9/24/2021

सीखना/अधिगम का अर्थ, परिभाषा, विशेषताएं

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सीखना या अधिगम अर्थ (adhigam kya hai)

adhigam arth paribhasha visheshta;सीखना या अधिगम एक व्यापक सतत् एवं जीवन-पर्यन्त चलने वाली प्रक्रिया हैं। मानव जन्म के बाद से ही सीखना शुरू कर देता हैं और जीवन भर कुछ-कुछ न सीखता रहता हैं। धीरे-धीरे वह अपने वातावरण से समायोजित करने का प्रयत्न करता है। इस समायोजन के दौरान वह अपने अनुभवों से अधिक लाभ उठाने का प्रयास करता हैं। इस प्रक्रिया को मनोविज्ञान में सीखना कहते हैं। जिस व्यक्ति में सीखने की जितनी अधिक शक्ति होती हैं, उतना ही उसके जीवन का विकास होता हैं। सीखने की प्रक्रिया मे व्यक्ति अनेक क्रियाएँ  एवं उपक्रियाएँ करता हैं। अतः सीखना किसी स्थिति के प्रति सक्रिय प्रतिक्रिया हैं। 

उदाहरणार्थ, जब हम किसी छोटे बालक के सामने दीपक ले जाने पर पर वह उसकी लौ को पकड़के की कोशिश करता हैं। इस कोशिश मे उसका हाथ जलने लगता है तो वह अपने हाथ को पिछे खींच लेता हैं। जब दुबारा उसके सामने दीपक लाया जाता है तो वह अपने पूर्व अनुभव के आधार पर दीपक की लौं को पड़कने की कोशिश नही करता है, बल्कि उससे दूर हो जाता हैं। इसी विचार की स्थिति के प्रति प्रतिक्रिया करना कहते हैं। दूसरे शब्दों में, कह सकते हैं कि अनुभव के आधार पर बालक के स्वाभाविक व्यवहार मे परिवर्तन हो जाता हैं। 

हिन्दी के प्रसिद्ध उपन्यासकार भवगति चरण वर्मा ने अपने प्रसिद्ध उपन्यास 'चित्रलेखा' में एक स्थान पर लिखा है," संसार की पाठशाल मे अनुभव की शिक्षा प्रणाली द्वारा प्ररिस्थति रूपी गुरू से हम सब सीखते हैं।" 

यह कथन यद्यपि साहित्यिक पृष्ठभूमि में कहा गया हैं तथापि इसका बहुत कुछ संबंध मनोवैज्ञानिक तथ्य से हैं। मानव का व्यवहार भौतिक, रसायन, प्रकृति तथा समाज से प्रभावित होता हैं। वह सीखकर स्वयं को बदलता है या फिर वातावरण को। 

सामान्य अर्थों मे अधिगम या सीखने का अर्थ है व्यवहार मे परिवर्तन का होना।

अधिगम या सीखना की परिभाषा (adhigam ki paribhasha)

जे.पी. गिलफोर्ड के अनुसार," व्यवहार के कारण व्यवहार में परिवर्तन ही अधिगम हैं।"

चार्ल्स ई. स्कीनर के अनुसार," व्यवहार के अर्जन में उन्नति की प्रक्रिया को अधिगम कहते हैं।" 

वुडवर्थ के अनुसार," नवीन ज्ञान तथा नवीन प्रतिक्रियाओं को प्राप्त करने की प्रक्रिया सीखने की प्रक्रिया हैं।" 

क्रो तथा क्रो के अनुसार," सीखना-आदतों, ज्ञान तथा अभिवृत्तियों का अर्जन हैं।" 

उदय पारीक के अनुसार," अधिगम ज्ञानात्मक, मामक या व्यवहारगत निवेशों की जरूरत पड़ने पर उनके प्रभावात्मक तथा विभिन्न प्रयोग के लिए अधिग्रहण, आत्मीकरण तथा अंतरीकरण करने एवं आगामी स्वचालित अधिगम की बढ़ी हुई क्षमता की तरफ ले जाने वाली प्रक्रिया हैं।" 

मार्गन तथा गिलीलैंड के अनुसार," सीखना, अनुभव के कारण प्राणी के के व्यवहार में परिमार्जन है जो प्राणी द्वारा कुछ समय हेतु धारण किया जाता हैं। 

कुप्पूस्वामी के अनुसार," अधिगम वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक जीव, एक परिस्थिति में उसके अंतःक्रिया के परिणाम के रूप मे व्यवहार का एक नवीन प्रतिरूप अर्जित करता हैं, जो कुछ अंश तक स्थिरोन्मुख रहता हैं एवं जीव के सामान्य व्यवहार प्रतिमान को प्रभावित करता हैं।" 

डाॅ.एस.एस. माथुर के अनुसार," सीखना एक सक्रिय प्रक्रिया हैं जो व्यक्ति के अपने कार्यों पर निर्भर रहती है, जबकि मानसिक अभिवृद्धि तथा प्रौढ़ता विकास की प्रक्रियायें हैं, जिनके संबंध में व्यक्ति बहुत कम कुछ कर सकता हैं। 

पील के अनुसार," सीखना व्यक्ति में एक परिवर्तन है जो उसके वातावरण के परिवर्तनों के अनुसरण में होता हैं।" 

