4/21/2025

वन्य पारितंत्र क्या है?

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प्रश्न; वन्य पारितंत्र से आप क्या समझते है?

अथवा

वन्य पारितंत्र क्या है? वन्य पारितंत्र के लिए क्या क्या खतरे है और वन्य पारितंत्र का संरक्षण कैसे करे विवेचना किजिए।

उत्तर--

वन्य पारितंत्र क्या है?

जिस तरह से किसी जंगल में जो पेड़ होते है, वे हवा को साफ करते हैं और जानवरों को छाया और खाना देते है। हिरण घास खाते है, शेर हिरण को खाते हैं, और जब कोई जानवर मरता है तो छोटे जीव या कीड़े-मकोड़े उसे मिट्टी में बदल देते हैं और उससे पेड़-पौधों को पोषण मिलता है। यानि ये एक चक्र की तरह होता रहता है।

इस पूरे प्राकृतिक तंत्र को ही वन्य पारितंत्र कहते हैं।

वन पौधों का समुदाय होता है। उसकी संरचना मुख्यतः उसके पेड़ो, झाड़ियों, लताओं और भू-आवरण से निर्धारित होती है। प्राकृतिक वनस्पति सुव्यवस्थित कतारों में बोए पौधों से बहुत भिन्न नजर आती है। अधिकांश अछूते 'प्राकृतिक' वन मुख्यतः हमारे राष्ट्रीय पार्कों और अभयारण्यों में स्थित हैं। वन्य भूदृश्य एक-दूसरे से भिन्न दिखाई देते हैं और उनकी मनोहारी भिन्नता प्रकृति की सुदंरता को बढ़ाता है। विभिन्न प्रकार के वन विभिन्न प्रकार के जीव-समुदायों के आवास होते हैं जो उनमें रहने के लिए अनुकूलित होते हैं।

वन्य पारितंत्र के दो भाग होते हैं--

(अ) वन के जीवनविहीन या अजैव वृक्ष 

कोई वन किस प्रकार का होगा यह उस क्षेत्र की अजैव दशाओं पर निर्भर करता है। पहाड़, पहाड़ियों के वन नदी-घाटियों के वनों से भिन्न होते हैं। वनस्पति वर्षा और स्थानीय तापमान पर निर्भर होती है; यह अक्षांश, ऊंचाई और मिट्टी के प्रकार के अनुसार अलग-अलग होती है।

(ब) वन के जीवनयुक्त या जैविक पक्ष 

पौधों और पशुओं के समुदाय वन के सभी प्रकारों के लिए अलग-अलग होते हैं। मसलन शंकुधारी पेड़ हिमालय क्षेत्र में होते हैं, मैनग्रोव वृक्ष नदियों के डेल्टाओं में होते हैं, काँटेदार पेड़ शुष्क क्षेत्रों में उगते हैं। बर्फ का तेंदुआ हिमालय क्षेत्र में रहता है जबकि चीते और बाघ शेष भारत के जंगलों में पाए जाते हैं। जंगली भेड़ें और बकरियाँ हिमालय के ऊंचे क्षेत्रों में होती हैं तथा हिमालयी वनों के अनेक परिंदे बाकी भारत के परिंदों से भिन्न होते हैं। पश्चिमी घाट और पूर्वोत्तर भारत के सदाबहार वनों में पशुओं और पौधों की प्रजातियों की सबसे अधिक विविधता है।

जैविक घटक में बड़े (स्थूल पादप) और सूक्ष्म पौधे और प्राणी शामिल हैं।

पौधों में वनों के पेड़, झाड़ियाँ, लताएँ, घास और जड़ी-बूटियाँ आती हैं। इनमें फूल देने वाली प्रजातियाँ और फूल न देने वाली प्रजातियाँ शामिल हैं, जैसे फर्न, ब्रायोफाइट, शैवाल और कवक।

प्राणियों में स्तनपायी, परिंदे, सरीसृप, जलथलचारी, मछलियाँ, कीट और दूसरे अकशेरूकी प्राणी और अनेक प्रकार के सूक्ष्मप्राणी शामिल हैं।

