अपरदन किसे कहते हैं? (aparadan kya hai)
Erosion शब्द लैटिन भाषा के Erodese से लिया जाता है, जिसका शाब्दिक अर्थ कुतरना है। अतः अपरदन शब्द का प्रयोग उस क्रिया के लिए किया जाता है, जिसके अंतर्गत विभिन्न गतिशील शक्तियाँ विभिन्न रूपों से चट्टानों को कुतरती रहती है। अपक्षय से चट्टानें निरंतर विघटन तथा अपघटन के कारण चूर-चूर होती रहती है, जिससे शैल चूर्ण बनता रहता है। नदी, हिमनदी, वायु तथा सागरीय धाराओं द्वारा शैल चूर्ण एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाया जाता है। परिवहन करते समय मे टुकड़े आपस मे टकराते है। इसके साथ ये खण्ड रास्ते मे आने वाले धरातल को भी कुरेदते रहते है। इन सभी क्रियाओं के संयुक्त परिणाम को अपरदन कहते है। दूसरे शब्दों मे, अपघर्षण, क्षरण तथा परिवहन के संयुक्त कार्य को अपरदन कहते है।
अपरदन चट्टानों के विनाश की वह क्रिया है जिसमें गतिशील शक्तियां धरातल के विभिन्न रूपों को घिसकर तथा काट-छाँट कर मलबे मे बदलकर बहा ले जाती है।
अपरदन शब्द का व्यापक अर्थ-पृथ्वी के धरातल पर जल, पवन तथा हिमनदी द्वारा चट्टानों के मलबें का परिवहन करने से लिया जाता है। अपरदन के चार पक्ष होते है--
1. गतिशील शक्ति द्वारा धरातलीय चट्टानों का घिसना।
2. परिवहित होते पदार्थ की रगड़ से धरातलीय चट्टानों का घिसना।
3. परिवहित पदार्थों का आपस मे रगड़कर टूटना।
4. संपूर्ण अपरदित पदार्थ का परिवहन।
वारसेस्टर के शब्दों मे," अपरदन चक्र एक काल खण्ड है जिसके अंतर्गत सरिताएं नवोदित भूखण्ड को काटकर उसे आधार तल पर ला देती है।"
अपरदन के रूप/प्रकार
धरातल के ऊपर चट्टानों के अपरदन की क्रिया एक ही रूप से नही बल्कि कई रूपो मे संपन्न होती है। अपरदन के विभिन्न कारक (भूमिगत जल, नदियाँ, हिमनदी, वायु तथा समुद्री लहरें) भिन्न-भिन्न रूपों से अपरदन की क्रिया को पूरा करते है पर फिर भी कुछ क्रियाएं सभी कारकों मे एक जैसी होती है। कार्य के स्वभाव की दृष्टि से अपरदन निम्न प्रकार का होता है--
1. अपघर्षण (Abrasion)
यह एक ऐसी यांत्रिक क्रिया है, जिसमे कंकड-पत्थर आपसी रगड़ से खुद घिसने के साथ-साथ अपने संपर्क मे आने वाली चट्टानों को भी घिसते हुए चलते है। इस तरह कंकड-पत्थर द्वारा चट्टानों के घर्षण की क्रिया को अपघर्षण कहते है। अपघर्षण की क्रिया मुख्यतः नदी द्वारा होती है। इसके अतिरिक्त हिमानी, हवा तथा समुद्री लहरें भी अपघर्षण का कार्य करती है।
2. सन्निघर्षण (Attrition)
अपघर्षण की तरह सन्निघर्षण का कार्य भी नदी, हिमनदी वायु तथा सागरीय लहरों द्वारा किया जाता है। प्रवाहित जल तथा वायु मे उपस्थित शैल खण्ड तथा धूलिकण एवं रेतकण आपस मे टकराते रहते है जिससे ये बारीक होते रहते है। अपरदन के इस रूप को 'सन्निघर्षण' कहते है।
3. संधारण (Corrosion)
यह एक रासायनिक क्रिया है जो जल द्वारा की जाती है। इनके अंतर्गत जल के संपर्क मे आने वाली चट्टानों के घुलनशील खनिज-तत्व घुलकर चट्टानों से अलग हो जाते है और जल के साथ मिल जाते है। यह क्रिया बहते हुए जल तथा भूमिगत जल द्वारा होती है।
4. जलीय क्रिया (Hydraulic action)
यह जल की एक यांत्रिक क्रिया है। इसमें जल बिना किसी अन्य सामग्री की सहायता लिये केवल अपने दबाव के कारण मार्ग मे पड़ने वाली चट्टानों के कणों को ढीला बनाकर उन्हें हटाकर बहा ले जाता है। यह क्रिया सिर्फ नदी द्वारा ही संपन्न होती है।
5. अपवाहन (Deflation)
यह क्रिया मुख्यतः वायु द्वारा होती है। इस क्रिया मे हवा भौतिक अपक्षय द्वारा विखण्डित पदार्थों को जो शुष्क तथा असंगठित होती है-- अपने साथ उड़ाकर अन्यत्र ले जाती है जिससे भूमि का तल नीचा होता जाता है। ऐसी क्रिया मरूस्थलों मे अधिक संपन्न होती है।
