2/14/2022

दलीय व्यवस्था के प्रकार

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दलीय व्यवस्था के प्रकार 

daleey vyavastha ke prakar;किसी देश मे राजनीतिक दलों की संख्या के आधार पर दल व्यवस्था को तीन वर्गों मे विभाजित किया जाता हैं---

1. एकल दल प्रणाली

यदि किसी देश मे एक ही राजनीतिक दल होता है तो वह एकल दल प्रणाली कहलाती है, एक दल वाले देशों के संविधान मे प्रायः उस राजनीतिक दल का उल्लेख होता है। जैसे-- जनवादी चीन मे एकदलीय प्रणाली है, वहां केवल साम्यवादी दल को ही मान्यता है अन्य राजनैतिक विचार रखने वाले राजनितीक दल पर पाबंदी है।

एक दलीय व्यवस्था के गुण 

एक दलीय प्रणाली के निम्नलिखित गुण है-- 

1. राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा 

एक दलीय व्यवस्था राष्ट्रीय एकता के लिए रामबाण औषधि हैं। बहुदलीय प्रणाली या द्विदलीय प्रणाली में प्रायः यह देखा जाता है कि छोटी-छोटी बातों को लेकर दलों में दरारें पड़ती है और प्रायः दल-बदल होता रहता हैं। इससे राष्ट्रीय एकता को हानि पहुंचती है। एक दल प्रणाली में इस प्रकार की संभावना नहीं रहती। 

2. राजनीतिक स्थायित्व 

द्विदलीय और बहुदलीय प्रणाली मे सरकार दलो के आधार पर बनती-बिगड़ती हैं। फ्रांस में दिगाल से पहले आये दिन सरकारें बदलती रहती थी। भारत में भी, 1966 से 1969 तक संयुक्त सरकारों के कालों में दलों के कारण राजनीतिक अस्थिरता का वातावरण उत्पन्न हो गया था, लेकिन एक-दलीय व्यवस्था में राजनीतिक अस्थिरता की गुंजाइश नहीं रहती। रूस में एक-दलीय व्यवस्था होने से वहां राजनीतिक स्थिरता भी सत्ता परिवर्तन भी शांतिपूर्वक हो गया। 

3. राष्ट्रीय उद्देश्यों की सिद्धि में सरलता 

एक-दलीय प्रणाली में राष्ट्रीय उद्देश्यों का निर्माण व उनकी सिद्धि सरलता से होती हैं। कार्यपालिका व्यवस्थापिका और न्यायपालिका में एक ही दल का वर्चस्व होने के कारण सभी स्तरों पर राष्ट्रीय नीतियों का निर्धारण एवं प्राप्ति सरलता से होती है। 

एक दलीय प्रणाली के दोष 

एक दलीय प्रणाली के निम्नलिखित दोष हैं-- 

1. अधिनायक तंत्रों को प्रोत्साहन 

इस प्रणाली में विरोधी दल के अभाव के कारण सत्ताधारी दल के निरंकुश बन जाने की संभावना रहती हैं। इसमें शासितों का अहित होने की संभावना रहती हैं। 

2. सैनिक षड्यंत्रों की संभावना 

एक-दलीय व्यवस्था में सैनिक तानाशाही की संभावना रहती हैं। जिन देशों में एक-दलीय प्रणाली हैं उनमें सत्ता के लिए संघर्ष होते रहते हैं। माओं की मृत्यु के बाद चीन में सत्ता के लिए उदारवादियों एवं उग्रवादियों में सत्ता संघर्ष चला। घाना व नाइजीरिया में भी आये दिन सैनिक षड्यंत्र होते रहते हैं। 

3. नागरिक अधिकारों का अंत 

इस शासन में व्यक्ति के विकास में बाधा पड़ती हैं, क्योंकि नागरिकों की सारी स्वतंत्रता नष्ट हो जाती हैं। विचारों की स्वतंत्रता न होने से नागरिकों के अधिकारों का अंत हो जाता हैं। 

इस प्रकार एक दलीय प्रणाली मे सत्ता के दुरुपयोग और प्रजात्रंत के पराभाव की संभावना बनी रहती हैं, लेकिन इस बात से इंकार नही किया जा सकता है कि इतनी कमजोरियों के बावजूद इस व्यवस्था ने नवोदित राष्ट्रीयता, एकीकरण प्रशासन तंत्र के गठन और विशेषकर साम्यवादी देशों में लक्ष्य निर्धारित एवं लक्ष्य प्राप्ति की दिशा में सराहनीय कार्य किया था।

2. द्वि-दलीय प्रणाली

किसी देश मे दो प्रधान दल होते है और सत्ता इन्ही दो दलों के बीच आती जाती रहती है। यह प्रणाली द्धिदलीय प्रणाली कहलाती है जैसे-- अमेरिका मे डेमोक्रेटिक दल और रिपब्लिकन दल प्रमुख है ब्रिटेन मे अनुदारवादी व श्रमिक दल प्रमुख है। इस प्रकार संयुक्त राज्य अमेरिका और ब्रिटेन की शासन व्यवस्था मे द्विदलीय प्रणाली प्रचलित हैं।

