11/01/2021

विजयनगर साम्राज्य की स्थापत्य तथा मूर्तिकला

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विजयनगर साम्राज्य की स्थापत्य तथा मूर्तिकला 

दक्षिण भारत में दिल्ली सुल्तानों के सैनिक अभियानों, युद्धों तथा राज्य विस्तार से वहाँ के हिन्दुओं के राज्य, धर्म एवं संस्कृति का जो विनाश हुआ उससे क्षुब्ध होकर हिन्दुओं ने इस्लाम विरोधी आंदोलन किये। विजयनगर का अभ्युदय इसी धार्मिक तथा सांस्कृतिक आंदोलन का परिणाम था। मुहम्मद तुगलक के समय जब दक्षिण में उसके विरूद्ध विद्रोह तथा अराजकता फैली, उस समय हरिहर एवं बुक्का दो भाइयों ने मुस्लिम विरोधी हिन्दु आंदोलन को मूर्त रूप देने के लिए 1336 ई. में विजयनगर (विद्यानगर) की स्थापना की। 

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विजयनगर साम्राज्‍य के शासक अपने कला-प्रेम के लिए विख्यात थे। उन्होंने बहुत से महल, सार्वजनिक इमारतें तथा मन्दिर निर्मित कराये। मंदिरों की अत्यधिक संख्या के कारण विजयनगर को 'मंदिरों का नगर' भी कहा जाता था। विजय नगर साम्राज्‍य के स्थापत्य तथा मूर्तिकला का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित हैं-- 

1. स्थापत्य मंदिर 

(अ) विट्ठल मंदिर 

यह मंदिर हम्पी में कृष्णदेव (1509-1530) के समय शुरू हुआ था तथा अच्युत (1530-1542 ई.) के समय पूर्ण हुआ। यह आयताकर रूप में 152 मी. लम्बा तथा 94 मी. चौड़ा हैं। इसकी ऊंचाई 7.05 मी. हैं। इसका गर्भ स्तम्भों की 3 कतारों से घिरा हैं। कुल स्तम्भ 562 हैं। प्रत्येक स्तम्भ को छूने से उसमें अलग-अलग तरह के संगीत सुनाई देते हैं। गर्भ गृह में विट्ठठल की मूर्ति है। इसमें अर्द्ध एवं महामण्डप भी हैं। महामण्डप का भाग 30×18 मी. हैं। इसके स्तम्भों की बनावट विचित्र है। छत खुदी हुई हैं तथा सुन्दर ढंग से तैयार की गई हैं। अर्द्धमण्डप में दो तरफ से आने का मार्ग हैं। चारों कोने में चार स्तम्भ हैं, जिन पर आधे मनुष्य तथा आधे दानव की आकृतियाँ हैं। गर्भ-गृह में जाने को एक मार्ग हैं। इस सीमा के भीतर कल्याण-मण्डप हैं। महामण्डप के सामने एक सुंदर भवन है जिसे 'रथ' कहते हैं। बाहर से मंदिर की सीमा में आने हेतु गोपुरम् के साथ तीन द्वार बने हैं। 

(ब) हजाराराम स्वामी का मंदिर 

इसे भी कृष्णदेव राय ने ही बनवाया था। इस मंदिर में राजवंश के लोग पूजा करने आते थे। इसमें अर्द्ध मण्डप से गर्भ गृह में जाने का एक चौड़ा मार्ग बना हुआ हैं। इसके स्तम्भ पूरी तरह से खुदे हुए हैं। इसमें अम्मान मण्डप (बिना शिखर का) एवं विमान अथवा रथ मण्डप (शिखर युक्त) अत्यंत सुंदर हैं। मंदिर की छत में एक विशेष तरह का अलंकरण हैं। इसके बेल-बूटे द्राविड़ शैली में नवीनता पैदा करते हैं क्योंकि ये ईंट, सीमेंट एवं रंग के प्रयोग से तैयार किए गये हैं। मंदिर की दीवारों पर 'रामचरिय' प्रस्तर पर खुदा हुआ हैं। रामलीला समस्त दीवार पर स्पष्टतः देखी जा सकती हैं। 

