8/10/2021

पत्रकारिता के प्रकार

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पत्रकारिता के प्रकार

patrakarita ke prakar;वर्तमान मे पत्रकारिता का क्षेत्र असीमित हो गया है। आज मानव की जिज्ञासा का एक भी बिन्दु या क्षेत्र पत्रकारिता के प्रभाव या आभा से अछूता नही है। यहाँ तक कि मानव, पशु, पक्षी, जीव-जन्तु सभी के व्यक्तिगत जीवन मे भी अनाधिकार पूर्ण दखलन्दाजी पत्रकारिता के नाम पर हो रही है। आज पत्रकार अपनी रूचि एवं प्रवृति के अनुसार विशिष्ट क्षेत्रों का चयन कर अपनी कलम चला रहे है। पत्रकारिता के निम्न प्रकार हैं--

1. आर्थिक पत्रकारिता 

वर्तमान युग में औद्योगिकीकरण ने विश्वव्यापी अर्थव्यवस्था को प्रभावित किया है। देश तथा विदेश के अर्थ जगत् से जुड़ी प्रत्येक गतिविधि आर्थिक पत्रकारिता का विषय हो सकती है। आर्थिक योजनाएं, बाजार समाचार, मुद्रा बाजार, पूंजी बाजार, वस्तु बाजार इत्यादि के समाचार तथा उनसे संबंधित विश्लेषण लेख आदि अब पत्र-पत्रिकाओं में बहुतायत से प्रकाशित होते है। आज अर्थ जगत् से जुड़े संपूर्ण समाचार-पत्र भी काफी संख्या में प्रकाशित हो रहे है।

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2. अन्वेषी या खोजी पत्रकारिता 

किसी समाचार को साक्ष्य एवं तथ्यपूर्ण बनाने के लिए जब पत्रकार अपने स्वयं के बल पर इन जानकारियों को खोज निकालता है, जो जानकारियाँ सामान्य जन के संज्ञान में नही होती लेकिन सार्वजनिक महत्व की होती है, वह सब अन्वेषण या खोजी पत्रकारिता का अंग मानी जाती है। वर्तमान में 'पीत' पत्रकारिता के रूप मे यह क्षेत्र बदनाम हो चुका है। कई समाचारों को अगर काल्पनिक प्रसंगों, अफवाहों, अप्रमाणित तथ्यों के आधार पर प्रकाशित कर दिया जायें तो वह पत्रकारिता की तौहीन है। ऐसे हालातों मे पत्रकार जासूस या अन्वेषणकर्ता की भूमिका अदा कर सच्चाई निकाल कर लाता है। वर्तमान में आर्थिक विषमताओं, उलट-फेरों, और आकण्ठ भ्रष्टाचार में संलिप्त विभागों-अधिकारियों से सही खबर के मिलने की गुंजाइश न के बराबर रहती है। ऐसे में सूझबूझ और तर्कसंगत् विवेक वाला पत्रकार खोजी प्रवृत्ति से ही सत्य के निकट पहुंचता है और पाठकों को सत्य से अवगत कराता है। जैसे-- 'वाशिंग्टन पोस्ट' के दो संवाददाता वर्नस्टाइन और वुडवर्ग ने अपनी प्रतिभा तथा तत्परता के बल पर गुप्तचर का युगान्तरकारी कार्य किया, फलतः 'वाटरगेट काण्ड' से सत्ता परिवर्तन हुआ।

3. ग्रामीण पत्रकारिता 

स्वास्थ्य, कृषि उत्पादन संबंधी तकनीक, परिवार कल्याण एवं विकासात्मक गतिविधियों की जानकारी देने का महत्वपूर्ण साधन ग्रामीण पत्रकारिता है। भारत ग्राम प्रधान देश है। देश की ग्रामीण जनता की समस्याओं, उनकी आशा-आकांक्षाओं को पत्रकारिता के माध्यम से प्रस्तुत करना समाचार पत्रों का प्रमुख दायित्व है।

