4/03/2025

मनोचिकित्सा का अर्थ और लक्ष्य

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मनोचिकित्सा का अर्थ 

जब से मानसिक विकारों का उपचार मनोवैज्ञानिक उपचार पद्धति द्वारा शुरू हुआ, तब से मनोचिकित्सा में क्रमबद्धता के प्रयास हो रहे हैं। आज मनोचिकित्सा की अनेक शाखाएं हैं, फिर भी दिन-प्रतिदिन हो रहे अध्ययनों के कारण विकास जारी है। मनोचिकित्सा का सीधा सा अर्थ मानसिक विकारो के इलाज से है। आज मनोचिकित्सा का क्षेत्र व्यापक है और दिन-प्रतिदिन अधिक व्यापक होता जा रहा है। इस संबंध में कुछ अधिक कहने से पूर्व आवश्यक है कि मनोचिकित्सा के अर्थ को समझ लिया जाये। विभिन्न विद्वानो के मनोचिकित्सा के अर्थ को लेकर दिए गये विचारो को समझ लिया जाए।

पेज (1962) के अनुसार," मनोचिकित्सा का अर्थ मनोवैज्ञानिक प्रविधियों के द्वारा मानसिक विकारों का तथा विशेष रूप से विभिन्न मनस्तापों का उपचार है।"

फिशर (1948) के अनुसार," मनोचिकित्सा मनोवैज्ञानिक तथ्यों और सिद्धान्तों का एक मुनियोजित और क्रमबद्ध प्रयोग है जिसके द्वारा मानव बीमारियों को बड़े स्तर पर राहत पहुँचाना है, विशेष रूप से उन बीमारियों को जिनकी उत्पत्ति मनोजन्य कारणों से होती है।"

लैण्डिस और बाल्स (1950) के अनुसार, " मनोचिकित्सा का अर्थ मानव मन के ऊपर नानसिक साधनों के द्वारा प्रभाव डालने की क्रिया है, जिसका अभिप्राय रोग का निराकरण करना है।" 

उपर्युक्त परिभाषाओं के विश्लेषण के आधार पर यह कहा जा सकता है कि, " मनोचिकित्सा का अर्थ मनोवैज्ञानिक प्रविधियों के द्वारा उन मानसिक विकारों का उपचार करना है जो मनोजन्य कारणों से उत्पन्न हुए हैं।"

अतः स्पष्ट है कि मनोचिकित्सा का अर्थ उपचार पद्धति से है। इससे रोगों का न्यूनीकरण भी हो सकता है और निराकरण भी। मानसिक विकारों का उपचार मनोवैज्ञानिक तथ्यों और सिद्धान्तों पर आधारित होता है। इस उपचार पद्धति का उपयोग केवल कुछ ही मानसिक विकारों के उपचार में ही नहीं आता है बल्कि अधिकांश मानसिक विकारों के उपचार में मनोचिकित्सा पद्धति का प्रयोग किया जाता है। मानसिक विकारों में यह उपचार पद्धतियाँ अधिक लाभप्रद तथा सुफलदायक हैं, जिनकी उत्पत्ति मुख्यतः मनोजन्य कारणों से होती है।

मनोचिकित्सा के लक्ष्य 

मनोचिकित्सा के लक्ष्य निम्नलिखित हैं--

1. लक्षणों से छुटकारा पाना (To Relieve of Symptoms) 

मनोचिकित्सा का प्रमुख उद्देश्य रोग के लक्षणों को कम करना या दूर करना है। मनोचिकित्सक रोगी के लक्षणों के अन्तर्निहित कारकों को समझता है, फिर अन्तर्निहित कारकों और समस्याओं को दूर करके लक्षणों को दूर करने का प्रयास करता है।

2. प्रसन्न रहने की क्षमता बढ़ाना (To Increase Ability to be Happy) 

