1/09/2022

व्यवहारवाद का अर्थ, उदय/विकास, विशेषताएं, उपयोगिता, सीमाएं

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प्रश्न; व्यवहारवाद का अर्थ, विशेषताएँ एवं उपलब्धियों का परीक्षण कीजिए। 

अथवा," राजनीति-विज्ञान में व्यवहारवाद के योगदान एवं सीमाओं का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए। 

अथवा", व्यवहारवाद की प्रमुख विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए तथा उसकी दुर्बलताओं को बताइये। 

अथवा" व्यवहारवाद की सामान्य विशेषताएँ कौन-कौनसी हैं? 

अथवा" व्यवहारवाद क्या हैं? राजनीति-विज्ञान की अध्ययन पद्धित के रूप में इसकी व्याख्या कीजिए। 

अथवा" व्यवहारवादी अध्ययन पद्धित किसे कहते हैं? विस्तृत वर्णन करते हुये इसका महत्व समझाइये तथा इसकी सीमाओं पर प्रकाश डालिए। 

अथवा" राजनीति-विज्ञान में 'व्यवहारवाद' पर एक संक्षिप्त निबंध लिखिए।

उत्तर-- 

व्यवहारवाद का अर्थ (vyavharvad kya hai)

राजनीति-विज्ञान के अध्ययन में एक नवीन पद्धति का विकास हुआ है। इसे व्यवहारवादी पद्धित कहते हैं। व्यवहारवादी राजनीतिशास्त्री इस अध्ययन में व्यक्ति और समूहों के व्यवहार को अधिक महत्व देते हैं। उनकी दृष्टि में ऐतिहासिक घटनाओं, राजनीतिक संस्थाओं और संविधान आदि का अध्ययन करना उतना महत्वपूर्ण नहीं होता, जितना मानव व्यवहार का। अध्ययन की इस पद्धित का प्रयोग पहले समाजशास्त्र और मनोविज्ञान में किया जाता था। अब इसका प्रयोग राजनीति-विज्ञान में भी किया जाने लगा हैं। मनोविज्ञान-वेत्ताओं की भांति व्यवहारवादी विद्वान भी यह मानते हैं कि मनुष्य में अपनी भावनायें-मनोवृत्तियाँ, अभिलाषायें और रूझान होते हैं। मनुष्य का राजनीति-व्यवहार इन्हीं मानसिक प्रवृत्तियों से नियंत्रित एवं निर्देशित होता हैं। व्यवहारवादी अध्ययन-पद्धति, समाजशास्त्र और मनोविज्ञान से राजनीति-विज्ञान में आयी हैं। इसलिए राजनीतिशास्त्र का इन समाज-विज्ञानों से एक नया संबंध  जुड़ गया हैं। 

व्यवहारवादी अध्ययन-पद्धित 

व्यवहारवादी अध्ययन-पद्धति को कुछ विद्वान व्यवहारवादी मार्ग के नाम से भी पुकारते हैं। डेविड ईस्टन ने तो इसके तेजी से हुये प्रसार और व्यापकता को देखते हुये इसे व्यवहारवादी क्रांति कहकर पुकारा हैं। रोबर्ट डहाल ने कहा है कि यह अध्ययन-पद्धति राजनीति-विज्ञान की अन्य अध्ययन-पद्धतियों से इतनी अधिक घुल-मिल गयी है कि उसका अलग अस्तित्व ही समाप्त होता जा रहा हैं। ऐसी स्थिति में व्यवहारवादी मार्ग असफल होने के कारण लुप्त नहीं होगा वरन् सफल होने के कारण समाप्त होगा। इस पद्धित की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह राजनीति-विज्ञान के अध्ययन को वैज्ञानिक आधार प्रदान करने में सहायता देती हैं। इसलिए एक विद्वान ने वैज्ञानिकता को ही व्यवहारवादी पद्धित का मुख्य उद्देश्य माना हैं। उन्होंने लिखा कि," व्यवहारवादी मार्ग की प्रमुख पहचान उसके द्वारा सिद्ध किये जाने वाले उद्देश्य का विशिष्ट विशिष्ट स्वरूप हैं, और वह हैं इसकी वैज्ञानिकता।" 

