करना पड़ता है, यही व्याख्या है।"
सामान्यतया क्यों? और कैसे? से संबंधित प्रश्नों का उत्तर देने हेतु व्याख्या की आवश्यकता होती है। कई बार व्याख्या वर्णनात्मक होती है। उदाहरणार्थ बेरोजगारी के क्या कारण है? यहाँ व्याख्या वर्णनात्मक होगी। कभी-कभी व्याख्या तर्क आधारित होती है। उदाहरणार्थ जैसे-- चन्द्रगहण पूर्णिमा के दिन ही क्यों होता है? कभी-कभी व्याख्या गूढ़ विषय को सरल बनाने हेतु की जाती है। यह युक्तिसंगत होती है जैसा आपने साधु सन्तों के प्रवचनों में सुना होगा। उदाहरणा जैसे-- धर्म क्या है? क्या कर्मयोग ही धर्म है? इत्यादि।
परन्तु व्याख्या का उद्देश्य है विषयवस्तु की गूढ़ता समाप्त कर उसे सरल बोधगम्य बनाना जिससे व्यक्ति उसे आसानी से समझ सकें। शिक्षण कार्य बिना व्यक्ति उसे आसानी से समझ सकें। शिक्षण कार्य बिना व्याख्या के असंभव है। शिक्षण में शिक्षक का अधिकांश समय व्याख्या में व्यतीत होता है।
आपने ध्यान दिया होगा कि भिन्न-भिन्न व्यक्ति एक ही घटना की व्याख्या भिन्न-भिन्न प्रकार से करते है। प्रत्येक व्यक्ति की व्याख्या करने की योग्यता भी अलग-अलग होती है। यही कारण है कि एक ही घटना को भिन्न-भिन्न शिक्षक भिन्न-भिन्न प्रकार से समझाते हैं।
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