4/08/2025

असामान्य व्यवहार के सामाजिक कारण

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असामान्य व्यवहार के सामाजिक कारक

अनेक अध्ययनों द्वारा यह देखा गया है कि सामाजिक कारक भी व्यक्ति के मानसिक विकारों को उत्पन्न करते हैं। इस विषय में मीड महोदय ने कहा है, "व्यवहार के स्वरूप का निर्धारण समाजीकरण द्वारा होता है। भिन्न-भिन्न संस्कृतियों के मूल्य अलग-अलग होते हैं। पालन-पोषण, अनुशासन और दण्ड देने के ढंग में अन्तर है। यदि इन ढंगों को व्यक्ति दोषपूर्ण ढंग से सीखता है तब उसका व्यक्तित्व दोषपूर्ण होगा।" इस प्रकार यह देखा गया है कि ग्रामीण समाज की बजाय नगरीय जीवन अधिक विकारयुक्त होता है। इसका कारण शहरी जीवन की तीव्रता एवं जटिलता होती है। मानसिक विकार या असामान्य व्यवहार उत्पन्न करने वाले कुछ प्रमुख सामाजिक कारक इस प्रकार हैं--

1. युद्ध और हिंसा

जब दो देशों में युद्ध होता है तब दोनों देशों के व्यक्तियों में तनाव की स्थिति बन जाती है और व्यक्तियों का व्यवहार असामान्य हो जाता है। युद्धों में अत्यधिक जन-धन की हानि होती है, अनेक परिवार टूट जाते हैं तथा अनाथ बच्चों की संख्या बढ़ जाती है। इस स्थिति में समाज का प्रत्येक व्यक्ति युद्ध से किसी न किसी प्रकार से प्रभावित होता है। युद्ध की विभीषिका से भयाक्रांत लोग पागलपन के शिकार हो जाते हैं। अतः युद्ध व्यक्तियों को असामान्य बनाने वाला एक प्रमुख सामाजिक कारक है।

2. दुत तकनीकी और सामाजिक परिवर्तन

आज का युग वैज्ञानिक युग है। समाज में आज नई-नई तकनीकों के कारण अनेक सामाजिक परिवर्तन हो रहे हैं। द्रुतगति से विकसित होने वाली तकनीकी और सामाजिक उन्नति ने मानव व्यवहार को अत्यधिक प्रभावित किया है। उसके आदर्शों, मान्यताओं और विश्वासों में भी लगातार परिवर्तन हो रहे हैं। इसके अतिरिक्त व्यक्ति का सामाजिक, आर्थिक, पारिवारिक और सांस्कृतिक जीवन भी परिवर्तित हो रहा है जिसके कारण वैयक्तिक विघटन, अनुशासनहीनता, नशाखोरी, उन्माद, अपराध, आत्महत्या और पागलपन जैसी असामान्य क्रियाओं में भी लगातार वृद्धि हो रही है, जिनके परिणामस्वरूप व्यक्ति का जीवन अशान्त, चिन्तित तथा तनाव में ग्रसित हो गया है। अतः तकनीकी और सामाजिक परिवर्तन भी असामान्य व्यवहार का सामाजिक कारण है।

3. समूह पक्षपात और जातीय भेदभाव

समूह पक्षपात और जातीय भेदभाव भी व्यक्ति के व्यवहार को असामान्य बनाने वाला एक महत्वपूर्ण कारक है। विश्व के प्रत्येक देश में प्रजातीय भेदभाव किसी न किसी रूप में विद्यमान है। अमेरिका और अफ्रीका में गोरे और काले का भेद भी जातीय भेदभाव ही है। भारतवर्ष में इस कारक की जड़ें बहुत गहरी हैं। इसके अलावा स्त्री जाति और पुरुष जाति का भेदभाव तो सार्वभौमिक ही है। यह समूह पक्षपात और जातीय भेद एक दूसरी जाति के समूहों में अलगाव की भावना को जन्म देता है। एक-दूसरे के प्रति द्वेष की भावना का मूल कारण भी यही है। इस प्रकार जहाँ जिस जाति का बाहुल्य होता है वहाँ दूसरी अल्प संख्यक, जाति के लोगों में हीन भावना का जन्म होता है जिसके परिणामस्वरूप उनका व्यवहार असामान्य हो जाता है।