व्यवहारवादी अध्ययन-पद्धति में वैज्ञानिकता पर इतना अधिक बल दिया जाता है कि व्यवहारवादी विचारक वैज्ञानिकता को साधन नही वरन् साध्य मानते हैं। वे इस बात के लिये हमेशा जागरूक रहते हैं कि विषय सामग्री व्यवस्थित एवं क्रमबद्ध रूप से संगठित की जाये। उसका विश्लेषण भी व्यवस्थित रूप में किया जाये। विश्लेषण के आधार पर कुछ सामान्य निष्कर्ष निकाले जायें। ये निष्कर्ष मानव-व्यवहार को समझने में बड़ी सहायता प्रदान करते हैं। इनके वैज्ञानिक आधार के कारण राजनीति-विज्ञान मानव-व्यवहार संबंधी भविष्यवाणी करने में समर्थ होता हैं। 

इस प्रकार व्यवहारवाद राजनीति-विज्ञान के अध्ययन को वैज्ञानिक रूप प्रदान करता हैं। व्यवहारवादी अध्ययन-पद्धति द्वारा निष्पादित सिद्धांत मनुष्य के यथार्थ व्यवहार पर आधारित होते हैं। अतः वे मानव के यथार्थ जीवन के अधिक निकट तथा उसके लिये अधिक उपयोगी होते हैं। राजनीति-विज्ञान के अध्ययन में व्यवहारवादी पद्धित का प्रयोग, अब इतना अधिक होने लगा है कि व्यवहारवाद के अंतर्गत नई-नई अध्ययन पद्धितयां विकसित हुई हैं, जैसे सर्वेक्षणात्मक शोध-पद्धति तथा समस्या अध्ययन-पद्धति इत्यादी।

व्यवहारवाद का उदय और विकास (vyavharvad ka vikas)

राजनीतिक चिंतन के इतिहास में व्यवहारवादी मान्यताओं के कुछ बिखरे प्रसंग प्लेटो और अरस्तू के समय से ही मिलते हैं लेकिन एक सिद्धान्त के रूप में व्यवहारवाद वर्तमान शताब्दी की उपज हैं। पिछले कुछ दशकों में विशेषकर--द्वितीय महायुद्ध के बाद-- 'सरकार तथा राजनीति' के अध्ययन में व्यवहारवादी अध्ययन पद्धित को अधिक महत्व दिया गया हैं। यह अध्ययन-पद्धित वर्तमान शताब्दी की बहुत ही महत्वपूर्ण देन है जिसे विकसित करने का श्रेय अमेरिकी राजनीतिक-वैज्ञानिकों को हैं। आधुनिक रूप में व्यवहारवाद के उदय और विकास के मूल में अनेक कारण निहित रहें जिनमें निम्नलिखित मुख्य हैं-- 

1. अनेक राजनीतिशास्त्रियों को परम्परागत राजनीतिशास्त्री की अध्ययन-पद्धतियों के परिणामों से निराशा हुई। परिणाम निराशापूर्ण इस अर्थ में समझे गए कि वे जीवन की वास्तविकताओं का स्पष्ट और न्यायसंगत चित्र हमारे समक्ष प्रस्तुत नहीं कर पाएंगें। 

2. जब अन्य सामाजिक विज्ञानों में अध्ययन के नवीन तरीकों और उपकरणों के प्रयोग को प्रोत्साहन मिला तो राजनीतिशास्त्र का इससे अछूता रहना संभव न था। 1925 में चार्ल्स मेरियम ने अमेरिकन पाॅलिटिकल साइंस एसोसिएशन की बैठक में अपने अध्यक्षीय भाषण द्वारा विश्वास प्रकट किया कि किसी दिन राजनीतिक व्यवहार राजनीतिक अन्वेषण का आवश्यक विषय बन सकता हैं। चार्ल्स मेरियम के नेतृत्व में शिकागों विश्वविद्यालय अनुभववादी आन्दोलन का केन्द्र बन गया। 

