4/22/2020

भारत चीन युद्ध कारण, परिणाम

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चीन का भारत पर आक्रमण 

2 जून 1962 को भारत सरकार ने घोषणा की कि चीन के साथ 1954 का समझौता समाप्त हो गया है क्योंकि चीन की सरकार ने भारतीय यात्रियों तथा व्यापारियों को तंग करके और भारतीय सीमा पर आक्रमण करके इस समझौते का पूर्णतया उल्लंघन किया था। 12 जुलाई, टुकड़ी ने ग्लवान घाटी की भारतीय पुलिस चौकी को अपने घेरे मे ले लिया और कई दिन तक उसका घेरा डाले रखा। 8 सितम्बर को चीनी सेनाओं ने मेकमोहन रेखा पार करके भारतीय सीमा मे प्रवेश किया। 20 अक्टूबर, 1962 को चीनी सेनाओं ने उत्तर-पूर्वी सीमान्त तथा लद्दाख के मोर्चे पर एक साथ बड़े पैमाने पर आक्रमण किया। टिड्डी दल की भाँति ये भारतीय चौकियों पर टूट पड़े। 
चीन द्वारा एक तरफा युद्ध की घोषणा 
चीन की सेनाओं ने 15 और 16 नवंबर, 1962 को भारत की सीमा पर विशाल पैमान पर आक्रमण किये। 18 नवंबर, 1962 की चीनी सेनाओं ने नेफा मे वालोंग नामक स्थान पर कब्जा कर लिया। 19 नवंबर, 1957 को चीनी सेना ने सेला रिज पर कब्जा कर लिया, 21 नवम्बर, 1962 को चीन ने एकतरफ़ा युद्ध की घोषणा कर दी। चीन की सरकार ने यह घोषणा की कि उसकी सेना 21 नवंबर, 1962 की आधी रात से गोली चलाना बंद कर देगी और 1 दिसंबर, 1962 से चीनी सेना 7 नवंबर, 1962 की नियंत्रण रेखा से 20 किलोमीटर पीछे हट जायेगी। चीन की घोषणा मे यह भी कहा गया कि वह अवैध मैकमोहन रेखा के उत्तर मे हट जायेगा परन्तु नियंत्रण रेखा के अंतर्गत वह कुछ असैनिक निरीक्षक चौकियां रखेगा। चीन की इस घोषणा के बाद युद्ध बंद हो गया। चीन ने कुछ जीते हुए भारतीय प्रदेशों, युद्धबन्दियों और पकड़े हुए सैनिक सामान को भी वापस लौटा दिया था।

चीन द्वारा भारत पर आक्रमण के कारण

चीन द्वारा भारत पर आक्रमण के निम्न कारण थे--
1. चीन विस्तारवादी नीति का समर्थक था तथा इस नीति का प्रदर्शन करना चाहता था।

2. चीन ने भारत पर आक्रमण करने से पूर्व यह अच्छी तरह जान लिया था कि युद्ध में उसी की विजय होगी। वह यह जानता था कि भारत को यह कल्पना भी नही हो सकती कि चीन भारत पर आक्रमण कर सकता हैं।
3. चीन आक्रमण कर अपनी शक्ति प्रदर्शित करना चाहता था ताकि उसे अधिक शक्तिशाली माना जाए ताकि एशिया में उसका नेतृत्व स्थापित हो जाए।
भारत चीन युद्ध
भारत चीन युद्ध 
4. भारत की लोकतांत्रिक पद्धति को सफल न होने देने के लिए उस युद्ध का बोझ लाद देना चाहता था।
5. तिब्बत के प्रति भारतीय नीति से चीन नाराज था। दलाईलामा को शरण देने के कारण वह भारत से नाराज हो गया था।
6. भारत और चीन दोनों की विचारधाराओं मे भिन्नता हैं। चीन एक  साम्यवादी देश है। भारत एक प्रजातांत्रिक देश है। विचारधारा की इस प्रतिस्पर्धा मे चीन साम्यवादी विचारधार की क्षेष्ठता सिद्ध करना चाहता था।

7. अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति मे शक्ति प्रदर्शन की इच्छा भारत नवोदित राष्ट्रों का मुख्य वक्ता बन गया था। गुटनिरपेक्षता आन्दोलन के कारण भारत की प्रतिष्ठा बढ़ी थी। चीन नही चाहता था कि भारत का सम्मान हो अतः उसने भारत को अपमानित करने के लिए ही भारत पर आक्रमण किया।

भारत चीन युद्ध में भारत की पराजय (असफलता) के कारण 

भारत चीन युद्ध मे भारत की असफलता के निम्न कारण थे--
1. भारत की सैनिक शक्ति के प्रति उदासीनता 
भारत ने स्वतंत्रता के बाद अपनी रक्षा के लिए सबसे महत्वपूर्ण अंग सेना की और कोई विशेष ध्यान नही दिया। हमारी सीमा के बिल्कुल निकट ही चीन ने बहुत बड़ी मात्रा में सेनाएं और शस्त्र जमा कर लिए थे तथा हवाई अड्डे भी बना लियें थे उसकी गतिविधियों मे बहुत तेजी थी। हमारे प्रधानमंत्री को इसकी गुप्तचर विभाग से लगातार रिर्पोट मिल रही थी परन्तु हमारे प्रधानमंत्री अन्त तक इस बात पर दृढ़ रहे कि चीनियों से हमारा कोई बड़ा युध्द नही होगा।
2. सेना के आधुनिकीकरण पर ध्यान न देना
हमारे देश मे यह निरन्तर धारणा चल रही थी कि भारत गाँधी जी का देश है, वहाँ पर अहिंसा का प्रभाव है, जब तक हम किसी पर आक्रमण नही करते, तो हमारे ऊपर कौन आक्रमण करेगा? इन धारणाओं के कारण हमारी सरकार ने प्रतिरक्षा पर उचित ध्यान नही दिया।
3. सेना में असंतोष
डी.आर.मानकेकर ने लिखा है कि "प्रतिरक्षा मंत्री श्री कृष्णमेनन ने अपनी गलत नीतियों के द्वारा सेना मे असन्तोष उत्पन्न कर दिया। उन्होंने कनिष्ठ अधिकारियों को वरिष्ठ अधिकारियों के विरुद्ध खड़ा कर दिया।
4. चीन की सुदृढ़ स्थिति 
सन् 1954 से ही चीन युद्ध की तैयारी कर रहा था। उसने अपने नक्शों मे भारतीय सीमा का काफी भाग अपने अधिकार में दिखाया था। भारत की सीमा तक चीन ने पक्की सड़कों का निर्माण कर लिया था। अतः उसे सैनिक सामान तथा रसद पहुँचाने मे कोई कठिनाई नही हुई। भारत की सीमा पर उसके सैनिकों का जबर्दस्त जमाव था। युद्ध की दृष्टि से चीन की स्थिति सुदृढ़ थी। चीन पहाड़ी पर था। वह पहाड़ की ऊँचाईयों से नीचे प्रहार कर सकता था।
5. यातायात की कठिनाई 
लद्दाख और नेफा मे हमारी सड़के तथा हवाई अड्डे अंतर्राष्ट्रीय सीमा के पास नही थे। वे सीमा से काफी दूर थे, इसलिए संकट के समय वहां तेजी से सैनिक साज व सामान तथा शस्त्र नही पहुंच सकते थे जबकि चीनियों की सड़के तथा हवाई अड्डे तिब्बत मे हमारी अंतर्राष्ट्रीय सीमा के बिल्कुल समीप थे। इसलिए हमारी सरकार को अपनी चौकियों को सैनिक सहायता पहुँचाने मे अत्यन्त कठिनाई हुई। 
6. सीमा पर कुशल सैनिक नेतृत्व की कमी
जब युद्ध छिड़ा तो उस समय हमारी सेना मे अच्छे अधिकारियों के नेतृत्व की नितान्त कमी थी। उस समय बिहार की रक्षा का भार था। अन्य सैनिक अधिकारियों मे आपस मे अनबन थी।
7. भारत के प्रधानमंत्री की चीन के प्रति गलत धारणा का होना 
भारत चीन की नीयत को समझ नही पाया। भारत के प्रधानमंत्री श्री जवाहर लाल नेहरू और रक्षामंत्री श्री कृष्णमेनन की यह स्पष्ट मान्यता थी कि चीन कभी भी भारत पर आक्रमण नही करेगा भारत का चीन के प्रति गलत राजनीतिक अनुमान था। इसकी उसे महँगी कीमत चुकानी पड़ी।
चीन को विश्वास था कि सोवियत संघ उसका साथ देगा किन्तु सोवियत संघ तटस्थ रहा। मिस्र, यूगोस्लाविया, घाना आदि गुटनिरपेक्षता देशों ने चुप्पी साध ली। पाकिस्तान ने चीन का साथ देते हुए भारत की खुलकर निन्दा की। पूर्वी तथा पश्चिमी देशों ने चीन को सहायता नही दी अतः चीन ने एक पक्षीय युध्द विराम की घोषणा कर दी। भौगोलिक स्थिति, सैन्य तैयारी का आभाव, पड़ोसी देश पर अत्यधिक विश्वास, युद्ध साम्रगी की कमी तथा सैन्य संगठन एवं निर्देशन की अक्षमता, अव्यावहारिकता विदेश नीति के कारण भारत बुरी तरह पराजित हुआ। चीन को अपने उद्देश्यों मे सफलता मिल गई। वह अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र मे यह प्रकट करना चाहता था कि वह युद्ध प्रेमी नही हैं, बाध्य होकर युद्ध करना पड़ा, भारत को पराजित कर उसकी प्रतिष्ठा को धूमिल करना चाहता था।

