4/12/2025

हिस्टीरिया का अर्थ और लक्षण

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हिस्टीरिया का अर्थ

जब कोई व्यक्ति ज्यादा डर, चिंता या तनाव में आकर ऐसा व्यवहार करने लग जाता है, जैसे उसे कोई गंभीर बीमारी हो गई हो, या वह अचानक रोने-चिल्लाने लगे, जबकि उसका कोई शारीरिक कारण न हो तब उसे हिस्टीरिया कहा जाता है। उदाहरण के लिए अचानक, चिल्लाना, घबरा जाना, बैहोशी सी महसूस होना आदि। ये जो सब भी होता है ये इंसान के दिमाग की उपज होती है जबकि इसका वास्तविक शारिरिक बीमारी से कोई लेना देना नही होता। इसी को हिस्टीरिया कहा जाता है। हिस्टीरिया का सीधा सा मतलब एक मानसिक विकार से है। जो वास्तविक मे होता नही हैं लेकिन इंसान के दिमाग की उपच के कारण उसे बीमारी महसूस होने लगती है।

हिस्टीरिया शब्द की उत्पत्ति हिस्टेरिया (Hysteria) शब्द से हुई है जो एक लैटिन शब्द है। ग्रीक में इस शब्द का अर्थ गर्भाशय से लिया जाता है। अतः हिस्टीरिया की शाब्दिक रचना के आधार पर इसे गर्भाशय से सम्बन्धित मनोविकृति कहा जा सकता है। हिस्टीरिया शब्द के ऐतिहासिक विवरण द्वारा यह पता चलता है कि हिस्टीरिया शब्द को मनोविकृति के रूप में सर्वप्रथम हिप्पोक्रेटीज नामक यूनानी चिकित्सक ने प्रयुक्त किया था। उनका इस सम्बन्ध में यह विचार था कि कुण्ठित गर्भाशय सैक्स इच्छा और सन्तान प्राप्ति की इच्छा के कारण सम्पूर्ण शरीर में भ्रमण करता है। उसकी यह इच्छा पूर्ण न होने पर जो मनोविकृति होती है उसे उन्होंने हिस्टीरिया अथवा गर्भाशय का नाम दिया। इसके पश्चात् कालान्तर में फ्रायड ने इस रोग के विषय में अध्ययन किये तथा उनके आधार पर कहा कि हिस्टीरिया का कारण काम-जनित अन्तर्द्वन्द्व होता है। उन्होंने इस मानसिक विकृति को कनवर्जन हिस्टीरिया (Conversion Hysteria) कहा है। इस प्रकार आधुनिक समय में भी इन मनोविकृतियों को कनवर्जन हिस्टीरिया की कहा जाता है।

हिस्टीरिया की परिभाषा 

विभिन्न विद्वानों द्वारा हिस्टीरिया की प्रमुख परिभाषाएं निम्नलिखित हैं--

कैमरान के अनुसार,"कनवर्जन प्रतिक्रिया वह प्रतिक्रिया है जिसमें अचेतन अन्तर्द्वन्द्व किसी शारीरिक लक्षण में रूपान्तरित (बदल जाता) हो जाता है साथ ही साथ यह प्रक्रिया रोगी की चिन्ता और तनाव को अन्तर्द्वन्द्व की प्रतीकात्मक अभिव्यक्ति के द्वारा कम करती है।"

सिगमंड फ्रायड के अनुसार, " हिस्टीरिया एक ऐसी मानसिक स्थिति है जिसमें दबी हुई इच्छाएँ या अवचेतन (unconscious) में छिपे संघर्ष शारीरिक लक्षणों के रूप में प्रकट होते हैं।"

पेज के अनुसार, "उन्माद वस्तु जीवन की कठिनाइयों के प्रति अभियोजन हेतु अनायास और अनियोजित प्रतिक्रिया की चेष्टा है जो शारीरिक अयोग्यता के रूप में पलायन की प्रवृत्ति की अभिव्यक्ति है।"

कोलमैन के अनुसार, "उन्माद मनोस्नायु रोगियों में बिना किसी आंगिक व्याधि के शारीरिक रोगों के लक्षण देखे जाते हैं, अर्थात व्यक्ति का मानसिक द्वन्द्व शारीरिक लक्षणों के रूपो में रूपान्तरित हो जाता है।"

पियरे जने के अनुसार," हिस्टीरिया वह स्थिति है जिसमें व्यक्ति की मानसिक ऊर्जा का नियंत्रण टूट जाता है और उसका व्यवहार बिखर जाता है।"

उपरोक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि कनवर्जन हिस्टीरिया एक ऐसा मानसिक विकार है जिसमें व्यक्ति का अचेतन अन्तर्द्वन्द्व शारीरिक लक्षण में परिवर्तित हो जाता है अर्थात् जब कोई दमित अन्तर्द्वन्द्व शारीरिक कष्ट के रूप में प्रकट होता है तब उसको कनवर्जन हिस्टीरिया कहा जाता है।

