5/11/2021

महारानी दुर्गावती का इतिहास

By:   Last Updated: in: ,

महारानी दुर्गावती का इतिहास 

maharani durgavati kon thi;रानी दुर्गावती का जन्‍म 5 अक्‍टूबर, 1524 ई. को उत्तरप्रदेश के महोबा नामक स्‍थान पर हुआ था। रानी दुर्गावती के पिता जी महोबा के राजा थे। रानी दुर्गावती बचपन से ही सुन्‍दर, सुशील, विनम्र, योग्‍य एंव साहसी लड़की थीं। उसे बचपन में ही वीरतापूर्ण एंव साहस भरी कहानियां सुनना व पढ़ना अच्‍छा लगता था। पढ़ाई के साथ-साथ दुर्गावती ने घोड़े पर चढ़ना, तीर-कमान चलाना भली-भांति सीख लिया था। शिकार खेलना भी शौक था, वह अपने पिता के साथ शिकार खेलने जाया करती थीं साथ ही वह पिता के साथ शासन का कार्य भी देखती थीं। 

रानी दुर्गावती का विवाह गोड़वाना के राजा दलपति शाह के साथ सम्‍पन्‍न हुआ था। इसी बीच दुर्गावती के पिता की मृत्‍यु हो गई और महोबा तथा कालिंजर पर मुगल सम्राट अकबर का अधिकार हो गया। विवाह के एक वर्ष पश्‍चात् दुर्गावती को एक पुत्र हुआ, जिसका नाम वीरनारायण रखा गया। जिस समय वीरनारायाण मात्र तीन साल का था तभी उसके पिता दलपति शाह की मृत्‍यु हो गई। दुर्गावती के ऊपर मानो दुःखों का पहाड़ ही टूट पड़ा था, परन्‍तु उसने बड़े धैर्य और साहस के साथ इस दुःख को सहन किया। 

दलपति शाह की मृत्‍यु के बाद उनका पुत्र वीर नारायाण गद्दी पर बैठा। रानी दुर्गावती उसकी सरंक्षिका बनीं और राज-काज स्‍वंय देखने लगीं। वे सदैव प्रजा के सुख-दुःख का ध्‍यान रखती थीं। चतुर और बुद्धिमान मन्‍त्री आधार सिंह की सलाह और सहायता से रानी दुर्गावती ने अपने राज्‍य की सीमा बढ़ा ली। राज्‍य के साथ-साथ उसने सुसज्जित स्‍थायी सेना भी बनाई और अपनी वीरता, उदारता, चतुराई से राजनीतिक एकता स्‍थापित कीं। गोंडवाना राज्‍य शक्तिशाली और संपन्‍न राज्‍यो में गिना जाने लगा , इससे दुर्गावती की ख्‍याति फैल गई। रानी दुर्गावती की योग्‍यता एंव वीरता की प्रंशसा अकबर ने सुनी। उसके दरबारियों उसे गोंडवाना को अपने अधीन कर लेने की सलाह दी। अकबर ने आसफ खां नामक सरदार को गोंडवाना की गढ़मंडल पर चढ़ाई करने का आदेश दिया। 

आसफ खां ने सोचा की रानी तो एक महिला है वह अकबर के प्रताप से भयभीत होकर आत्‍मसमर्पण कर देगी, परन्‍तु रानी दुर्गावती को अपनी, योग्‍यता, साधन और सैन्‍य-बल पर इतना विश्‍वास था कि उसे अकबर की सेना के प्रति भी कोई भय नहीं था। आसफ खां की सेना को देखकर रानी दुर्गावती के मंत्री ने उसे युद्ध न करने की सलाह दी, परन्‍तु रानी के कहा, ‘‘कलंकित जीवन जीने की अपेक्षा शान से मर जाना अच्‍छा है।‘‘ रानी सैनिक के वेश में घोंड़े पर सवार होकर निकल पड़ी। सैनिक उत्‍साहित होकर शत्रुओं को काटने लगे। रानी भी शत्रुओं पर टुट पड़ी, देखतें ही देखते दुश्‍मनों की सेना मैदान छोड़कर भाग निकली। आसफ खां भी अति कठिनाई से अपने प्राण बचाने में सफल हुआ। 

