7/15/2021

व्यक्तित्व का अर्थ, परिभाषा, सिद्धांत

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व्यक्तित्व का अर्थ (vyaktitva kise kahte hai)

vyaktitva arth paribhasha siddhant;एक समाजशास्त्री के दृष्टिकोण से व्यक्तित्व विचारों, व्यवहारों (Behaviour) एवं स्वभावों (Habit)   का वह सक्रिय संस्थापन है जिसका निर्माण आधारभूत जैविक परम्परा के मनोभौतिक साधनों से होता है तथा जिसमे व्यक्ति की आकांक्षाओं एवं आवश्यकताओं के प्रयोजन तथा उसके सामाजिक एवं उप-सामाजिक वातावरण से मिश्रित रूप में परिलक्षित होते है।

व्यक्तित्व की मनोवैज्ञानिक दृष्टि में परिभाषा के बारे मे श्री वाटसन का मत है कि यह कार्यकलाप का वह योग है जिसे व्यवहार के दीर्घकालीन प्रत्यक्ष दर्शन एवं अध्ययन द्वारा स्पष्टतः अभिव्यक्ति किया जा सकता है। इसलिए व्यक्तित्व हमारी व्यावहारिक रीतियों का अन्तिम परिणाम है। श्री वुडवर्थ की धारणा है कि जब हम उसके समुचित कार्य पर विचार करते है तो व्यक्तित्व एक व्यक्ति की समुचित व्यवहार की विशेषता के रूप मे प्रकट होता है।

व्यक्तित्व मे व्यक्ति का ज्ञान, दक्षता, स्वभाव, बर्ताव, आदतें, चरित्र एवं भौतिक विशेषताएं सम्मिलित है। सर्वश्री विकन्स एवं मेजर का कहना है कि व्यक्तित्व से आशय प्रेरणा एवं प्रेरक संस्थागत मनोभावों से है जो एक व्यक्ति के चारित्रिक ज्ञान एवं उसके व्यवहार का तरीका या उनको संतुष्टि के प्रयत्न से संबंधित है।

व्यक्तित्व की परिभाषा (vyaktitva ki paribhasha)

वैलेंटाइन के अनुसार," व्यक्तित्व जन्मजात और अर्जित प्रवृत्तियों का योग हैं।" 

बिग व हंट के अनुसार," व्यक्तित्व एक व्यक्ति के संपूर्ण व्यवहार प्रतिमान और उसकी विशेषताओं के योग का उल्लेख करता हैं।" 

मार्टन प्रिन्स के अनुसार," व्यक्तित्व व्यक्ति के भीतर उन मनोदैहिक गुणों का गत्यात्मक संगठन है जो परिवेश के प्रति होने वाले उसके अपूर्व अभियोजकों का निर्णय करते हैं।" 

म्यूरहैड के अनुसार," व्यक्तित्व में संपूर्ण व्यक्ति का समावेश होता हैं। व्यक्तित्व व्यक्ति के गहन रूचि के प्रकारों, अभिरूचियो, व्यवहार क्षमताओं, योग्यताओं और प्रवणताओं का सबसे निराला संगठन हैं।" 

वुडवर्थ के अनुसार," व्यक्तित्व व्यक्ति के व्यवहार का समग्र गुण हैं। व्यक्तित्व का लक्षण व्यवहार का कोई विशेष गुण होता हैं, जैसे प्रफुल्लता या आत्म विश्वास। समग्र व्यक्तित्व इन लक्षणों का योग होता हैं लेकिन वह पृथक गुणों का योग मात्र ही नही हैं बल्कि कुछ और भी हैं, जैसे एक व्यक्ति हंसमुख और आत्म-विश्वासी मात्र नही हैं, बल्कि वह हंसमुख होते हुए आत्म-विश्वासी भी हैं।

गिल्फोर्ड के अनुसार," व्यक्तित्व, गुणों का समन्वित रूप हैं।"  

ड्रेवर के अनुसार," व्यक्तित्व शब्द का प्रयोग व्यक्ति के शारिरिक, मानसिक,नैतिक और सामाजिक गुणों के एकीकृत तथा गत्यात्मक संगठन के लिए किया जाता है जिसे व्यक्ति अन्य व्यक्तियों के साथ अपने सामाजिक जीवन के आदान-प्रदान में व्यक्त करता हैं।" 

