6/09/2021

मानव भूगोल की शाखाएं

By:   Last Updated: in: ,

मानव भूगोल की शाखाएं 

प्रो. राॅक्सबी ने मानव भूगोल का क्षेत्र निर्धारण करते हुए मानव भूगोल को निम्न शाखाओं मे विभाजित किया है--

1. आर्थिक भूगोल

आर्थिक भूगोल, मानव भूगोल की ही एक शाखा है, जिसका मुख्य संबंध मनुष्य के भोजन, विश्राम, कपड़े और आराम की आवश्यकताएं पूरी करने के लिए मनुष्य द्वारा किए गए उत्पादक प्रयत्नों से ही है। पृथ्वी के धरातल, प्राकृतिक साधन का 'क्यों' कैसे? और कहाँ उपयोग होता है इसका विश्लेषणात्मक अध्ययन ही आर्थिक भूगोल का मूल मंत्र है। विश्व के भिन्न-भिन्न जीविकोपार्जन के साधनों-लकड़ी काटना, मछली पकड़ना, शिकार करना, खेती करना, भोज्य पदार्थ एकत्रित करना, खानें खोदना, उद्योग-धंधे करना, व्यापार करना और नौकरी आदि व्यवसाय मे व्यस्त रहता है। 

यह भी पढ़ें; मानव भूगोल अर्थ, परिभाषा, प्रकृति, उद्देश्य

उसके इन आर्थिक प्रयत्नों पर मिट्टी, भूमि की बनावट, जलवायु, वनस्पति, खनिज संसाधन, भौगोलिक स्थिति, यातायात की सुविधा, जनसंख्या का घनत्व आदि वातावरण के विभिन्न अंगो का प्रभाव पड़ता है। एक आर्थिक भूगोलवेत्ता का मुख्य उद्देश्य प्रयत्नों पर पड़ने वाले इन वातावरण के प्रभाव का मूल्यांकन कर उसका विश्लेषण करना है।

2. सामाजिक भूगोल 

सामाजिक भूगोल का उद्देश्य यह बताता है कि मानव समाज चाहे वह परम्परागत, ग्रामीण और शहरी हो तो भी उसके परिस्थिति विज्ञान के बीच एक घनिष्ठ संबंध है। मानव अपने विशिष्ट भौगोलिक वातावरण के बीच स्थान, भोजन और आश्रय तथा प्राकृतिक साधनों पर नियंत्रण करने हेतु निरंतर द्वन्द्व करता रहता है। उसके इस द्वन्द की प्रकृति और वातावरण का चरित्र ही समाज के मुख्य पहलुओं और लक्षणों को निर्धारित करते है। हम चाहे कनाड़ा के जंगलों मे लकड़हारा समुदाय, मलेशिया के रबड़ के खेती मे काम करने वाले मजदूरों, लंकाशायर की कीयलें की खानों मे काम करने वाले श्रमिकों, मेक्सिकों के उच्च प्रदेश मे पशु चराने वाले घुमक्कड़ पशुपालनों तथा हंगरी के मैदान मे खेती करने वाले कृषकों आदि किसी के बारे मे छानबीन करे तो उनकी क्रियाओं पर भौगोलिक छाप स्पष्ट रूप से दृष्टिकोण होगी। उसके सामाजिक व्यवस्था और सामाजिक जीवन का ताना-बाना उनके अपने वातावरण से संबंधित ही मिलेगा। 

3. राजनीतिक भूगोल 

राजनीतिक भूगोल का मूल उद्देश्य विभिन्न राज्यों की प्रकृति, उनकी व्यवस्था और उनके आपसी संबंधों पर गिरने वाले भौगोलिक अवस्था में प्रभावों की खोज करना है। राजनीतिक भूगोल का स्थान सांस्कृतिक विज्ञान के क्षेत्र मे (जो कि मानव का अध्ययन करता है) अत्यधिक महत्वपूर्ण हो गया है। अब यह निश्चित मान्यता है कि एक देश का विस्तार, प्राकृतिक दशा, नैसर्गिक संसाधन, मिट्टी की उर्वरता, आबादी का घनत्व और उससे प्रजातियों का स्थान तथा उसका निकटवर्ती राजनीतिक ढाँचे, सरकार के स्वरूप और पड़ोसी देशों के संबंधो को अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करते है। इसके कई उदाहरण है। जैसे-- बाल्कन प्रायद्वीप की भौगोलिक रचना, तुर्क, सरबियन और युगोस्लेवियन लोगों ने आपसी सेल-जोल के बीच सबसे बड़ी बाधा विभिन्न घाटियों के रक्षित प्रदेशों मे रहने वाले इन लोगों मे केवल भाषा संबंधी अंतर ही नही है, किन्तु अनेक सामाजिक और राजनीतिक विषमताएं भी है।

