7/27/2021

प्रक्षेपी विधि क्या है? परिभाषा, विशेषताएं

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प्रक्षेपी विधि से आप क्या समझते हैं? प्रक्षेपी विधि का अर्थ एवं परिभाषा 

तथ्यों के संकलन में प्रक्षेपी प्रविधियों का भी प्रयोग किया जाता है। इसका प्रयोग कार्यकर्ता की अंतदृष्टि से स्वतंत्र होकर किया जाता है। यह एक अप्रत्यक्ष प्रविधि है जो कम व्यवस्थित होती है। 

प्रक्षेपी विधि शब्द की उत्पत्ति सबसे पहले फ्रेंक ने 1939 में की थी।

फ्रेंक के अनुसार," प्रेक्षेपी विधि एक ऐसी उत्तेजित करने वाली स्थिति प्रस्तुत करती है जिससे उत्तरदाता स्वतंत्र रूप से स्वयं की जानकारी दे सके और उसको यह महसूस भी न हो कि प्रयोगकर्ता यह सब कुछ किसी विशेष उद्देश्य के लिए कर रहा है।

पी. वी. यंग के अनुसार," प्रक्षेपी प्रक्रियाओं के प्रयोग का तात्पर्य है-" प्रत्यक्ष पूछ-ताछ' के अतिरिक्त उत्तरदाता को इस तरस उकसाना कि वह स्वतंत्र और प्रत्यक्ष रूप से स्वयं की और अपने सामाजिक संसार की जानकारी दे दें।" 

प्रक्षेपी पद्धियों का सर्वप्रथम प्रयोग मनोवैज्ञानिक और मानसिक चिकित्सकों द्वार उन रोगियों के इलाज के लिए किया जाता था, जो मानसिक रोग, भावनात्मक व्याधि से पीड़ित थे। इस विधि द्वार व्यक्ति के संपूर्ण व्यक्तित्व एवं उसकी भावनात्मक आवशयकताओं, भावनात्मक उथल-पुथल का स्पष्ट चित्र खींचा जा सकता था। अतः मुख्यतः ये मनोवैज्ञानिक चिकित्सक के यंत्र है न कि समाजशास्त्र, मानवशास्त्र की कुछ विशेष प्रकार की समस्याओं की जांच के लिए प्रक्षेपी प्रविधियों को काम में लाया जाता है। 

प्रक्षेपी प्रविधियों की विशेषताएं

प्रक्षेपी विधि की निम्न विशेषताएं है--

1. विकल्प की समस्या नही 

प्रक्षेपी प्रविधि के अंतर्गत उत्तदाता के समक्ष सीमित विकल्प की समस्या नही रहती है।

2. सामग्री बोध 

ये सामग्री बोध पर जोर देते है कि वह वस्तु को क्या अर्थ प्रदान करता है और उसे किस प्रकार संगठित करता है।

3. अंतक्रियाओं का ज्ञान 

इससे व्यक्ति के व्यक्तित्व, उसकी भावनाओं, संवेगों, आदतों एवं अन्य व्यक्तियों के साथ अंतःक्रिया का ज्ञान किया जा सकता है। 

4. उत्तेजक प्रतिक्रियाएं 

ये प्रविधियां विभिन्न प्रकार की उत्तेजक प्रतिक्रियाएं उत्पन्न करती है।

5. उत्तेजकों का कुशलतापूर्वक प्रस्तुतीकरण 

उत्तेजकों को इस प्रकार प्रस्तुत किया जाता है कि व्यक्ति को यह मालूम न पड़े कि किस उद्देश्य से यह परीक्षण किया जा रहा है।

प्रमुख प्रक्षेपी प्रविधियां 

प्रक्षेपी प्रविधियों के आधार पर मानव की मनोवृत्ति, विचार, घृणा, रूचि तथा अरूचि आदि मनोवैज्ञानिक बातों का सरलता से अध्ययन किया जा सकता है। जिन प्रक्षेपी विधियों को साधारणतः काम में लिया जाता है, वे इस प्रकार है-- 

1. रोर्शो टेस्ट 

इस टेस्ट में उत्तरदाताओं को इंक ब्लोट स्याही के धब्बे दिखलाये जाते है और चित्रों को देखकर उनके द्वार जो व्याख्या प्रस्तुत की जाती है उन्ही की सहायता से उत्तरदाताओं की मनोवृत्तियों, भावनाओं एवं उनके विचारों का पता लगाया जाता है।

2. टी. ए. टी. विधि 

इस विधि के अंतर्गत व्यक्ति को चित्रों का समूह दिखलाया जाता है। इन चित्रों को क्रमशः दिखलाया जाता है और उत्तरदाता से इन चित्रों को देखकर कहानी कहने के लिए कहा जाता है। इन विभिन्न चित्रों मे कुछ तो व्यक्ति या वस्तुओं का प्रत्यक्ष तथा कुछ अप्रत्यक्ष प्रतिनिधित्व करते है। इन चित्रों को देखकर विभिन्न उत्तरदाता विभिन्न कहानियां सुनाते है जो उनके पृथक-पृथक विचारों एवं भावनाओं की प्रतीक होती है।

2. टाॅमकिंस हार्न चित्र व्यवस्था टेस्ट 

यह एक नई तकनीकी है, जिसे समुदाय प्रशासन के प्रयोग में लाया जाता है। इस प्रविधि में 25 प्लेटें काम में लायी जाती है, जिन्हें अनेक विधियों से घटनाक्रम को चित्रित करने के लिए व्यवस्थित किया जाता है।

इन प्रविधियों के द्वार व्यवहार का विपुल निदर्शन प्राप्त कर लिया जाता है, जिससे अनेकों निर्णय, अनुमान या तर्क निकाले जा सकते है। उदाहरण के लिए 1951 में हेनरी और ग्यूटको ने तथा 1953 में हारबिट्ज और कार्टराइट ने टी. ए. टी. विधि द्वार छोटे समुदायों की विशेषताओं का पता लगाने के लिए परीक्षण किए थे। इसी प्रकार ड्यूबी ने 1944 में अपने अध्ययन 'एलोर के लोग' में संस्कृति और व्यक्तित्व के मध्य संबंध का अध्ययन करने के लिए प्रक्षेपी परीक्षण किये थे।

प्रक्षेपी परीक्षणों को अपनाये जाने के कारण 

प्रक्षेपी विधियों को निम्न कारणों से अपनाया जाता है-- 

1. इससे व्यक्ति अपने आपको सरलता से व्यक्त कर सकता है।

2. प्रश्नावली या साक्षात्कार की अपेक्षा इससे विस्तृत सूचनाएं प्राप्त की जा सकती है।

3. इसके माध्यम से व्यक्ति की भावनाओं, मनोवृत्तियों तथा विचारों को समझा जा सकता है।

4. यदि शोध के विषय को स्पष्ट रूप से बता दिया जाए तो मिलों में कार्य करने वाले श्रमिकों या विद्यालय में अध्ययनरत छात्रों से जानकारी प्राप्त करना कठिन हो जाता है, लेकिन इस विधि में शोध का विषय अव्यक्त रहने के कारण उनसे सफलतापूर्वक संपर्क किया जा सकता है।

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