3. 1930 के दशक में अनेक यूरोपीय छात्रों ने अमेरिका में समाजशास्त्रीय विधियों द्वारा राजनीतिक समस्याओं का अध्ययन प्रारंभ किया तो व्यवहारवाद की लोकप्रियता बढ़ने लगी। मैक्सवेबर आदि समाजशास्त्री पहले से ही व्यवहारवादी पद्धित का प्रयोग कर रहे थे। 

4. अमेरिका के विभिन्न विश्वविद्यालयों में राजनीतिशास्त्र और समाजशास्त्र के अध्ययन पद पर आसीन कुछ व्यक्तियों ने राजनीतिक समस्याओं को सुलझाने के लिए समाजशास्त्री और मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों पर विशेष बल दिया। 

5. द्वितीय महायुद्ध ने व्यवहारवाद को गति प्रदान की। युद्धकालीन घटनाओं ने राजनीतिशास्त्रियों के मन में यह बात बैठा दी कि राजनीतिक जीवन की जटिलताओं को पूरी तरह समझने के लिए संस्थाओं और उनकी संरचनाओं के अध्ययन की सीमा से आगे बढ़कर उन संस्थाओं और उनमें कार्य करने वाले व्यक्तियों के व्यवहार का अध्ययन करना होगा। 

6. द्वितीय महायुद्ध के बाद के दशकों में राजनीतिशास्त्र के क्षेत्र के अधिकाधिक विस्तार के साथ यह विचार बल पकड़ता गया कि राजनीतिशास्त्र में नवीन अध्ययन पद्धतियों को स्थान देना होगा। इसका दूसरा अर्थ यह था कि व्यवहारवाद का पोषण किया जाए। 

वर्तमान शताब्दी में राजनीतिशास्त्र में व्यवहारवादी दृष्टिकोण को व्यापक बनाने का प्राथमिक श्रेय आर्थर एफ. बैंटले और ग्राह्रा वैलास को जाता हैं। इस दिशा में प्रगति की रफ्तार तब तेज हुई जब चार्ल्स मेरियम ने सन् 1925 में 'यू आसपेक्ट्स ऑफ पाॅलटिक्स' पुस्तक लिखकर शिकागों स्कूल का उद्घाटन किया। शिकागों स्कूल अंतर-विषय अध्ययन पद्धित और अनुभवजन्य अध्ययन का समर्थक हैं। शिकागों स्कूल व्यवहारवाद का प्रमुख गढ़ बन गया और इसके बाद अनेक निजी संस्थाओं ने सामाजिक विज्ञानों के विकास पर करोड़ों डाॅलर व्यय करके व्यवहारवादी दृष्टिकोण को भारी लोकप्रियता प्रदान की। 

लाॅसवेल, गोसनेल, पेडलटन, हेरिंग आदि ने व्यवहारवादी पद्धित के साहित्य में उल्लेखनीय वृद्धि की। डेविड ईस्टन का योगदान महत्वपूर्ण रहा और आगे चलकर व्यवहारवाद में अभिनव क्रांति-- 'उत्तर व्यवहारवाद' का भी उद्गोषक वही बना। व्यवहारवादियों में एक नए गुट का उदय भी हुआ जिनका तर्क है कि व्यवहारवाद के अंतर्गत शोध-परिणाम प्रायः बहुत विलम्ब से प्राप्त होते हैं और जब तक प्राप्त होते है तब तक उनका महत्व बहुत कुछ समाप्त हो चुका होता हैं, अतः इस स्थिति में परिवर्तन लाया जाना चाहिए। 'उत्तर व्यवहारवाद' के नाम से विख्यात यह आंदोलन व्यवहारवादी कट्टरवाद पर सीधा प्रहार हैं।

व्यवहारवाद की मूल मान्यताएँ 

व्यवहारवाद केवल एक दृष्टि ही नही बल्कि एक समग्र क्रान्ति कहा जाता हैं। व्यवहारवादी दृष्टि की मूल मान्यन्ताएँ चार हैं जिनका ईस्टन, डहाल, केटलिन आदि राजनीतिशास्त्रियों ने विस्तार से विवेचन किया हैं। 