एक मान्यता यह भी है कि जिन समाचार पत्रों में चालीस प्रतिशत से ज्यादा सामग्री गांवो के बारें, कृषि, पशुपालन, बीज, खाद, कीटनाशक, पंचायती राज, सहकारिता इत्यदि विषयों पर हो उन्हें ही ग्रामीण पत्र माना जाये। जब हम ग्रामीण पत्रों की बात करते है तो इसका तात्पर्य उन छोटे पत्रों से है जो कम प्रसार संख्या के बावजूद छोटे से समुदाय की उन आवश्यकताओं तथा अपेक्षाओं की पूर्ति करते है जो शहरी प्रेस के लिए संभव नही है। 

4. पुरातत्व एवं ऐतिहासिक पत्रकारिता 

भारत के अधिकांश क्षेत्रों मे ऐतिहासिक स्थल और पुरातत्व के महत्व की चीजें मिल जाया करती है। इन ऐतिहासिक स्थलों को पर्यटन स्थलों मे परिणित करने तथा इनकी ऐतिहासिक विशेषतायें और महत्व बताने हेतु जो पत्रकार कार्य करते है, वह पुरातात्विक पत्रकारिता के विकास पुरूष कहलाते है। इसी के अंतर्गत पुरातात्विक महत्व की वस्तुयें भी आती है। प्रायः समाचार-पत्र अपने परिशिष्ट विशेष में इनका उल्लेख करते है। 

5. न्यायालयीन पत्रकारिता

हमारे देश में लाखों मामले कोर्ट-कचहरी में न्याय की प्रतीक्षा में है, जिन में से प्रतिदिन ही किसी-न-किसी मामले की सुनवाई और निर्णय होता है लेकिन इन निर्णयों में जो सार्वजनिक महत्व के होते है, उन्हें प्रकाशित किया जाता है। इस कार्य के लिये बड़े-बड़े समाचार-पत्र पृथक से न्यायालयीन पत्रकार नियुक्त कर देते है जो न्यायालयीन मामलों पर नजर रखते है। कोर्ट के फैसले, वारण्ट, सम्मन, आरोप-पत्र आदि का प्रकाशन इन्हीं के द्वारा होता है। 

6. संसदीय पत्रकारिता 

देश के उत्थान-पतन का प्रतिबिंब संसद को और राज्यों के विकास का प्रतिबिंब विधानसभाओं को माना जाता है। लोकसभा-राज्यसभा विधानसभा, विधान-परिषद् आदि में जनकल्याणकारी योजनाओं की रूपरेखा से लेकर उनके सफल क्रियान्वयन पर चर्चा-परिचर्चा, तर्क-वितर्क, बहसें होती है। इनसे आम जनता का रूबरू होना जरूरी होता है। इसके लिये संसदीय संवाददाता नियुक्त रहते है। ये संवाददाता समझ-बूझ वाले, कानून के खासकर संसदीय प्रणाली की नियमावली के ज्ञाता होते है। संसद में विशेष पत्रकार दीर्घा होती है।

7. खेल पत्रकारिता 

प्रत्येक व्यक्ति के जीवन का प्रमुख हिस्सा खेल भी है। हर एक की किसी ना किसी खेल में रुचि होती है अपनी अपनी रूचि के अनुसार सब खेल की खबरें पढ़ना चाहते हैं। क्रिकेट का बुखार तो सबके सिर चढ़कर बोलने लगा है। इस आवश्यकता की पूर्ति पेज, खेल जगत् द्वारा होती है। कुछ खेल विशेष चीजें 'क्रिकेट सम्राट' आदि किताबें भी प्रकाशित हो रही है। ऐसे ही खेल-खिलाड़ी 'स्पोट् र्स वीक', 'खेल जगत्', 'खेल युग' आदि अनेक पत्रिकाओं का प्रकाशन हो रहा है। खेल पत्रिका में पत्रकार के लिए खेल से संबंधित सामान्य ज्ञान और नियमों की जानकारी होना चाहिए।