क्रानवेक के अनुसार," सीखना, अनुभव के फलस्वरूप व्यवहार मे परिवर्तन द्वारा दिखलाई पड़ता हैं।" 

उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट होता है कि सीखने के कारण व्यक्ति के व्यवहार में परिवर्तन आता हैं, व्यवहार में यह परिवर्तन बाहरी एवं आन्तरिक दोनों ही प्रकार का हो सकता हैं। अतः सीखना एक प्रक्रिया हैं जिसमें अनुभव एवं प्रशिक्षण द्वारा व्यवहार में स्थायी या अस्थायी परिवर्तन दिखाई देता हैं। 

सीखने की विशेषताएं (adhigam ki visheshta)

योकम तथा सिम्पसन ने सीखने की निम्नलिखित विशेषताओं का उल्लेख किया हैं--

1. सीखना संपूर्ण जीवन चलता है 

सीखने की प्रक्रिया जीवन-पर्यन्त चलती हैं। मानव अपने जन्म के समय से मृत्यु तक निरन्तर कुछ-न-कुछ सीखता रहता हैं।  

2. सीखना परिवर्तन हैं 

गिलफोर्ड के अनुसार," सीखना, व्यवहार के कारण व्यवहार में परिवर्तन हैं।" व्यक्ति अपने तथा दूसरो के अनुभवों से सीखकर अपने व्यवहार, विचारों, इच्छाओं, भावनाओं आदि में परिवर्तन करता हैं। 

3. सीखना सार्वभौमिक है 

सीखने का गुण सिर्फ मनुष्य में ही नही पाया जाता है। वस्तुतः संसार के सभी जीवधारी, पशु-पक्षी यहाँ तक की कीड़े-मकौड़े भी सीखते है। 

4. सीखना विकास हैं 

व्यक्ति अपनी दैनिक क्रियाओं तथा अनुभवों के द्वारा कुछ-न-कुछ सीखता है। फलस्वरूप, उसका शारीरिक तथा मानसिक विकास होता हैं। सीखने की इस विशेषता को पेस्टालाॅजी ने वृक्ष तथा फ्रोबल ने उपवन का उदाहरण देकर स्पष्ट किया हैं। 

5. सीखना अनुकूलन है 

सीखना वातावरण से अनुकूलन करने के लिये जरूरी है। सीखकर ही व्यक्ति नई परिस्थितियों से अपना अनुकूलन कर सकता है। 

6. सीखना अनुभवों का संगठन हैं 

सीखना नये और पुराने अनुभवों का संगठन हैं। व्यक्ति नये अनुभवों द्वारा नई बातें सीखता जाता है और अपनी आवश्यकताओं के अनुसार अपने अनुभवों को संगठित करता चला जाता हैं। 

7. सीखना उद्देश्यपूर्ण है 

सीखना उद्देश्यपूर्ण होता है। उद्देश्य जितना ही अधिक प्रबल होगा, सीखने की प्रक्रिया उतनी ही तीव्र होगी। 

8. सीखना विवेकपूर्ण है 

मरसेल का कहना है कि सीखना यान्त्रिक कार्य के बजाय विवेकपूर्ण कार्य हैं। उसी बात को शीघ्रता तथा सरलता से सीखा जा सकता है, जिसमें बुद्धि अथवा विवेक का प्रयोग किया जाता है। बगैर सोचे-समझे, किसी बात को सीखने में सफलता नही मिलती है। मर्सेल के शब्दों में," सीखने की असफलताओं का कारण समझने की असफलताएं हैं।" 

9. सीखना सक्रिय हैं 

बालक तभी कुछ सीख सकता हैं, जब वह स्वयं सीखने की प्रक्रिया में भाग लेता हैं। 

10. सीखना व्यक्तिगत व सामाजिक दोनों हैं 

सीखना व्यक्तिगत कार्य तो है ही पर यह सामाजिक कार्य भी हैं। योकम तथा सिम्पसन ने लिखा हैं," सीखना सामाजिक हैं, क्योंकि किसी प्रकार के सामाजिक वातावरण के अभाव में व्यक्ति का सीखना असंभव हैं।"

सीखने से संबंधित तथ्य 

सीखने की मानवीय क्रिया के संबंध में निम्‍नलिखित तथ्य महत्वपूर्ण हैं-- 

1. सीखने का संबंध किसी न किसी प्रयोजन से होता है और उस पर समाज व संस्कृति का प्रभाव पड़ता हैं। 

2. सीखने की क्षमता सभी व्यक्तियों में एक-सी नही होती हैं। कुछ लोग अच्छी बातें सीखते हैं, कुछ अच्छी और बुरी दोनों प्रकार की जबकि कुछ व्यक्ति ऐसे भी होते हैं जो केवल बुरी बातें ही सीखते हैं। 

3. यों तो सीखने की प्रक्रिया सभी प्राणियों मे पाई जाती हैं, परन्तु मानव सीखकर ही अपने व्यवहार में परिवर्तन लाता है और जीवन में आने बढ़ता हैं। 

4. सीखना एक सहज क्रिया नही है और न यह एक जन्मजात क्षमता हैं।

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