भारत चीन युद्ध के परिणाम

भारत चीन युद्ध के निम्न परिणाम हुए--
1. भारत की प्रतिष्ठा को धक्का 
1962 के युद्ध से पूर्व भारत की अंतर्राष्ट्रीय प्रतिष्ठा शिखर तक पहुँच गई थी परन्तु इस युद्ध मे भारत की हार से उसके अंतर्राष्ट्रीय मान सम्मान को गहरा धक्का लगा। भारत के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने स्वतंत्रता के बाद अपनी शान्तिपूर्ण तथा सह-अस्तित्व की नीति से भारत की प्रतिष्ठा को अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र मे बड़ा ऊँचा उठाया था। उन्होंने संसार के अधिक से अधिक देशों के साथ भारत के कुटनीतिक, व्यापारिक और सांस्कृतिक संबंध स्थापित किये थे। परन्तु इस युद्ध मे पराजय के कारण भारत की प्रतिष्ठा को आघात लगा।
2. भारत की विदेश नीति की असफलता 
इस युद्ध से भारत की विदेश नीति की असफलता सिद्ध हो गई। भारत की विदेश नीति आदर्शवाद पर आधारित थी। यह यथार्थवाद व व्यावहारिकता से बहुत दूर थी। भारत स्वयं सैनिक व आर्थिक दृष्टि से कमजोर था। उसका आदर्शवाद थोथा था। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति मे किसी भी देश की प्रतिष्ठा कोरे आदर्शों पर आधारित नहीं होती है, उसके लिए आर्थिक रूप से तथा सैनिक रूप से भी सुदृढ़ होना जरूरी है। भारत को अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए व्यावहारिक होना चाहिए था।
3. श्री नेहरू की प्रतिष्ठा को आघात 
श्री नेहरू ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। स्वतन्त्रता के बाद वे भारत के पहले प्रधानमंत्री बने और उन्होंने भारत की विदेश नीति का निर्माण किया और इसका संचालन जीवन-पर्यन्त किया। वे ही आयोजन आयोग के अध्यक्ष थे। उन्होंने ही स्वतंत्र भारत की आर्थिक प्रगति की नींव रखी थी। इसलिए उनकी भारत तथा विदेशों मे प्रतिष्ठा थी। परन्तु जब भारत चीन से युद्ध मे पराजित हो गया तो श्री नेहरू की प्रतिष्ठा को धक्का लगा। विश्व मे उनकी छवि धूमिल हुई। दुनिया के सामने यह स्पष्ट हो गया कि नेहरू आदर्शवाद अपनाए हुए थे। यथार्थ मे धरातल पर यह आदर्शवाद असफल हो गया। 
4. देश की प्रतिरक्षा के प्रति सजग होना 
भारत का यह विश्वास था कि चीन भारत पर कोई बड़ा आक्रमण नही करेगा। फलतः सेना को न तो इस युद्ध का मुकाबला करने के लिए तैयार किया और न ही मनोवैज्ञानिक ढंग से देश को तैयार किया गया। परन्तु चीन के आक्रमण ने भारत की आँखें खोल दी। श्री नेहरू ने कहा कि," चीन के आक्रमण ने हमारी आँखों को हमेशा के लिए खोल दिया है और वे हमेशा खुली रहेंगी।" इसके बाद भारत सरकार ने देश की प्रतिरक्षा की तरफ बहुत ध्यान दिया।