प्रथम, व्यवहारवादी यह मानते है कि अध्ययन की इकाई (unit study) जब तक, 'समष्टि' (Macro) हैं तब तक अध्ययन गहन नहीं बन सकेंगे अतः इस विशालता को विशेषीकरण की दृष्टि से तोड़कर 'व्यष्टि' (Micro) की इकाइयों में परिवर्तित कर दिया जाए। हम किसी भीमकाय प्रशासनिक संगठन का वर्णन करने के साथ-साथ यदि गहराई से यह अध्ययन करें कि संगठन में यह पर्यवेक्षण-प्रक्रिया किन-किन तत्वों से बाधित होती है तो अध्ययन अधिक सार्थक और उपयोगी होगा। व्यवहारवादी दृष्टिकोण छोटे-छोटे विषयों के गंभीर अध्ययन और विश्लेषण को प्राथमिकता देता हैं। 

द्वितीय, व्यवहारवादी दृष्टि अध्ययन की वैज्ञानिकता की बहुत बड़ी पक्षधर है। व्यवहारवादियों की मान्यता है कि तुलनात्मक राजनीति, लोक-प्रशासन आदि का गहन अध्ययन और विश्लेषण एक वैज्ञानिक बौद्धिक प्रयास है और उसकी अध्ययन विधियों में यह अपेक्षित है कि अवधारणाएँ और निष्कर्ष स्थायी, निश्चित तथा सार्वदेशिक बन सकेंगे। व्यवहारवादी राजनीतिशास्त्री निरीक्षणवादी, अनुभववादी एवं प्रयोगवादी शोधकर्ता हैं। 

तृतीय, व्यवहारवादी संहिता यह चाहती है कि ज्ञान के क्षेत्र में वैज्ञानिक विधि से संचित एवं सुरक्षित यह ज्ञान-भण्डार एक विशेष संदर्भ में आगे बढ़ाया जाए। दूसरे शब्दों में, इस ज्ञान की सफलता एवं सच्चाई इस पर निर्भर करेगी कि वह ज्ञान के अन्य पहलुओं से कितना संबंधित हैं। 

चतुर्थ, व्यवहारवाद एक अनुभव-मूलक सिद्धांत का प्रणयन करना चाहता हैं। अनुभव, निरीक्षण, प्रयोग, संदर्भ ज्ञान, परिस्थिति, विवेचन आदि के आधार पर सम्पूर्णता का गहनता से विश्लेषण करने वाले व्यवहारवादी यह मानकर चलते हैं कि तुलनात्मक राजनीति एक अध्ययन-विज्ञान के रूप में अपनी स्वतंत्र विचारधाराएँ आविष्कृत कर सकती हैं। 

व्यवहारवाद के अध्ययन-बिन्दु तथा कार्य-क्षेत्र 

हींज यूलाउ ने व्यवहारवादी दृष्टिकोण के अध्ययन बिन्दुओं और कार्य क्षेत्र को निम्नलिखित बिन्दुओं में समाविष्ट किया हैं-- 

1. व्यक्ति और व्यक्ति के संबंध,

2. समूहों, समुदायों और संगठन के लघु तथा वृहद् रूप और उनके पारस्परिक संबंध, 

3. अपने से अधिक व्यापक व्यवस्थाओं से संबंध, 

4. राजनीतिक व्यवस्थाओं और उप-व्यवस्थाओं के पारस्परिक संबंध जैसे राजनीतिक दलों, दबाव-समूहों, कार्यपालिका आदि के परस्पर संबंध, 