4. ऐतिहासिक भूगोल 

ऐतिहासिक भूगोल का प्रयास इस बात को स्पष्ट करने मे रहता है कि एक राष्ट्र के ऐतिहासिक भाग्य के पीछे भौगोलिक अवस्थाओं का अवश्यम्भावी प्रभाव होता है। यद्यपि यह सर्वविदित है कि संपूर्ण ऐतिहासिक नाटक खेल जाने वाले कई आकस्मिक घटनाएँ तथा शासकों की व्यक्तिगत कुशलता छिपी होती है। लेकिन इस बात मे दो राय नही कि धरातल, स्थिति (महाद्वीपय या सामुद्रिक), प्राकृतिक बाधाएं, भौगोलिक एकान्तता और राज्य या प्रदेश का विस्तार आदि ऐसी भौगोलिक अवस्थाएं है, जो एक राष्ट्र के ऐतिहासिक भाग्य को निर्धारित करने मे एक निश्चित शक्ति के अनुरूप काम करती है। अगर यूरेशिया महाद्वीप के इतिहास का अध्ययन किया जाए तो स्पष्ट होगा कि किसी प्रकार भौगोलिक अवस्थाओं ने उसके संपूर्ण ऐतिहासिक मार्ग को निर्धारित कर दिया है। यूरिशिया महाद्वीप का इतिहास नील घाटी सभ्यता से प्रारंभ होता है। उसके बाद क्रमागत रूप से धीरे-धीरे अरब के मरूभूमि प्रदेश मे सैरेपन साम्राज्य का एक महान् भूमध्यसागरीय समुद्र शक्ति के रूप मे उत्थान और पतन, चार्लिमैगनी के साम्राज्य का बनना, नोर्मल लोगों की इंग्लैंड पर विजय और यूरोप मे नेपोलियन साम्राज्य के बनने तथा बिगड़ने आदि समस्त ऐतिहासिक घटनाओं के पीछे निश्चित ही एक भौगोलिक तथ्य का दर्शन किया जा सकता है। इस विशाल महाद्वीप के लम्बे इतिहास की व्याख्या, इसकी भू-रचना, प्राकृतिक विभाग, जलवायु और विस्तार आदि भौगोलिक अवस्थाओं के रूप मे ही पूर्ण सत्यता के साथ ही की जा सकती है।

5. सामरिक भूगोल 

सामारिक भूगोल का मुख्य उद्देश्य थल तथा जल के भौगोलिक चरित्र का युद्ध की सैनिकता पर पड़ने वाले प्रभावों को स्पष्ट करना है। इतिहास के पृष्ठों में अंकित कई घटनाएं जैसी पारसी सेना का एजिनियन सागर से पुरू को निकारने का प्रयत्न एलेकजैण्डर के साम्राज्य मे ग्रीक और फोनियन्स पर मैकडीनयन्स का आक्रमण, भूमध्य सागर से रोमन सत्ता को उखाड़ फेंकने के लिए थल और जल के भौगोलिक चरित्र का सही मूल्यांकन कर लड़ गए थे, जिससे शत्रुओं के विरूद्ध सैनिक सर्वोपरिता स्थापित कर सके। सामारिक भूगोल के अध्ययन का सही विस्तार सेनाओं के अध्यक्षों और जल सेना के नायकों द्वारा ही हुआ है। फिर इन्हीं के प्रयत्नों से इसके सही क्षेत्र का निर्माण हुआ है। जियो-स्ट्रैटेजी सामरिक भूगोल का ही नव शिशु है।

6. प्रजातीय भूगों 

इसमें मानव जाति के विकास से लेकर उसकी संस्कृति तक का विशद् विश्लेषण किया जाता है। इसके दो-दो भाग माने गए है। एक भाग मे मानव शरीर एवं जीव प्रकृति मे मानव का अध्ययन किया जाता है। इसके अंतर्गत प्रजाति का विभिन्नताएं, मानव प्राणी का विकास, शारीरिक ढाँचे में अंतर और प्राणी पर वातावरण का प्रभाव आदि विषय सम्मिलित किए जाते है। इसे शारीरिक मानवशास्त्र कहा जाता है।

दूसरे भाग मे मानव की सांस्कृतिक का अध्ययन किया जाता है। संस्कृति के अंतर्गत रीति-रिवाज, सामाजिक संगठन, आर्थिक एवं राजनीतिक व्यवस्था, विज्ञान, कला, धर्म, विश्वास, परम्पराएँ, नैतिकता, यंत्र, उपकरण आदि सभी बातें आती है। इसे सांस्कृतिक मानवशास्त्र कहा जाता है। बील्स और हाॅइजर मे मानव संस्कृति शास्त्र के बारे मे लिखा है कि यह मानव संस्कृतियों की उत्पत्ति एवं इतिहास, उनका उद्भव और विकास तथा प्रत्येक स्थान एवं काल के मानव संस्कृति के ढाँचों एवं कार्य प्रणालियों का अध्ययन करता है। यह संस्कृति मानव अपने वातावरण से सामंजस्य उत्पन्न करने के लिए निर्मित करता है।

कोई टिप्पणी नहीं:
Write comment

आपके के सुझाव, सवाल, और शिकायत पर अमल करने के लिए हम आपके लिए हमेशा तत्पर है। कृपया नीचे comment कर हमें बिना किसी संकोच के अपने विचार बताए हम शीघ्र ही जबाव देंगे।