अधिकांश जनतांत्रिक देशों में द्विदलीय व्यवस्था हैं। द्वि-दलीय व्यवस्था में प्रमुख रूप से सत्ता के संघर्ष में दो प्रमुख राजनीतिक दल ही सामने आते हैं। इनमें से एक सत्तारूढ़ दल तथा दूसरा विरोधी दल होता है। सत्ता दोनों दलों के पास ही हस्तांतरित होती रहती हैं। 

द्विदलीय व्यवस्था के गुण 

द्वि-दलीय व्यवस्था के निम्नलिखित गुण बताए जा सकते हैं-- 

1. द्विदलीय पद्धित सुदृढ़ और स्थायी शासन का आधार होती हैं। दो दलों में से एक दल को बहुमत मिलने पर वह संगठित होकर सरकार का निर्माण करता हैं जो स्थिर व सुदृढ़ होती हैं। 

2. दूसरा दल सचेत विरोधी दल का काम करता हैं। सत्तारूढ़ दल की प्रत्येक गतिविधि पर विरोधी दल की निगाह रहती हैं। वह खुलकर गलत नीतियों की आलोचना करता हैं, इससे सत्तारूढ़ दल कोई गलत काम नहीं कर सकता। 

3. प्रशासन संबंधी कुशलता को स्पष्ट देखा जा सकता हैं। सशक्त विरोधी के रहते प्रशासनिक कार्य भी सुचारू रूप से चलता हैं, क्योंकि गलत काम करने पर आलोकना का भय बना रहता हैं। 

4. द्विदलीय व्यवस्था का एक यह भी लाभ हैं कि इससे सरकार की योजनाओं में निरंतरता बनी रहती हैं। सरकार स्थिर होने के कारण दीर्घकालीन योजनाओं को बना सकती हैं। 

5. द्वि-दलीय व्यवस्था में शासन उत्तरदायी होता है। सत्तारूढ़ दल को शासन के दोषों के लिए उत्तरदायी ठहराया जा सकता हैं। 

6. द्विदलीय व्यवस्था मे जो सरकार बनती है वह जनता के मतों की सच्ची अभिव्यक्ति करती है। 

7. द्विदलीय व्यवस्था में जनता द्वारा उम्मीदवारों के चयन में आसानी रहती हैं। उनके सामने दो ही विकल्प होते हैं, उनमें से एक को चुनना होता हैं। 

8. जनता दोनों दलों की नीतियों व कार्यक्रमों का प्रायोगिक रूप देख सकती हैं। अगर एक दल के शासन संचालन से जनता संतुष्ट नहीं है तो अगले चुनाव में वह दूसरे दल को अवसर दे सकती हैं।

द्विदलीय व्यवस्था के दोष 

द्विदलीय व्यवस्था में निम्नलिखित दोष देखने को मिलते हैं-- 

1. द्वि-दलीय व्यवस्था में जनता के सामने दो ही विकल्प होते हैं जिनमें से एक का चयन करना होता हैं। परन्तु यह जरूरी नहीं है कि सारी जनता दोनों दलों की विचारधारा के अनुरूप ही विचार रखती हो।

2. द्वि-दलीय व्यवस्था में एक दल की निरंकुशता हो जाती हैं। एक दल का स्पष्ट बहुमत होने पर यह मनचाही नीतियों व विधियों का निर्माण कर सकता हैं। 

3. द्विदलीय व्यवस्था का एक दोष यह हैं कि इसमें अल्पमत की अवहेलना की जाती हैं। दो दलों में से एक दल, जो सशक्त होगा, हमेशा वही सत्ता में रहेगा और अपनी नींव को और मजबूत करेगा। इसमें अल्पमत के हितों को प्रतिनिधित्व नहीं मिल सकेगा। 

4. दलीय कठोर अनुशासन के कारण दल के नेताओं की ही तानाशाही चलती हैं। दल के अन्य सदस्य नीति, निर्धारण का काम नहीं करते, वे तो केवल बहुमत बनाने के लिए होते हैं। एक शो केस में शो पीस केवल सजावट का काम करते हैं, उन्हें दुकानदार एक जगह से दूसरी जगह रख सकता हैं, उसी प्रकार नेता लोग दल के सदस्यों को इच्छानुसार नचा सकते हैं।

5. द्विदलीय व्यवस्था संपूर्ण राष्ट्र को दो विचारधाराओं में बाँट देती हैं, जो आपातकाल में देश के लिए बहुत ही घातक सिद्ध हो सकती हैं। 

6. सत्तारूढ़ दल के योग्य व विरोधी प्रतिभाशाली व्यक्तियों की प्रतिभा का समुचित उपयोग राष्ट्रहित में नहीं किया जा सकता। 