6. निक्षेपण (Deposition)
अपरदन के साधनों की परिवहन क्षमता सदैव एक समान नही रहती। परिवहन शक्ति के क्षीण होने पर उनमें पदार्थों को बहा ले जाने की शक्ति भी घट जाती है। फलस्वरूप वे स्थान-स्थान पर पदार्थों का निक्षेप करने लगते है। इस क्रिया को 'निक्षेपण' कहा जाता है। निक्षेपण के द्वारा भूमि-तल ऊँचा उठ जाता है और स्थानीय तल से अधिवर्ध्दन कार्य पूर्ण होता है।
अपरदनकारी शक्तियां
अपरदन करने वाली शक्तियों को भूआकृतिक प्रक्रम भी कहा जाता है। अपरदन करने वाली शक्तियां निम्न है--
1. नदियाँ या बहता जल
भूपृष्ठ पर वर्षा का जल एकत्रित होकर बहता है, तो उसमें असीम शक्ति होती है। वह अपने साथ चट्टानों, मिट्टी आदि को बहा ले जाता है। जब यह जल एक ही दिशा मे घाटी मे बहता है तो उसे नदी कहा जाता है। नदी के तेज बहाव मे काट-छाँट करने की बहुत शक्ति होती है। यह अपने साथ बड़ी मात्रा मे चट्टान चूर्ण को बहा ले जाती है। चट्टान के टुकड़े आपस मे टकराकर टूटते जाते है व मार्ग मे धरातल की चट्टानों को भी काटते जाते है। नदी का वेग एवं जल की मात्रा उसकी अपरदन शक्ति निश्चित करते है। यह अपने अपरदन, परिवहन व निक्षेपण क्रिया द्वारा अनेक भूरूपों का निर्माण करती है।
2. हिमानी
नदी के समान हिमानी भी पर्वतीय क्षेत्रों में अपरदन का कार्य करने वाला प्रमुख साधन है। हिमनदियाँ उच्च पर्वतीय व उच्च अक्षांशों मे पायी जाती है। यद्यपि इनकी गति बहुत मंद होती है, परन्तु फिर भी चट्टानों का अपरदन, परिवहन व निक्षेपण इनके द्वारा किया जाता है।
3. वायु
शुष्क क्षेत्रों मे वायु प्रमुख अपरदनकारी शक्ति है। अपने वेग के साथ यह चट्टान चूर्ण को उड़ा ले जाती है व मार्ग मे आने वाली चट्टानों को काटती-छाँटती जाती है। हवा चट्टान चूर्ण को बहुत दूर तक उड़ा ले जाकर निक्षेपित कर देती है। इस प्रकार अनेक भूआकृतियों का निर्माण करती है।
4. भूमिगत जल
भूमिगत जल सतह के नीचे जहाँ घुलनशील चट्टानें होती है, अपरदन का कार्य करता है।
चट्टानों के घुलनशील तत्व भूमिगत जल के साथ घुल जाते है, जिससे चट्टानें कमजोर होकर टूट जाती है। इस चट्टान चूर्ण को भूमिगत जल बहा ले जाता है तथा भूगर्भ मे अनेक आकृतियां जैसे कन्दरायें, ब्लाइट वेली आदि का निर्माण हो जाता है।
5. लहरें
तटीय क्षेत्रों मे लहरें महत्वपूर्ण अपरदन का कार्य करती है। लहरों के वेग व प्रहार से तटीय चट्टानों को काट-छाँट होती रहती है। टूटी हुई चट्टानें लहरों के साथ कहीं दूर बह जाती है तो कहीं इनका निक्षेप होता है। तरंगें व चट्टान चूर्ण तटीय शैलों को वितरित करने का कार्य करते है।
अपक्षय और अपरदन मे अंतर
अपक्षय और अपरदन मे निम्न अंतर है--
1. अपक्षय छोटे क्षेत्रों की क्रिया है, जबकि अपरदन विस्तृत क्षेत्रों मे पाया जाता है।
2. अपक्षय एक स्थैतिक क्रिया है जिसके प्रभाव से चट्टानें अपने ही स्थान पर अपघटित तथा विघटित होती रहती है। अपरदन एक गत्यात्मक क्रिया है जिसके प्रभाव से चट्टानें तोड़-फोड़ के बाद एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जायी जाती है।
3. अपक्षय पर चक्र की विचारधारा लागू नही होती। अपरदन के अंतर्गत घटनाक्रम एक चक्र मे चलति है।
4. अपक्षय भौतिक एवं रासायनिक क्रियाओं द्वारा संपन्न होता है। सूर्यताप, पाला, दाब मुक्त ऑक्सीकरण, कार्बोनीकरण, घुलन, विलयन, पेड़ पौधे तथा जीव-जन्तु इसके प्रमुख कारक है। अपरदन मे चट्टानों की तोड़-फोड़ करने हेतु नदी, हिमनदी, भूमिगत जल, वायु तथा सागरीय लहरें सक्रिय रहती है।
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