8. बाल पत्रकारिता 

नन्हें-मुन्नों की बाल सुलभ के स्टाफ को भी प्रकाश पत्रिका में स्थान मिलने लगा है। बच्चों की दुनिया अलग ही होती है। उनकी बातें, व्यवहार, जिज्ञासा, कोतुहल और दिल को छू लेने वाली हरकतें इन सबको सहजकर बच्चों की पत्रिकाएं भी प्रारंभ हुई और समाचार पत्रों में विशेष परिशिष्टि भी। बाल मन के मनोभावों को समझने के लिए वरिष्ठ पत्रकारों को दायित्व सौंपे जाते हैं। बालकों की रूचि प्रवृत्ति और आकांक्षाओं के अनुरूप सामग्री का चयन कठिन होता है। फिर भी वर्तमान में बाल सखा, चंपक, चंदा मामा, पराग, नंदन, चुन्नू-मुन्नू, बालभारती, चकमक इत्यादि पत्रिकाओं ने बच्चों की भावनाओं को उड़ेला है।।

9. फील्मी पत्रकारिता

दूरदर्शन में फिल्मी पत्रकारिता को सर्वाधिक महत्व का बना दिया है। दर्शकों का एक बड़ा वर्ग फिल्मी जगत में होने वाली छोटी से छोटी घटनाओं को समाचार के रूप में जानना चाहता है। क्योंकि इस जगत की सर्वाधिक चर्चा रहती है और इसी परिशिष्ट सप्ताह में दो दो बार प्रकाशित होते हैं। इस क्षेत्र की पत्रकारिता रोमांच और रोचकता से परिपूर्ण होती है। वैसे 'मधुपुरी', 'स्टारकाॅस्ट', 'स्टारडम्स' आदि पत्रिकायें भी इस क्षेत्र में सक्रिय है।

10. रेडियों पत्रकारिता

संवाददाता चाहे रेडियो के लिए काम करें या किसी समाचार पत्र का प्रतिनिधित्व करें दोनों में कोई विशेष अंतर नहीं। रेडियो और प्रेस दोनों के रिपोर्टर घटना और परिस्थितियों में समाचार की तलाश कर उसका समाचारक मूल्यांकन करते हैं और फिर पाठकों व श्रोताओं के समक्ष इस तरह प्रस्तुत करते हैं कि उनका समाचार सामयिक और जनता के लिए सुरुचिपूर्ण लगे। रेडियो और समाचार पत्रों के समाचारों के चयन और प्रस्तुतीकरण का मापदंड एक समान होते हुए रेडियो समाचार में वाचन की दृष्टि से उच्चारण का ध्यान रखते हुए ही शब्दों का चयन और संयोजन करना होता है।

11. टेलीविजन पत्रकारिता 

दूरदर्शन के समाचार लिखते समय का विशेष ध्यान रखा जाता है। समाचार को समय के दायरे में ही स्पष्टता, प्रभावोत्पादक बनाकर प्रस्तुत करना होता है। इस तरह के समाचारों की शैली कठिन नहीं होनी चाहिए। दूरदर्शन के समाचारों की प्रमाणिकता उनके सचित्र समाचारों से होती है। इसलिए समाचार से संबंधित चित्र भी होना चाहिए।

12. फोटो पत्रकारिता 

फोटो समाचार का प्रमाण होते हैं। फोटो पर पत्रकार की नजर पेनी होनी चाहिए। यह उसके स्वयं के कला कौशल पर निर्भर करता है की जो बात लंबा-चौड़ा समाचार नहीं कह पाती उससे भी कहीं अधिक प्रभावशाली बात फोटो कह देते हैं। फोटो पत्रकारिता का चित्र व्यापक है। प्राकृतिक रूप में पशुओं, वैज्ञानिक, तकनीकी विकास उपकरणों, ऐतिहासिक, भवनों, दृश्यों, उत्सवों समारोहों, घटनाओं, प्राकृतिक प्रकोप इत्यादि के चित्र प्रतिदिन देखने को मिल जाते हैं। इन चित्रों की श्रंखलामय प्रस्तुति फोटोफेशन, फोटोगैलरी, चित्र प्रदर्शनी आदि में देखी जा सकती है।