5. विविध अवधारणाएँ, निर्णय समूह, संरचनाएँ, शक्ति-नियंत्रण आदि, 

6. राजनीतिक सिद्धांत एवं दृष्टिकोण आदि, 

7. नीतियाँ, नीति-निर्माण, प्रक्रिया और निर्माण-प्रक्रिया आदि, 

8. तुलनात्मक राजनीति, 

9. नवीन उपकरण और प्रविधियाँ, 

10. प्रक्रियाएँ तथा नवीन कार्यविधियाँ आदि। 

संक्षेप में, राजनीतिक व्यवहार से अभिप्रायः केवल प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से परिवेक्षणीय राजनीतिक क्रियाओं से ही नही हैं, बल्कि इसका संबंध व्यवहार के उन बोधात्मक, अभिप्रेरणात्मक और अभिवृत्यात्मक घटकों से भी हैं जिनसे हमारी राजनीतिक माँगों, आशायों, विश्वासों, मूल्यों, लक्ष्यों की व्यवस्था आदि का ताना-बाना बुना जाता हैं। व्यवहारवादी का संबंध व्यक्ति के केवल बाहरी कार्यों से ही नहीं है बल्कि उसकी भावात्मक, ज्ञानात्मक और मूल्यांकनात्मक प्रक्रियाओं से भी हैं। व्यक्ति की राजनीतिक माँगों, अभिलाषाओं और लक्ष्यों, मूल्यों तथा राजनीतिक विश्वासों की व्यवस्थाओं आदि का निर्माण करने वाली जो भी व्यवहारात्मक प्रक्रियाएँ हैं उन सभी को राजनीतिक व्यवहारवाद की अध्ययन सामग्री माना जाता हैं। व्यवहारवादी अध्ययन वैयक्तिक, सांस्कृतिक, समाज-व्यवस्थात्मक आदि विभिन्न स्तरों पर किए जा सकते हैं।

व्यवहारवाद की विशेषताएं (vyavharvad ki visheshta)

डेविड ईस्टन को व्यवहारवाद का एक आधिकारिक विचारक कहा जा सकता हैं। उसने अपने एक लेख 'The curren meaning of Behaviouralism' में व्यवहारवादी आधारों तथा विशेषताओं को प्रस्तुत किया हैं। यह विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-- 

1. नियमन 

व्यवहारवादियों की मान्यता हैं कि मनुष्य के कई व्यवहार एक जैसे होते हैं। इसी आधार पर व्यक्तियों के व्यवहारों में सरलता से समानताओं को खोजा जा सकता हैं। इन समान व्यवहारों का सामान्यीकरण किया जा सकता है और इस आधार पर व्यक्ति के व्यवहारों का नियमन किया जा सकता हैं। 

व्यक्ति के व्यवहारों के नियमन के आधार पर राजनीतिक स्थितियों को अच्छी तरह समझा जा सकता हैं, उनका विश्लेषण किया जा सकता है तथा इसी आधार पर भविष्यवाणियाँ की जा सकती है। इस प्रकार नियमन के द्वारा राजनीति विज्ञान को वास्तव में विज्ञान बनाया जा सकता हैं। 

2. सत्यापन 

मानवीय व्यवहार के संबंध में एकत्रित सामग्री को दुबारा जाँचने और उसकी पुष्टि करने की प्रक्रिया को सत्यापन कहते हैं। व्यवहारवादियों का विचार हॅ कि राजनीति विज्ञान में निष्कर्षों के सत्यापन की व्यवस्था होनी चाहिए। इसके लिये पर्यवेक्षण जरूरी हैं। पर्यवेक्षण के द्वारा ही सत्यापन किया जा सकता हैं। मान लीजिये यदि हम चुनाव परिणामों के आधार पर इस निष्कर्ष पर पहुँचते है कि मतदाताओं ने साम्प्रदायिकता के आधार पर मतदान किया है तो ऐसी स्थिति में मतदाताओं के राजनीतिक व्यवहार का सत्यापन किया जा सकता हैं। 

3. तकनीकी प्रयोग 

व्यवहारवादी अपने अध्ययन की सत्यता के लिए आधुनिक और वैज्ञानिक तकनीक अपनाने के पक्ष में हैं। उनका मत है कि विभिन्न प्रकार के सर्वेक्षणों द्वारा पहले आँकड़े एकत्र किये जायें, फिर उन आँकड़ों का ठीक प्रकार से वर्गीकरण तथा विश्लेषण किया जाये, तभी किसी निष्कर्ष पर पहुँचा जाये। यह तकनीक पूर्णतः प्रामाणिक तथा परीक्षित होनी चाहिए। ऐसा होने पर ही इसके निष्कर्ष सही हो सकते हैं। व्यवहारवादियों की यह मान्यता है कि वैज्ञानिक उपकरणों के द्वारा सही-सही भविष्यवाणियाँ की जा सकती हैं। 