वाल्टर मिसकेल के अनुसार," प्रायः व्यक्तित्व से तात्पर्य व्यवहार के उस विशिष्ट स्वरूप (जिसमें चिंतन व संवेग शामिल हैं) से होता है। जो प्रत्येक व्यक्ति के जीवन की परिस्थितयों के साथ होने वाले समायोजन को निर्धारित करता हैं।" 

इस तरह मनोवैज्ञानिकों ने व्यक्तित्व संबंधी लगभग 49 परिभाषाएँ दी, जिनका विश्लेषण करने के बाद ऑलपोर्ट (1937) ने अपनी ओर से 50वीं परिभाषा का प्रतिपादन किया जो वर्तमान में भी मान्य हैं, क्योंकि यह परिभाषा काफी विस्तृत व वैज्ञानिक हैं। 

ऑलपोर्ट (1931) के अनुसार," व्यक्तित्व व्यक्ति के भीतर उन मनो-शारीरिक गुणों का गत्यात्मक संगठन है जो वातावरण से अद्वितीय समायोजन को निर्धारित करते हैं।" 

उपरोक्त परिभाषाओं का विश्लेषण करने पर हम कह सकते हैं कि-- 

1. व्यक्तित्व एक ऐसा मनोशारीरिक तंत्र (Psycho-physical system)  हैं, जिसमें मानसिक एवं शारीरिक पक्षों के साथ-साथ ऐसे तत्व होते हैं, जो आपस में अन्तःक्रिया करते हैं। जैसे संवेग, आदत, ज्ञानशक्ति, आदि। 

2. गत्यात्मक संगठन से तात्पर्य यह हैं कि मनो-शारीरिक तंत्र के विभिन्न तत्वों जैसे शीलगुण आदि एक दूसरे से संबंधित होकर संगठित होते हैं तथा इन्हें अलग नही किया जा सकता हैं। 

3. प्रत्येक व्यक्ति का अपने वातावरण के साथ समायोजन स्थापित करने का ढंग अलग होता हैं। इसलिए ऑलपोर्ट ने 1961 मे परिभाषा में अंतिम पाँच शब्द 'स्वयं के पर्यावरण के साथ अद्वितीय समायोजन' (uniqe adjustment to his environment) की जगह 'चरित्रगत व्यवहार' (Characteristic behaviour and thought) को शामिल किया।

व्यक्तित्व का विश्लेषण 

व्यक्तित्व मे निम्नलिखित सम्मिलित है-- 

(अ) सचेतन का केन्द्र, 

(ब) मस्तिष्क ज्ञान संस्थापन का पूर्वचेतन क्षेत्र और बिना दबी हुई (Unrepressed) स्मरण शक्ति, विचारधारायें (Adeas), आशायें, बर्ताव एवं प्रयोजन, 

(स) अचेतन, दबी हुई स्मरण शक्ति, आशाएँ एवं बर्ताव तथा 

(द) व्यावहारिक पद्धतियाँ जो कि स्पष्ट दिखाई दे सकती है एवं दूसरे पर दर्शाई जा सकती है।

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व्यक्तित्व के सिद्धांत (vyaktitva ke siddhant)

व्यक्तित्व वास्तव मे एक क्लिष्ट विषय है। इसका पूर्णरूपेण वर्णन नही किया जा सकता। सामान्यतः व्यक्तित्व के दो सिद्धांत है-- 

1. श्रेणी सिद्धांत (Type theory)

2. विशेषता सिद्धांत (trail theory) 

व्यक्तित्व का श्रेणी सिद्धांत 

यह सिद्धांत इस धारणा पर आधारित है कि सभी व्यक्तियों के व्यक्तित्व को कुछ श्रेणियों मे बाँटा जा सकता है अर्थात् एक श्रेणी के लोगों का व्यवहार कुछ सीमा तक एक-जैसा होता है।

किसी मानव की श्रेणी का ज्ञान प्राप्त करके एक स्थिति के कार्यकलाप के आधार पर दूसरी स्थिति की क्रिया की भविष्यवाणी की जा सकती है। इस सिद्धांत के अनुसार निम्नलिखित तीन प्रकार के मावन व्यवहार हो सकते है-- 