अकबर को जब ये ख़बर लगी की आसफ खान पराजित होकर आया है, तब अकबर बहुत लज्जित हुआ। डेढ़ वर्ष बाद उसने पुनः आसफ खान को गढ़मंडल पर आक्रमण करने भेजा। रानी तथा आसफ खान के बीच घमासान युद्ध हुआ, तोपों का वार होने पर भी रानी ने हिम्‍मत नहीं हारी। रानी हाथी पर सवार सेना का संचालन कर रहीं थीं। उन्‍होंने मुगल तोपचियों का सिर काट डाला। यह देखकर आसफ खान की सेना फिर भाग खड़ी हुई। रानी दुर्गावती अपने राजधानी में विजयोत्‍सव मना रही थीं। उसी गढ़मंडल के एक सरदार ने रानी को धोखा दिया। उसने गढ़मंडल का सारा भेद आसफ खान को बता दिया। आसफ खान ने अपने हार का बदला लेने के लिए तीसरी बार गढमंडल पर आक्रमण किया। रानी ने अपने पुत्र के नेतृत्‍व में सेना भेजकर स्‍वंय एक टुकड़ी का नेतृत्‍व सम्‍भाला। दुश्‍मनो के छक्‍के छूटने लगे, उसी बीच रानी ने देखा कि उसका 15 वर्ष का पूत्र घायल होकर घोड़ से गिर गया है, रानी विचलित ने हुई।

रानी दुर्गावती की सेना मे कई वीर पुरूषों ने वीर नारायण को सु‍रक्षित स्‍थान पर पहुंचा दिया और रानी से प्रार्थना की कि वे अपने पुत्र का अन्तिम दर्शन कर ले। रानी ने उत्तर दिया-यह समय पुत्र से मिलने का नहीं है, मुझे खुशी है कि मेरे वीर पुत्र ने युद्ध भूमि में वीरगति पाई है। वीर पुत्र की स्थिति देखकर रानी दो गुने उत्‍साह से तलवार चलाने लगी, तभी दुश्‍मनों का एक बाण रानी की आंख में जा लगा और दूसरा तीर रानी की गर्दन में लगा। रानी समझ गई कि अ‍ब मृत्‍यु निश्चित है, यह सोचकर कि जीते जी जो दूश्‍मनों की पकड़ में न आऊ, उन्‍हेानें अपनी तलवार अपनी छाती में भोंक ली और अपने प्राणों की बलि दे दी। इनकी मृत्‍यु 24 जून, सन् 1564 को हुई। 

रानी दुर्गावती ने लगभग 16 वर्षो तक संरक्षिका के रूप में शासन किया। भारत के इतिहास में रानी दुर्गावती और चांदबीबी ही ऐसी वीर महिलाएं थीं, जिन्‍होंने अकबर की शक्तिशाली सेना का सामना किया तथा मुगलों के राज्‍य विस्‍तार को रोका। रानी दुर्गावती अत्‍यन्‍त गुणवाती थीं और साहसी होने के साथ ही वे त्‍याग और ममता की प्रतिमूर्ति थीं। राजघराने में रहते हुयें भी उन्‍होंने अत्‍यन्‍त साधारण जीवन व्‍यतीत किया। राज्‍य के कार्य देखने पश्‍चात् वे अपना शेष समय पूजा-पाठ और धार्मिक कार्यो में व्‍यतीत करती थीं। महान वीरांगना रानी दुर्गावती देशभक्‍त, त्‍यागी पराक्रमी, साहसी तथा व्‍यवहारकुशल महिल थीं तथा प्रशासनिक कुशलता का भी परिचय उसने अपने शासनकाल में दिया। उसने लोककल्‍याण में अनेक कार्य किये। गरीबों के प्रति उनकी उदारता प्रशंसनीय थीं। वह एक पत्‍नी के रूप में, मां के रूप में , प्रशासक तथा कूटनीतिज्ञ के रूप में सफल रहीं।

कोई टिप्पणी नहीं:
Write comment

आपके के सुझाव, सवाल, और शिकायत पर अमल करने के लिए हम आपके लिए हमेशा तत्पर है। कृपया नीचे comment कर हमें बिना किसी संकोच के अपने विचार बताए हम शीघ्र ही जबाव देंगे।