2/08/2023

योग मुद्रा का अर्थ, प्रकार

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योग मुद्रा का अर्थ (yoga mudra kya hai)

मुद्रा शब्द संस्कृत का शब्द है जिसका अर्थ है 'भाव-भंगिमा' (हावभाव)। ये मुद्राएं अतीन्द्रिय, भावात्मक, भक्तिपूर्ण तथा सौन्दर्य बोधक हो सकती है। प्राचीन काल के साधु संत और योगि शरीर के अंदर मौजूद पांच तत्व हवा, पानी, अग्नि, पृथ्वी और आकाश को संतुलित रखने के लिए योग मुद्राएं करते थे या वर्तमान मे भी करते हैं। 
आयुर्वेद के अनुसार हमारा शरीर पाँच तत्त्वों से बना है, आकाश, अग्नि, जल, वायु और पृथ्वी। योग मुद्र्ओं का उद्देश्य इन पाँचों तत्त्वों के बीच संतुलन स्थापित करना है। 
कुलार्णव तन्त्र के अनुसार मुद्रा की व्युत्पत्ति मुद' धातु से हुई है, जिसका अर्थ प्रसन्नता या 'उल्लास' होता है तथा द्र के कारण रूप द्रव्य का अर्थ होता है 'खींचना'। मुद्रा को मुहर लघुमार्ग या पार्श्व-पथ के रूप मे भी परिभाषित किया जाता हैं। 
हठ योग प्रदीपिका और घेरण्ड संहिता मुद्राओं पर मुख्य ग्रंथ है। हठ योग प्रदीपिका में 10 मुद्राओं और घेरण्ड संहिता मे 25 मुद्र्ओं का वर्णन है। मुद्राएँ बोध मे परिवर्तन लाती है तथा सजगता व एकाग्रता को गहरा बनाती है। किसी मुद्रा मे आसन, प्राणायाम तथा मानस-दर्शन के अभ्यासों के साथ सम्पूर्ण शरीर की सहभागिता हो सकती है तथा दूसरी ओर यह मात्र हस्त मुद्रा भी हो सकती है। हठयोग प्रदीपिका तथा अन्य योग-शास्त्रों में मुद्रा को 'योगांग' कहा गया है, जिसमे बहुत सूक्ष्म सजगता की आवश्यकता होती है। आसन, प्राणायाम तथा बन्ध में थोड़ी दक्षता प्राप्त हो जाने पर तथा स्थूल अवरोधों को दूर कर देने के बाद मुद्रा से परिचित कराया जाता है। इन अभ्यासों को करने से पहले गुरूओं से इन विधियों का व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त करना आवश्यक माना जाता है। मुद्राओं के श्वास अभ्यास और प्राणायाम-अभ्यास उच्च कोटि के होते है, जिससे प्राणों, चक्रों तथा कुण्डलिनी का जागरण होता है तथा उच्च साधकों को महान सिद्धियाँ प्राप्त होती है। मुद्रा इस अद्भुत शरीर रूपी यन्त्र की एक मौन भाषा है। यह योग की एक अनोखी विचित्र, चमत्कारी एवं वैज्ञानिक परा विद्या है, मुद्राएँ शरीर में स्विच का कार्य करती है मुद्राएँ इन्जेक्शन की भांति शीघ्र असर करती है। मुद्राएँ शरीर की खोई हुई शक्ति को पुनः वापस ला देती हैं, जैसे-- अनिद्रा, कैंसर, तनाव, उल्टी, घबराहट, सर्दी-जुकाम, विटामिनों की कमी को मुद्राएँ दूर करती हैं।

योग मुद्राओं के प्रकार (yoga mudra ke prakar)

योग मुद्राओं को निम्नलिखित 5 भागों में बाँटा गया हैं-- 
1. हस्त मुद्राएँ 
हस्त मुद्राएँ हाथों द्वारा उत्सर्जित होने वाले प्राण को पुनः शरीर में वापस कर देती है। ऐसी मुद्राएँ जिनमें अँगूठे तथा तर्जनी को मिलाकर रखा जाता है, बहुत सूक्ष्म स्तर मोटर काॅर्टेक्स को प्रेरित करती है, जिससे ऊर्जा का एक परिपथ निर्मित होता है, जो मस्तिष्क से निकलकर हाथ तक जाता है, फिर वापस मस्तिष्क मे जाता है। इस प्रक्रिया को सचेतन सजगता से बहुत शीघ्र अन्तर्मुखता की अवस्था प्राप्त होती है। इसमे निम्नलिखित मुद्राएँ आती हैं--
(1) ज्ञान मुद्रा 
(2) भैरव मुद्रा 
(3) ह्रदय मुद्रा 
(4) चिन मुद्रा
(5) योनि मुद्रा।
2. मन मुद्राएँ
मन मुद्राएँ कुण्डलिनी योग के अभिन्न अंत तथा इसमे से कई अपने आप में ध्यान की विधियाँ भी हैं। इनमें आँखों, कानों, नाक, जिह्य तथा होठों का उपयोग किया जाता है। इस समूह में निम्नलिखित मुद्राएँ आती हैं--
(1) शाम्भवी मुद्रा 
(2) भूचरी मुद्रा 
(3) नसिकाग्र मुद्रा 
(4) काफी मुद्रा
(5) आकाशी मुद्रा 
(6) आकाशी मुद्रा 
(7) भुजंगिनी मुद्रा 
(8) खेचरी मुद्रा 
(9) उन्मनी मुद्रा
(10) षष्मुखी मुद्रा। 
3. काया मुद्राएँ
इन अभ्यासों में शारीरिक स्थितियों के साथ श्वसन एवं एकाग्रता को जोड़ा जाता है। इसमे निम्नलिखित मुद्राएँ आती हैं-- 
(1) प्राणमुद्रा
(2) पाशिनी मुद्रा 
(3) योग मुद्रा 
(4) विपरीतकारिणी मुद्रा 
(5) तड़ागी मुद्रा 
(6) माण्डुकी मुद्रा। 
4. बन्ध मुद्राएँ 
इन अभ्यासों में मुद्रा तथा बंध का पपप) महावेध मुद्रा होता है। ये शरीर को प्राण से ऊर्जान्वित कर देते है तथा उसे कुण्डलिन जागरण के लिए तैयार करते है। इस समूह में निम्नलिखित मुद्राएँ आती हैं--
(1) महामुद्रा 
(2) महाभेद मुद्रा 
(3) महावेध मुद्रा।

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