4. परिमाणीकरण 

व्यवहारवादियों का विचार है कि संबंधित व्यक्तियों से साक्षात्कार लेकर तथा आँकड़े प्राप्त कर उनका वर्गीकरण करना चाहिए। इससे सही निष्कर्ष निकालने में सहायता प्राप्त होती हैं। अतः व्यवहारवादियों के अनुसार, जहाँ तक संभव हो मापन तथा परिमाणीकरण का सहारा लेना चाहिए।

5. मूल्य 

व्यवहारवादियों की धारणा है कि राजनीति वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं को निष्पक्षता का व्यवहार करना चाहिए। निष्पक्ष होकर ही वे सत्य का अनुसंधान कर सकते हैं। उन्हें मूल्यों (Values) के स्‍थान पर तथ्यों (Facts) को महत्व देना चाहिए। डाॅ. एस. पी. वर्मा के शब्दों में," राजनीति विज्ञान राजनीति के क्रियात्मक स्वरूप का अध्ययन है जो अनुभवात्मक पद्धित द्वारा किया जाता है तथा इसका नैतिक प्रश्नों से कोई संबंध नहीं हैं।" 

6. क्रमबद्धीकरण 

अनुसंधान आवश्यक रूप से क्रमबद्ध होना चाहिए। सिद्धांत एवं अनुसंधान को सम्बद्ध क्रमबद्धता ज्ञान के दो भाग समझे जाने चाहिए, जो परस्पर गुँथे हुए हैं। सिद्धांतहीन शोध महत्वहीन होता हैं। अध्ययन, अवलोकन, तथ्यों का संग्रह, सिद्धांत निर्माण, सत्यापन आदि में क्रमबद्धता होना आवश्यक हैं। 

7. विशुद्ध विज्ञान 

व्यवहारवादी, राजनीति विज्ञान को विशुद्ध विज्ञान बनाने के पक्ष में हैं। वे तथ्यों तथा आँकड़ों के आधार पर सिद्धांतों की रचना करने के पक्ष में हैं। इसी सिद्धांत के आधार पर वे समस्याओं के समाधान का प्रयास करते हैं। उनकी पद्धित तथा उनके निष्कर्ष सभी वैज्ञानिक होते हैं।  

8. एकीकरण 

व्यवहारवादियों की मान्यता है कि समस्त मानव व्यवहार एक पूर्ण इकाई है। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है अतः व्यवहारवादियों का विचार है कि राजनीति विज्ञान का अध्ययन अन्य सामाजिक विज्ञानों के संदर्भ में किया जाना चाहिए। 

व्यवहारवाद की उपयोगिता एवं राजनीति पर प्रभाव 

व्यवहारवादी क्रांति के प्रारंभिक दौर में परम्परागत विचारकों तथा व्यवहारवादी विचारकों में शीतयुद्ध का वातावरण बना रहा। परन्तु अब व्यवहारवाद की उपयोगिता को स्वीकार किया जाने लगा है। व्यवहारवाद की निम्नलिखित उपयोगिताएँ हैं-- 

1. व्यवहारवाद ने राजनीति विज्ञान को नवीन रूप में प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। इसने राजनीति में केवल सुधार ही नही किया, अपितु उसका पुनर्निर्माण किया है तथा राजनीति विज्ञान को नये मूल्य, नई भाषा, नई पद्धतियाँ तथा नवीन दिशाएँ प्रदान की हैं। 

2. व्यवहारवादियों ने राजनीति वैज्ञानिकों के दृष्टिकोण को व्यापक बनाया है। उन्होनें इस बात के लिए प्रेरित किया कि राजनीति विज्ञान का अध्ययन अन्य सामाजिक विज्ञानों के संदर्भ में किया जाना चाहिए। 