विभिन्न मानसिक विकारों से पीड़ित रोगी कुसमायोजित ही नहीं होते हैं बल्कि उनमें प्रसन्नता को शून्यता या अभाव भी पाया जाता है। मनोचिकित्सा का उद्देश्य रोगी में प्रसन्न रहने की क्षमता को बढ़ाना है अर्थात रोगी के जीवन को सुखमय बनाना है।

3. समायोजन में सहायता (Aid in Adjustment) 

मानसिक विकारों से ग्रस्त रोगियों का समायोजन दोषपूर्ण होता है या जीवन की विभिन्न परिस्थितियों में वे कुसमायोजित होते हैं। मनोचिकित्सा के द्वारा इनको इस योग्य बनाने का प्रयास किया जाता है कि वे जीवन की विभिन्न परिस्थितियों में प्रभावपूर्ण समायोजन कर सकें।4.स्वाभाविकता को बढ़ाना (To Increase Spontaneity) 

मानसिक रोगों से ग्रस्त व्यक्ति में स्वाभाविकता का अभाव पाया जाता है। मनोचिकित्सा के द्वारा रोगी में स्वाभाविकता उत्पन्न करने का प्रयास किया जाता है।

5. कार्यक्षमता को बढ़ाना (To Increase Efficiency)

मानसिक रोगों से ग्रस्त व्यक्तियों की कार्यक्षमता सामान्य व्यक्तियों की अपेक्षा कम होती है। मनोचिकित्सा का लक्ष्य रोगी की कार्यक्षमता को सामान्य बनाना होता है।

6.आत्म-सम्मान और सुरक्षा की भावना को बढ़ाना (To Increase Feeling of Self Esteem and Security)

मानसिक रोगों से ग्रस्त व्यक्ति का आत्म-अवमूल्यन हो जाता है। वह अपने आपको असहाय और असुरक्षित अनुभव करता है। मनोचिकित्सा का उद्देश्य रोगी का आत्म-सम्मान बढ़ाना तथा उसमें सुरक्षा की भावना उत्पन्न करना है।

7. अन्तर्दृष्टि मे वृद्धि करना (To Increase Insight)

मानसिक रोगियों में अन्तर्दृष्टि की कमी पायी जाती है। मनोचिकित्सा के द्वारा उनमें अन्तर्दृष्टि को सामान्य अवस्था की भाँति उत्पन्न करना होता है।

8. धनात्मक लक्ष्यों की ओर प्रेरित करना (To Motivate toward Positive Goals)

मानसिक रोगियों में धनात्मक लक्ष्यों का अभाव पाया जाता है। रोग जितने ही अधिक गंभीर होते हैं, रोगियों में आदर्श लक्ष्यों का उतना ही अधिक अभाव पाया जाता है। मनोचिकित्सा के द्वारा रोगियों को धनात्मक और आदर्श लक्ष्यों की ओर प्रेरित किया जाता है।

9. आत्मस्वीकृति में वृद्धि (To Increase Self Acceptance)  

मनोचिकित्सा के द्वारा रोगी में साहस और विश्वास की वृद्धि की जाती है जिससे कि वह अपनी वास्तविकता को स्वीकार कर सके।

इसके अलावा कोलमैन ने (1976) मे मनोचिकित्सा के 6 लक्ष्यों को बताया था। जो इस प्रकार है-- 

(1) कुसमायोजित व्यवहार प्रतिमानों को परिवर्तित करना। 

(2) कुसमायोजन उत्पन्न करने वाली या कुसमायोजन को निरंतर बनाये रखने वाली परिस्थितियों को कम करना या पूर्णतः समाप्त करना।

(3) अन्तर्वैयक्तिक क्षमताओं को बढ़ावा देना। 

(4) अवांछित अन्तर्द्वन्द्वों को कम करना। 

(5) रोगी के स्वयं उसके प्रति गलत धारणाओं को तथा उसकी उसके वातावरण और संसार के प्रति त्रुटिपूर्ण धारणाओं को संशोधित और रूपान्तरित करना। 

(6) अर्थपूर्ण तथा रचनात्मक जीवन की प्राप्ति हेतु जीवन मार्ग का निर्माण करना।

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