1. अन्तर्मुखी व्यक्ति (Introvert)

एक अन्तर्मुखी व्यक्ति की बहुत कम लोगों से जान पहचान पायी जाती है। वह बड़ा रूढ़िवादी होता है और दूसरो के प्रति संदेहशील बना रहता है। वह सामाजिक नही होता, वह अकेलापन ही पसंद करता है और अनेक अवसरों पर पीछे रहना ही पसंद करता है। वह अपने से बड़ों के सामने आने या व्याख्यान देने से बचता है। वह गुमसम, स्वयं के केन्द्रित, अपने विचारों में मग्न (Introspective) शुन्य चित्त एवं चिन्तित दिखायी पड़ता है तथा कल्पनाओं के हवाई घोड़े दौड़ाता रहता है। वह मन्द गति से कार्य करता है और किसी कार्य मे कभी विशेष अभिरुचि नही दिखाता। दार्शनिक, कवि एवं वैज्ञानिक लोग प्रायः अन्तर्मुखी होते है। 

2. बहिर्मुखी (Exo-centric)

बहिर्मुखी व्यक्ति सामाजिक एवं मिलनसार होता है। वह मित्रता बढ़ता है और थोड़े से समय मे ही अपने चारों ओर मित्रों का घेरा तैयार कर लेता है। वह दूसरों के साथ मिलकर काम करना पसंद करता है। कभी अकेलापन पसंद नही करता, बातूनी होता है और रूचिकर बातें करता है। वह स्वाभिमान होता है और घटनाओं का साधारण रूप से मुकाबला करता है। वह कभी व्याकुल नही होता। उसकी बुद्धि तीक्ष्ण होती है और वह प्रायः सचेत रहता है। समाज सुधारक एवं सामाजिक कार्यकर्ता ऐसे ही होते है। 

3. व्यापक दृष्टिकोण वाला व्यक्ति (Ambivert) 

ऐसे व्यक्तियों में अन्तर्मुखी एवं बहिर्मुखी दोनो के व्यवहारों का समावेश रहता है। यह मानव एवं उनके विचारों दोनो को ही समान रूप में पसंद करते है। अन्तर्मुखी एवं बहिर्मुखी के मध्य सीमा रेखा निर्धारण करना असंभव है। एक ही व्यक्ति मे दोनो श्रेणियों के गुण पाये जा सकते है। एक ही व्यक्ति मे दोनो श्रेणियों के गुण पाये जा सकते है। यह श्रेणी सिद्धांत अविश्वसनीय माना जाता है क्योंकि--

(अ) शतप्रतिशत अन्तर्मुखी एवं बहिर्मुखी व्यक्ति मिलना कठिन है। इसलिए दृष्टिकोण वाले व्यक्तियों से व्यवहार का पता लगना असंभव ही है।

(ब) सभी अवसरों पर दो व्यक्तियों का व्यवहार समान ही होगा ऐसा देखने को नहीं मिलता। 

व्यक्तित्व का विशेषता सिद्धांत (Type theory) 

इस सिद्धांत के अनुसार मानव व्यवहार की कुछ मूलभूत विशिष्टताओं से किसी व्यक्ति के व्यवहार को ज्ञात किया जा सकता है। ये विशिष्टताएं एक-दूसरे से स्वतंत्र होती है जिससे किसी व्यक्ति के समाज के स्तर एवं विशिष्टता का संबंध परिलक्षित होता है जैसे कि भीरूता (Shyness), भावनात्मक दृढ़ता (Stability) एवं बुद्धिमत्ता; इन्हें तीनों भागों मे रखा जा सकता है--

(अ) सामाजिक उदय उत्तेजनात्मक बुद्धिमत्ता, 

(ब) सामाजिक विनयशक्ति उत्तेजनात्मक बुद्धिमत्ता एवं 

(स) सामाजिक उदय शान्त किन्तु शिथिल। 

विशेषता आकृति (Trait profile) में-- 

1. बुद्धिमत्ता, 

2. भावनात्मक दृढ़ता, 

3. आक्रामकता (Aggressiveness), 

4. सामाजिक ग्राह्राता (Social- receptivity), एवं 

5. स्थिरता सम्मिलित है।

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