हडल के शब्दों में," राजनीतिक अध्ययनों को यह आधुनिक मनोविज्ञान, समाजशास्त्र, मानवशास्त्र और अर्थशास्त्र के सिद्धांतों, उपलब्धियों और दृष्टिकोण के निकट संपर्क में लाने में सफल हुआ।" 

3. अभी तक राजनीतिक वैज्ञानिकों ने केवल मूल्यों तथा आदर्शों को ही महत्व प्रदान किया तथा व्यवहारवाद ने राजनीति विज्ञान को यथार्थ के धरातल पर लाकर खड़ा कर दिया। उसने इस बात पर जोर दिया कि राजनीति वैज्ञानिक का संबंध 'क्या हैं' से हैं, न कि 'क्या होना चाहिए' से हैं। 

4. व्यवहारवाद ने राजनीति विज्ञान को नवीन दृष्टि, नवीन पद्धतियाँ, नए मापन तथा नूतन क्षेत्र प्रदान किये है। व्यवहारवाद के परिणामस्वरूप ही राजनीति विज्ञान साक्षात्कार प्रणाली, मूल प्रश्नावली और प्रणाली सोशियों आदि को अपनाने के लिये प्रवृत्त हुआ। इसके कारण राजनीति विज्ञान में केवल मतदान व्यवहार का ही नही, अपितु राष्ट्रीय तथा अन्तरराष्ट्रीय व्यवस्थाओं का अध्ययन भी इस पद्धित के आधार पर किया जाने लगा हैं। 

सेजा पूल के शब्दों में," अब हमारा अनुशासन एक नये सामन्जस्य, एक सुखद एकता और आत्मविश्वासपूर्ण अभिज्ञान का अनुभव करता हैं जो स्वास्थ्य और शोधवर्धन के अनुकूल हैं।"

5. व्यवहारवाद ने राजनीतिशास्त्र को 'राजनीति का विज्ञान' बनाने के लिए प्रेरित किया हैं।

व्यावहारिकवाद की कमियाँ 

अब अधिकतर विद्वान इस बात को स्वीकार करते हैं कि व्यावहारिकवाद ने राजनीति के अध्ययन में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। किन्तु कुछ का कहना है कि राजनीति को समझने के लिए व्यावहारिकवाद की उपादेयता संदिग्ध हैं। व्यावहारिकवादी उपागम राजनीति के अध्ययन के अनेक उपागमों में से एक हैं। यह मानना गलत होगा कि वही एकमात्र उपागम है। मलफर्ड क्यू. सिब्ली का कथन है," राजनीति के अध्येता को व्यावहारिकवादी से कुछ अधिक होना चाहिए, उसे इतिहास, विधिशास्त्री तथा नीतिशास्त्री भी होना चाहिए।" 

दूसरे, व्यावहारिकवादियों की यह धारणा कि शोधकर्ता को मूल्यात्मक दृष्टि से तटस्‍थ होना चाहिए, सर्वथा अमान्य हैं। हर मानव प्राणी में औचित्य तथा प्राथमिकता की जन्मजात भावना होती है, वह स्वयं इस संबंध में जागरूक हो, चाहे न हो। और इस भावना का अर्थ हैं, मूल्यात्मक निर्णय। मूल्य अन्य क्षेत्रों में भी व्याप्त हैं। यहाँ तक कि अध्ययन के क्षेत्रों तथा विषयों का चयन भी किसी सीमा तक शोधकर्ताओं की मूल्यात्मक अभिरूचि पर निर्भर होता है। कोई मानव प्राणी कितना ही कठिन प्रयास क्यों न करे वह अपने को एक निर्देशतंत्र (फ्रेमवर्क) से मुक्त नहीं कर सकता, क्योंकि वह उसमें उत्पन्न होता हैं। 

व्यावहारिकवादी उपागम को कुछ अन्य समस्याओं का भी सामना करना पड़ता हैं, उन्हें पहचान लेना भी आवश्यक है। पहली समस्या का संबंध विश्लेषण के स्तर से है। हमें व्यक्तियों के गुणों को समूहों (विधायिका, राजनीतिक दल, दबाव समूह अथवा कोई अन्य समूह) पर आरोपित नहीं करना चाहिए। और न समूह के गुणों को व्यक्तियों में देखने का प्रयत्न करना चाहिए। एक समूह अपने सदस्यों का योगमात्र नहीं होता। 