13. व्याख्यात्मक पत्रकारिता 

वर्तमान पाठक घटनाओं के प्रस्तुतीकरण मात्र से संतुष्ट नहीं होता। वह कुछ और भी जानना चाहता है। किसी और की संतुष्टि हेतु आज संवाददाता घटनाओं की पृष्ठभूमि और कारणों की भी खोज करता है। इसके बाद वह समाचार का विश्लेषण भी करता है इसके कारण पाठक को घटना से जुड़े विविध तथ्यों का पता चल जाता है। 'टाइम्स ऑफ इंडिया' के 'News Analysis', जी न्यूज का 'DNA' तथा राजस्थान पत्रिका के मंथन, व्याख्यात्मक पत्रकारिता के प्रतीक है।

14. विकास पत्रकारिता 

आर्थिक सामाजिक आदि क्षेत्रों के बारे में रचनात्मक लेखन को विकास पत्रिका के रूप में माना जा सकता है। पत्रकार पाठकों को तथ्यों की सूचना देता है तथा निष्कर्ष भी प्रस्तुत करता है। अपराध एवं राजनीतिक संवाददाताओं का यह मुख्य कार्य है। आर्थिक सामाजिक जीवन के बारे में तथ्यों का प्रस्तुतीकरण ही पर्याप्त नहीं होता अपितु उनका प्रसार भी आवश्यक है। गंभीर विकासात्मक समस्याओं से पाठकों को अवगत कराना भी आवश्यक है। पाठक को सोचने के लिए विवश कर इस तरह का लेखन संभावित समाधानओं की ओर भी संकेत करता है। विकासात्मक लेखन शोध परक होता है।

15. संदर्भ पत्रकारिता 

संदर्भ सेवा का तात्पर्य संदर्भ सामग्री की उपलब्धता है। संपादकीय अथवा किसी सामयिक विषय पर टिप्पणी लिखने हेतु या कोई लेख आदि तैयार करने की जरूरत से कई बार विशेष संदर्भओं की जरूरत होती है। आज ज्ञान-विज्ञान के विस्तार एवं यांत्रिकी युग में पाठकों को संपूर्ण जानकारी देने के लिए आवश्यक है। पत्र प्रतिष्ठान के पास अच्छा संदर्भ सहित संग्रहित हो संदर्भ पत्रकारिता हेतु संदर्भ सेवा के 8 वर्ग हैं-- कतरन, सेवा, संदर्भ ग्रंथ, सूची, फोटो विभाग, पृष्ठभूमि विभाग, रिपोर्ट विभाग, सामान्य पुस्तकों का विभाग और भंडार विभाग।

16. अनुसंधानात्मक पत्रकारिता 

प्रवीण दीक्षित के अनुसार," अनुसंधान पत्रकारिता, पत्रकारिता की वह विधा है जिसके द्वारा किसी समसामयिक महत्व के विषय, घटना, स्थिति या तथ्यों का वैज्ञानिक ढंग से अध्ययन, सर्वेक्षण तथा अनुसंधान करके वास्तविक निष्कर्ष निकाले जाते है।

17. साहित्यिक-सांस्कृतिक पत्रकारिता

यह सही है कि हमारी पत्रकारिता पर राजनीति इस तरह हावी हो गई है कि दिल्ली का राजनीतिक घटना-चक्र ही समाचारों का केन्द्र-बिन्दु रहता है। ऐसी स्थिति में साहित्यिक-सांस्कृतिक समारोहों को स्थान गौण हो जाता है। समाचार की दृष्टि से ये समाचार ज्यादा महत्वपूर्ण नही माने जाते।

अतः आवश्यक है कि समय-समय पर आयोजित प्रमुख विचार-गोष्ठियों साहित्यिकारों के सम्मेलन, पुस्तक विमोचन, कवि गोष्ठियों, बौद्धिक चर्चाओं, संगीत, नृत्य, नाटक इत्यादि गतिविधियों को पत्रकारिता के माध्यम से उचित प्रोत्साहन दिया जायें।

18. विज्ञान पत्रकारिता 

हमारा दैनिक जीवन विज्ञानमय हो गया है। अतः जन सामान्य का विज्ञान मे झुकाव होना स्वाभाविक ही है। विज्ञान संबंधी अनुसंधान तक विज्ञान जगत् की हलचल विज्ञान पत्रकारिता के माध्यम से ही आम पाठक तक पहुंच सकती है। इसके लिए जरूरी है कि पत्रकार विज्ञान तकनीकी, गंभीर विषय को सरल, सुबोध ढंग से पाठकों तक पहुंचा सकें। वर्तमान समय में विज्ञान संबंधी पत्र-पत्रिकाओं ने विज्ञान पत्रकारिता के विकास में भी विशेष योगदान दिया है।