5. आर्थिक विकास मे रूकावट 
चीनी आक्रमण से पूर्व भारत विकास कार्यों पर अपना ध्यान केन्द्रित किए हुए था और प्रतिरक्षा पर कम धन व्यय किया जा रहा था। परन्तु चीनी आक्रमण से उनको गहरा धक्का लगा और उनको परिस्थिति से विवश होकर 100 करोड़ रूपये तत्काल संसद से स्वीकार करना पड़ा। उसके बाद पाकिस्तानी आक्रमणों के कारण हमें अपनी प्रतिरक्षा पर भारी राशि व्यय करनी पड़ी। यह स्वाभाविक ही था कि इसके कारण हमारी आर्थिक प्रगति कुछ मंद हो गई।
6. तटस्थ राष्ट्रों से निराश
भारत ने तटस्थ राष्ट्रों से मित्रता के संबंध स्थापित किये थे। भारत ने इण्डोनेशिया की स्वतंत्रता के लिए महत्वपूर्ण योग दिया था। 1956 मे जब स्वेज नहर के राष्ट्रीयकरण के कारण मिश्र पर ग्रेट ब्रिटेन, फ्रांस तथा इजरायल का आक्रमण हो गया था तो उस समय हमारे प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने तीखें शब्दों मे ग्रेट ब्रिटेन, फ्रांस तथा इजरायल की निन्दा की थी परन्तु जब भारत पर आक्रमण हुआ तो किसी भी तटस्थ राष्ट्र ने चीन के नग्न आक्रमण की निन्दा करने का साहस नही किया केवल कुछ राष्ट्रों ने बीच-बचाव करने की कोशिश अवश्य की जो चीन की हठधर्मी के कारण असफल हुई।
7. देश मे उत्साह एवं एकता का वातावरण निर्मित होना 
चीनी आक्रमण के फलस्वरूप भारतीय जनता अपने छोटे-मोटे संघर्षों एवं वैमनस्यता को भूल गए और अपनी स्वतंत्रता को रक्षा के लिए एकता के सूत्र मे बँध गए। उनमे उस समय आक्रमणकारी का मुकाबला करने के लिए अदम्य उत्साह, त्याग तथा बलिदान की भावना उत्पन्न हो गई।
8. चीन और पाकिस्तान मे मित्रता 
अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के क्षेत्र मे भारत-चीन युद्ध के परिणामस्वरूप एक उल्लेखनीय परिवर्तन हुआ वह यह है कि चीन और पाकिस्तान मे गहरी मित्रता हो गई। 
9. रूस और चीन मे मतभेद 
चीन ने भारत पर आक्रमण किया। वह यह चाहता था कि रूस खुलकर उसका समर्थन करे परन्तु रूस तटस्थ रहा। चीन के लिए रूस की यह तटस्थता किसी अपराध से कम नही थी। रूस और चीन के मध्य मतभेद उग्र हो गये और अन्ततः दोनों के बीच शीतयुद्ध प्रारंभ हो गया।

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