4. आर्थिक और व्यावसायिक समस्यायें

आर्थिक और व्यावसायिक समस्याओं के कारण भी व्यक्ति असमान्य व्यवहार करने लगता है। यदि व्यक्ति का व्यवसाय ठीक प्रकार से नहीं चल पाता तो उसे आर्थिक संकट का सामना करना पड़ता है जिसके कारण वह चिन्ता, उदासीनता आदि का शिकार हो जाता है। यदि व्यक्ति में इन समस्याओं का सामना करने की क्षमता नहीं होती तो वह अनेक मनोविकारों से ग्रसित हो जाता है। व्यवसाय में हानि उठाने की स्थिति में लोग कभी-कभी पागलपन के शिकार हो जाते हैं। इसके अतिरिक्त यदि व्यक्ति बेरोजगार होता है तब व्यक्ति में अशान्त और निकम्मेपन की भावना उत्पन्न हो जाती है, इसके कारण व्यक्ति के आक्रामक होने की सम्भावना भी होती है तथा वह कभी-कभी आत्महत्या की ओर भी उन्मुख हो सकता है। अतः आर्थिक और व्यावसायिक समस्यायें भी असामान्यता की कारक होती है।

5. असामान्य व्यवहार की उत्पत्ति में सांस्कृतिक कारकों का प्रभाव

असामान्य व्यवहार की उत्पत्ति में समाज-सांस्कृतिक कारकों का दुष्प्रभाव उस स्थिति में देखने में आता है, जबकि एक समाज के सामाजिक व सांस्कृतिक मानकों का स्वरूप आदि कठोर तथा प्रतिस्पर्धात्मक होता है। एक सामान्य व्यक्ति का उपलब्ध बौद्धिक स्तर उनके परिपालन के लिए अपर्याप्त तथा एक प्रकार से अनुपयुक्त ही रहता है। दूसरे, जब सामाजिक स्तर पर व्यक्ति को अनेक पूर्वाग्रहों, धार्मिक तथा सामुदायिक संघर्षों व तानों का सामना करने के लिए विवश होना पड़ता है, तब भी इस प्रक्रम में उसकी सीमित उपलब्ध मानसिक शक्ति और भी क्षीण होती जाती है।

प्रचलित व सांस्कृतिक स्थिति के परिवेश में कभी-कभी व्यक्ति को निर्धनता, असुरक्षा, बेरोजगारी तथा बढ़ती हुई मँहगाई की कष्टकारक मार को भी सहन करना पड़ता है। ऐसे ही, जब कभी व्यक्ति को अप्रत्याशित रूप से स्थानीय दंगों व संघर्षों तथा राष्ट्रीय स्तर पर युद्ध जैसी भयंकर स्थितियों तथा उसके प्रभाव से उत्पन्न नागरिक सुविधाओं के अभावों तथा अन्य कठिनाइयाँ आती है, तब ऐसी स्थितियाँ व्यक्ति के लिए कुण्ठा कारक तथा कष्टकर ही नहीं होती, बल्कि कभी-कभी इनके तीव्र प्रभाव से उसके अहम् की सुरक्षात्मक संरचना भी एक घोर संकट में फँस जाती है और टूटने लगती है। ऐसी स्थिति में उसके व्यवहार में असामान्य व्यवहार के लक्षण दिखाई देने लगते हैं। इस प्रकार कुछ सीमा तक व्यक्ति के असामान्य व्यवहार में सामाजिक-सांस्कृतिक कारकों की भी विशेष भूमिका होती है।

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