द्विदलीय व्यवस्था में गुण-दोषों दोनों ही हैं। जनतांत्रिक व्यवस्था के लिए द्विदलीय व्यवस्था लाभप्रद ही रही हैं। अमेरिका व ब्रिटेन में द्विदलीय व्यवस्था ने ही देश को सुदृढ़ स्थिति प्रदान कर रखी हैं। द्विदलीय व्यवस्था में सरकार को स्थिरता व सुदृढ़ता मिलती हैं, यह इसका सबसे बड़ा लाभ हैं।

3. बहु दलीय प्रणाली

यह प्रणाली हमारे भारत मे प्रचलित है यहाँ पर सैकड़ों की संख्या मे अनेक राजनीतिक दल हैं। जहाँ अनेक राजनीतिक दल होते है उसे बहुदलीय प्रणाली के नाम से जाना जाता है। हमारे देश मे बहु दलीय प्रणाली है। निर्वाचन मे किसी एक दल का बहुमत आना आवश्यक नहीं हैं।

जब किसी एक दल का बहुमत नही आता है तो देश या प्रान्त मे साझा सरकार बनाई जाती है। साझा अथवा गठबंधन सरकार मे 2 या 2 से अधिक दल शामिल होते हैं।

बहुदलीय प्रणाली मे दल-बदल एक प्रमुख बुराई है। चुनावों के समय अनेक प्रकार की कठिनाईयाँ आती है। इस प्रणाली मे राजनीतिक दलों की नीतियों मे स्पष्ट अंतर करना कठिन हो जाता है। बहुदलीय प्रणाली मे व्यक्तिनिष्ठ दलों की संख्या बढ़ जाती है। राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं से राजनीतिक दल टूटने लगते हैं और नये दल बबने लगते है।

बहुदलीय व्यवस्था गुण 

बहुलवाद दलीय प्रणाली के निम्नलिखित गुण हैं-- 

1. बहुदलीय व्यवस्था जनतांत्रिक सिद्धान्तों के अनुकूल है। प्रत्येक व्यक्ति के विचार इतने दलों मे से किसी न किसी दल में तो मिलते ही हैं। 

2. बहुदलीय व्यवस्था में अल्पसंख्यकों को भी उचित प्रतिनिधित्व मिल जाता हैं। 

3. इस व्यवस्था में किसी भी दल की तानाशाही नही हो सकती। मिश्रित सरकार होने से कोई दल मनमानी नही कर सकता। 

4. इसमें सभी दलों के कार्यक्रमों व नीतियों की अच्छाइयों को ग्रहण करते हुए देश के हित के लिए प्रभावकारी योजनाएं व नीतियाँ बनाई जा सकती हैं। 

5. इसके अंतर्गत देश के प्रतिभाशाली व योग्य व्यक्ति शासन में आकर अपनी प्रतिभा का योगदान दे सकते हैं।

बहुदलीय व्यवस्था दोष 

इस व्यवस्था की कुछ मुख्य दोष  निम्नलिखित है-- 

1. बहुदलीय व्यवस्था के कारण सरकार मे स्थायित्व नहीं रह पाता। किसी दल का स्पष्ट बहुमत न होने से मिली-जुली सरकार बनती है और उसमे भी किसी दल के सरकार छोड़ने पर सरकार टूट सकती है। फ्रांस में इसी कारण राजनीतिक अस्थिरता रहती हैं। 

2. दलों की कोई निश्चित विचारधारा न होने के कारण वे अवसर का लाभ उठाकर कभी किसी से कभी किसी दल से सामयिक गठबंधन बनाते हैं। 

3. इस व्यवस्था मे दलों का आधार पवित्र नहीं होता हैं। संकीर्ण भावनाएं इनमें प्रबल होती है। यह व्यवस्था राष्ट्र-विभाजन की ओर अग्रसर करती हैं। 

4. इस व्यवस्था में दलों मे अनुशासन कठोर नहीं होता और दल-बदल की प्रवृत्ति को इससे प्रोत्साहन मिलता हैं। 

5. इस व्यवस्था में बहुत से दलों का संगठन मजबूत और प्रभावशाली नही होता। 

6. बहुदलीय व्यवस्था में चुनाव के समय राजनीतिक दल बरसाती मेंढ़क की भाँति टरटराने लगते हैं। उनकी टरटरासट मुख्य दलों के वोटों को कम करने हेतु होती हैं। 

7. दलों के असंतुष्ट गुट अपने अलग दल बनाकर बैठ जाते हैं और कुछ दिन बाद वे अन्य दल के साथ गठबंधन बनाकर अवसरवादिता का लाभ उठाते हैं। 

8. बहुदलीय व्यवस्था में निर्दलीय सदस्य भी चुनाव लड़ते हैं जिनकी कोई नीति व कोई कार्यक्रम नहीं होता। राजनीतिक लाभ के लिए वे किसी भी दल में अपनी निष्ठा दिखा सकते हैं।

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