प्रतिभावान या प्रतिभाशाली बालकों में आप क्या समझते हैं? इनकी प्रमुख विशेषताएं बताइए।
उत्तर-
प्रतिभावान बालक का अर्थ
ये तो हम जानते ही है कि सभी बालक एक जैसे नहीं होते हैं। उनमें कई प्रकार की विभिन्नताएं पाई जाती है। प्रतिभाशाली बालक किसी राष्ट्र की अमूल्य निधि होते हैं। अतः प्रतिभाशाली बालकों की पहचान करना अति आवश्यक है तभी कोई विद्यालय उनके लिए समुचित शिक्षा की व्यवस्था कर सकता है।
प्रतिभाशाली बालक सामान्य बालकों से श्रेष्ठ होते है। ये बालक ऊंची बुद्धि लब्धि/IQ वाले होते हैं। यह बुद्धि लब्धि 120 से ऊपर होती है। ये बालक एक साधारण बालक से अधिक योग्य होते हैं। जो कार्य इन्हें दिया जाता है, उसे शीघ्र ही पूरा कर लेते हैं। ये बालक साधारण बालक की कक्षा में अरुचि महसूस करते हैं तथा इन्हें कक्षा में कोई उत्तेजना नहीं मिलती।
प्रतिभावान बालको की परिभाषाएं
टरमन व ओडन, "प्रतिभाशाली बालक शारीरिक गठन, सामाजिक समायोजन, व्यक्तित्व के लक्षणों, विद्यालय उपलब्धि, खेल की सूचनाओं और रुचियों की बहुरूपता में सामान्य बालकों से बहुत श्रेष्ठ होते हैं।"
स्किनर एवे हैरीमैन के अनुसार, "प्रतिभाशाली शब्द का प्रयोग उन एक प्रतिशत बालकों के लिए किया जाता है जो सबसे अधिक बुद्धिमान होते हैं।"
कॉलसनिक के अनुसार, "वह प्रत्येक बालक जो अपनी आयु-स्तर के बालकों में किसी योग्यता में अधिक हो और जो हमारे समाज के लिए कुछ महत्त्वपूर्ण नई देन हो।"
पॉल विट्टी, "प्रखर बुद्धि बालक वह है जो किसी कार्य को करने के प्रयास में निरन्तर उच्च स्तर बनाये रखता है।"
प्रतिभावान बालकों की विशेषताएं
प्रतिभावान बालकों की मुख्य विशेषतायें निम्नलिखित हैं--
(1) प्रतिभावान बालकों की बुद्धिलब्धि/IQ 120 के ऊपर होती है।
(2) प्रतिभावान बालकों का शारीरिक, मानसिक एवं भावात्मक विकास अन्य बालकों की तुलना में जल्दी व उच्च कोटि का होता है।
(3) ये बच्चे कठिन कार्यों में रुचि लेते हैं।
(4) ये बालक किसी घटना का बारीकी से निरीक्षण करते हैं।
(5) इन बच्चों का शब्द कोष विस्तृत होता है।
(6) ये बुद्धि की व्यक्तित्व परीक्षा में उच्च स्थान प्राप्त करते हैं।
(7) ये किसी विषय का गहन अध्ययन करते हैं।
(8) इन बालकों का सामान्य ज्ञान उच्च स्तर का होता है।
(9) इन बालकों का वैज्ञानिक दृष्टिकोण होता है।
(10) ये बालक अपने से बड़ों के साथ दोस्ती करने में झिझक महसूस नहीं करते हैं।
(11) प्रतिभावान बालकों की रुचियों में पर्याप्त विभिन्नता होती है। ये बालक अनेक प्रकार के कार्यों में रुचि लेते हैं। ये अपनी रुचि के कार्यों में बड़ी लगन तथा धैर्य के साथ कार्य करते हैं।
(12) प्रतिभाशाली बालकों में सहयोग, सहिष्णुता, ईमानदारी, दयालुता तथा परोपकार जैसे मानवीय गुण अपेक्षाकृत अधिक होते हैं।