पत्रकारिता के उपर्युक्त प्रकारों के अतिरिक्त दो और भी प्रकार हैं जिन पर संक्षेप में विचार करना आवश्यक प्रतीत होता है, जो नीचे निम्नानुसार दिये गए हैं--

(क) कार्टून पत्रकारिता

आजकल लगभग प्रत्येक समाचार पत्र में, जो कार्टूनिस्ट का खर्चा उठा सकता है, कार्टूनिस्ट हैं। यह कार्टूनिस्ट ऐसे कार्टून बनाते हैं जिनकी स्मृति पाठक के मन में वर्षों तक बसी रहती है। चित्रों की भांति समाचार को आकर्षक बनाने में इनका भी योगदान रहता है। कार्टूनकार अपने कार्टूनों के माध्यम से अर्थपूर्ण, ठोस, रचनात्मक. व्यंग्यात्मक तथा संक्षिप्त व्याख्या प्रस्तुत करता है। कार्टूनों के माध्यम से किसी राजनीतिक, सामाजिक समस्या अथवा गतिवधि पर व्यंग्य या टिप्पणी की जाती है।

(ख) वीडियो पत्रकारिता 

अमेरिका में 'न्यू जर्नलिज्म' का आन्दोलन पचास वर्ष पुराना है। इसे ही वीडियो पत्रकारिता कहा जाता है। इसमें दृश्य-श्रव्य संचार माध्यम से समाचार वाचक अपनी बात को एक टिप्पणीकार की भांति कहता है। वे अपने चेहरे, भंगिमा और आवाज के आरोह-अवरोह का प्रयोग कर, पृष्ठभूमि में दिखाये जाने वाले दृश्यों पर टिप्पणी करते हैं। भारत में 'मूवी वीडियो', 'इन साइट', 'न्यूजट्रैक', 'कालचक्र', 'लहरें' आदि पत्रिकाएं वीडियो पत्रकारिता के क्षेत्र में अग्रसर हैं।

हिंदी पत्रकारिता के समक्ष आज भी कई तरह के संकट है। पत्रकारिता जैसे-जैसे उद्योग का रूप लेती जा रही है वैसे-वैसे औद्योगिक प्रतिस्पर्धा और औद्योगिक चरित्र के दोष उसे विकृत करने की कोशिश भी कर रहे हैं। आय के प्रमुख साधनों विज्ञापन और प्रसार के जरिये अधिकाधिक लाभ कमाने की प्रवृत्ति ने एक ओर जहां पत्रकारिता की स्वतंत्रता को बाधित किया है वहीं उसके अन्दर कई तरह की विकृतियां भी पैदा की जिसके चलते भयादोहन और पीत पत्रकारिता जैसे शब्द तेजी से हवा में उछलने लगे हैं। प्रमुख अधिशासी पदों पर बैठे सम्पादकों के कारण भी हिंदी पत्रकारिता की निष्पक्षता प्रभावित हुई है। अभी हाल ही में बोफोर्स प्रकरण पर कुछ पत्र-पत्रिकायें इस कदर एकपक्षीय हो गयीं कि पत्रकारिता के सारे मूल्य ही ढहते नजर आने लगे। अखबारों के प्रति केन्द्र सरकार का रवैया कोई बहुत उत्साहवर्धक नहीं है, फिर भी विश्वास किया जा सकता है कि हिंदी पत्रकारिता ने इस दशक में जो प्रतिमान निर्मित किये हैं, इन्हें और प्रभावी बनाने तथा कुछ नये और स्वस्थ प्रतिमान निर्मित करने का काम होता रहेगा। हिंदी पत्रकारिता को प्रतिदिन नए-नए आयाम मिलते जा रहे हैं, जिनसे हिंदी पत्रकारिता का भविष्य पर्याप्त समुज्जवल दिखाई देता है।

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