व्यावहारिकवादी विश्लेषण में एक अन्य महत्वपूर्ण समस्या हैं, इस बात की आशंका रहती है कि राजनीति वैज्ञानिक कहीं शासकीय प्रत्रिकाओं से बहुत दूर न चला जायें। यह हो सकता है कि राजनीति व्यवस्था के निवेशों (इनपुट्स) का विश्लेषण करते समय शोधकर्ता राजनीतिक संचार (सम्प्रेषण), हित-मुखरण (अभिव्यक्ति), राजनीतिक समाजीकरण आदि कार्यों के अध्ययन में आवश्यकता से अधिक ग्रस्त हो जाये। ईस्टन ने राजनीतिक व्यवस्था के जिस प्रतिरूप (माॅडल) का निर्माण किया है उसके अनुसार निवेशों में माँगे तथा समर्थन सम्मिलित होते हैं, और ये दोनों राजनीतिक समाजीकरण, आप्रवेशन तथा हितों मुखरण (अभिव्यक्ति) और समुच्चीकरण (संकलन) से जुड़े होते हैं। ये निस्संदेह बुनियादी सामाजिक प्रक्रियाएँ हैं, किन्तु इनका राजनीतिक प्रक्रिया तथा निर्गतों (आउटपुटों) से संबंध परोक्ष और अस्पष्ट होता हैं। जैसे कि जाॅजफ ला पालोम्ब्रा ने चेतावनी दी हैं, व्यावहारिकवादी उपागम "अपने आप में अस्वीकार्य हैं, किन्तु तभी और कहीं तक जबकि वह  राजनीति को शासकीय प्रक्रियाओं तथा उनके परिणामों से अत्यधिक दूर कर देता है। इस खतरे से दूर बचने का सबसे अच्छा उपाय यह है कि तुलनात्मक विश्लेषण में राजनीतिक तथा शासकीय संस्थाओं एवं प्रक्रियाओं पर अधिक बल दिया जाये।" 

इसके अतिरिक्त व्यावहारिकवाद ज्ञान के क्षेत्र को सीमित करता है, जो एक गंभीर दोष है। व्यावहारिकवादी उसी  आधार-सामग्री को स्वीकार करते हैं जो आनुभविक पद्धित से प्राप्त की जाती हैं। 'अनुभववाद' की परिभाषा बहुत संकुचित है, उसके अनुसार यह पद (अनुभववाद) शोधकी, प्रश्नावली, साक्षात्कार, सहभागी प्रेक्षण (पार्टीसिपेण्ड ऑब्जरवेशन) आदि सर्वविदित तकनीकों का समानार्थक बन जाता है। यह सही हैं कि तकनीकों से आधार-सामग्री उपलब्ध होती हैं, किन्तु आधार-सामग्री प्राप्त करने की अन्य पद्धतियाँ भी हैं। व्यावहारिकवादी दर्शन को तथा उसी प्रकार के अन्य शास्त्रों को कोई स्थान नहीं देते, उनकी निगाह में वे सब अवैज्ञानिक हैं। और न उन्होंने शेक्सपियर के इस कथन से लाभ उठाया हैं: होरेशियो! तुम्हारे दर्शन में जिन चीजों का स्वप्न देखा गया है उससे कहीं अधिक चीजें पृथ्वी पर और स्वर्ग में है।" ज्ञान का क्षेत्र विस्तृत तथा सर्वदेशीय हैं; वह शोध की कुछ तकनीकों की उपज मात्र नही हैं।

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2 टिप्‍पणियां:
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  1. बेनामी13/12/22, 8:41 am

    Verry good khowlege

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  2. बेनामी31/3/23, 6:34 pm

    व्यवहारवाद कि उत्पत्ति के प्रमुख कारणों कि समीक्षा कीजिए।क्या राजनीति विज्ञान को अन्य प्राकृतिक विज्ञान के समक्ष रखा जाना चाहिए?

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