हिस्टीरिया के लक्षण

हिस्टीरिया के लक्षणों को मुख्यतः तीन वर्गों में विभाजित किया जा सकता है जिनका संक्षिप्त विवरण निम्न प्रकार है--

(अ) ज्ञानेन्द्रिय लक्षण 

हिस्टीरिया में कोई भी ज्ञानेन्द्रिय लक्षण उत्पन्न हो सकते हैं। जैसे-- कान सम्बन्धी, आँख सम्बन्धी, घ्राण सम्बन्धी, त्वचा सम्बन्धी तथा जिह्वा सम्बन्धी। इन पाँचों ज्ञानेन्द्रियों से पाँच प्रकार के लक्षण उत्पन्न हो सकते हैं-- 

(i) संवेदन शून्यता

(ii) संवेदनशीलता का आंशिक ह्यस 

(iii) संवेदन की तीव्रता 

(iv) विचित्र संवेदना 

(v) दर्द की संवेदना की शून्यता।

ये पाँचों लक्षण पाँच ज्ञानेन्द्रियों में से किसी भी ज्ञानेन्द्रिय को प्रभावित करके उससे परिलक्षित हो सकते हैं। जैसे-- कान से कम सुनना, कुछ सुनने में क्षीणता, विचित्र शब्द सुनाई देना, अधिक तीव्रता से सुनाई देना तथा कान में विकार होने पर भी दर्द का अनुभव न होना। इसी प्रकार आँख, नाक, त्वचा तथा जिह्वा से सम्बन्धित विकार दिखाई दे सकते हैं

हिस्टीरिया के रोगों में मुख्यतः संवेदना सम्बन्धी लक्षण ही अधिक दिखाई देते हैं जिनमें प्रमुख लक्षण है-- जांघ असंवेदिता, बधिरता, अन्धापन, अघ्राणता। ये चारों लक्षण त्वचा, कान, घ्राण तथा आँख इन्द्रियों से सम्बन्धित हैं। इन लक्षणों को आँख से सम्बन्धित लक्षण के रूप में एक उदाहरण द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है। आँख के अन्धेपन से सम्बन्धित लक्षण हैं- द्विदृष्टि, रतौंधी आदि।

(ब) गत्यात्मक लक्षण 

हिस्टीरिया में कुछ गत्यात्मक लक्षण भी परिलक्षित होते हैं। जिनका विवरण इस प्रकार है--

(i) लकवा

लकवा भी हिस्टीरिया का एक गत्यात्मक लक्षण होता है। इसमें व्यक्ति के शरीर का कोई अंग निष्क्रिय हो जाता है।

(ii) आक्षेप 

आक्षेप एक प्रकार के दौरे की स्थिति है जो मिर्गी के दौरे के समान ही होता है। यह दौरे बहुधा उस समय पड़ते हैं, जब हिस्टीरिया का रोगी अनेक व्यक्तियों के बीच में होता है।

(iii) वाणी विकार

हिस्टीरिया में कुछ गत्यात्मक लक्षण वाणी सम्बन्धी भी परिलक्षित होते हैं। जैसे आवाज बन्द हो जाना तथा खांसने पर आवाज निकलना, गूंगा हो जाना तथा हकलाना।

(iv) टिक 

मांसपेशियों के स्फुरण को टिक कहते हैं। यह भी हिस्टीरिया का गत्यात्मक लक्षण होता है।

(v) पेशीय 

आकुंचन हिस्टीरिया में व्यक्ति की मांसपेशियों में दृढ़ता आ जाती है। इन रोगियों को कभी-कभी चलने फिरने में भी परेशानी होती है जिसका कारण माँसपेशियों का आकुंचन ही होता है।

(vi) ऐंठन

हिस्टीरिया का एक लक्षण पेशीय ऐंठन भी होता है। पेशीय ऐंठन में व्यक्ति में किसी कार्य में बार-बार असफलता मिलने पर कुण्ठा की स्थिति में होती है। इसमें कभी-कभी व्यक्ति शारीरिक क्रियायें भी नहीं कर पाता।

(vii) कम्पन 

कम्पन से अभिप्राय शरीर के कांपने से है। हिस्टीरिया में भय एवं तीव्र संवेदनशीलता की स्थिति में शरीर कांपने लगता है।

(स) अन्तरांगी लक्षण 

कनवर्जन हिस्टीरिया के कुछ अन्तरांगी लक्षण भी होते हैं। अन्तारांगी से अभिप्राय शरीर के आन्तरिक अंगों में परिलक्षित होने वाले लक्षणों से है। इन लक्षणों में मुख्य हैं- सिर दर्द, गले का बन्द हो जाना, खाँसी, उल्टी, भोजन में अरुचि होना, जी मिचलाना, श्वास लेने में कठिनाई आदि।

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