(स) अन्य मंदिर 

विजयनगर राज्य के अन्य कई सुंदर मंदिर वेलोर, कुम्भकोणम, ताडपत्री एवं श्रीरंगम में पाये जाते हैं। वेलोर के मंदिर का कल्याण मण्डप सर्वप्रसिद्ध हैं। उसके स्तम्भों पर चित्र लिपि, राक्षस तथा अन्य आकृतियाँ हैं। मंदिर का गोपुरम विशाल हैं। कांची के वरदराज मंदिर में 1000 स्तम्भ हैं। ताडपत्री के मंदिर का गोपुरम सबसे ज्यादा सुंदर है एवं अलंकृत हैं। श्रीरंगम् का मंदिर द्राविड शैली का अद्भुत नमूना हैं। इसके गर्भ गृह तक पहुँचने हेतु एक दिशा में 6 गोपुरम से युक्त द्वार बने हैं। इसके अतिरिक्त पंपाथी का मंदिर इंजीनियरी हुनर का कमाल हैं। जिज्जी के मंदिर में स्त्री की मूर्ति गांधार तथा मथुरा की स्त्री मूर्ति के सादृश्य हैं। 

2. मंदिरों का अलंकरण 

विजयनगर के मंदिरों के स्तम्भों तथा मेहराबों का अलंकरण इस तरह घना होता चला जाता हैं कि प्रस्तर में नाटक का भाव स्पष्ट दिखलाई पड़ता हैं। स्तम्भों पर ज्यादातर घोड़े या किसो दैवी जानवर की आकृति होती हैं। स्तंभ नीचे घनाकार हैं और ऊपर आठ या सोलह कोण ले लेते हैं। वेलोर मंदिर में घोड़े के नीचे वामन पुरूषों को दबाया हुआ दिखलाया गया हैं, जो या तो किसी जंगली जाति पर विजय बतलातें हैं अथवा मुसलमानों की पराजय। विट्ठल मंदिर की गजसिंह तथा पीठिका पर बैठी अंकित सिंह आकृतियाँ बहुत सुंदर हैं। कल्याण-मण्डप के स्तम्भों पर राजा रानी हैं। वर्गाकार स्तम्भों पर धार्मिक, सामाजिक तथा काल्पनिक विषयों के दृश्य हैं। नीचे चारों कोनों में नागबंध हैं। मंदिरों के द्वार पर हाथी अथवा द्वारपाल हैं। 

3. महल एवं दुर्ग 

विजयनगर राज्य के ज्यादातर भवन पहाड़ों पर बने थे। उन्हें देखकर यह कहना कठिन है कि ये पत्थर खण्डों को जोड़कर बनाये गये थे अथवा पहाड़ों को ही काटकर बनाये गये थे। दुर्गों के अवशेषों से उनके विशाल होने का पता चलता हैं। इनके सभा-भवन, सिंहासन का स्थान तथा विजय-स्मारक स्थान विशेष सुंदर बने थे। 

4. स्थापत्य में नायकों की भूमिका 

विजयनगर के नायकों ने भी भवन एवं मंदिर बनाने में पर्याप्‍त लगन दिखलाओ। मदुरा का मीनाक्षी मंदिर भारत के स्थापत्य का बेमिसाल नमूना हैं। 

5. मूर्तिकला 

विजयनगर की मूर्तिकला मध्ययुग की कला का प्रतिनिधि मानी जाती हैं। मूर्तियों में अलंकरण भावों पर गहराया हैं। मूर्तियों के अंगों में अनुपात हैं। अधिकांश मूरतें शास्त्रीय सिद्धांतों पर बनी हैं। गर्भगृह की मूरतों में बाहर के भीतर प्रकाश पहुँचाया जाता था, जिससे उनकी विलक्षण शक्ति बनी रहे। मंदिरों की दीवारों पर कई तरह की मूर्तियाँ होती थीं। पार्श्वदेवता की बड़ी मूर्ति गर्भ गृह के मुख्य मार्ग के दोनों ओर बनी होती थी। दिकपाल, शालभंजिका, शार्दूल (आधा मनुष्‍य, आधा जानवर), गुरू-शिष्य, मिथुन, सैनिक, जानवर आदि की मूरतें आम थीं। प्रस्तर मूरतों के अलावा विजयनगर में धातु की भी कई मूरतें बनीं। शास्त्रीय ढंग के समावेश के कारण उनमें गंभीरता आ गई हैं।

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