(13) ये बच्चे बड़े होकर पारिवारिक जीवन में अपेक्षाकृत अधिक सुखी होते हैं।
(14) प्रतिभाशाली बालकों का मानसिक स्वास्थ्य उत्तम होता है।
(15) ये बालक खेलकूद में अधिक भाग नहीं लेते हैं। यदि वे भाग लेते हैं तो सफलता प्राप्त करते हैं। खेलकूद की अपेक्षा अपने से बड़ों के साथ मानसिक चिन्तायुक्त वाद-विवादों में भाग लेना अधिक पसंद करते हैं।
(16) ये बच्चे बड़े होकर अपने व्यवसाय में अपेक्षाकृत अधिक सफलता प्राप्त करते हैं।
(17) ये बच्चे समय को बर्बाद करना पसंद नहीं करते ।
(18) इन बच्चों में तर्क-शक्ति पर्याप्त होती है।
(19) ये बच्चे चिन्तन प्रधान होते हैं।
(20) ये अधिकांशतः विनोदप्रिय होते हैं।
प्रतिभावान बालकों की समस्यायें
प्रतिभावान बालक की अपनी अलग समस्यायें होती हैं। उनकी तरफ भी ध्यान देन आवश्यक है, जो इस प्रकार से है--
(1) सर्वप्रथम यह आवश्यक है कि प्रतिभावान बालक को पहचान लिया जाये कभी-कभी ऐसे बालकों को शिक्षक नहीं पहचानता है और उन्हें पिछड़े बालक मान लेता है जिससे उनका उचित विकास नहीं हो पाता।
(2) साधारण कक्षाओं में पढ़ने पर प्रतिभावान बालक को अपनी क्षमता का पूर्ण विकास करने का अवसर नहीं मिल पाता है। इस कारण उसकी प्रतिभा कुण्ठित हो जाती है।
(3) ऐसे बालक की मानसिक क्षमता अधिक होने के कारण वह वर्ष भर के कार्य को कम समय में ही समाप्त कर लेता है। लेकिन उसे साधारण बच्चों की गति से ही चलना पड़ता है, इसलिए उसकी सीखने की गति उसकी योग्यताओं के अनुपात में नहीं हो पाती। इस कारण उसका समायोजन उचित प्रकार से नहीं हो पाता है।
(4) सामान्य कक्षा में पढ़ने पर प्रतिभावान बालकों को अपनी विशेष योग्यता का शीघ्र पता चल जाता है। इस कारण उसमें अहम् भाव विकसित हो जाता है
तथा वह अन्य बालकों को हेय दृष्टि से देखता है। इस कारण उनका सामाजिक एवं संवेगात्मक समायोजन समाप्त होने लगता है।
(5) सामान्य कक्षा में प्रतिभाशाली बालकों के रटने से सामान्य बालक उनसे सदैव पीछे रहते हैं तथा उन्हें अपनी सम्प्राप्ति पर दुख एवं निराशा होती है। इस कारण उनका मानसिक समायोजन नहीं हो पाता है।
(6) कभी-कभी ऐसे बालक अध्यापक का निरादर, झगड़ा तथा दोषारोपण करते रहते हैं। इस कारण इनकी तरफ विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है क्योंकि उनकी संख्या कम होती है। इसलिए अध्यापक इनकी तरफ आसानी से ध्यान दे सकते है। ये बालक समाज के विकास में उचित योगदान कर सकते हैं।
(7) प्रतिभावान बालकों का घर में भी उचित समायोजन नहीं हो पाता क्योंकि वे यह चाहते हैं कि उनको साधारण बच्चों से अधिक प्रतिष्ठा मिले। इस कारण माता-पिता तथा इन बच्चों में लड़ाई-झगड़े होते रहते हैं।
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