एक-दूसरे पर बहुत अधिक निर्भरता के कारण पौधों और प्राणियों की प्रजातियाँ मिलकर अनेक प्रकार के वन्य समुदाय बनाती हैं। मानव इन वन्य पारितंत्रों का भाग है और स्थानीय जनता सीधे-सीधे वनों पर उन अनेक प्राकृतिक संसाधनों के लिए निर्भर होती है जो उनके जीवन के आधार होते हैं। जो लोग वनों में नहीं रहते वे वनों से प्राप्त अन्य वस्तुएँ, जैसे लकड़ी और कागज खरीदते हैं। इस तरह वे लोग बाजार से खरीदकर वन्य पैदावारों का अप्रत्यक्ष उपयोग करते हैं।

वन्य पारितंत्र के लिए क्या-क्या खतरे हैं?

जंगल बहुत धीमी गति से बढ़ते हैं। इसलिए किसी एक मौसम में वे अपनी वृद्धि के दौरान जितने संसाधन दे सकते हैं उतने से अधिक का इस्तेमाल हम नहीं कर सकते। एक सीमा से आगे इमारती लकड़ी ली जाए तो जंगल का पुनर्जन्म नहीं हो सकता। वन में खालीपन आने से उसके प्राणियों के निवास की गुणवत्ता बदल जाती है और इन बदली हुई दशाओं में अधिक नाजुक प्रजातियाँ जीवित नहीं रह सकतीं। वन्य संसाधनों का अति से अधिक उपयोग हमारे इन सीमित संसाधनों के उपयोग का एक अनिर्वहनीय ढंग है। आज हम अधिकाधिक ऐसी वस्तुओं का उत्पादन कर रहे हैं जो वनों से प्राप्त कच्चे माल से बनती हैं। इससे वनों का ह्रास होता है और आखिरकार पारितंत्र एक बंजर क्षेत्र में बदल जाता है। आज अनेक जंगलों से लकड़ी की गैरकानूनी कटाई हो रही है जिससे पारितंत्र की अपूरणीय क्षति हो रही है।

विकास के कार्य, तीव्र जनसंख्या वृद्धि और साथ में नगरीकरण, उद्योगीकरण और उपभोक्ता वस्तुओं के बढ़ते उपयोग के कारण वन्य पैदावारों का अति-उपयोग हो रहा है। हमारी खेतिहर जमीन की जरूरत बढ़ने के कारण जंगल तेजी से सिमट रहे हैं। अनुमान है कि पिछली सदी में भारत का वन्य आवरण 33% से घटकर 11% रह गया है। इमारती लकड़ी या कागज के लिए लुगदी के बढ़ते उपयोग और जलाबन के व्यापक उपयोग के कारण वन काटे जा रहे हैं। खनन कार्य और बाँधों के निर्माण से भी जंगल खत्म हो रहे हैं। वन्य संसाधनों का जब उपयोग होता है तब वनों की छतरी टूट जाती है, पारितंत्र का ह्रास होता है, और वन्यजीवन के लिए गंभीर खतरे पैदा होते हैं। वन जब छोटे-छोटे टुकड़ों में बँट जाता है तो उसके पौधों और प्राणियों की वन्य प्रजातियाँ नष्ट हो जाती हैं। फिर इनको कभी वापस नहीं किया जा सकता।

वन्य पारितंत्र का संरक्षण कैसे करें ?

हम वनों का संरक्षण तभी कर सकते हैं जब उसके संसाधनों का सावधानी से उपयोग करें। इसके लिए हमें जलावन लकड़ी की जगह ऊर्जा के वैकल्पिक स्त्रोतों का उपयोग करना होगा। हर साल लकड़ी के लिए जितने वन काटे जाते हैं, उससे अधिक वन लगाने की आवश्यकता है। वनरोपण निरंतर होना चाहिए ताकि उसकी जलावन और इमारती लकड़ी का विवेकपूर्ण उपयोग किया जा सके।

तमाम विविध प्रजातियों के साथ प्राकृतिक वनों का संरक्षण राष्ट्रीय पार्कों और अभयारण्यों के रूप में करना होगा जहाँ तमाम पौधे और पशु-पक्षी सुरक्षित रह सकें।

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